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गणतंत्र फ़साना बना हे ! हिन्दवासियों

25 जनवरी 2018

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फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,

पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .

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नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,

हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .

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फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,

इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .

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अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,

इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .

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फरेब ओढ़ बैठा नाजिम ही इस ज़मीं पर ,

फुलवारी भी इतबार के काबिल नहीं रही .

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लाये थे इन्कलाब कर गणतंत्र यहाँ पर ,

हाथों में जनता के कभी सत्ता नहीं रही .

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वोटों में बैठे आंक रहे आदमी को वे ,

खुदगर्जी में कुछ करने की हिम्मत नहीं रही .

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इल्ज़ाम लगाते रहे ये हुक्मरान पर ,

अवाम अपने फ़र्ज़ की खाहाँ नहीं रही .

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फसाद को उकसा रहे हैं रहनुमा यहाँ ,

ये थामे मेरी डोर अब हसरत नहीं रही .

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खुशहाली ,प्यार,अमन बांटा फहर-फहर कर ,

भारत की नस्लों को ये ज़रुरत नहीं रही .

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गणतंत्र फ़साना बना हे ! हिन्दवासियों ,

जलसे से जुदा हाकिमी कीमत नहीं रही .

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तिरंगा कहे ''शालिनी'' से फफक-फफक कर ,

फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .


शब्द अर्थ -फ़िरदौस-स्वर्ग ,पुरवाई-पूरब की ओर से आने वाली हवा ,इलहाम -देववाणी ,ईश्वरीय प्रेरणा ,रुनुमाई-मुहं दिखाई ,इन्कलाब -क्रांति ,खाहाँ -चाहने वाला ,मिल्लत-मेलजोल ,हाकिमी -शासन सम्बन्धी ,फ़साना -कल्पित साहित्यिक रचना ,इतबार-विश्वास ,नाजिम-प्रबंधकर्ता ,मंत्री ,फुलवारी-बाल बच्चे ,


शालिनी कौशिक

[कौशल]

योगिता वार्डे ( खत्री )

योगिता वार्डे ( खत्री )

सार्थक रचना शालिनी जी!!

9 फरवरी 2018

रोहित थपलियाल

रोहित थपलियाल

एक और टिप्पणी करना चाहूंगा! अपनी बात बिना बताये नहीं मानूंगा!! वैसे तो आपकी इस रचना का है नहीं कोई जवाब! मैं भी नहीं बनना चाहता कोई 'हड्डी में कबाब'!! इस कविता मे आपने समस्या तो कह दी! लेकिन समाधान की सलाह नहीं दी!! सभी महान स्त्री और पुरुष ऐसा हम सभी से कहते हैं! कि वही चीजें बढ़ती हैं जिस पर हम ज्यादा ध्यान देते हैं!! यदि ऐसा वो सत्य हैं कहते? तो फिर हम क्यों नहीं उनकी बात हैं समझते?? हमे अपने आप से यह पूछना होगा! कि सभी के अच्छे 'सपनो का देश' कैसा होगा?? और जिस तरह की चर्चा ज्यादा होगी! देश और दुनिया की हालत वैसी ही होगी!! हम देश और दुनिया में क्या अच्छा चाहते हैं? इसमें देना होगा ज्यादा हमे ध्यान! होगा तभी हल, हर समस्या का बहुत ही आसनी से समाधान!! !!धन्यवाद!!

30 जनवरी 2018

रोहित थपलियाल

रोहित थपलियाल

हमने जो आपका यह लेख पढ़ा! हमारे दिमाग में भी टिप्पणी करने का विचार चढ़ा!! इस लेख में आपने जो देश की नब्ज टटोली! आपने कइयों की पोल खोली!! नाम है आपका शलिनी कौशिक एडवोकेट! पढ़ कर इस लेख को, खुल गए हमारे दिमाग के बंद गेट!! !! धन्यवाद!!

29 जनवरी 2018

रवीन्द्र  सिंह  यादव

रवीन्द्र सिंह यादव

सारगर्भित एवं विचारणीय आलेख . ऐसा लेखन सामयिक चिंतन की भावभूमि तैयार करता है . ज़ारी रहे लिखना . बधाई एवं शुभकामनाऐं .

28 जनवरी 2018

sarita prasad

sarita prasad

बहुत सुंदर रचना की है आपने मैंने पहले भी रचनाएँ पढ़ी है बहुत सुंदर लिखती हैंआप

27 जनवरी 2018

रेणु

रेणु

आदरणीय शालिनी जी -- आप पद्य कम लिखती हैं पर जब लिखती हैं तो कमाल लिखती हैं | कानून जैसे अति व्यस्त सेवा के साथ जुड़े होए के बावजूद आपकी संवेदन शीलता प्रेरक है ---- बहुत ही अच्छी रचना लिखी है आपने | सचाई तो यही है ----------- फरेब ओढ़ बैठा नाजिम ही इस ज़मीं पर , फुलवारी भी इतबार के काबिल नहीं रही .-- इस सुंदर सार्थक रचना के लिए आपको बधाई देती हूँ |

26 जनवरी 2018

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत ही अच्छी गजल है | किन शब्दों मैं प्रशंसा करूँ | बहुत बहुत मंगल कामनाएं

26 जनवरी 2018

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रचनाएँ
shalinikaushik2
0.0
नित नयी घटनाएँ मन को झकझोरती हैं और मानव प्रकृति कुछ न कुछ अभिव्यक्त करने को प्रेरित करती है बस इसी में दिखता है ''कौशल '' घटनाओं पर विरोध जताने की भावना में और मन में निरंतर उठती भावनाओं को अभिव्यक्त करने में .
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हिम्मतें दुश्वारियों में दोस्त बन जाएँगी .

5 दिसम्बर 2015
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ज़िंदगी की मुश्किलें हर रोज़ आज़माएंगी ,डरते-डरते गर जियेगा यूँ ही ज़ान जाएगी ...................................................................इस जहाँ में कोई तेरा साथ देगा ही नहीं ,यूँ डरेगा ,परछाई भी साथ छोड़ जाएगी ...............................................................आये हैं तन्हा सभी

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हिम्मतें दुश्वारियों में दोस्त बन जाएँगी .

5 दिसम्बर 2015
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ज़िंदगी की मुश्किलें हर रोज़ आज़माएंगी ,डरते-डरते गर जियेगा यूँ ही ज़ान जाएगी ...................................................................इस जहाँ में कोई तेरा साथ देगा ही नहीं ,यूँ डरेगा ,परछाई भी साथ छोड़ जाएगी ...............................................................आये हैं तन्हा सभी

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यही कामना हों प्रफुल्लित आओ मनाएं हर क्षण को .-2016

30 दिसम्बर 2015
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अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को ,अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को .............................................................अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर  आये  ,घिर घिर कर अर्नोद छा रहे कंपित करने सबके तन को .....................................................

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तलवार अपने हाथों से माया को सौंपिये.

28 फरवरी 2016
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बेबाक बोलना हो बेबाक बोलिये,पर बोलने से पहले अल्फाज तोलिये......................................................दावा-ए-सर कलम का करना है बहुत आसां,अब हारने पर अपने न कौल तोडिये........................................................बारगाह में हो खडे बन सदर लेना तान,इन ताना-रीरी बातों की न मौज लीजिए.

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'' न कोशिश ये कभी करना .''

26 मार्च 2016
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दुखाऊँ दिल किसी का मैं -न कोशिश ये कभी करना ,बहाऊँ आंसूं उसके मैं -न कोशिश ये कभी करना.नहीं ला सकते हो जब तुम किसी के जीवन में सुख चैन ,करूँ महरूम फ़रहत से-न कोशिश ये कभी करना .चाहत जब किसी की तुम नहीं पूरी हो कर सकते ,करो सब जो कहूं तुमसे-न कोशिश ये कभी करना .किसी के ख्वाबों को

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भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,

8 अप्रैल 2016
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भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की ........................................................................भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है ,पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की.................................................

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कोई और कहे न कहे - मैं तो कहूँगी - ''कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .''

1 अक्टूबर 2017
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एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की, दोनों ने ही अलख जगाई देश की खातिर मरने की . .......................................................................... जेल में जाते बापू बढ़कर सहते मार अहिंसा में , आखिर में आवाज़ बुलंद की कुछ करने या मरने की . ..................................

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गणतंत्र फ़साना बना हे ! हिन्दवासियों

25 जनवरी 2018
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फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही , पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही . ...................................................................................... नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर , हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही . .................................

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