"सुनो ईशा !" पत्नी को आवाज लगाते हुए जतिन बोला।
" हांजी बोलिए क्यूँ बुला रहे हैं आप!"साड़ी का पल्लू सिर पर हाथ से ठीक करती ईशा कमरे में दाखिल होती बोली।
"शाम को राघव के घर खाने पर जाना है उनकी शादी की सालगिरह है उन्होंने एक छोटी सी पार्टी रखी है खास लोगों को ही बुलाया है तो तैयार रहना और हाँ बॉस भी आ रहे हैं इसके अलावा दो तीन फैमिली और है!"
"जी ठीक है,कुछ गिफ्ट भी लेते आना आते समय,खाली हाथ जाना अच्छा नहीं लगेगा! "
"ठीक है!" कहकर जतिन ऑफिस जाने के लिए तैयार होता है, तो वह अपने बेटे के बारे में पूछता है।
"सौम्य चला गया स्कूल? "
"हाँ !"
"चलो ठीक है! " कहकर वह कमरे से बाहर निकलता है ,हॉल में उसके पिता जो रिटायर्ड कर्मचारी है, वो बैठे अख़बार पढ़ रहे थे। उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेता है "ठीक है पापा मैं जा रहा हूँ! "जतिन ने इजाजत ली तो पापा भी मुस्कराते हुए अख़बार छोड़ उसे आशीर्वाद देते हैं तब तक मां भी आरती की थाली लिए सर पर पल्ला संभालती हुई आई और उसे आरती देती है तो वह माँ के भी पैर छूता है माँ उसे आशीर्वाद देने के बाद बाहर गेट तक छोड़ने आ गई माँ का मन कहाँ मानता है .....।
"अच्छा माँ अब जाओ अंदर मैं जा रहा हूँ! "बाइक को स्टार्ट करता हुआ जतिन बोला ।
"ठीक है बेटा ध्यान से जाना!"माँ बेटे को हिदायत देती बोली जतिन के कहने पर भी वह अंदर नहीं गई।वह तब तक खड़ी रही ज़ब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गया। ज़ब वह दिखना बंद हो गया फिर अंदर आ गई और ईशा को आवाज लगाकर बोली :
"बहु हमारा नाश्ता भी लगा दो !"
"जी मांजी लगा रही हूँ! " कहकर ईशा उनको नाश्ता लगाने लगती है।
जतिन का एक भाई और है वह दूसरे शहर में रहता है पर जतिन माता- पिता के साथ ही रहता हैं वह अपने माता -पिता का आज्ञाकारी होने के साथ संस्कारी भी है।पत्नी ईशा भी सुशील ,सुघड़ और स्वभाव से बहुत ही अच्छी है। जतिन के माता पिता का बहुत सम्मान करती है। बुढ़ापे में जिन माँ बाप को ऐसे बेटे बहु मिल जाए तो उनका तो बुढ़ापा सुधर जाता है तो ऐसी खुसनसीब लोगों में जतिन के माता पिता भी शामिल हैं इसलिए उनका खुद को भाग्यशाली समझना भी सही ही है।
ईशा निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से थी।पिता सरकारी क्लर्क थे। तीन बड़ी बहनें एक छोटा भाई बड़ा परिवार था।बेटे की इच्छा में चार लड़कियाँ हो गई।दो लड़कियाँ तो ब्याह दी थी किसी तरह पर उसके बाद पिता गुजर गए तो परिवार आर्थिक तंगी के हालात से गुजरने लगा।ईशा प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी।आते जाते जतिन की उससे जान पहचान हो गई। जानपहचान प्यार में बदल गई।जतिन ईशा से प्यार करने लगा।अपनी इच्छा उसने घरवालों को बताई तो वे भी बेटे की ख़ुशी में मान गए।रिश्ता लेकर गए तो ईशा के घरवालों ने भी ख़ुशी -ख़ुशी हाँ कर दी।उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी, तो जतिन के परिवार ने बेहद साधारण तरीके से शादी की ,और दो जोड़ी कपड़ों में ईशा को ब्याह लाये। उनका यह फैसला काफी अच्छा था, क्योंकि ईशा एक बहुत अच्छी बहु और पत्नी साबित हुई है ।सास- ससुर और पति को पूरा सम्मान देती है ,और इसी वजह से घर में शांति और खुशहाली है।
दूसरे बेटे बहु कभी कभार मिलने आ जाते हैं पर जतिन के माता पिता जतिन साथ ही रहना पसंद करते हैं क्योंकि यहाँ उनका जीवन शांति पूर्ण तरीके से चल रहा है और वैसे भी ऐसे जीवन चले तो इससे बड़ा सुख और क्या हो सकता है।ईशा भी इस घर में आकर खुश है पति बेहद प्यार करता है सास ससुर भी अच्छे हैं। मायके में माँ है जिससे मिलने चली जाती है।दो बड़ी बहनें हैं वो भी आसपास रहती हैं। तीज त्यौहार पर मायके जाती है तो दोनों बहनें भी आ जाती है। मायके आकर सब मिल जाते हैं अपना सुख दुःख बांटकर कुछ दिन माँ के पास रह लेती है और अपनी बचपन की यादो को साँझा करके खुश होती हैं। बेटी कितने ही अच्छे घर में क्यूँ ना ब्याही गई हो मायके का लोभ नहीं छोड़ सकती छोड़े भी क्यूँ,पेड़ कितना ही बढ़े,फले -फूले पर जुड़ा तो जड़ो से रहता है बिना जड़ो के तो उसका भी कोई आस्तित्व नहीं है।बेशक माँ गरीब है पर दो तीन महीने में सभी बहने मायके जरूर जाती है।ससुराल कितना ही अच्छा क्यूँ ना हो वो माँ की गोद में सर रखकर सोने से ज्यादा सुखकारी नहीं हो सकता है और यह बात सिर्फ एक शादीशुदा बेटी ही समझ सकती है क्योंकि एक माँ ही है जिसके लिए वह वही छोटी गुड़िया होती है बाकियों के लिए तो सारी उम्र ज़िम्मेदारी उठाने वाली भर होती है एक पत्नी एक माँ एक बहु ना जाने कितने जिम्मेदारी भरे रिश्ते पर माँ के लिए उसकी वही छोटी सी गुड़िया।
शाम के समय तैयार होकर जतिन ईशा और उनका बेटा सौम्य जाने लगते हैं तो ईशा बोली सास से बोली "मांजी मैंने सब्जी रोटी बना दी है, रोटी बनाकर हॉटपॉट में बनाकर रखी हुई है, ज़ब भूख लगे खा लेना !"
"ठीक है बहु, तुम भी जल्दी आना सौम्य को ज्यादा देर मत रखना उधर !"
"ठीक है मांजी हम जल्दी आने की कोशिश करेंगे!" कहकर वे लोग चले गए, उनके घर पहुँचे तो वे अभी तैयारी ही कर रहे थे, जिनके घर गए हैं ,वे हैं राघव और तान्या जिनकी सालगिरह थी। उन्होंने घर पर ही खाना बनाया था और एक और फैमिली आनी थी और एक बॉस की फैमिली आना बाकि था, सब उनका इंतजार कर रहे थे।ईशा थोड़ी घरेलू सी है तो वह तान्या की मदद करने लगी,इसीमे दस मिनट लग गए , उसे वाशरूम जाना था, वह उस तरफ जाने लगी। एक कमरे का दरवाजा हल्का खुला देखकर ठिठक गई वहाँ से जो आवाजें आ रही थी वह सामान्य नहीं थी तो वह रुक गई ।
"कहाँ जा रहे हैं आप? " औरत की आवाज थी।
"बाहर जाना था थोड़ी देर बेचैनी हो रही है! "आदमी की आवाज थी।
"मेहमान आए हुए हैं, राघव ने कहा है.ज़ब तक मेहमान ना जाय बाहर मत आना।आपको दमे की प्रॉब्लम है।मेहमानों के सामने खाँसते रहोगे तो मेहमानों को बुरा लगेगा।उन्होंने कहा है ज़ब तक मेहमान है तब तक यहीं रहना इसलिए यहीं रहो, वरना बच्चे नाराज हो जायेंगे !"
"चल ठीक है रुक जाता हूँ तू कह रही है तो, बेकार में बच्चों का मूड खराब हो जाएगा!"उसके बाद उनकी आवाजें आनी बंद हो जाती हैं।ये राघव के माता पिता थे। ईशा ने उनकी बातें सुन ली तो उसे अच्छा नहीं लगा सिर्फ इसलिए कि उनके खांसने से दूसरों को समस्या ना हो इसलिए उनको यहाँ रहने के लिए मजबूर किया है या किसी और वजह से अभी तो ईशा दूसरे के घर में हैं उसे अच्छा तो नहीं लग रहा पर वो क्या कर सकती है।
ईशा के मन में राघव और तान्या के प्रति अजीब से भाव उत्पन्न हुए कैसे लोग हैं ये,बुजुर्ग माँ बाप को को मेहमानो के सामने आने से मना कर रहे हैं, बुजुर्ग तो सबके ही होते हैं और बुढ़ापे में सबको ऐसी समस्या होती है तो इस वजह से माँ बाप के साथ ऐसा व्यवहार करना अनुचित है। वह तान्या के पास आती है और कहती है :
"तान्या आपके सास -ससुर भी आपके साथ रहते हैं ?"
"हाँ "तान्या ने प्रतिउत्तर में कहा।
"दिख नहीं रहे ?"
"वो... वो अपने कमरे में हैं!" वो थोड़ा हड़बड़ाई फिर खुद ही बात संभालती बोली "उनको ऐसे सबके सामने आना अच्छा नहीं लगता तो वे अधिकतर अपने कमरे में ही रहते हैं !"तान्या साफ- साफ झूठ बोल रही थी।पर ईशा का मन बेचैन हो रहा था कि वे बुजुर्ग बाहर आना चाह रहे हैं और हम लोगों की वजह से इन लोगों ने उन्हें बाहर आने से मना किया हुआ है।
"क्या मैं उनसे मिल सकती हुँ!"ईशा बोली।
"अभी..पर अभी तो नहीं और लोग भी आने वाले हैं बाद में मिला दूंगी..!"
"नहीं अभी मिला मेरी इच्छा है मिलने की!"ईशा ने ज़िद की तो वह उसको उनके पास ले गई।ईशा ने उनके पैर छुए थोड़ी देर बात की फिर वह बोली :"मांजी आप लोग यहाँ अकेले क्या कर रहे हो चलिए ना बाहर बैठिये हम लोग के साथ! "
"पर बेटा ...!" ईशा की बात सुनकर वे अपनी बहु को देखने लगे जो उनको घूर कर देख रही थी।उसके आँखों के भाव समझकर ईशा से से बोले "नहीं बेटा हम यही ठीक हैं! वहाँ बाहर हम क्या करेंगे"
"ऐसा कभी हो सकता है कि बुजुर्गो के आशीर्वाद के बिना कोई अच्छा काम सम्पन्न हो जाय..! चलिए ना!" ईशा ने जिद की तो उसकी ज़िद करने पर वे लोग भी बाहर ही आ गए।
"अब आई ना पार्टी की रौनक़ बड़े बुजुर्गो के बिना तो सब सूना है! " ईशा ने मुस्कराते हुई कहा तो उसके ऐसा कहने से राघव और तान्या को अब अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने नजरें झुका ली। थोड़ी देर बाद बाकी लोग भी आ गए।अब बॉस ही रहते थे बाकि सभी आ गए थे तो वे लोग उनका इंतजार करने लगे।थोड़ी देर में बॉस भी आ गए साथ में बेटा और पत्नी थी जो कि काफी खूबसूरत थी।
सभी उन्हें देख खुश थे परन्तु उसे देखकर ईशा सन्न थी।बॉस की पत्नी ने भी ईशा को देखा तो उसका हँसता चेहरा अचानक खामोश हो गया।
"आइये बैठिये ना सर!"राघव उनको बिठाता हुआ बोला तो वे बैठ गए।थोड़ी देर बाद राघव और तान्या ने केक काटा ईशा के कहने से उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था। दोनों ने केक काटने के बाद सबसे पहले अपने माता- पिता को खिलाया और उनका आशीर्वाद लिया। माता- पिता भी कहाँ अपने बच्चों की गलतियों को ज्यादा दिल पर लेते हैं इसलिए उन्होंने उन्हें ख़ुशी -ख़ुशी आशीर्वाद दिया।जतिन तो अपनी पत्नी की समझदारी पर फुला नहीं समा रहा था।आखिर उसकी पत्नी है ही इतनी समझदार। उसने अपनी पत्नी की तरफ देखा जो उदास लग रही थी। थोड़ी देर पहले तो वह सजी संवरी महकती लग रही थी।अब जाने क्यूँ उदास हो गई उसे कुछ समझ नहीं आया।वहाँ से खाना खाकर वे लोग घर आ गए।
"क्या हुआ ईशा तुम उदास क्यूँ हो गई!"जतिन ने ईशा से पूछा।
"नहीं तो कहाँ हूँ!"उदासी छिपाने की नाकाम कोशिश करती हुई ईशा बोली।
"क्यूँ झूठ बोल रही हो!तुम्हारा चेहरा पीला पड़ गया है।बताओ क्या बात है"
"कोई बात नहीं है !"
"बताओ भी मुझसे छिपाओगी क्या ? "जतिन बताने की ज़िद करने लगा तो वह बोली " वो जो आपके बॉस है ....!"
"हाँ "
"उनकी पत्नी...! "
"उनकी पत्नी क्या...? "
"उनकी पत्नी...चारु दीदी है !"ईशा ने धीरे से कहा तो सुनकर जतिन चौंककर बोला "क्या .....?"
"हाँ!"
"चारु तुम्हारी सगी बहन है.. जो वो .....!"जतिन आश्चर्य में था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो ईशा बोल रही है वह सही है तो असल बात जानने के मकसद से बोला "चारु दीदी बॉस की पत्नी कैसे,मुझे सारी बात बताओ" जतिन के कहने पर ईशा बताना शुरू करती है
"ज़ब पापा की डेथ हुई तो बस दो बड़ी बहनों की शादी हुई थी। घर के आर्थिक हालात बहुत खराब थे।माँ किसी तरह बस चला रही थी।मैं तब बारहवीं कक्षा में थी।चारु दीदी कॉलेज करके कम्पनी में जॉब करने लग गई। थोड़ी बहुत पापा की पेंशन मिलती थी और थोड़ा बहुत चारु दीदी की सैलेरी बस किसी तरह गुजारा होता था। दोनों दीदियों की ससुराल नजदीक थी तो वो महीने दो महीने में चक्कर लगा देती।बच्चे भी आते। आ गए तो फिर उनकी खातिरदारी करो। इस सबमें घर की आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती थी।पापा जिन्दा थे तो कहते थे बेटियां मायके नहीं आएँगी तो कहाँ जाएंगी आखिर उनका हक़ है। उनके जाने के बाद माँ भी उनकी अपनी तरफ से तीमारदारी करती थी ताकि वे पिता की कमी महसूस ना करें।
चारु दीदी अपने बॉस से प्यार करने लगी थी।वो शादी करना चाहती थी पर माँ ने मना कर दिया कि एक दो साल बाद घर के हालात थोड़ा ठीक हो जाये तब तक चारु दीदी उनकी मदद कर देंगी उसके बाद शादी की सोचेंगे इसलिए उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया पर घर के हालात से परेशान होकर चारु दीदी एक दिन ऑफिस गई तो वापिस ही नहीं आई। उनके यूँ चले जाने से हमारी बहुत बदनामी हुई कि लड़की कहाँ चली गई।मम्मी तो समझ गई थी कि उसने शादी कर ली है तो उन्होंने लोगों से बोला कि हमने लड़की की शादी कर दी है पर लोग कहाँ मानते,तरह -तरह की बातें करने लगे कि ऐसी कोई शादी हुई कि ना ढ़ोल बजे ना तासे किसको खबर नहीं कैसे शादी हो गई। सब असल बात भाँप चुके थे कि चारु दीदी घर से भाग गई है।इतनी इज्जत थी पापा की सब मिट्टी में मिल गई कि लड़की घर से भाग गई।लोग तरह तरह की बातें करते हमें ताने देते लोगों की बातों से तंग हो हमने आस पड़ोस में जाना बंद कर दिया।उसके बाद हमने उनसे नाता तोड़ लिया।हमें नहीं पता वो कहाँ गई ना हमने कोशिश की पता करने की।दस साल हो गए आज मिली है। "
" तुमने उनसे बात क्यूँ नहीं की बहन है वो तुम्हारी इतनी बेरुखी अच्छी नहीं होती?"जतिन ने ईशा को समझाया।
"क्यूँ बात करती वो हमारी अपनी होती तो ऐसे भागकर ना जाती उन्होंने हमारा साथ तब छोड़ा ज़ब माँ को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी आखिर औलाद बुरे वक़्त में साथ ना दे तो माँ का दिल तो कराहेगा ही उन्होंने माँ के प्यार को बहनों भाइयों के प्यार को छोड़कर अपना सुख देखा और भाग गई। हम सब को कितनी परेशानी और बदनामी देकर गई वो और माँ ..माँ तो बिल्कुल अकेली हो गई थी।टूट गई थी।उसके बाद हमने कभी उनसे सम्पर्क करने की कोशिश नहीं की हम सब बहनें मिलती हैं।तीज त्यौहार पर माँ का प्यार समेटने जाती हैं मायके वो भी ख़ुशी- ख़ुशी अपना प्यार लुटाती है हम पर हम इसमें खुश है।हम बस तीन बहनें है। चारु हमारी बहन नहीं है ।" गुस्से में कह तो रही थी ईशा पर बोलते- बोलते उसकी आँखें नम हो गई।
जैसी भी है पर है तो अपना खून अपनी सगी बहन जिसके साथ बचपन खेला साथ बड़ी हुई पर उसकी एक गलती ने उसे इतने कठोर बना दिया कि दस साल बाद मिली तो उसने बात भी नहीं की उससे ....।
अगले दिन जतिन ऑफिस में था और उसके सामने चारु थी। वैसे तो उसके बॉस की पत्नी थी आजतक पर अब ज़ब पता चल गया कि ईशा की बहन है ,तो अलग रिश्ता हो गया
" नमस्ते दीदी ..!" उसके ऐसे बोलते ही वह मुस्करा दी।
"ईशा ने सच बता दिया मुझे लगा वो बताइयेगी नहीं! "
"वो मुझसे कुछ नहीं छिपाती! "
"हाँ वो ऐसी ही है ,हम सब बहनों में सबसे समझदार और सुघड़ वही थी ,आप बहुत किस्मत वाले है कि, आपको ईशा जैसी पत्नी मिली है !"
"हाँ ये तो है! "
"बुरा ना मैने तो बाहर कैंटीन में चले! "
"पर ...?"
"डरो मत तुम्हारे बॉस से बोलकर आई हूँ ! " वह मुस्कराकर बोली तो जतिन भी उसके साथ चल पड़ा और वो बाहर बने कैंटीन में बैठ गए ।शक्ल से डील डौल से वह बिल्कुल ईशा जैसी ही लगती थी, बस ईशा से तीन चार साल बड़ी होगी।
"ईशा ने सबकुछ तो बता दिया होगा आपको ?"चारु ने जतिन की तरफ देख पूछा.
"जी "
"मेरे परिवार के लोग मुझसे रिश्ता नहीं रखना चाहते इसलिए उससे मिलने की कोशिश के बजाय आपसे मिलने का सोचा। दस साल बाद अपनी बहन को देखा तो मन कर रहा था कि दौड़कर उसे गले लगा लूँ ।उससे सबके बारे में पूछूँ,माँ के बारे में ,बहनों के, भाई के बारे में पर ईशा ने मुँह फेर लिया इसलिए बात करने की हिम्मत नहीं हुई तो सोचा आपसे मिलकर सबके बारे में पूछ लूँ ! कैसे हैं वे सब लोग? "चारु के चेहरे पर दर्द के भाव थे जिनका अंदाजा सिर्फ चारु के अलावा कोई नहीं लगा सकता था।
"सब बढ़िया हैं बहनें भी सब अच्छे घरों में है।भाई भी जॉब करने लगा है तो घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक हो गई है।ईशा भी जाती रहती है दो तीन महीने में सबसे मिलने ...!"
"बेटी चाहे कितने ही अच्छे घर में क्यूँ ना हो अपने मायके जाने का सुख कभी नहीं छोड़ना चाहती.उसके बराबर ख़ुशी दुनिया की किसी ख़ुशी में नहीं है।ये मुझे अब अहसास हो रहा है ।मुझे कोई कमी नहीं ,अच्छा घर है ,पति है ,गाड़ी है बंगला है, बच्चे हैं, सबकुछ है, पर मायका नहीं है अब मुझे पता चला कि क्यूँ मेरी बहनें हर दो महीने दो महीने में मायके आ जाती थी जबकि उनके यहाँ सब सुविधाएं थी और मेरी माँ गरीब थी। तब मुझे चिढ होती थी और उनपर गुस्सा आता था कि क्यूँ खर्चा बढ़ाने आती हैं। मैं यह नहीं समझ पाती थी कि वो तो सिर्फ वहाँ सुख ढूंढने आती थी जो उन्हें सिर्फ माँ की गोद में और बहनों की हँसी ठिठोली में मिलता था।मैं उस समय मैं इस बात को नहीं समझी इसलिए उस तंगी से परेशान होकर मैंने माँ के मना करने के बावजूद शादी कर ली पर अब मैं बहुत शर्मिंदा हूँ.....अपनी उस गलती पर कि ज़ब मेरी माँ को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब मैंने उनका साथ नहीं दिया बल्कि उनको और अधिक दुःख,बदनामी और शंर्मिंदगी देकर अपना घर बसाने चली गई।मैंने बहुत बड़ी गलती की है और मेरी उस गलती की अब कोई माफ़ी नहीं है...! कोई माफी नहीं!!" कहते कहते उसकी आँखें छलक आई ।
"आप जाइये उनसे माफ़ी मांगिये वो जरूर आपको माफ़ कर देंगे और आपको झिझक हो रही है ,तो मैं बात करुँगा ईशा से आपके घरवालों से ?"जतिन बोला।
"नहीं अब हिम्मत नहीं होती जाने की और अब जाऊँगी भी नहीं जो गुनाह अपनों को छोड़कर किया उसकी यही सजा है कि सबकुछ होते हुए भी अपनों के बिना रहुँ और उस सुख से वँचित रहुँ क्योंकि मेरी उस गलती की कोई माफ़ी नहीं है......!"कहकर वह फूट फूटकर रोने लगी।जतिन भी सिर्फ उसे रोते देखने के कुछ और नहीं कर पा रहा था।तभी उसकी नजर चारु के पीछे खड़े बॉस पर पड़ी तो वह अपनी कुर्सी से उठ गया।बॉस चारु के कंधे पर हाथ रख उसे दिलासा दे रहे थे और जतिन सोच रहा था कि वह ऐसा क्या करे कि चारु को उसके घरवालों से उसकी गलती की माफी मिल जाय...!!