आज कहानी स्वार्थ में हम जीवन के सफर में वो पल महसूस करेंगे और पढ़ेगें
जो कि हमारे मानव जीवन के साथ मन भाव में एक सोच और एहसासों के जज्बातों के साथ है हम सभी के जीवन की शुरुआत एक बचपन जवानी और जिंदगी के बुढ़ापे का सफर हम सभी किस्मत वालों को नसीब होता है
ऐसे ही एक स्वार्थ की बात करते करते हम एक बुजुर्ग श्री सत्यनारायण आर्य जी से मुलाकात हुई । और उनसे दो पल बात की उनसे उनके बचपन से अब तक के सफर का अंदाज़ पूछा तब वह बोले कि मैं अभी अपने को बुजुर्ग नहीं समझता हूँ। इनकी उम्र 72 वर्ष कह रहे थे हकीकत तो शायद वो भी पहली मुलाकात में छुपा गए। ऐसे ही एक महिला मिली उम्र तो 60 या 62 बता रही थी बस नाम लिखने को मना किया थाल दो बेटे और बेटियाँ है सब कुछ धन मकान ठीक है बस बेटों अब बुढ़ापे में माँ की बात समझ न आये और बहुओं को बाजार सहेली मायका और मोबाइल से फुर्सत कहाँ तब हमने पूछा जी फिर कभी घर अपना काम स्वंय और कभी बेटी के पास घूम आती हूँ फिर ऐसी मालूम हो तब औलाद एक ही काफी है। आजकल का माहौल सही है आज स्वार्थ और दिखावे के साथ जीवन जीते हैं।
आज के माहौल में अपने बुजुर्गों से पैसा पेंशन या धन संपत्ति का लालच रहता है और वो भी छीन लेते है और बच्चों में संस्कार परिवार और माँ बाप के आचरण से ही होते है। और वृद्ध आश्रम और नारी निकेतन अनाथाश्रम और विधवा आश्रम आदि सब है परन्तु दशा और सुविधा दयनीय है अगर कोई मर जाए तब पता नही क्या करते होगें। बस आज कल कलयुग तो हम कहते है परन्तु सबसे बड़ा कलयुग हमारे साथ स्वार्थ और लालच है। जो कि उन माता पिता के पालन पोषण का महत्व और सच समय के साथ भूल जाते है हम अपने बच्चों के लिए शिक्षा देश विदेश भी देते है परन्तु बुढ़ापे में कितने नसीब वाले माता पिता होते होगें जो परिवार में रह पाते होगें। आज स्वैच्छिक स्वार्थ कहानी के साथ हम एक सच और हकीकत का स्वार्थ समझे। और हकीकत के साथ हम कितने भी वृद्ध आश्रम नारी निकेतन विधवा आश्रम और न जाने कितने बच्चों के संरक्षण और बेसहारा असहाय की मदद करने का नियम और व्यवस्था हो परन्तु जब तक हम सभी अपनी कमियों और अपनो के लिए एहसास और जज़्बात के रिश्तों का महत्व न समझेगें तब तक जीवन में हम सभी टूटते और बिखरते रहेगें। और हम सभी के जीवन में मन भाव समान है बस थोड़े से सहयोग और समय के साथ दो पल का एहसास बुजुर्गों के साथ हो फिर आप देखें हमारे बुजुर्ग भी जीवन के पल खुशियों के साथ आपको आशीर्वाद और सानिध्य से आपको भी एक जिंदगानी के साथ सुकून होगा और एक कहावत पुरानी है ताली दोनों हाथों से बजती है और बुजुर्गों को भी कभी कभी समय देखकर चुप रहकर बाद में समय देखकर समझाना चाहिए। बस आजकल के परिवार में स्वार्थ और दिखावे का लालच तो है बस बुजुर्गों की नसीहत अब भाती नहीं है परन्तु सच र अनुभव का महत्व बहुत होता है।
आओ हम सभी मिलकर एक मुहिम बनाए और अपने बुजुर्गों को सहयोग और महत्व दे और अपने बच्चों को समझाए जीवन में सच और एहसास के साथ अपने बुजुर्गों को थोड़ा प्रेम और सम्मान के साथ मन रिश्तों के साथ प्यार रखते हुए जीवन का अर्थ और सच हम सभी के जीवन में खुशियाँ आ सकती है।
हम सभी लालच और स्वार्थ छोड़कर एकदूसरे के सहयोगी बने और आने वाले अपने समय को खुशियों के आशीवार्द भर ले। एक कदम तो हम बढ़ाए।।
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