वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यबस्था जो की ब्रिटिश हुक़ूमत के समयानुसार भारतीय मूल्यों व् सभ्यता-संस्कृति को सामान्य भारतीय जन-मानस के मन-मष्तिस्क में स्वयं का ही परिहास कराकर पच्छिमी भौतिक वैज्ञानिक शिक्षा को ही सर्वमान्य परपेछित कर आज के भारतीय युवा-वर्ग को सीमित बौद्धिक छमताओ में किसी श्रापबंध से बांधती सी प्रतीत होती है |
श्रापबंध -शिक्षा का अर्थ नौकरी ,व्यवसाय ,भौतिक पदार्थो की सजीवता ,विभिन्न सरकारी पदों पर राजतिलकित होना ,भविष्य की सुलभ जीवन यापन की सामग्रियों को सिंचित करना ,इत्यादि |
प्रश्न -क्या पच्छिमी शिक्षा पद्धति के अनुसार भी यथार्थ में हम व्यक्तिगत प्रतिभा को उसका सही मार्गदर्शन व् दिशा निर्देशन करा पा रहें हैं ?
प्रश्न -क्या श्रापबंधो से मानव-निर्मित उपकरण की तरह जीवन के काल को व्यतीत करना हमारा 21st शताब्दी का स्वतंन्त्र भारत है ?
प्रश्न -क्या मानव योनि व् वैदिक सभ्यता-संस्कृति में जन्म लेना व्यर्थ हैं ?
प्रश्न - जैविक शिक्षा क्षेत्र में जैविक खेती ,जैविक पदार्थ ,जैविक जीवन इत्यादि जैविक ,जीवनशील विषय पर आप क्या जानकारियाँ प्राप्त कर चुकें है व् कितना अपने जीवन में आत्मसात कर चुकें है ?
उत्तर -socio -cultural- ecofriendly जीवन पद्धति पर स्वयं शोध करिये और जीवंन्त को पुनः जीवित करिये !
उत्तर -स्वयं शोध से आप जानकारियों से भी अधिक अनुभवीय ज्ञान-विज्ञान को स्वयं में जीवित पाएंगे !
हमारा उदेश्य आपकी भावनाओं व् आपकी शिक्षा पर प्रश्न उठाना नहीं है ,इस कहानी को पढ़कर आप स्वयं सोचिये कितने विषय विविधता की भाँति आपके जीवन से उपेछित रह गए हैं | जीवन जीने की सही कला व् आपके अपने व्यक्तिगत जन्म का सार्थक अर्थ तो आप को ही सोचना समझना है |
किसी भी ऊर्जा को ना मानने बाला नास्तिक भी प्रकृति को सजीव मानता है तो उस उस सजीवता को जी कर अपने सजीव होने का प्रमाण स्वयं को दीजिये |