"गीत"
जब काली घटा नभ में छाए
और मन मयूर बन नृत्य करे।
पायल की तब झंकार उठे।
बनकर पवन तुम आजाना।
जब भी बसंत की बेला में।
बागों में हरियाली छाए।
कोयलिया मीठा स्वर छेड़े,
तब बनके सपन तुम आ जाना।।
पंछी भी शोर मचाए जब,
फूलों पर भंवरे मंडराएं।
हो मधुर मिलन को मन आतुर,
तब बनके तरंग तुम छा जाना।
जब भी प्रभात की बेला में,
पूरब में लाली छा जाए।
मंदिर में शंख ध्वनि बाजे
तब बनके उमंग तुम आ जाना।
अम्बिका झा ✍️