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"पहली चटक मुलाक़ात"

21 सितम्बर 2021

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पता नही मम्मी और डैडी को अचानक से वापिस हिंदुस्तान जाने की क्या सूझी? अच्छी ख़ासी ज़िन्दगी में ये ब्रेक उसे क़तअन पसंद नही आया था! दबे लफ़्ज़ों में उसने मम्मी के सामने प्रोटेस्ट भी किया था,मगर मम्मी ने उसे डैडी का खौफ दिलाकर खामोश रहने कि लिये कहा था! वह खामोश तो हो गई थी मगर अंदर ही अंदर बुरी तरह चिढ़ रही थी,दो माह कैसे गुजारेगी वह वहां? उन पुराने खयालात कि लोगों में, बचपन में कभी वह अपने ददिहाल आई थी,उसके बाद कभी नही आई ना आने का सोचा था! उसे हिंदुस्तानी लोगों की सोच अजीब लगती थी! जबकि उसका कभी ऐसा वास्ता नही पड़ा था मगर मूवीज वगैरह में हिंदुस्तान कि हालत देखकर उसे कोफ़्त होने लगी थी!

"इतने दिन यहाँ कैसे रहूंगी?" कार के बाहर के मनाज़िर देखते हुए उसने फ़िक्र से सोचा! भारत कि लोगों कि रंग बिरंगे चेहरे, डैडी और मम्मी तो ताया जान से बातों में मगन थे उन्हें तो उसके एहसास की परवाह तक नही थी,उसने  ड्राइविंग करते ताया जानी पर नज़र डाली,जो उन्हें एयरपोर्ट से पिक करने आये थे!
" और बेटा आप भी बताओ कुछ अपने बारे में फातिहा" ताया जानी ने उसे बातों में हिस्सा लेने के लिये कहा था!
। "मैं क्या बताऊ?..घर कब पहुंचेंगे मुझे नींद आ रही है"? उसने कहा और फिर से बाहर देखने लगी! मम्मी ने उसके अंदाज़ पर उसे घूरा था, उसने उनकी घूरती नज़रों को महसूस किया और खुद में मुस्कुरा दी! कार उसकी उम्मीद के खिलाफ एक पॉश इलाक़े में दाखिल हुई थी, और चौड़ी गली के इर्द गिर्द लम्बे लम्बे दरख़्त खूबसूरत समां बांध रहे थे! शाम घिरने लगी थी, सफ़ेद पत्थर वाला बंग्ला उनके इंतज़ार में सजा संवरा खड़ा था! फातिहा ने कार से निकलते हुए सब जगह का जायज़ा लिया पोर्च के साथ लगे हुए लॉन से गुलाबों और चमेली के अलावा मौसम के फलों की खुशबु भी फूट रही थी! एक साथ ढेर सारे कज़िन्स शोर करते हुए आए और एक साथ वेलकम करने के साथ साथ उसे फूलों की माला भी पहना दी थी! उस वक़्त वह कुछ हैरान हुई थी, तक़रीबन सब कुछ ही उसकी उम्मीद के खिलाफ था
इसके बावजूद उसकी गर्दन का ख़म जियु  का तू था! "हमारे इंडिया में अपका तहे दिल से इस्तक़बाल  है मैं अपकी चचाज़ाद बहिन मदीना हूँ!" प्यारे चेहरे वाली लड़की ने बहुत मुलामियत से कहा! "और मैं इस बंदरिया का भाई आज़र हूँ"! साथ ही खड़ा एक नौजवान  चहकते  हुए बोला "अपने बारे में कुछ बताइये मुर्ग़ी  जी..वह..आई मीन  फ़ातिहा जी" वह हड़बड़ाने की एक्टिंग कर रहा था!.."आज़र..शटअप..सॉरी फ़ातिहा इसको मज़ाक की आदत है"राफे भाई ने टोका था साथ ही उससे मुआफी मांगी!.."हाँ तो यह उसे भी पता है कि मैंने मज़ाक किया है वह कौन सा सच को मुर्ग़ी है?"आज़र यक़ीनन बाज़  आने वालों में से नहीं था! फ़ातिहा के लबो पर पहली बार मुस्कराहट  फैली! उसे हसंते देख वह सब भी हंसने लगे थे! सारे ताया चाचा और फूपो के  बच्चों को  इकठा किया करके उसके कुल मिला कर आठ कज़िन्स बनते थे!
जिनके बीच वह रात के खाने की बाद यूँ बैठी थीं गोया उन लोगो के साथ नाजाने कब से रह रही है! नाहिद और मदीना कॉफ़ी बना लाई  थीं! "ले आईं दोनों छिपकलियां कॉफी!" आज़र ने कॉफी लेते हुए कहा तो इस बार फातेहा से रहा नहीं गया।। "लगता है आज़र को जानवरों से बहुत प्यार है।" वह कह उठी।।
*मैं क्या उमम हूं जो जानवरों से प्यार करता फिरूँ* आजर ने कंधे उचकाकर कहा।। फातेहा एकदम चौंक गई थी। शाम से लेकर अब तक यह नाम तीसरी मर्तबा उसके सामने आया था मगर वह पूछ नहीं पाती थी कि यह किस बला का नाम है??।जिसका ज़िक्र बार बार आ रहा था।इस वक़्त भी इससे पहले वह पूछती नाहीद तड़क कर बोली थी।*जी हां उमम भाई को जानवरो से प्यार है और यह खुद एक जानवर है*..उसे बदला चुकाते देख आज़र को भी जोश आ गया था फिर देर तलक उन दोनों की बहस होती रही और बाक़ी सब इसी का मज़ा लेते रहे!जब आज़र नाहिद को कुछ कह दे तो सब नाहिद पर हसने लगते और नाहिद जवाब दे देती तो फिर आज़र का मुँह देखने लायक होता!फातेहा तो खुद पर हैरान हो रही थीं कि उसे क्या हो गया!जिन लोगो के मुताल्लिक़ सोच सोच कर भी वह किलस रही थी अब उनके दर्मियान में उसे वक़्त का भी पता नहीं चल रहा था! शायद ऐसा  ही रहा तो यह सारा वक़्त बहुत अच्छा गुजरेगा 
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सुबह उसका देर तक सोने का प्लान था! मगर मम्मी ने  आकर 8 बजे ही उसकी चादर खींच दी थीं! *फातेहा उठो!सूरज निकल आया है* वह उसे इस तरह उठा रही थीं जैसे जंगे सरहद छिड़ गई हो.!*क्या हुआ? मम्मी सुबह 5 बजे तो सोई हूँ!" उसने झुंझला कर चादर वापस ओढ़ ली! *सब लोग उसी वक़्त सोये हैं!बल्कि बाक़ी लड़कियां फज्र की नमाज़ पढ़ कर सोई हैं और तुमसे बहुत पहले उठ चुकी हैं! कुछ तो ख्याल करो घर का हर शख़्स जाग चुका है*..मम्मी ने उसे झिंझोड़ ही डाला था!..*उफ़..सब उठ गए तो क्या मुझपर भी फ़र्ज़ है जो सब करेंगे मैं भी वही करूं* वह भिन्ना उठी..*होश की दवा लो लड़की! कुछ तो क़ायम मिजाज़ी ले आओ अपने अंदर !अब तो बचपन छोड़ दो!*...*मम्मी मुझे सख्त नींद आ रही है..प्लीज़..सोने दें मुझे*..वह आंखे मुश्किल से भी खोल नहीं पा रही थीं!.मम्मी ने तेज़ी से कमरे की पर्दे एक तरफ सरका दिए थे! सूरज की तेज़ किरणे फ़ौरन उसके कमरे में दाखिल होकर उसके बैड  पर भी कूद पड़ी!.*मम्मी" आँखों पर पड़ती चौंद से वह सख्त बेज़ार हुई और झल्लाती हुई बाथरूम में घुस गई!

ग़ुस्सा तो बहुत आ रहा था! मगर क्या करती ग़ुस्सा पी गई! नीचे आकर उसे पता  चला!दादा जानी के वक़्त से घर में यह रूल चला आ रहा है जब तक घर के सारे के सारे अफ़राद ना आ जाये नाश्ता नहीं शुरू होता!..इस रूल को बड़े ताया जानी ने बरक़रार रखा हुआ था! घर के सब लोग बड़े से ड्राइंग रूम के बड़े से टेबल के गिर्द मौजूद थे!..*शुरू हो गई अजीब रिवायात की कहानी* वह अपनी नींद ख़राब होने पर सुलगी हुई थीं! सबको सलाम करती अंदर से कुढ़ती चेयर पर बैठ गई थीं! *अस्सलामो अलेकुम...कैसे हैं सब लोग?" उसी वक़्त साबिया फूपो के बेटे दबीर की एंट्री हुई थीं!.."वालेकुम अस्सलाम" सारा हॉल एक साथ गूंज उठा! फातेहा भी उसकी तरफ देख रही थी!.."कोर्निश मिस इंग्लैंड" वह उसकी तरफ मुस्कुराता ताई अम्मी के पास रुक गया था.."अम्मी जी ने आलू भरे पराठे भेजे हैं गरमा गर्म ख़ास अपने इंग्लैंड पलट भाई  भाभी और भतीजी के लिए"..वह बड़े जोश में था.."मैं..?और सुबह सुबह आलू के पराठे खाउंगी..दिमाग़ ख़राब है क्या?*..फातेहा ने सर झटक कर कहा! हॉल में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था! दबीर चौंक कर उसका चेहरा देखने लगा था! सारी लड़कियां चुप चुप के एक दूसरे का मुँह ताक रही  थीं..!"फातेहा..तमीज़ में आ जाओ"मम्मी का बस नहीं चला कि उसका सर तोड़ देती.."कोई बात नहीं! मैं तो भई खाऊंगा पराठे!और सारे मैं ही ना खा जाऊ" मसअब साहब ने बेटी की ग़लती पर एकदम बात का रुख अपनी तरफ कर दिया था! "फिर तुम क्या घास खाओगी!??" दबीर ने शरारत से आंख दबाते हुए कहा!..जबकि वह अम्मी को घूर रही थी!!हर बात उसकी इतनी ग़लत की कैटेगरी में क्यों जा रही थीं? यहाँ हर बात पर ज़बान पकड़ी जाती थीं या मम्मी यहाँ कुछ ज़रूरत से ज़्यादा ही मोहतात हो रही थीं! जबकि दबीर तो गोया सब भूल कर खुद भी नाश्ता करने बैठ गया था! लेकिन उसका मूड ख़राब हो गया था!..जैसे तैसे नाश्ता करके वह वहां से उठ आई थीं.."अरे तुम कहाँ  चली ?यह टर्किश आमलेट बनाई है तुम्हारे लिए" उसे जाता देख समीरा ताई ने उसे रोकते हुए कहा.!"बस  शुक्रिया ताई अम्मी मैंने ले लिया है..मम्मी को दें" वह एक नाराज़ नज़र उनपर डालती बाहर निकल गई!

वह चलती हुई पिछले आंगन में आ गई।। धूप कियारियाओं पर फैली हुई थी।। मोईन वहां मौजूद था।।
फातेहा ने कुछ हैरत से उसे देखा!वह घोड़ा अस्तबल से बाहर निकाल रहा था!बादल जैसे रंग का खूबसूरत  घोड़ा देख कर फातेहा की आँखे चमक गई! मूड भी झटके में ठीक हो गया!"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?नाश्ता नहीं किया??"

."मोहतरमा आपके आगे आगे ही  मैं ड्राइंग रूम से बाहर आया हूँ कहाँ रहता है आपका दिमाग़"

"ओह्ह सॉरी मैं कहीं और सोच रही थी..बाई द वे बहुत खूबसूरत हॉर्स है तुम्हारा"

"बिला शुबहा खूबसूरत है मगर बदक़िस्मती से मेरा नहीं है" वह धीमे से मुस्कुराकर बोला!
"फिर किसका है? बहुत हसीं और मज़बूत है" वह घोड़े पर हाथ फेरते हुए बोली.

"यह उमम का है!"फातेहा ने झटके से उसे देखा!आखिर यह उमम था कौन हर जिसकी थीं! हर किसी के लबो पर उसी का ज़िक्र था! किसी न किसी सूरत?

"और इसका नाम ओज है.यू नो...ओज मीन्स ऊंचाई"..मोईन ने घोड़े को प्यार करते हुए कहा..फातेहा बहुत मुतास्सिर हुई

"वाव.. ब्यूटीफुल नाम ..बट यह उमम कौन है?"
उसने आखिकार दरयाफ्त किया था!..मोईन हंस दिया

"दूर होने से ऐसा हो जाता है इंसान..आपको अपने कज़िन्स तक का नहीं पता! उमम शफ़ी.. शफ़ी चाचा का इकलौता बेटा है!घर से दूर जंगलो में रहता है!"

"ओह अच्छा...फारेस्ट वर्कर"

"ऐसे ही समझ लो"

"वहां क्या वह पत्थर कूटता है" वह आंख दबा कर बोली!

"हाहाहा...नहीं जानवरों की रखवाली करता है!जो लोग जंगल में खो जाते हैं उनको रास्ता बताता है! बीच जंगलो में उसका कॉटेज है! यही सब उसकी जॉब में आता है..दरअसल हमारे दादा जी की यही जॉब थी!उनकी बहादुरी के क़िस्से सुन सुन कर हम लोग बड़े हुए हैं मगर उमम को इसकी धुन लग गई!वह दादा जी की तरह जानवरों से प्यार करता था! तो चाचा जानी ने उसे कभी रोका नहीं।" वह ओज को नहलाने लगा था!

"काफी इंटरस्टिंग जॉब है!वैसे यह दादा जी घर नहीं आते क्या कभी?" उसने उमम को ही दादा जी का ख़िताब दे दिया था!..
मोईन दांत दिखाने लगा था "आता है!ख़ास मौक़ो पर..जैसे ईद..वगैरह शायद अब आये आपके आने की खबर पहुंच गई है"

"हम्म"उसके मुताल्लिक़ सुन कर फातेहा को शोक तो होने लगा था उससे मिलने का!मगर वह इसका इज़हार किसी से करती ऐसा हो नहीं सकता था!कोई उसके लिए इतना भी खास नहीं हो सकता था! कि उसकी आमद का इन्तिज़ार करे! और  लोगो में इसका बयान करे! 
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घर के सब मर्द अपने अपने कामों पर चले गए थे!और लड़कियां और घर के छोटे नौजवान यूनिवर्सिटी जा चुके थे! मम्मी ने उसे आज भी इतनी जल्दी उठा दिया था! नाश्ते के बाद जब सब चले गए वह अपने कमरे में आ गई थी!दोस्तों से वीडियो चैट के बाद उसने गेम भी खूब खेल ली..टीवी भी देख लिया..मगर बोरियत ने उसका साथ नहीं छोड़ा! डैडी भी भाई और भतीजो के साथ उनके ऑफिस निकल गए थे वर्ना  वह उनके साथ ही चैस खेल लेती! बाहर जाने का इरादा करती वह तय्यार हो गई थीं! कैमरा लेकर नीचे आई तो घर की सब औरतें लाउंज में जमा थीं! दोपहर में क्या बनाये? यह पकाऊ टॉपिक छेड़ा हुआ था! "बेटा आप बताओ दोपहर में क्या खाओगी"..सोहनी चाची ने उसे देखते ही मुहब्बत से पूछा.."चाची मैं तो खाने तक शायद ना आऊं..असल में मैं आउटिंग पर जा रही हूँ"

"ओह अच्छा"..उन्होंने तो कुछ नहीं कहा मगर अब तक उसकी छोटी ड्रेस का जायज़ा लेती मम्मी ने दबे लहजे में उसे कहा था

"इन कपड़ों में?"

"क्यों इनमे क्या बुराई है?" वह खुद ही चटक गई थी!
मम्मी ने रोक टोक कर कर के उसकी ज़िन्दगी तबाह कर डाली थी! उनका हमेशा से यही हाल था! डैडी कुछ नहीं कहते थे मगर उनको फातेहा की हर चीज़ से ऐतराज़ होता था! वह ऐसे कपड़े क्यों पहन रही है! दोस्तों के साथ रात में कहीं नहीं जाना! वह इस तरह क्यों बोलती है! वगैरह वगैरह! उसकी आवाज़ पर सब औरतें उनकी तरफ देखने लगी थीं

"मैं तो हमेशा से ऐसे ही ड्रेस केरी करती हूँ..फिर अब क्या हो गया?"वह ठिनक कर बोली जिसपर मम्मी का मूड बुरी तरह उखड़ गया था

"बाज़ आ जाओ अपने इस लहजे से! फातेहा! वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!और ना तो यहाँ कोई ऐसे कपड़े पहनता है ना ही अकेली लड़कियां बाहर जाती हैं आउटिंग पर कमरे में जाओ जब तुम्हारे भाई बहन आ जायँगे तब जाना" ग़ुस्से में उन्होंने फैसला भी सुना दिया था! इससे पहले वह कुछ कहती आसिया ताई बोल उठी थीं!

"प्यार से बात करो मारिया..बच्ची है अभी समझ जाएगी..अभी तो आई है"

उनका प्यार भी उस वक़्त फातेहा को ज़हर लग रहा था!.सब कुछ हुआ तो उन लोगो की सोच की वजह से था!

"तौर तरीक़े माय फुट" वह अंदर अंदर कुढ़ते हुए मुंह से कुछ बोल नहीं सकी।

"मैंने कहा कमरे में जाओ" उनकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए मम्मी ने उसे घुड़का था!ग़ुस्से में जलती भुनती वह झट पट सीढ़ियां चढ़ती कमरे में आ गई थीं और दरवाज़ा दे मारा था!
"ना जाने कौन सी दुनिया के लोग हैं? आज भी सेवेंटीज में जी रहे हैं..एक तो मम्मी पहले ही माशा अल्लाह थीं ऊपर से इन लोगो की सोच की वजह से मेरा हर लम्हा हराम कर रखा है" वह कुढ़ते हुए कमरे में चक्कर काटने लगी थीं! पता नहीं कितना वक़्त  उसे जलते हुए गुज़र गया! नीचे सब लोग आ  गए थे मगर वह नहीं गई! किसी से मिलने का बिल्कुल दिल नहीं कर रहा था!मदीना ने आकर गेट नोक भी किया था खाना खाने के लिए बुलाने आई थीं! मगर वह बहरी बनी रही!शाम का वक़्त हुआ तो उसे भूक लगने लगी! दोपहर में भी कुछ नहीं खाया!वह दरवाज़ा खोल कर नीचे उतर आई!अभी तक वह मिनी स्कॉर्ट में मलबूस थी!लाउंज में कोई नहीं था!बल्कि कहीं से भी किसी की आवाज़ नहीं आ रही थी!अच्छा था कि सब अपने कमरों में थे उसका किसी से सामना करने का मूड भी नहीं थीं! दिल की धूल अभी भी छंटी नहीं थीं!खुद ही खाना लेने का सोच कर उसके किचन का रुख किया था! मगर फिर हल्का सा चौंकी क्योंकि लाउंज में भीनी भीनी सी कोई खुशबु टहल रही थीं!
जैसे किसी ने इत्र छिड़का हो!उसने देखा सामने वाले लम्बे सोफे पर कोई शख्स कुशन बाँहों में दबाये सो रहा था!उसने पहली बार उसे देखा था! लाउंज में जलती नारंगी लाइट उसकी पेशानी को चूम रही थी!थकन के हलके से आसार खूबसूरत चेहरे पर वाज़ेह हो रहे थे!जैसे कोई बहुत लम्बे सफर से लोटा था!फातेहा उसके आस पास घूम कर उसका जायज़ा लेने लगी थीं! शायद उसे पहचानने की कोशिश कर रही थीं! जब किसी की मौजूद्गगी को महसूस करते हुए वह आंखे खोल कर देखने लगा था! वह सोफे की बेक साइड से उसकी तरफ झुकी हुई उसे बड़े गौर से तक रही थीं!उसे आंखे खोलते देख बोखला कर पीछे हुई और फ्लावर पॉट से टकराई! फ्लावर पॉट घूमता हुआ ज़मीन पर धूल चाटने के लिए चला लेकिन उस शख्स ने फौरी तोर पर उठते हुए एक हाथ से लड़खड़ाती लड़की की कलाई थाम ली थीं और दूसरे हाथ से गिरते हुए पॉट को पकड़ लिया था!

"संभल कर" उसने तेज़ी से कहा! फातेहा ने सम्भलते ही तेज़ी से अपनी कलाई छुड़ाई थीं!

"हद्द है! मेरी कलाई किससे पूछ कर पकड़ी??"
उसने तुनक कर कहा! शायद अपनी झेंप मिटा रही थीं मगर वह उसके अंदाज़ पर जितना हैरान हुआ था उतना ही उसकी बात पर फुक गया था।  वह उसे समझ क्या रही थीं?

"ख्वाब में इल्हाम हुआ था आपकी कलाई पकड़ने के लिए इसलिए पकड़ी" उसका लहजा भी जला कटा था! बन तो यूँ रही थी गोया उसे पता नहीं है कि क्यों उसे क्यों उसकी कलाई पकड़नी पड़ी!

"जी आप जैसे लोगो को इसके इलावा ख्वाब भी क्या आ सकते हैं"? वह शाने उचकाते हुए बोली! उसका चेहरा ग़ुस्से से सुर्ख हो गया था! अब उसे पछतावा हो रहा था कि उसने क्यों इस लड़की को गिरने से बचाया! मज़ा तब था कि गिरने दिया होता! बल्कि  साथ  ही  उसे  तालियां  भी  बजानी  चाहिए  थीं ! सुलगी हुई नज़र से  उसने एक लम्हें में उसका जायज़ा ले डाला था

"बेहतर होगा मैं कोई जवाब न देकर आपके मुँह ना लगूँ " वह झटके से पलट कर सोफे पर बैठ गया था और शूज़ उतारने लगा!तभी सायमा चाची और मदीना एक साथ  अंदर आई थीं!
"उमम...आप?" मदीना की आवाज़ में हैरत के साथ साथ ख़ुशी की चिड़ियें चहक रही थीं!

"आप आ गए बेटा..इस तरह बिना बताये!"सायमा चाची की आँखों से बेटे के लिए प्यार की बारिश होने लगी थीं!

"जी..अब्बू जी का कॉल गया था..कि मसअब चाचा आये हुए हैं तो मिलने चला आया" वह उनके सामने पेशानी झुकाते हुए बोला!..सायमा चाची ने उसकी पेशानी पर बोसा दिया!..

"उमम?" फातेहा के अंदर कहीं गूंजा!.."तो यह है उमम?" वह दोबारा उसका जायज़ा लेने लगी थीं! मिलट्री प्रिंट जेकट और जीन्ज़ में वह शख्स सच मुच् सब से अलग ही था! मगर उसे क्या? उसे तो पहली मुलाक़ात में चिड़ा दिया था! "यह मसब चाचा की बेटी फातेहा है!"मदीना ने बीच में बोलना बेहतर समझा!.

"जी.. लगती नही मगर मारिया चाची और मसब चाचा से बहुत मुख्तलिफ (अलग) है" वह मदीना को देखते हुए बोला मगर तीर सीधा फातेहा को लगा!

"फातेहा तुमने अभी तक चेंज नहीं किया?? मम्मी फिर से कहीं से नमूदार हुई थीं! फातेहा बुरी तरह चिढ़  गई मगर सिर्फ ज़ेरे लब बड़बड़ाई "यहाँ आकर मम्मी भी इन लोगो की तरह जाहिल और देहाती हो गई हैं".वह बहुत बुरी तरह जल रही थीं! बदन में जैसे किसी ने आग लगा दी थीं! उसका धीमी आवाज़ का जुमला उमम ने बहुत आसानी से सुन लिया था! मगर सिर्फ गहरा सांस लेकर रह गया!ऐसे बदज़बान लोगो से बहस करना उसकी आदत नहीं थीं!

"मैंने तो आपका कमरा भी साफ़ नहीं कराया!आपने आने की इत्तिला नहीं दी! आज रूही भी छुट्टी पर है और अख्तर भी मार्किट गया है आप 10 मिनट रुको मैं खुद रूम की सफाई कर दूंगी"

"अरे नहीं.अम्मी.."वह सर नफ़ी में हिलाते हुए बोला था मगर मदीना ने बीच में बात काट दी

"आप क्यों करेंगी?? मैं हूँ ना।मैं करके आती हूँ" वह जल्दी जल्दी सीढ़ियां चढ़ गई थीं

"लोगो को ऐसे वक़्त में अपने नंबर बढ़ाने का कितना शोक होता है?? भले ही फिर उन्हें किसी की नौकरी क्यों ना करनी पड़े" सायमा चाची को मदीना की तरफ प्यार से देखते देख फातेहा ने भवें उचकाते हुए सोचा था! जबकि उमम मारिया की तरफ बढ़ गया था मिलने की ग़रज़ से
और वह खाना वाना छोड़ हवा की सी तेज़ी से वहां से निकल गई थीं 

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"क्या तुम मेरे हो?"
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यह कहानी एक घमंडी लड़की फातिहा की है जो विदेश से हिन्दुस्तान अपने दादी के घर आती है।। उसके दिमाग़ मे हिन्दुस्तानी लोगों को जाहिल और अनपढ़ समझती है।। लेकिन उसका सामना होता है अपने ही कजिन उमम से।। दोनों में अपनी अपनी सोच को लेकर नोक झोंक चलती रहती है लेकिन एक दिन फातिहा को उमम से प्यार हो जाता है मगर वह देखती है कि उमम सच मे ही उससे नफरत करता है।।" आगे देखिये क्या फातिहा उमम का दिल जीत पायेगी।।?

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