है वक्त की पुकार,
सुनो अनसुनी पुकार,
लेके धनुष-तलवार,
लो फिर अवतार,
प्रभु उबार दो।
छाया तम है अपार,
दिख रहा न कोई द्वार,
हुयी अपनों से शर्मसार,
मानवता है तार-तार,
प्रभु कोई तो आधार दो।
लिये रक्षा का भार,
वीर तैनात सीमा पार,
तजे हैं घरबार,
प्रभु उन्हें आशीष पारावार दो।
जो मेरे ही अंग,
है द्रोहियों के संग,
करते शहीदों का मान भंग,
उनके करो खण्ड-खण्ड ,
प्रभु नव शांति विस्तार दो ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'