shabd-logo

मुझे पुकारती हुई पुकार / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023

8 बार देखा गया 8

मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीँ...
प्रलम्बिता अंगार रेख-सा खिंचा
अपार चर्म
वक्ष प्राण का
पुकार खो गई कहीं बिखेर अस्थि के समूह
जीवनानुभूति की गभीर भूमि में।
अपुष्प-पत्र, वक्र-श्याम झाड़-झंखड़ों-घिरे असंख्य ढूह
भग्न निश्चयों-रुंधे विचार-स्पप्न-भाव के
मुझे दिखे
अपूर्त सत्य की क्षुधित
अपूर्ण यत्न की तृषित
अपूर्त जीवनानुभूति-प्राणमूर्ति की समस्त भग्नता दिखी
(कराह भर उठा प्रसार प्राण का अजब)
समस्त भग्नता दिखी
कि ज्यों विरक्त प्रान्त में
उदास-से किसी नगर
सटर-पटर
मलीन, त्यक्त, ज़ंग-लगे कठोर ढेर--
भग्न वस्तु के समूह
चिलचिल रहे प्रचण्ड धूप में उजाड़...
दिख गए कठोर स्याह
(घोर धूप में) पहाड़
कठिन-सत्त्व भावना नपुंसका असंज्ञ के
मुझे दिखी विराट् शून्यता अशान्त काँपती
कि इस उजाड़ प्रान्त के प्रसार में रही चमक।
रहा चमक प्रसार...
फाड़ श्याम-मृत्तिका-स्तरावरण उठे सकोण
प्रस्तरी प्रतप्त अंग यत्र-तत्र-सर्वतः
कि ज्यों ढँकी वसुन्धरा-शरीर की समस्त अस्थियाँ खुलीं
रहीं चमक कि चिलचिला रही वहाँ
अचेत सूर्य की सफ़ेद औ' उजाड़ धूप में।
समीरहीन ख़ैबरी
अशान्त घाटियों गई असंग राह
शुष्क पार्वतीय भूमि के उतार औ' उठान की निरर्थ
उच्चता निहारती चली वितृष्ण दृष्टि से
(कि व्यर्थ उच्चता बधिर असंज्ञ यह)
उजाड़ विश्व की कि प्राण की
इसी उदास भूमि में अचक जगा
मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीं।

दरार पड़ गई तुरत गभीर-दीर्घ
प्राण की गहन धरा प्रतप्त के
अनीर श्याम मृत्तिका शरीर में।
कि भाव स्वप्न-भार में
पुकार के अधीर व्यग्र स्पर्श से बिलख उठे
तिमिर-विविर में पड़ी अशान्त नागिनी--
छिपी हुई तृषा
अपूर्त स्वप्न-लालसा
तुरत दिखी
कि भूल-चूक धवंसिनी अवावृता हुई।
पुकार ने समस्त खोल दी छिपी प्रवंचना
कहा कि शुष्क है अथाह यह कुआँ
कि अन्धकार-अन्तराल में लगे
महीन श्याम जाल
घृण्य कीट जो कि जोड़ते दीवाल को दीवाल से
व अन्तराल को तला
अमानवी कठोर ईंट-पत्थरों से भरा हुआ
न नीर है, न पीर है, मलीन है
सदा विशून्य शुष्क ही कुआँ रहा।

विराट् झूठ के अनन्त छन्द-सी
भयावनी अशान्त पीत धुन्ध-सी
सदा अगेय
गोपनीय द्वन्द्व-सी असंग जो अपूर्त स्वप्न-लालसा
प्रवेग में उड़े सुतिक्ष्ण बाण पर
अलक्ष्य भार-सी वृथा
जगा रही विरूप चित्र हार का
सधे हुए निजत्व की अभद्र रौद्र हार-सी।
मैं उदास हाथ में
हार की प्रत्प्त रेत मल रहा
निहारता हुआ प्रचण्ड उष्ण गोल दूर के क्षितिज।

शून्य कक्ष की उदास
श्वासहीन, पीत-वायु शान्ति में
दिवाल पर
सचेष्ट छिपकली
अजान शब्द-शब्द ज्यों करे
कि यों अपार भाव स्वप्न-भार ये
प्रशान्ति गाढ़ में
प्रशान्ति गाढ़ से
प्रगाढ़ हो
समस्त प्राण की कथा बखानते
अधीर यन्त्र-वेग से अजीब एकरूप-तान
शब्द, शब्द, शब्द में।

मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीं...
आज भी नवीन प्रेरणा यहाँ न मर सकी,
न जी सकी, परन्तु वह न डर सकी।
घनान्धकार के कठोर वक्ष
दंश-चिह्न-से
गभीर लाल बिम्ब प्राण-ज्योति के
गभीर लाल इन्दु-से
सगर्व भीम शान्ति में उठे अयास मुसकरा
घनान्धकार के भुजंग-बन्ध दीर्घ साँवरे
विनष्ट हो गए
प्रबुद्ध ज्वाल में हताश हो।
विशाल भव्य वक्ष से
बही अनन्त स्नेह की महान् कृतिमयी व्यथा
बही अशान्त प्राण से महान् मानवी कथा।
किसी उजाड़ प्रान्त के
विशाल रिक्त-गर्भ गुम्बजों-घिरे
विहंग जो
अधीर पंख फड़फड़ा दिवाल पर
सहायहीन, बद्ध-देह, बद्ध-प्राण
हारकर न हारते
अरे, नवीन मार्ग पा खुला हुआ
तुरन्त उड़ गए सुनील व्योम में अधीर हो।
मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई वहीं
सँवारती हुई मुझे
उठी सहास प्रेरणा।
प्रभात भैरवी जगी अभी-अभी। 

24
रचनाएँ
प्रतिनिधि कविताएँ
0.0
गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रतिनिधि कविताएँ।
1

घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा तेरी प्रत्यंचा का कम्पन सूनेपन का भार हरेगा हिमवत, जड़, निःस्पन्द हृदय के अन्धकार में जीवन-भय है तेरे तीक्ष्ण बाण की नोकों पर जीवन-सँचार करेगा।

2

चाहिए मुझे मेरा असंग बबूल पन / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मुझे नहीं मालूम मेरी प्रतिक्रियाएँ सही हैं या ग़लत हैं या और कुछ सच, हूँ मात्र मैं निवेदन-सौन्दर्य सुबह से शाम तक मन में ही आड़ी-टेढ़ी लकीरों से करता हूँ अपनी ही काटपीट ग़लत के ख़िलाफ़ नित स

3

जब दुपहरी ज़िन्दगी पर... / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

जब दुपहरी ज़िन्दगी पर रोज़ सूरज एक जॉबर-सा बराबर रौब अपना गाँठता-सा है कि रोज़ी छूटने का डर हमें फटकारता-सा काम दिन का बाँटता-सा है अचानक ही हमें बेखौफ़ करती तब हमारी भूख की मुस्तैद आँखें ही थक

4

दिमाग़ी गुहान्धकार का ओरांग उटांग / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

स्वप्न के भीतर स्वप्न, विचारधारा के भीतर और एक अन्य सघन विचारधारा प्रच्छन!! कथ्य के भीतर एक अनुरोधी विरुद्ध विपरीत, नेपथ्य संगीत!! मस्तिष्क के भीतर एक मस्तिष्क उसके भी अन्दर एक और कक्ष कक्ष क

5

नाश देवता / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा, तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा हिमवत, जड़, निःस्पंद हृदय के अंधकार में जीवन-भय है तेरे तीक्ष्ण बाणों की नोकों पर जीवन-संचार करेगा ।

6

वे बातें लौट न आएँगी / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

खगदल हैं ऐसे भी कि न जो आते हैं, लौट नहीं आते वह लिए ललाई नीलापन वह आसमान का पीलापन चुपचाप लीलता है जिनको वे गुँजन लौट नहीं आते वे बातें लौट नहीं आतीं बीते क्षण लौट नहीं आते बीती सुगन्ध की सौर

7

पता नहीं... / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

पता नहीं कब, कौन, कहाँ किस ओर मिले किस साँझ मिले, किस सुबह मिले!! यह राह ज़िन्दगी कीजिससे जिस जगह मिले है ठीक वही, बस वही अहाते मेंहदी के जिनके भीतर है कोई घर बाहर प्रसन्न पीली कनेर बरगद ऊँचा,

8

पूंजीवादी समाज के प्रति / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

इतने प्राण, इतने हाथ, इनती बुद्धि इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशुद्धि इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति इतना काव्य, इतने शब्द, इतने छंद – जितना ढोंग, जितना भो

9

ब्रह्मराक्षस / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

शहर के उस ओर खंडहर की तरफ़ परित्यक्त सूनी बावड़ी के भीतरी ठण्डे अंधेरे में बसी गहराइयाँ जल की... सीढ़ियाँ डूबी अनेकों उस पुराने घिरे पानी में... समझ में आ न सकता हो कि जैसे बात का आधार लेकिन

10

ब्रह्मराक्षस / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

शहर के उस ओर खंडहर की तरफ़ परित्यक्त सूनी बावड़ी के भीतरी ठण्डे अंधेरे में बसी गहराइयाँ जल की... सीढ़ियाँ डूबी अनेकों उस पुराने घिरे पानी में... समझ में आ न सकता हो कि जैसे बात का आधार लेकिन

11

बहुत दिनों से / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना और कि साथ यों साथ-साथ फिर बहना बहना बहना मेघों की आवाज़ों से कुहरे की भाषाओं से रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोन

12

बेचैन चील / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

बेचैन चील!! उस जैसा मैं पर्यटनशील प्यासा-प्यासा, देखता रहूँगा एक दमकती हुई झील या पानी का कोरा झाँसा जिसकी सफ़ेद चिलचिलाहटों में है अजीब इनकार एक सूना!! 

13

भूल-ग़लती / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

भूल-ग़लती आज बैठी है ज़िरहबख्तर पहनकर तख्त पर दिल के, चमकते हैं खड़े हथियार उसके दूर तक, आँखें चिलकती हैं नुकीले तेज पत्थर सी, खड़ी हैं सिर झुकाए सब कतारें बेजुबाँ बेबस सलाम में, अनगिनत खम्भों

14

मुझे कदम-कदम पर / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बांहें फैलाए! एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतीं, मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ, बहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपने.... सब सच्चे लगते हैं, अजीब-

15

मुझे पुकारती हुई पुकार / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीँ... प्रलम्बिता अंगार रेख-सा खिंचा अपार चर्म वक्ष प्राण का पुकार खो गई कहीं बिखेर अस्थि के समूह जीवनानुभूति की गभीर भूमि में। अपुष्प-पत्र, वक्र-श्याम झाड़-झंखड़ों

16

मेरा असंग बबूलपन / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मुझे नहीं मालूम मेरी प्रतिक्रियाएँ सही हैं या ग़लत हैं या और कुछ सच, हूँ मात्र मैं निवेदन-सौन्दर्य सुबह से शाम तक मन में ही आड़ी-टेढ़ी लकीरों से करता हूँ अपनी ही काटपीट ग़लत के ख़िलाफ़ नित स

17

मेरे जीवन की / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मेरे जीवन की धर्म तुम्ही-- यद्यपि पालन में रही चूक हे मर्म-स्पर्शिनी आत्मीये! मैदान-धूप में-- अन्यमनस्का एक और सिमटी छाया-सा उदासीन रहता-सा दिखता हूँ यद्यपि खोया-खोया निज में डूबा-सा भूला-सा

18

मैं उनका ही होता / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मैं उनका ही होता जिनसे मैंने रूप भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बंधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं। मेरे शब्द, भाव उनके हैं मेरे पैर और पथ मेरा, मेरा अंत और अथ मेरा, ऐसे किंतु चाव उनके हैं। मैं ऊ

19

मैं तुम लोगों से दूर हूँ / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है,

20

मृत्यु और कवि / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत स

21

रात, चलते हैं अकेले ही सितारे / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

रात, चलते हैं अकेले ही सितारे। एक निर्जन रिक्त नाले के पास मैंने एक स्थल को खोद मिट्टी के हरे ढेले निकाले दूर खोदा और खोदा और दोनों हाथ चलते जा रहे थे शक्ति से भरपूर। सुनाई दे रहे थे स्वर – बड

22

लकड़ी का रावण / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

दीखता त्रिकोण इस पर्वत-शिखर से अनाम, अरूप और अनाकार असीम एक कुहरा, भस्मीला अन्धकार फैला है कटे-पिटे पहाड़ी प्रसारों पर; लटकती हैं मटमैली ऊँची-ऊँची लहरें मैदानों पर सभी ओर लेकिन उस कुहरे से

23

विचार आते हैं / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

विचार आते हैं लिखते समय नहीं बोझ ढोते वक़्त पीठ पर सिर पर उठाते समय भार परिश्रम करते समय चांद उगता है व पानी में झलमलाने लगता है हृदय के पानी में विचार आते हैं लिखते समय नहीं ...पत्थर ढोते

24

सहर्ष स्वीकारा है / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
0
0
0

ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब म

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए