15 अगस्त 1946 में मुस्लिम लीग के द्वारा ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की घोषणा कर दी गई. मुस्लिम लीग के इस एलान ने 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में भीषण दंगे का रूप ले लिया. हर तरफ खून की होली खेली जाने लगी. देखते ही देखते कलकत्ता का सांप्रदायिक दंगा बंगाल और बिहार की सीमा पर भी शुरू हो गया.
इस सांप्रदायिक दंगे को ‘कलकत्ता किलिंग’ के नाम से भी जाना जाता है.इतिहासकारों की माने तो इस भयानक दंगे के 72 घंटे के दौरान तक़रीबन 6 हजार लोगों की मौत और 20 हज़ार से अधिक लोग घायल हो गए थे.
शिमला समझौता की असफलता के बाद कैबिनेट मिशन भारत आया. इसने पाकिस्तान की मांग को ठुकरा दिया, पर उसने संविधान के निर्माण और किर्यान्वयन के पहले एक अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा. कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार तो किया पर अंतरिम सरकार में शामिल होने के प्रश्न पर एक समस्या खड़ी हो गयी. शुरूआती दौर में कांग्रेस ने अंतरिम सरकार में शामिल होना स्वीकार नहीं किया. इसलिए मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना भी सरकार बना सकती है, परन्तु वायसराय कांग्रेस को अलग रखकर सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थे इसलिए लीग के दावे को ठुकरा दिया. जिन्ना ने इस बात पर क्रोध जताया और कैबिनेट मिशन की योजना को अस्वीकार कर दिया. इस साम्प्रदायिक दंगे में हज़ारों लोगों की जानें गईं. बंगाल से फैलते-फैलते यह दंगा नोआखली, बिहार और अन्य जगहों तक फैल गया. मुस्लिम लीग अब हताशा की स्थिति में थी. किसी भी प्रकार वह सत्ता हथियाना चाहती थी जिससे देश का विभाजन करवाया जा सके और मुसलमानों का हित सुरक्षित रखा जा सके.
आतंक फैलाने के बाद मुस्लिम लीग ने अपनी नीति बदल ली. अंतरिम सरकार का जब गठन हो रहा था तो वायसराय ने लीग के सामने भी सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव रखा. इस बार जिन्ना ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. फलतः, लीग भी सरकार में सम्मिलित हो गई. लीग एक निश्चित उद्देश्य से अंतरिम सरकार में शामिल हुई थी. वह सरकार में शामिल होकर कांग्रेस की नीतियों का विरोध करने के लिए शामिल हुई थी. अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के नेता लियाकत अली को वित्त विभाग सौंपा गया था. नया बजट प्रस्तुत करते समय लियाकत अली ने ऐसा बजट बनाया जिसमें साम्प्रदायिकता के तत्त्व शामिल थे. नए बजट में व्यापारियों पर 25% कर लगाए गए जिससे कई व्यापार करने वाले हिन्दू क्रोधित हुए. अन्य विभाग के कार्य भी वित्त विभाग के कारण कठिन हो रहे थे. सरदार पटेल ने भी क्षोभ व्यक्त किया कि अपने मंत्रालय में एक चपरासी की नियुक्ति भी वित्त विभाग की स्वीकृति के बिना नहीं हो सकती. भाषा और आंतरिक व्यवस्था के प्रश्न पर भी लीग और कांग्रेस के बीच मतभेद था. दोनों के लिए एक साथ काम करना मुश्किल होता हुआ दिख रहा था.
16 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय के रूप में याद किया जाता है. अंग्रजों की भारत में ‘फूट डालो राज करो’ की नीति कामयाब हो गईं थी. यह वही दौर था जब आज़ादी के साथ भारत-पकिस्तान के बटवारें को लेकर हर तरफ गहमागहमी का माहौल व्याप्त था.