भारतीय शब्द का आधार भारत है व भारत का आधार हमारी सनातन पुरातन वैदिक सभ्यता व संस्कृति.
हिंदू शब्द का प्रचलन यहाँ के मूल निवासियों के लिए प्रोयोगित किया जाता है जो यहाँ हज़ारों वर्षों से अलग अलग अलग पंथो को स्वीकारकर अंगिगत करते चले आ रहे है।
अंतर दोनो में कुछ नहीं है बस कोई इतिहास में इस्लामिक आक्रांताओं उनके अनैतिक कृत्यों को सही सौहार्दपूर्ण स्वीकारता है तो वो भी इन दोनो शब्दों मे सम्मिलित हो जातें है ठीक ऐसे ही ईसाई भी ब्रिटिश हुकूमत के साथ यहाँ बसे व आज भी धर्मपरिवर्तन का धार्मिक धंधा कर रहे है।
पारसी धर्म का अस्तित्व हो भारतीय हिंदू समाज के सर्वधर्मसंभाव का एक जीवित उदाहरण है ऐसे ही इतिहास में अनेको पंथ अलग अलग समाज सीमाओं से यहाँ स्वीकार हुए परंतु उन्होंने यहाँ की अनंत अखंड विरासत को भी स्वीकार किया।
अब संवैधानिक रूप से जो भी यहाँ की नागरिकता से परिभाषित है वो भारतीय व हिंदू धर्म के अनुयायी हिंदू कहे जाते है। यहाँ पर एक परिपेक्ष और है कि स्वयं सर्वोच्च अदालत का कहना है हिंदू कोई पंथियधर्म नहीं अपितु एक जीवन जीने की कला है।
अंत मे मुख्य मानवतापूर्ण जीवन आदर्शो व मूल्यों पर आधरित कर्म करने वाला समाज ही भारतीय कहने योग्य है।
कलिसंवत शुरू होने के बाद से इतिहासिक सनातन सभ्यता व संस्कृति के विश्लेषण व क्रमों को एकत्र किया गया व समय समय पर अलग अलग घटित तथ्यों को जोड़ा गया सिर्फ़ घटनाएँ नहीं अपितु ज्ञानविज्ञान भी है परंतु पुराणो की भी तीन श्रेणियाँ है सत रज तम की तरह कुछ ग़लत अनुवादित हुए कुछ में अलग से श्लोक १००० वर्षों मे जोड़े गए। संस्कृत भाषा का ज्ञानविज्ञान व स्वयं चेतनात्मक होकर बुद्धि की परिधि को सूक्ष्म करके ही किसी भी तथ्य को समझा जा सकता है। समग्रता को ना समझना ही हिंदू धर्म व भारतीय सभ्यता व संस्कृति के पतन का कारण है हमें बाहरी शक्तियाँ द्वारा पतित करने की आवश्यकता ही नहीं। वृक्ष की जड़ ही मुख्य है परंतु वृक्ष पूर्ण तभी कहलाएगा जब शाखायें , व प्राप्त होने वाले फल फ़ूल इत्यादि भी वृक्ष के ही अभिन्न अंग है अब समय समय पर दूषित शाखाओं या टहनियों को छाँटा जाना चाहिए परंतु उसके किए वृक्षविज्ञान व ज्ञान के व्यक्तित्व भी परिभाषित होना चाहिए।
इतिहास सिर्फ़ तर्क,प्रमाण,साक्ष्य किसी एक विचारधारा या किसी निश्चित विंदु पर आधारित होता है अपितु इतिहास का यथार्थ सत्य व अर्थ एक आदर्श विवेचना है जो अग्रिम पीढ़ियों को एक आदर्श व संस्कारयुक्त समाज बनाने की नैतिक प्रेरणा प्रदान करे।
ब्रह्मांडिक ज्ञानविज्ञान से पूर्ण अनंत
सभ्यताओं संस्कृतियों का मुख्य केंद्र ही
हिंदुत्व है।अपितु महाभारत काल के अग्रिम
हज़ारों वर्षों में समय समय पर अलग अलग
शाखाओं द्वारा ही जड़मूलरूपी चेतनाशक्ति
को अस्तित्वविहीन करने का कुचक्र पिछले
३००० वर्षों से प्रारंभित है इसमें मुख्य २०००
वर्ष उसमें से भी मुख्य १४०० वर्ष है। वर्तमान
मे हिंदू समाज को एकता व यथार्थ धार्मिक
जीवन को कर्मयोगी की भाँति जीना होगा व
इस्लामिक व ईसाई कट्टरपंथी विचारधारा
से भारत राष्ट्र को बचाना होगा।
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो
हतोऽवधीत् ।।