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मांझी दी माउन्टन मैन : ‘शानदार ,जबरजस्त ,जिंदाबाद ‘

22 अगस्त 2015

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बिहार के अतिपिछडे इलाके में जन्मे ‘दशरथ मांझी ‘ की सत्य कथा पर आधारित इस फिल्म के निर्माण होने की घोषणा होने पर उत्सुकता जगी थी के अब बॉलीवूड में कुछ तो सार्थक देखने को मिलेगा . और फिल्म देखने के पश्चात यह बात सत्य प्रतीत हुयी ,वैसे भी बॉलीवूड की हवा आजकल कुछ बदली हुयी है ! काफी रचनात्मक प्रयास आ रहे है , किन्तु भेडचाल अभी भी जारी है ! स्टारडम के खेल में न जाने कितनी ही उल जलूल फिल्मो से बॉक्स ऑफिस भरा पड़ा रहता है ,एक खोजे तो सौ मिलेंगी ऐसी मनोरंजन के नाम पर कूड़ा फिल्मे , किन्तु कुछ अच्छी एवं साहसिक फिल्मो का नाम लिया जाए तो उंगलियों पर गिनने लायक ही मिलेंगी ! इस साल की सर्वाधिक चर्चित एवं सफल फिल्म भी बॉलीवूड की बजाय दक्षिण की रही ,जिसने बड़े बड़े स्टारों के गुमान को चूर करके एक नया इतिहास रच दिया , चूँकि मांझी और बाहुबली दोनों ही में ही जमींन आसमान का फर्क है , किन्तु यहाँ दोनों फिल्मे साहसिक प्रयोग के लिए ही चर्चित होंगी इसमें संदेह नहीं .मांझी के निर्माता है ‘केतन मेहता ‘ जिन्होंने ‘मंगल पाण्डेय ‘ से प्रसिद्धि बटोरी थी , काफी आलोचना भी झेली थी, इतिहास का गलत चित्रांकन एवं तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करने के मामले में .उनकी इस फिल्म की चर्चा तो बहुत हुयी किन्तु यह सफल न हो सकी ! उनके विवादास्पद प्रयोग जारी रहे और ‘रंगरसिया ‘ फिल्म के रूप में दोबारा वे नजर आये , जो के फिल्म के मूल विषय से ज्यादा फिल्म के अन्तरंग दृश्यों से अधिक चर्चा एवं विवादों में रही .इसी क्रम में आती है ‘मांझी ‘ ! मांझी के बारे में अधिकतर लोगो को शायद पता न हो , किन्तु इस फिल्म के प्रचार प्रसार के दौरान जरुर लोगो के मैन में इस व्यक्ति के प्रति उत्सुकता पैदा कर दी,जिसने अकेले एक पहाड़ को बाईस साल तक कड़ी मेहनत से तोड़ मार्ग बनाया .यह हमारे देश का दुर्भाग्य है के यहाँ ऐसे लोग सदैव अभावो में जीते है, जो सच में कुछ अच्छा करना चाहते है ! अभाव, गरीबी, ही इनका मुकद्दर है , मांझी पर आमिर खान के कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते ‘ में भी एक विशेष एपिसोड था !किन्तु उससे क्या बदला ? कुछ भी नहीं , मांझी का परिवार उनकी मृत्योपरांत आज भी गरीबी रेखा के निचे जी रहा है, और किसी को उनकी सुध नहीं !मांझी जब युवा थे तब दबंगों एवं ऊँची जातियों के बिच पिसते रहे , अत्याचार और शोषण सहते रहे , मरने के बाद भी मांझी केवल फायदे के लिए ही याद किये जाते है नहीं तो किसी को क्या लेना देना .फिल्म की बात करते है ,यहाँ भी सत्य कहानी की नीरसता को महसूस करते हुए निर्माता निर्देशक कुछ बिनमतलब के दृश्यों का छौंका लगाने की मज़बूरी के शिकार नजर आये .जो शायद बॉक्स ऑफिस की मज़बूरी भी कह सकते है ,यहाँ जब तक कुछ चटपटा न मिले तब तक कोई कुछ देखना नहीं चाहता !‘’दशरथ मांझी ‘( नवजुद्दीन सिद्दीकी ) एक पिछड़ी जाती का युवक है , जो एक दुर्गम प्रदेश में रहता है ,जहा कोई भी सुविधा नहीं है ! एकमात्र अस्पताल एवं सडक भी पहाड़ के पार है ,जिसे या तो चालीस किलोमीटर सडक से पार करे अथवा पहाड़ चढ़ कर .मांझी के पिता गाँव के दबंग मुखिया ( तिग्मांशु धुलिया ) के कर्जे के चलते बंधुवा मजदूरी पर विवश है , और तो और मांझी भी बंधुवा बनने की रह पर है किन्तु उसे यह मंजूर नहीं होता और वह घर छोड़ कर भाग जाता है .कुछ वर्षो पश्चात उसकी वापसी होती है ,और वह अपनी पत्नी ‘फगुनिया ‘ ( राधिका आप्टे ) से मिलता है ! जिसके साथ उसका विवाह बाल्यकाल में ही हो जाता है .दोनों में प्रेम अटूट है ,अभावो की मार भी इस अहसास को कमजोर नहीं कर पाती ,किन्तु इनके प्रेम को नजर लग जाती है और फगुनिया पहाड़ से गिर जाती है , समय पर इलाज के अभाव में फगुनिया की मृत्यु हो जाती है और मांझी विशिप्त सा हो जाता है .अब वह उस पहाड़ को ही फगुनिया की मृत्यु का कारण मानता है और जुट जाता है अकेले उस पहाड़ को तोड़ने के लिए .शुरुवात में सभी उसे पागल समझते है ,नजरअंदाज कर देते है ! किन्तु शीघ्र ही उसके कार्य का असर दीखता है एवं दबंगों का दबाव भी बढ़ता है , सरकारी मदद भी हडप ली जाती है ,किन्तु मांझी हार नहीं मानता और बिना किसी सरकारी मदद के अथक प्रयत्नों से पहाड़ तोड़ कर मार्ग बना देता है .मांझी के किरदार में नवजुद्दीन एकदम सही है ! उन्होंने बहुत जल्दी बोलीवूड में अपनी पैठ बना ली है ,आलम यह है के नवाजुद्दीन का भी एक अलग दर्शक वर्ग तैयार हो गया है ,जो उनके नाम पर खींचे चले आते है के कुछ बढ़िया देखने को मिलेगा .मांझी के किरदार में वेपुरी तरह से राम से गए है , उनकी एक्टिंग फिल्म की आत्मा है , तो वही राधिका आप्टे भी नए नए रोल्स में दिख रही है ! यहाँ उन्होंने गलैमरविहीन महिला का किरदार अदा किया है , और वे पूरी तरह से उस किरदार में घुल जाती है ,गाँव के मुखिया के किरदार में है तिग्मांशु धुलिया जो स्वयम एक निर्देशक है ! यहाँ वे गैंग्स ऑफ़ वासेपुर के रामाधिर सिंह की याद दिलाते है .संगीत पक्ष की बात करे तो फिल्म में गीत संगीत के लिए कोई स्कोप था ही नहीं , इसलिए उम्मीद न ही रखे !एक फिल्म के रूप में ‘मांझी ‘ वाकई बढ़िया एवं उत्कृष्ट फिल्म है , जिसे सिनेमाप्रेमियो को अवश्य देखना चाहिए ,यहाँ स्टारडम भले ही नहीं है किन्तु कहानी है , बढ़िया अभिनय है और बढ़िया प्रस्तुती है .और अंत में फिल्म का एक संवाद जो इसकी कहानी स्वयम प्रस्तुत करता है , अब तक के बेहतरीन संवादों में से एक ,मांझी के शब्दों में कहे तो ‘शानदार ,जबरजस्त ,जिंदाबाद ‘'भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, क्या पता भगवान हमारे भरोसे बैठा हो। 'चार स्टार देवेन पाण्डेय - See more at: http://deven-d.blogspot.in/2015/08/blog-post_21.html#sthash.YkztWQZb.dpuf
प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत सही वर्णन

25 अगस्त 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

वाकई ऐसी मूवीस कम ही बनती है ,,,,,,

24 अगस्त 2015

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गहन खामोशी

7 मई 2015
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माँ और सिरका

10 मई 2015
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वो हमेशा माँ की नाक में दम किये रहता था। माँ हमेशा हैरान रहा करती थी। उसकी एक आदत बड़ी खराब थी, घर में रखे "सिरके" को चाटने की । सिरके का खट्टा स्वाद उसे बहुत पसंद था, जब भी मौका देखता दो चार चम्मच मार लेता । माँ ने इस तरह से सिरके को जूठा करने के लिये जमकर लताड़ा ,लेकिन उसे न समझना था। सो नही समझा

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बुफे सिस्टम

12 मई 2015
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गाँव कथा दिनांक 14 अप्रैल 2015 चंदनवा के यहाँ तिलक था ! राम आसरे यु तो न्योता खाने के बड़े शौक़ीन थे ,किन्तु उस दिन ज्यो न्योते में गए तो तुरंत ही वापस आ गए ! कल्लन ने भी सोचा न्योते में जाने के लिए राम आसरे को लेता चलु ,अकेले जाने से थोडा संकोच तो होता ही है खाने में ! दो जन रहेंगे तो थोड़ी बेफिक्

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फिल्म एक नजर में ( क्लासिक्स ) : गाईड ( १९६५ )

14 मई 2015
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निर्देशन: विजय आनंद निर्माता: देव आनंद कलाकार: देव आनंद, वहीदा रहमान, किशोर साहू,लीला चिटनिस लेखक: आर. के. नारायण (उपन्यास) संगीत: एस.डी.बर्मन

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धर्म के सेल्समैन !

19 मई 2015
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आज शाम को ऑफिस से आकर ज्यो ही आराम करने बैठा के दरवाजे पर दस्तक हुयी ! मैंने दरवाजा खोला तो सामने दो युवक खड़े थे ,दोनों के हाथ में हैंडबैग थे , मैंने पहले उन्हें देखा उन्होंने मुस्कुराहट दिखाई और न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा के ये या तो सेल्समैन है या किसी धर्म के प्रचारक ! मन तो किया के दरवाजा तुरंत ब

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फिल्म एक नजर में : बॉम्बे वेलवेट

20 मई 2015
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अग्ली ‘ के बाद अनुराग कश्यप अपनी नई फिल्म लेकर आये है , जो उनकी अब तक बनाई गई सभी फिल्मो से अलग है ! वैसे ‘बॉम्बे वेलवेट’ अनुराग का सपना रही है ,जिस पर उन्होंने वर्षो मेहनत की है , फिल्म देखते वक्त आपको वह मेहनत साफ़ नजर आती है ,उनकी लगन फिल्म में साफ़ झलकती है ! किन्तु सिर्फ फिल्मांकन तक ही ,कह

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पुस्तक समिक्षा : कोहबर की शर्त

28 मई 2015
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बड़े दिनों से इस पुस्तक की तलाश थी , बड़ी मुश्किल से मिली और मैंने एकाध पृष्ठ पलट कर देखे , पुस्तक कोई नया संस्करण नहीं था ! पुराना ही संस्करण था ,जिसमे से पुरानी पुस्तक की महक आ रही थी ,जो भीनी भीनी सी थी ! और इसी महक के कारण पुस्तक पढने का वातावरण भी तैयार हो गया , गंवई भाषा को देखकर पुस्तक से अप

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पुस्तक समीक्षा : बनारस टाकिज

10 जुलाई 2015
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बनारस टॉकीज : इस पुस्तक का मैंने हाल ही में बड़ा नाम सुना था ,काफी चर्चा हो रही थी शोशल जगत की आभासी दुनिया में ! हम तो ठहरे पुस्तक प्रेमी ,तो भला हम इससे कैसे अछूते रहते भला ! वैसे भी आजकल हिंदी लेखन भी अपनी पुख्ता पहचान बना रही है ,जो कुछ समय पहले तक लुप्तप्राय समझी जाती थी ,किन्तु नए लेखको ने इस

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फिल्म एक नजर में : बाहुबली दी बिगनिंग

12 जुलाई 2015
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एस राजामौली इ ऐसे निर्माता निर्देशक है जिनकी फिल्मो की प्रतीक्षा केवल टोलीवूड ही नहीं अपितु हिंदी दर्शक भी बेसब्री से करता है , उनकी पिछली फिल्मो के बारे में कुछ कहने की जरुरत नहीं है ! बाहुबली जैसी वरिश्द कथानक देने के पश्चात उनका नाम इसी फिल्म से जाना जायेगा यह कहना कोई आतिश्योक्ति नहीं ह

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फिल्म एक नजर में : बजरंगी भाईजान

19 जुलाई 2015
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कबीर खान ने बतौर निर्देशक अपनी फिल्म ‘काबुल एक्सप्रेस ‘ से काफी प्रशंषा बटोरी थी , कुछ समय बाद वे सलमान के साथ ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘ एक था टाईगर ‘ में नजर आये जो उनकी पिछली फिल्म से एकदम अलग थी और मसालेदार एक्शन से भरी थी ! सलमान भी लगातार एक्शन भूमिकाओं में दिखने लगे जिसमे वे काफी जमते

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कारवाँ : ग्राफिक नावेल समीक्षा

2 अगस्त 2015
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कारवाँ : ग्राफिक नावेल समीक्षा कारवां : एक खुनी यात्रा , कुछ अरसे पहले कॉमिक्स जगत काफी सदमे झेल चूका था , बड़ी बड़ी दिग्गज कॉमिक्स कम्पनीज बंद हो रही थी ! वजह कुछ भी रही हो ,पाठको की बदलती रूचि ,मनोरंजन के बढ़ते साधन , पढने में रूचि कम होना , एवं बदलते समय के साथ कॉमिक्स पाठको के विचार बदलना .

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मांझी दी माउन्टन मैन : ‘शानदार ,जबरजस्त ,जिंदाबाद ‘

22 अगस्त 2015
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बिहार के अतिपिछडे इलाके में जन्मे ‘दशरथ मांझी ‘ की सत्य कथा पर आधारित इस फिल्म के निर्माण होने की घोषणा होने पर उत्सुकता जगी थी के अब बॉलीवूड में कुछ तो सार्थक देखने को मिलेगा .और फिल्म देखने के पश्चात यह बात सत्य प्रतीत हुयी ,वैसे भी बॉलीवूड की हवा आजकल कुछ बदली हुयी है ! काफी रचनात्मक प्रयास आ रहे

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टैक्सीवाले भाईजान

21 सितम्बर 2015
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कल कही से वापसी में ऑटो मिल नहीं रही थी ! बारिश की वजह से ट्रैफिक बहुत थी .रिक्शा मिल नहीं रही थी ,एक काली पिली वैगन मिली जिसमे बैठ गया .ड्राइवर चालु भाषा का इस्तेमाल कर रहा था ,,ट्रैफिक लगेली है ,मूड की माँ बहन हो रेली है !!!!!! वगैरह वगैरह .खैर बैठा और गाडी चल पड़ी , रस्ते में ट्रैफिक की वजह से काफ

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फिल्म एक नजर में : वजीर

13 जनवरी 2016
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वजीर के ट्रेलर ने ही काफी उत्सुकता जगा दी थी ,जिसकी मुख्य वजह इसकी स्टारकास्ट भी थी .अमिताभ बच्चन ,फरहान अख्तर ,जॉन अब्राहम ,नील नितिन मुकेश , आदि ,ऊपर से विधु विनोद चोपड़ा का प्रोडक्शन एवम बिजॉय  नाम्बियार का निर्देशन जिनके निर्देशन में हमेशा कुछ हटके मिला है बोलीवूड को ,किन्तु सफलता हमेशा औसत ही र

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नटसम्राट

13 जनवरी 2016
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नटसम्राट ‘’एक त्रासदीपूर्ण एवम मर्मान्तक कथानक का नाट्य रुपंतरण एवंम फिल्म संस्करण .‘’महाराष्ट्र ‘’ नाम लेते ही आँखों के सामने मुगलों को नाको चने चबवा देनेवाले शिवाजी का चेहरा सामने आता है , यहाँ का इतिहास गौरवशाली है ! यहाँ की संस्कृति में कला को जो सम्मान है वह शायद ही कही और देखने को मिले , यहाँ

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फिल्म एक नजर में : एयरलीफ्ट

25 जनवरी 2016
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फिल्म एक नजर में : एयरलीफ्टपिच्छले कुछ समय से अक्षय काफी बढ़िया फिल्मो में नजर आ रहे है जो लीक से हटकर और उम्दा होती है ,कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो .यदि बॉलीवुड के पिछले कुछ सालो को खंगाला जाये तो बेशक अक्षय ऐसे सुपरस्टार के तौर पपर उभरते है जो बिना किसी शोरशराबे के अपनी जगह बना रहे है जिससे

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