गाँव कथा
दिनांक 14 अप्रैल 2015
चंदनवा के यहाँ तिलक था ! राम आसरे यु तो न्योता खाने के बड़े शौक़ीन थे ,किन्तु उस दिन ज्यो न्योते में गए तो तुरंत ही वापस आ गए !
कल्लन ने भी सोचा न्योते में जाने के लिए राम आसरे को लेता चलु ,अकेले जाने से थोडा संकोच तो होता ही है खाने में ! दो जन रहेंगे तो थोड़ी बेफिक्री रहेगी .
‘’राम आसरे , चलो चंदनवा के हिया हो आये ! ‘’
राम आसरे आंगने में आये ,हाथ में गमछा लिए हुए ! हाथ और मुंह पोंछते हुए ,यह तो कल्लन की आशा के विपरीत था ,उसे शंका हुयी की आसरे भोजन घर में ही कर चुके है !
रही सही पुष्टि आसरे के मुंह से निकली डकार ने पूरी कर दी !
‘’भईया तुम चले जाओ ,हम तो जाकर आ चुके ‘’ आसरे ने कहा
‘’ काहे खाना अच्छा नहीं बना था का ? घर ही में भोजन किये प्रतीत होते है ‘’ कल्लन का हृदय धडक उठा न्योते का मजा खराब होने की आशंका से .
‘’पता नहीं ! हमने तो चखा ही नहीं ‘’ आसरे ने जवाब दिया !
‘’ काहे ? ऐसा क्या हुवा ,कौनो लौंडा बदतमीजी किये का ? ‘’
‘’ अरे नहीं नहीं ! भला हमसे कौन बदतमीजी करेगा ,वो तो वो नया सिस्टम है न आजकल चला हुवा ! क्या कहते है उसे जो हाथ में खाना लेकर खाने वाला ?’’
‘’बुफे सिस्टम ‘’ कल्लन ने उत्तर दिया ,
‘’ हां वही ‘बफर सिस्टम ‘! उसमे मजा नहीं आया , हम चले आये सब देखकर ,मन नहीं किया खाने का ‘’ आसरे ने मुंह बनाते हुए कहा .
‘’ ऐसा क्यों ?’’
‘’अरे भईया वो बैठक वाली भारतीय पद्धति में जो मजा है वो बुफे में नहीं है ! वहा जाकर देखे तो हर कोई लपका पड़ा है ,अलग अलग डेगचीयो पर लोगो का हुजूम यु टूटा मानो यह दुनिया का आखिरी न्योता हो ,अनुशाशनहीनता थी हर जगह ! हमसे सहन नहीं हुयी यह अनुशाशन हीनता ! भैया जो सम्मान बैठक में बैठ कर खाने में है वो भला भिखारियों के जैसे कटोरा लेके अपनी बारी आने का इन्तेजार करने में कहा है ? ‘ आसरे ने दुखड़ा सुनाया
‘’सो तो है भईया ,किन्तु न्योते का मान तो रखना ही होगा न ?’’ कल्लन बोला
‘’हां न्योते में पचास रूपये लिखवा दिए है ,लेकिन खाने को दिल नहीं किया ,कमलेसवा तो प्लेट लेके खड़ा रहा ,रसगुल्ला मांगे किन्तु मिला नहीं ,चार बार आवाज दिए किन्तु कोई लौंडा नहीं सूना ! भईया हमारे में तो ऐसा अपमान सहने छमता ( क्षमता ) नहीं थी ,आजकल के लौंडो को भला कहा सुनने की फुर्सत है ,जुल्फी बढाये ,सलवार जैसन जिंसवा पहिने ससुरे लपुझन्ने बने बैठे रहेंगे सारे ( साले ) बाप दद्दे की इज्जत मिटटी में मिलाये दे रहे है ! सहरी ( शहरी ) चोंचला गाँव में चलाये रहे है , तो बताओ का जाए न्योता में खाने ? ‘’
‘’ सही कहे भईया ,अच्छा तो हम भी हो आते है ,न्योते का मान रख के ‘’ कहते कल्लन मुंह लटकाए चल दिया !
( घटना ,संवाद असली है ,पात्रो के नाम अलग अलग है )
गाँव कथा : 2
दिनांक 14 अप्रैल 2015
बुफे सिस्टम
चंदनवा के यहाँ तिलक था ! राम आसरे यु तो न्योता खाने के बड़े शौक़ीन थे ,किन्तु उस दिन ज्यो न्योते में गए तो तुरंत ही वापस आ गए !
कल्लन ने भी सोचा न्योते में जाने के लिए राम आसरे को लेता चलु ,अकेले जाने से थोडा संकोच तो होता ही है खाने में ! दो जन रहेंगे तो थोड़ी बेफिक्री रहेगी .
‘’राम आसरे , चलो चंदनवा के हिया हो आये ! ‘’
राम आसरे आंगने में आये ,हाथ में गमछा लिए हुए ! हाथ और मुंह पोंछते हुए ,यह तो कल्लन की आशा के विपरीत था ,उसे शंका हुयी की आसरे भोजन घर में ही कर चुके है !
रही सही पुष्टि आसरे के मुंह से निकली डकार ने पूरी कर दी !
‘’भईया तुम चले जाओ ,हम तो जाकर आ चुके ‘’ आसरे ने कहा
‘’ काहे खाना अच्छा नहीं बना था का ? घर ही में भोजन किये प्रतीत होते है ‘’ कल्लन का हृदय धडक उठा न्योते का मजा खराब होने की आशंका से .
‘’पता नहीं ! हमने तो चखा ही नहीं ‘’ आसरे ने जवाब दिया !
‘’ काहे ? ऐसा क्या हुवा ,कौनो लौंडा बदतमीजी किये का ? ‘’
‘’ अरे नहीं नहीं ! भला हमसे कौन बदतमीजी करेगा ,वो तो वो नया सिस्टम है न आजकल चला हुवा ! क्या कहते है उसे जो हाथ में खाना लेकर खाने वाला ?’’
‘’बुफे सिस्टम ‘’ कल्लन ने उत्तर दिया ,
‘’ हां वही ‘बफर सिस्टम ‘! उसमे मजा नहीं आया , हम चले आये सब देखकर ,मन नहीं किया खाने का ‘’ आसरे ने मुंह बनाते हुए कहा .
‘’ ऐसा क्यों ?’’
‘’अरे भईया वो बैठक वाली भारतीय पद्धति में जो मजा है वो बुफे में नहीं है ! वहा जाकर देखे तो हर कोई लपका पड़ा है ,अलग अलग डेगचीयो पर लोगो का हुजूम यु टूटा मानो यह दुनिया का आखिरी न्योता हो ,अनुशाशनहीनता थी हर जगह ! हमसे सहन नहीं हुयी यह अनुशाशन हीनता ! भैया जो सम्मान बैठक में बैठ कर खाने में है वो भला भिखारियों के जैसे कटोरा लेके अपनी बारी आने का इन्तेजार करने में कहा है ? ‘ आसरे ने दुखड़ा सुनाया
‘’सो तो है भईया ,किन्तु न्योते का मान तो रखना ही होगा न ?’’ कल्लन बोला
‘’हां न्योते में पचास रूपये लिखवा दिए है ,लेकिन खाने को दिल नहीं किया ,कमलेसवा तो प्लेट लेके खड़ा रहा ,रसगुल्ला मांगे किन्तु मिला नहीं ,चार बार आवाज दिए किन्तु कोई लौंडा नहीं सूना ! भईया हमारे में तो ऐसा अपमान सहने छमता ( क्षमता ) नहीं थी ,आजकल के लौंडो को भला कहा सुनने की फुर्सत है ,जुल्फी बढाये ,सलवार जैसन जिंसवा पहिने ससुरे लपुझन्ने बने बैठे रहेंगे सारे ( साले ) बाप दद्दे की इज्जत मिटटी में मिलाये दे रहे है ! सहरी ( शहरी ) चोंचला गाँव में चलाये रहे है , तो बताओ का जाए न्योता में खाने ? ‘’
‘’ सही कहे भईया ,अच्छा तो हम भी हो आते है ,न्योते का मान रख के ‘’ कहते कल्लन मुंह लटकाए चल दिया !
( घटना ,संवाद असली है ,पात्रो के नाम अलग अलग है )