अपनी अपनी सब कहें, दूजे की सुनें समझें ना। दूसरे को भी अपने से बढ़कर समझें, तो दुःख काहे का होए। अपने को दूसरों की नजरों में, अच्छा बनाने के सो जतन, पर खुद से वास्ता ना होए, औरों के लिए जीने से अच्छा, अपनों संग खुद का भी बेहतर जीवन होए। ना जोगी बन, ना संन्यासी बन.. गृहस्थ जीवन से बढ़कर, ना कर्म तप