हाँ! गुलज़ार
जो तुमसे आया है
लफ़्ज़-ए-मानी तुम हो
लफ़्ज़बयानी तुम हो
अपनी मनमानी तुम हो
बंद शब्दों की चाभी तुम हो
हम पढ़ते हैं सुनते हैं
गाते हैं गुनगुनाते हैं
शब्द की चाल के साथ
चलते चले जाते हैं
हाँ! गुलज़ार
एहसासों के गाल के
निगाहों के थाल के
मधुचुम्मन हो तुम
जीवन के
इंद्रधनुषी रंग हो तुम
इठलाते-तुतलाते
शब्दों की
मुरम्मत हो तुम
हाँ! गुलज़ार
शब्दों के बाग़बान
मसीहा हो तुम
पोशीदा रिश्तों के
सोपान हो तुम
कोई और जज़्बात नहीं
कोई और एहसास नहीं
कोई और नाम नहीं
तुम सिर्फ और सिर्फ
गुलज़ार हो
गुलज़ार हो
हाँ! बहुत कुछ
गुलज़ार हो