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घटिया-मटिया

14 मार्च 2024

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एक छोटी-नाटी आकृति देखकर दुकाला बाई पास रखी झाडू लेकर दौड़ पडी, वह आकृति बड़ी तेजी से आगे बढी ! यह सब देखकर दुकाला बाई झाड़ू पूरी ताकत लगाकर उस आकृति की ओर फैंक देती है ! झाड़ू सीधे उस आकृती के सिर पर जा लगता है और वह आकृती 'कें-कें चीं-चीं 'की आवाज़ें निकालते हुए धम्म से जमीन पर गिर पड़ता है ! गिरने के तुरंत बाद ही वह आकृति एक भी क्षण की देरी किये बिना उठ कर उछलते-कुदते  'कें-कें 'की तेज़ आवाज़ें करते हुए एक छप्पर से दूसरे छप्पर पर उछलते हुए भाग जाता है !

अगले दिन सुबह ज्ञानपुर नाम के एक छोटे से गांव मे चौपाल लगा होता है ! चौपाल मे गांव के छोटे-बड़े, बच्चे जवान, बूढ़े सारे लोग इकट्ठे हुए थे ! सब के चेहरे पर डर और गम्भीरता साफ़- साफ देखा जा सकता था ! किसी तरह गांव के मुखिया ने भगवान का नाम लिया और अपनी बाते आगे रखने लगे !
मुखिया - पंचगण, गांव मे इन छोटे शैतानों की हरकते अब फिर से बढ़ चुकी है, मेरे द्वारा लिये गये सारे फैसले सही परिणाम नही दे सके ! आप पंचो से निवेदन है कि, आप इन शैतानों से गांव को सुरक्षित रखने का उपाय बताये !
पंच सियाराम - मुखिया जी, इन नाटे शैतानों से कोई आम इंसान छुटकारा तो दिला नही सकता ! हमे इसबार फिर से किसी बड़े और ज्ञानी बैगा-गुनिया(ओझा) या किसी सिद्ध बाबा की सहायता लेनी चाहिये !

(पंचो मे सबसे जवान बीरसिंह सियाराम को बीच मे ही रोकते हुए कहता है )
बीरसिंह - काका हम कब तक इन ओझाओं के चक्कर मे फंसे रहेंगे ? पिछले तीन सालों मे 5 बार ओझाओं की टोली आई, कुछ 4-6 महीनों की राहत तो मिलती है पर कुछ दिनों बाद फिर से नाटे शैतानों का आतंक शुरू हो जाता है ! इस तरह हजारों रूपये भी बरबाद हो चुके है ! गांव वाले भी अब अपने बचे हुए पैसे इस तरह बरबाद नहीं करना चाहते!

सियाराम(बीरसिंह से)- बाबू, सौ-पांच सौ रूपये देकर अगर धन-धान्य की रक्षा हो तो कोई समस्या नही होनी चाहिए !
बीरसिंह - काका, कब तक गाँव के गरीब लोग और गांव का पैसा इस तरह बरबाद होते रहेंगे !

सियाराम - बाबू, मै चाहता हूँ कि आखिरी बार हम किसी बड़े ओझा की सहायता लेंगे और जो भी खर्चा लगे मै दूंगा !
बीरसिंह - नही काका, खर्चा वहन पूरा गांव करेगा पर, आखिरी बार,  अगर गांव वाले और मुखिया काका हामी भरे तब !

मुखियाजी पंचो और गांववालों से उनकी राय मांगते हैं, सबके सब सियाराम के शब्दों को स्वीकार करते हैं !

चौपाल खत्म होने के बाद मुखियाजी पंचो को अपने घर में बैठक के लिए गुप्त तरीके से बुलावा भेजा जाता हहै। बैठक में तय होता है कि मुखियाजी और सारे पंच 2-2 लोगो की 3 टोलियाँ बना कर गांव में छिपकर नजर रखेंगे कि नाटे शैतान रहते हैं कहा, आखिर कौन उन्हें पाल के रखता है और कौन इसका इस्तेमाल कर रहा है !

इस गांव में एक बहुत रईस इंसान रहता था, जो पैसौ या अनाज से लोगो की मदद करते थे !

गांव में छोटे शैतानों ने इतना आतंक मचा रखा था कि, लगभग हर घर से पैसे, जेवर और अनाजक् की चोरी कर लेते थे ! बहुत से लोगो ने नाटे शैतान को देखा तो था पर नाही उसे पकड़ सके नाही उसकी चोरी पर अंकुश लगा सके ! इस शैतान के करण गांव के बहुत से लोग गांव छोड़ कर चले गए ! जो गांव में थे उस परिवार की औरतें अपनी पूरी संपत्ति पैसे जेवर अपने साथ ही रख कर सोते थे और पुरुष अनाज के कोठी में ही सोते थे ताकि ये छोटे शैतान अनाज ना चुरा ले !

      सन् 1985 की इस घटना ने पूरे गांव को गरीब बना दिया था ! दूसरे तरफ गांव में एक रईस इंसान थे, जो हर हफ्ते गांव के जरूरी लोगों की मदद करता थे चाहे पैसे से हो या अनाज से ! छोटे शैतानो ने बहुत से गाँव वालो का सब कुछ चुरा लिया था यहाँ तक कि पूरा अनाज भी ! गाँव वाले एक तरह से खाने के लिए उस इंसान पर ही निर्भर थे ! उस इंसान का नाम था सुकदेव पटेल, जिन्हे लोग मंडल भी कहते थे !

अगली रात बीरसिंह अपने घर में खाना खा रहा था कि उसकी नई-नवेली पत्नी (जिसका पूरा जीवन शहर  मे बिता था, जिसे गांव की बहुत गहरी जानकारी न थी ) बीरसिंह से पूछती है कि ये छोटा शैतान आखिर है क्या ? क्या ये चोरी करता है, क्या ये इंसानों को मार डालता  ? आख़िर ये शैतान चाहता क्या है ?

बीरसिंह - ये छोटे शैतान जिन्हें हम मटिया भी कहते हैं, बेहद बदमाश और चोर होते हैं। मटिया अक्सर अपने साथ कांवर (ताराजुनुमा लकड़ी का बना हुआ होता है, जिसका दोनों पलड़ो पर दिया के आकार की टोकरी होती है) देखने में तो टोकरी बहुत छोटी होती है पर उसमें 300 किलो से भी ज़्यादा अनाज समा सकता है! अगर इसे किसी के घर में कुछ भी ना मिले तो ये उस घर में गंदगी मचा देता है। तैय्यार खाने के बरतानो में मल डाल देता है ! वैसे तो ये इंसानों पर हमला नहीं करते पर अगर ये इंसानों से भिड़ जाएं तो चार पंच लोगो को आराम से पटखनी दे देंगा ! इन्हें सिर्फ एक ही चीज़ से डर लगता है वो है झाड़ू ! झाड़ू के आगे इसकी पूरी ताकत खत्म हो जाती है !

बीरसिंह की पत्नी पूछती है कि ये मटिया आखिर दिखते कैसे हैं, कितने छोटे होते हैं ये ?
             बीरसिंह बताता है कि इनकी ऊंचाई काफी कम, लगभाग 2 फीट या उससे थोड़ी ज्यादा हो सकती है! शरीर गठिला और गोलमोल होता है ! पूरा शरीर काले घने बालो से ढका होता है, बिल्कुल वैसा ही जैसा कोई भालू या कोई शैतान होता है, पर इनका चेहरा थोड़ा इंसान और बंदरो के जैसा होता है ! इनके चेहरे पर भी हल्के बाल होते हैं ! नाखून बड़े होते हैं, आँखे बहुत बड़े और लाल होते हैं !

तभी घर के बाहर कोई आवाज़ लगता है, चलो बीरसिंह रजाई और माचिस रख लो ठंड बहुत है ! बीरसिंह खाना ख़त्म करके उस व्यक्ति से साथ जाने लगता है और अपनी पत्नी से कहता है कि, माँ और तुम एक साथ सोना और पैसे और गहने को अपने तकिये पर रख कर ही सोना ! पिता जी अनाज की कोठी में सोएंगे तो उनके लिए लालटेन में कैरोसिन भरकर दे दो और उनका बिस्तर वही लगा दो और हा उन्हें झाड़ू जरूर दे देना ! यह कह कर बीरसिंह अपने साथी के साथ गांव की देखरेख करने निकल पड़ा !

इतनी ठंडभरी रात थी कि कोई इंसान तो क्या कोई कुत्ता भी गांव में घुमता नहीं दिखायी दिया, ऐसे में मटिया भला कैसे दिखाई देता। थोड़े समय बाद कुछ कुत्ते दौड़ते हुए आये और हमारे पास आकर एक घर के छप्पर को देखकर भौंकने ! लगे बीरसिंह उसके साथी और बाकी पंचो की टोली चोरी चुपके गांव की जांच-पड़ताल करते हैं पर उन्हें कुछ नहीं मिला ! इसके अगले दिन वो बाबा भी गांव आ गए जिन्हे सियाराम ने बुलाया था ! वो बाबा गाँव आते ही अपनी कर्म साधना शुरू कर देते हैं !

अगले दिन फिर सारे पंच, मुखिया और बीरसिंह अपनी नाइट ड्यूटी पर लग जाते हैं! आधी रात के बाद फिर से कुछ कुत्ते उसी घर के छप्पर की ओर देख कर भौंकने लगते हैं। इस तरह वो रात फिर से ख़त्म हो जाती है पर नाटे शैतान की कोई जानकारी नहीं मिलती ! इस तरह दिन बीतते रहे पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ ! 12 दिन बीतने के बाद भी अब तक उस मटिया को ना किसी ने देखा था ना उसने कहीं चोरी की या गंदगी की ! गांव वाले इससे काफी खुश थे, उन्हें लगा कि बंगाल से आए हुवे बाबाजी की साधना काम कर गई है, उनके तंत्र-मंत्र ने मटिया को कुछ भी गलत करने से रोक रखा है। इसलिए अब गांव में मटिया का खौफ कम हो गया था और लोगों की जिंदगी चलने लगी। पर मुखिया और पंचो की नाइट ड्यूटी जारी रही  ! 16 दिनों के बाद सुबह बहुत जल्दी ही गांव का एक आदमी मुखिया के पास जाकर कहता है कि पिछली रात मटिया मेरे घर आया था, मैं लालटेन बंद करके सो रहा था! लगभग 2-3 बजे मुझे प्यास लगी तो मैं बिस्तार से उठा, देखता हूं कि घने काले कोठी में 2 बहुत बड़ी और खून जैसी लाल आंखे मुझे घुर रही थी! जब मैंने डरते हुए लालटेन जलाने के लिए माचिस जलाई तो उसके रोशनी में मुझे मटिया दिखा, जो अपनी छोटी सी टोकरी में मेरे कोठी के अनाज को डाल रहा था  ! मैंने अपने भतीजे को चिल्लाकर बुलाया वो तुरन्त आ पहुंचा, हम दोनों ने डंडे पकड़े और मटिया को मारने लगे पर उसे कुछ भी ना हुआ मटिया ने मुझे नाखुन मारा और उठाकर जमीन पर दे पटका ! मै साथ मे झाड़ू रखना भूल गया था इसलिए झाड़ू लेने दौड़ पड़ा ! वापस आया तो देखा कि मटिया कांवर में धान लेकर जा रहा है। मैंने बिना देर किये झाड़ू से मरना शुरू किया और वो मटिया जोर से जमीन पर गिर पड़ा और कांवर मे रखा धान बिखर गया ! जब कोठी में गया तो देखा कि मेरा भतीजा बेहोश था, उसे भी मटिया ने खरोच मारा था ! अभी मेरा भतीजा होश में है, पर आप कुछ करिए वरना हमें भी गांव छोड़ना पड़ेगा !

मुखिया बहुत गुस्से में बीरसिंह के घर जाते हैं और कहते हैं कि बाबू कल रात तुम और सुमेर कहाँ थे ?

बीरसिंह - मुखिया काका आपने जिस हिस्से में हमें निगरानी के लिए रखा था उसी हिस्से में ही थे ! 

मुखिया  - जीवन के घर से तुम्हें चिल्लाने की आवाज भी नहीं आई ? 

बीरसिंह - काकाजी जीवन का घर दूसरे छोर पर हैं और हम दूसरे छोर पर थे , हो सकता है इसी कारण हमे आवाज़ ना आयी हो ! 

मुखिया  - तुम दोनों को सोने के लिए नहीं रखा था अगर निगरानी नहीं करनी थी तो बोल देते किसी और भरोसे लायक को काम दे देते ! 

बीरसिंह ने माफ़ी मांगी और मुखिया जी वापस चल दिये ! अगले दिन सुबह मंडल की पत्नी कुछ कचरा ले कर घर के बाहर फेंकती है, जिसे बेहद गंदी बदबू आ रही थी (ये बात एक बच्चे ने पंचो की बताई थी) ! उसके बाद लगतार दो दिनों तक यही हुआ ! सियाराम और मुखियाजी मंडल के पास जाकर इसकी जानकारी लेने लगे मंडल ने कहा कि हमारे यहां कोई मटिया रात में नहीं आया था ! मैं खुद ही अपने अनाज की कोठी में सोता हूं, पत्नी कमरे में सोती है। अभी तक कोई मटिया नहीं आया है ना ही उसने हमारे घर में मल या गंदी चीज रखी है !

कुछ दिनों बाद वो मटिया फिर से गांव के एक घर चोरी की नियत से गया, पर वो कुछ चोरी कर पता इससे पहले ही घर के मालिक ने झाड़ू दिखा कर उसे भगा दिया ! मंडल की पत्नी भी रोज़ गंदी बदबू वाले कचरे फेंकने लगी। एक रात फिर वो मटिया किसी के घर गया ! वो आदमी घर में अकेला ही रहता था और बहुत बूढ़ा हो चुका था ! उसने मटिया को देखते ही डंडा उठाया और मरने दौड़ पड़ा पर मटिया उसे डरा नहीं बल्की उस बूढ़े को नोचने लगा, चेहरे पे नखुन मरने लगा ! बुढा खूब चिल्लाने लगा- चिखने लगा ! किसी तरह वो घर से बाहर निकला और जोरो से कराहने लगा ! उसकी  चीख सुन कर सियाराम और उनके साथी दौड़ कर आते है ! देखते है कि, बुढ़ा खून से लथपथ जमीन मे तड़प रहा है और बंगाल से आये हुवे बाबा उस मटिया से लड़ कर रहे हैं, जिसने बुढे के चेहरे को पूरी तरह से चीर-फाड़ कर क्षत-विक्षत कर दिया था ! बूढ़े की नाक चेहरे से अलग हो चुका था ! दुसरी तरफ कभी मटिया बाबा को पटक रहा है तो कभी बाबा मटिया को ! मटिया का इतना आक्रमक और बेख़ौफ़ रूप देख कर सियाराम और उनके साथी हक्के बक्के रह गए ! बिना देर किए सिया राम और उनके साथी झाड़ू लेकर मटिया को पिटने लगे जिससे मटिया ने बाबा को छोड़ दिया और 'के-के' करते हुए एक छप्पर से दूसरे छप्पर उछलते गिरते पड़ते भागने लगा ! इतने में मुखिया जी, बीरसिंह और बाकी के पंच भी वहा आ गए और मटिया का पिछा करने लगे ! इधर जमीन पर पड़े हुवे बूढ़े आदमी को बैलगाड़ी के सहारे ईलाज के लिये शहर भेजा गया ! मटिया ने बूढ़े के चेहरे को इस कदर नोचा था कि उसके चेहरे से नाक और आँखे बाहर आ गयी थी ! उसने गले का मांस भी अपने दांतों से फाड़कर निकाल डाला था। बूढ़े की जान बचना असम्भव सा लग रहा था। पर इसी बिच जब बाबा और और मटिया की लड़ाई हो रई थी तब बाबा ने मटिया के पंजे में चाकू गड़ा दिया था ! मटिया जहां-जहां से उछलता दौड़ता गया था वहां उसके काले-नीले खून के निशान फैलते चले गए पर रात होने के करण निशानों को ढूंढ़ना नामुकिन था। बाबा को मामुली चोटे आई थी ! इधर मुखियाजी मन में कुछ सोचने लगे और अचानक से उनके मुँह से निकला घटिया-मटिया ! पंचो ने पुछा घटिया-मटिया मतलब ? मुखियाजी ने बेहद गंभीरता से कहा इसका मतलब अब समझना होगा ! और सब अपनी ड्यूटी में लग गए ! सुबह होते ही मुखिया के साथ पंच और बाबा उस मटिया के नीले-काले खून के छींटो और निशानों का पिछा करते हुवे एक खंडहर जैसे पुराने घर में पहुंचें ! उस घर के खिड़की दरवाजा नये पर घर पूरा खंडहर हो चुका था ! उस खंडहर के दरवाज़े में लगे ताले को तोड़ कर जब सबसे अँधेरे वाले कमरे में गए तो हर तरफ बेहद ही गंदी बदबू फेली थी, बिल्कुल इंसानी मल-मूत्र जैसा ! हर तरफ़ इंसानी मल पड़े हुए थे और काले जादू वाली चीज़े भी पड़ी हुई थी ! अब पंचो को, बीरसिंह को और बाबा को कुछ-कुछ बातें समझ आ गई थी पर मुखियाजी शायद बहुत कुछ जान गए थे ! मुखियाजी कहने लगे अब ख़तम होगा घटिया-मटिया का किस्सा !

सियाराम - भैया कुछ बताइये आप क्या सोच रहे हैं ? मुखियाजी - लगगभग 40 साल पहले एक इंसान इसी तरह के खौफनाक मटिया की साधना करता  था ! वो बहुत गरीब था पर मटिया की सहायता से बहुत ही जल्दी बेहद अमीर हो गया ! उसकी लालच फिर भी ना रुकी मटिया से लोगो के घरो के पैसे जेवर अनाज चोरी करवाता था और शराब पी कर लोगों से बिना किसी कारण लड़ता, गाली गलौच करता, गांव की महिलाओ से छोड़खानी करता ! जो भी गांव वाला उस इंसान को रोकता उसे मटिया के हाथो पिटवाता और गांव मे मनमानी करने के लिए उस मटिया का इस्तेमाल करता था ! वैसे तो मटिया खुद ही इंसानों से डरते हैं, पर कुछ मुश्किल काली साधनाओं से उसे बहुत ही खौफनाक आ और आक्रमक बनाया जा सकता है !

उस इंसान ने भी यहीं किया वो पूरे गांव का मालिक बनना चाहता था ! कई बार गांव में  धार्मिक कथा का आयोजन किया गया पर किसी भी तरह के  धार्मिक अनुष्ठान हो ही नहीं पाते थे ! तब हम गांव वाले एक महात्मा के पास जाकर अपनी समस्या बताई तो उन्हें कहा कि ऐसी शैतानी साधना हमेशा घने अंधेरे वाले कमरे में होती है, जहां सूर्य की जरा सी भी किरण न पहुंच सके और हर तरह की गंदगी फेली हो !

क्या घटिया-मटिया के रहस्य से पर्दा खुल पाएगा ?

क्या मुखिया और टीम गांव वालों को मटिया के कहर से बचा पाऐगी या जाएगी जानें ?

यह जानने के लिए 'घटिया-मटिया' का अगला भाग ज़रूर पढ़ें !

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मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सजीव और सुंदर लिखा है आपने सर आप मुझे फालो करके मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏🙏

15 मार्च 2024

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घटिया-मटिया
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छत्तीसगढ़ ग्रामीण अंचल की एक ऐसी कहानी, जिसमें नाटे शैतानों की बुरी शक्ति ने पूरे गाँव को परेशान कर रखा था !

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