हे राम !!!
मिला ये जीवन,
किस पाप से !!!!
एक जंग ही ,
तो नित्य ,
लड़ती हूँ ,अपने आप से !!!
अपने भाग्य से !!!
हर बार उससे ,
मात ही खाती हूँ !!!
मिले इन ,
गहन अँधियारों से ,
हे दशरथ नंदन,
बहुत विकल हो जाती हूँ !!!
कब रुकेगी ये जंग ,
कब होगा ,
आपसे परम मिलन !!!!
प्रभा मिश्रा 'नूतन'