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"क्या तुम मेरे हो?"

"क्या तुम मेरे हो?"

यह कहानी एक घमंडी लड़की फातिहा की है जो विदेश से हिन्दुस्तान अपने दादी के घर आती है।। उसके दिमाग़ मे हिन्दुस्तानी लोगों को जाहिल और अनपढ़ समझती है।। लेकिन उसका सामना होता है अपने ही कजिन उमम से।। दोनों में अपनी अपनी सोच को लेकर नोक झोंक चलती रहती है

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"क्या तुम मेरे हो?"

"क्या तुम मेरे हो?"

यह कहानी एक घमंडी लड़की फातिहा की है जो विदेश से हिन्दुस्तान अपने दादी के घर आती है।। उसके दिमाग़ मे हिन्दुस्तानी लोगों को जाहिल और अनपढ़ समझती है।। लेकिन उसका सामना होता है अपने ही कजिन उमम से।। दोनों में अपनी अपनी सोच को लेकर नोक झोंक चलती रहती है

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