"शिक्षक"
अंधकार मिटा जीवन में ,
पथ प्रदर्शित करने वाला आकाश हैं शिक्षक।
ज्ञान की रोशनी फैलाने वाले,
ज्ञान का प्रकाश है शिक्षक।।
शिक्षक, पद न पैसा न कोई व्यवसाय।
न गृहस्थी चलाने वाली है कोई आय।।
सभी धर्मों से ऊंचा गीता में उपदेशित मर्म हैं शिक्षक।
मां फलेषु वाला कर्म है शिक्षक।।
शिक्षक रिश्तों में सबसे पवित्र हैं।
शिक्षक एक पवित्र ज्ञान की
महक फैलाने वाले इत्र हैं।।
दीपक है न बाती,निशब्द तेल हैं
उसी पर जीवन का सारा खेल है।
कुआं और नदी सी निर्मल धारा प्रवाह हैं।
मंजिल तक पहुंचाने वाली राह हैं।।
मित्र, मां, तो कभी पिता का हाथ है।
साथ न होकर भी ज्ञान के रूप हमारे साथ हैं।
न वृक्ष न पत्तिया न फल है,
शिक्षक ज्ञान रूपी खाद है।
शिक्षक संस्कार का दर्पण है,
एक नहीं हर एक के अंदर निर्विवाद हैं।
चाणक्य, सांदीपनि, तो कभी विश्वामित्र,
गुरु-शिष्य की प्रवाही परंपरा का चित्र है।
भाषा का मर्म अपने शिष्यों के लिए धर्म
साक्षी ,साक्ष्य, चिर अन्वेषित लक्ष्य है।।
नायक खलनायक कभी विदूषक बन जाते,
किंतु कभी कोई मुखोटे नहीं लगाते।।
जो मिट कर भी शिष्य को देते हैं ज्ञान।
शिक्षक अनुभूत सत्य हैं, दुनिया के सबसे बड़े विद्वान।।"
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं साहित्य परिवार के सभी सदस्यों को 🌹🌹
अम्बिका झा ✍️