1
बड़ों का साया न हो तो घर घर नहीं रहता
बिन माँ के बच्चे को कोई कुंवर नहीं कहता
अच्छी परवरिश के लिए संस्कार जरूरी हैं
बिन पानी के कोई पौधा यूं पेड़ नहीं होता
शून्य से है एक बने फिर एक से एक करोड़
नियम है गणित का कोई सवासेर नही होता
माँ बाप की सेवा करना ही असली पूँजी है
चोरी से कमाया गया धन कुबेर नहीं होता
भटक जाऊँ कभी तो वो संभाल लेता है मुझे
गुरू रोशनी सा हो तो कभी अंधेर नहीं होता
पानी की तरह सदा बहते रहना ही ज़िन्दगी है
अच्छा करूँ तो फिर किसी को गुरेज़ नहीं होता
2
माँगी जो मुरादे मैनें बस तेरे ही ख़ातिर
तू ही है मुर्शिद मेरा और तू ही है साहिर
कच्ची मिटटी के जैसा हूँ मुझे तू बना दे
मैं जानता हूँ हाथों का तू है बड़ा माहिर
मझदार सफ़ीना खड़ी उसे पार तू लगा दे
बन तू केवट नाव का और मैं हूँ मुहाज़िर
हैं उलझनें ज़िंदगी की कैसे मैं सुलझाऊँ
हर तरफ सवाली हैं पर तू है मेरा हाज़िर
मैं रिक्त हूँ तू रक्त है तभी ये जिंदगी है
तुझको ही रब मान लिया तू मेरी बंदगी है
सबका अपना मालिक है मुझको मंजूर है
शिष्य कहलाऊँ बस तेरा तू मेरा हुज़ूर है
- संगम वर्मा