साथ-साथ घूमते थे , साथ-साथ झूमते थे ,
साथ-साथ कुंज-कुंज , में बड़ी मजा रही।
कहीं कुछ ना अधूरा ,कृष्ण में समा के पूरा ,
साथ खूब नेहपूर्ण , प्यार की समा रही।
जब से हैं गए श्याम , छोड़ सभी कामधाम ,
उनके वियोग में , विछोह गीत गा रही।
देखूं मैं करील कुंज , कालिंदी का कूल देखूं ,
मोहे सखी श्याम की , बहुत याद आ रही।।
🙏प्रतीक तिवारी🙏