यूं ही तन्हा "ताउम्र" हम खुद को गुजार आए
कदमों तले हैं फासले ये हवा अब कहां ले जाए
सर-ए-रहगुजर पर हैं ना मेरा मुंतजिर कोई
सुकून की आस भी तो थी मेरी अंध्यारो में खोई
तेरी तिश्नगी ही ऐसी है के में जब तक ना पीऊ
तूझे बिन पिए बता ऐ जीस्त भला मैं के से जिऊ
अपनों की आस ना थी मुझे ना ही उन्हें खोने का है गम
दिल के शिशो पर जो जख्म दिए है टूट चुके हैं हम
मुझे गमों मैं छोड़ कर मेरा अपना ही मेरी जा ले गया
मां का आंचल था मेरे हाथों मैं वो कहीं सरक ता चला गया
धुंधले अश्क बहे बूंदों मैं मुझे अपनो की तलाश थी
जाऊ कहा से रास्तों पर मेरे अरमानों की लाश थी
by- ✒️vinod solanki✒️
ताउम्र * जीवन भर
सर -ए -रहगुजर * रास्ते में हूं
मुंतजिर * राह देखने वाला
तिश्नगी * प्यास.लालसा
जीस्त * जिन्दगी