खिड़कियाँ
19-06-2021
आज मन की खिड़कियाँ सब खोल दो।
शोखियों में मस्तियाँ सब घोल दो।।
यार यूँ ही बेवफा होता नहीं।
क्या रहीं मजबूरियाँ अब बोल दो।।
तब निकालो तुम जुबां से दोस्तो।
बात को पहले ह्रदय में तोल दो।।
इक झलक मुझको दिखा दो तुम जरा।
भेंट मुझको बस यही अनमोल दो।।
साहबो कर दो किसानों का भला।
न्यायसंगत तुम फसल का मोल दो।।
मानता हूँ मौत का सामान हो।
यूँ फ़िज़ा में जहर तो मत घोल दो।।
🙏🙏प्रदीप चौहान, शिकारगढ़ी, अलीगढ़ 🙏🙏