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घनाक्षरी छंद

28 सितम्बर 2021

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साथ-साथ घूमते थे , साथ-साथ झूमते थे ,
साथ-साथ  कुंज-कुंज , में बड़ी मजा रही।

कहीं कुछ ना अधूरा ,कृष्ण में समा के पूरा ,
साथ  खूब  नेहपूर्ण , प्यार  की  समा  रही।

जब से हैं गए श्याम , छोड़ सभी कामधाम ,
उनके  वियोग  में  ,  विछोह  गीत  गा  रही।

देखूं मैं करील कुंज , कालिंदी का कूल देखूं ,
मोहे  सखी  श्याम की , बहुत याद आ रही।।

                 🙏प्रतीक तिवारी🙏


sanjay patil

sanjay patil

Super thought

28 सितम्बर 2021

Pratik Tiwari

Pratik Tiwari

28 सितम्बर 2021

Thankyou so much

Shraddha 'meera'

Shraddha 'meera'

Bahut badhiya jay shree krishna ,,😊😊😊🙏🙏🙏🙏 अच्छी पंक्तियां हैं मन मोह लिया ।

28 सितम्बर 2021

Pratik Tiwari

Pratik Tiwari

28 सितम्बर 2021

बहुत आभार आपका श्रद्धा जीु 🙏🙏

Pratik Tiwari

Pratik Tiwari

28 सितम्बर 2021

बहुत आभार आपका श्रद्धा जीु 🙏🙏

Pratik Tiwari

Pratik Tiwari

28 सितम्बर 2021

बहुत आभार आपका श्रद्धा जीु 🙏🙏

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत बहुत सुन्दर

28 सितम्बर 2021

Pratik Tiwari

Pratik Tiwari

28 सितम्बर 2021

हार्दिक आभार आपका

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रचनाएँ
विरह काव्य
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यह पुस्तक श्री कृष्ण जी द्वारा गोकुल छोड़कर मथुरा चले जाने पर गोपिकाएँ जो करती हैं , जो सोचती हैं और जो कहती हैं उन सब बातों का मेरे शब्दों में संकलन है।

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