नटसम्राट ‘’
एक त्रासदीपूर्ण एवम मर्मान्तक कथानक का नाट्य रुपंतरण एवंम फिल्म संस्करण .
‘’महाराष्ट्र ‘’ नाम लेते ही आँखों के सामने मुगलों को नाको चने चबवा देनेवाले शिवाजी का चेहरा सामने आता है , यहाँ का इतिहास गौरवशाली है ! यहाँ की संस्कृति में कला को जो सम्मान है वह शायद ही कही और देखने को मिले , यहाँ का समाज ‘’नाटक ‘’ प्रेमी है ! नाटक यहाँ संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है ,जो सम्मान एवं स्तर यहाँ नाटको का देखने को मिलता है उतना ही अन्य कही मिले .
यहाँ शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता हो जहा नाट्यगृह खचाखच भरे न हो , मैंने भी कुछ मराठी प्ले देखे है और वह दीवानगी महसूस की है ! मराठी नाटक उत्कृष्ट माने जाते है ,
ऐसे ही कुछ महान नाटको में से एक प्रमुख नाटक है ‘’नटसम्राट ‘’ जो लिखी है ‘’वी .वा .शिरवाडकर ‘’ जी ने ,जिसे नाटक इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है ,जिसके अनगिनत प्ले हो चुके है इसके बावजूद लोग आज भी इस नाटक को देखने का मोह नहीं संवार पाते .
कहानी है एक सेवानिवृत्त कलाकार की ,जिसने अपने जीवन के ४० वर्ष ‘’नाटक ‘’ रूपी कला को समर्पित किये , किन्तु सेवानिवृत्ति के पश्चात सबसे बड़ा ‘’नाटक ‘’ शुरू हुवा जीवन के कडवे अध्याय का , जिसकी केंद्र भूमिका में था वह कलाकार ‘’ गणपतराव बेलवलकर ‘’ ! और यह अध्याय एक कभी न खत्म होनेवाले दुःख का अध्याय था जिसका समापन अंतिम श्वाश के साथ ही होना था ,किन्तु इस ‘नटसम्राट ‘’ इस अंतहीन दुःख को भी कुशल कलाकार की तरह आत्मसात किया और इक प्ले की तरह जीवन को जिया , नाटको में अंतहीन दुखी भूमिकाये निभाते निभाते कब दुःख इस कलाकार का जीवन बन गया यह उसे पता ही न चला .
इसी कलाकार की भूमिका में है ‘’नाना पाटेकर ‘’ जो निर्माता भी है , फिल्म के निर्देशक है ‘’महेश मांजरेकर ‘’ जो पता नहीं क्यों हिंदी फिल्मो में अपना समय व्यर्थ करते है छोटे मोटे महत्वहीन भूमिकाये करके .
उन्हें इसकी कत्तई आवश्यकता नहीं है , वे अपनी कला अप्पने दिग्दर्शन का जिस तरह प्रयोग मराठी फिल्म उद्योग में करते है उसका फायदा हिंदी सिनेमावाले कभी सही से नहीं उठा सकते !
बात करते है ‘’नटसम्राट ‘’ की , जो एक पदवी थी जिसे ‘’गणपतराव बेलवरकर ‘’ ने कमाई थी चालीस वर्षो की साधना से , समर्पण से , ! अभिनय सम्राट !
गणपतराव निवृत्त होते है ,स्टेज छोड़ देते है ! किन्तु नाटक का मोह इस कदर है के स्टेज छूट गया किन्तु नाटक ने जीवन को नहीं छोड़ा , स्वभाव से उद्दंड ,विद्रोही , है !
अपना सर्वस्व अपनों के नाम करके सुख में जीवन के अंतिम क्षण अपनों के साथ बिताने की इच्छा है , किन्तु यह इच्छा एक मृग मरीचिका ही है , अपनों का साथ केवल अवसरवादी ही साबित हुवा ,जिसने साथ दिया बिन कुछ कहे बिन कोई शिकायत किये वह थी केवल पत्नी .
पत्नी की भूमिका में है ‘’मृण्मयी देशपांडे ‘’ ने ,जिनके हिस्से में संवाद बहुत ही कम आये है ,किन्तु उनकी भाषा उनके भाव है ! जो द्रवित करते है , सम्मान पाने की इच्छा गणपतराव को हमेशा से रही है ,किन्तु सम्मान देने का भाव थोडा कमतर ही रहा , जो परिवारजनों एवम चाहनेवालो के लिए एक त्रासदी बन गई ! सम्मान की इच्छा रखने के बावजूद जीवन का अंतिम पड़ाव तिरस्कार पूर्ण
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