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फिल्म एक नजर में : वजीर

13 जनवरी 2016

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article-imageवजीर के ट्रेलर ने ही काफी उत्सुकता जगा दी थी ,जिसकी मुख्य वजह इसकी स्टारकास्ट भी थी .

अमिताभ बच्चन ,फरहान अख्तर ,जॉन अब्राहम ,नील नितिन मुकेश , आदि ,ऊपर से विधु विनोद चोपड़ा का प्रोडक्शन एवम बिजॉय  नाम्बियार का निर्देशन जिनके निर्देशन में हमेशा कुछ हटके मिला है बोलीवूड को ,किन्तु सफलता हमेशा औसत ही रही है ,चाहे वह ‘शैतान हो ‘डेविड ‘ हो या पिज्जा ( बतौर प्रोड्यूसर ) हो .

उनकी यह फिल्म भी उन्ही की शैली को आगे बढ़ाती है ,

डार्क फिनिशिंग एवं सस्पेंस का घालमेल ,

कहानी की शुरुवात होती है ,एटीएस ऑफिसर दानिश अली (फरहान अख्तर) से  ,

जो अपनी पत्नी रुहाना (अदिति राव ) और बेटी के साथ खुशी की जिंदगी बिता रहा है।

 किन्तु एक आतंकवादी का पीछा करते वक्त बेटी के साथ होने की बेवकूफी के

 कारण हमले में वह अपनी बेटी को खो देता है ,

 बेटी की मौत का जिम्मेदार रूही दानिश को मानती है और उससे दुरी बना लेती है , 

टूट चुके दानिश से कुछ गलतिया होती है जिस कारण 

 उसे एटीएस की नौकरी से भी सस्पेंड कर दिया जाता है। 

ऐसे वक़्त में उसकी मुलाक़ात पंडित ओंकारनाथ धर (अमिताभ बच्चन) से होती है,पंडित जी अपाहिज है और शतरंज के जाने माने प्रशिक्षक भी है , पंडित जी दानिश की बेटी को शतरंज सिखाया करते थे , पंडित जी की बेटी की मौत हो चुकी है और पत्नी भी इस दुनिया में नहीं है ! दानिश और पंडित जी एकदूसरे के दोस्त बन जाते है ,

किन्तु पंडित जी थोड़े अजीब किस्म के व्यक्ति है ,

वो अपनी बेटी की मौत के लिए मंत्री ( मानव कौल ) को जिम्मेदार मानता 

है और वह उसे सजा दिलवाना चाहता है ,

इस प्रयास के चलते पंडित जी को जान से मारने की कोशिश भी होती है

 ‘वजीर ‘ द्वारा ( नील नितिन मुकेश ) , दानिश पंडित जी की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है 

लेकिन वजीर की हर चाल उनसे दो कदम आगे है !

 और यह वजीर बिसात पलटने की क्षमता रखता है , कौन है यह वजीर  ? 

फिर क्या होता है यह कहानी का अगला हिस्सा है .

फिल्म रफ़्तार में चलती है ,विषय के हिसाब से ऐसी फिल्मे अक्सर धीमी

 और उकताऊ होती है ! किन्तु यहाँ निर्देशक की प्रशंशा की जानी चाहिए

 के उन्होंने फिल्म में पर्याप्त चुस्ती फुर्ती बनाए राखी है बिना कहानी से

 समझौता किये ,फिल्म कही भी धीमी नहीं है .

संगीत ठीक ठाक है ,लम्बे समय तक याद रखे जा सकनेवाले गीत नदारद है

 ,’तेरे बिन ‘ मौसमी बुखार है तो ‘अतरंगी यारी ‘ हफ्ते दो दो हफ्ते का खुमार ,

अभिनय में बिनाशक फरहान एवं अमिताभ छाये रहे , 

जॉन अब्राहम और नील नितिन मुकेश मुश्किल से पांच मिनट के लिए ही है ,

 नितिन मुकेश इन कुछ मिनटों में भी खलनायक के तौर पर बढ़िया प्रभाव पैदा

 करते है तो जॉन को अभिनय का मौका ही नहीं मिला .

फिल्म थ्रिलर तो है किन्तु कोई जबरदस्त थ्रिल या सस्पेंस नहीं है , 

थ्रिल सस्पेंस फिल्मे देखनेवाले एवं उपन्यास पढनेवाले दर्शको को फिल्म

 प्रेडिक्टबल लग सकती है ,आसानी से आनेवाले ट्विस्ट का अंदेशा हो जाता है .

किन्तु जिन्हें इन सबकी आदत नहीं है उनके लिए जरुर ट्विस्ट हैरत के डोज का काम करेगी .

कुल मिला कर फिल्म एक बार देखनेलायक है ही ,

 ज्यादा उम्मीदे न पाले तो बेहतर .

तीन स्टार .


देवेन पाण्डेय 

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