प्रस्तावना - भारतीय क्रांतिकारी इतिहास प्रायः अनैतिक रूप से दो भागों में बाँट दिया गया जो कि उन सभी बलिदानियों के ऊपर आज़ाद भारतियों का कलंक है,
जिसका हमें स्वयं ही अभाश नहीं हैं | तथाकथित स्वतंत्रता का राजनीतिकरण कर विद्यार्थियों व् देशवासिओं को त्याग,वलिदान,शौर्य,मातृभूमि प्रति
आदर व् भावनाओं को भी विचारों के रणक्षेत्र में हिंसा और अहिंसा का धुलित प्रकरण बना उस धूल में उधम सिंह की वीरता को भी रैडिकल शब्द से सम्बोद्यित कर दिया गया | इस धूलित विभाजित देशभक्ति का प्रथम चक्रवात पंडित जवाहरलाल नेहरू के संरक्षण में आया जिसके आज करोड़ों
अनुयायी हैं |
प्रश्न- क्या गाँधी व् कांग्रेस की विचारधारा से भिन्न कार्य करने वाले क्रांतिकारी हिंसक थे ?
उत्तर - अहिंसा का अर्थ उस प्रकार के हर कार्य से है जो निजस्वार्थ से ऊपर उठ समाज व् देश में व्याप्त अनैतिक कृत्यों का विरोध कर मानवीय गुणों की स्थापना करे .
प्रश्न - क्या साल में एक-दो बार जयंती या पुण्यतिथि पर उधम सिंह पर चर्चा कर आप उन्हें आदर्श श्रृद्धांजलि अर्पित कर रहें हैं ?
प्रश्न -क्या देश भक्ति या राष्ट्रप्रेम कभी- कभी भावाभेष में चेतनित होता है ?
प्रश्न -क्या आप भी क्रांति को विकल्पो के अनुसार रंगित कर क्रांतिकारियों का वैचारिक विभाजन करतें हैँ ?
प्रश्न - क्रांतिसपूतों व् स्वतंत्रता-सेनानियों के महत्व को किस उपकरण से शोधित कर इतिहास को प्रचारित किया गया ?
उपसंहार- प्रत्येक मानव अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार अनेक स्थूल व् सूक्ष्म पदार्थों का प्रयोग करता हैं क्या आज देश भी एक पदार्थ ही बनकर रह गया है | आज देश की प्राणवायु "राष्ट्र हित सर्वोपरि" क्या भारत राष्ट्र के भावनात्मक वातावरण में उचित मात्रा में व्याप्त है | क्या देश की युवापीढ़ी उधम सिंह की शहादत-वलिदान को आने बाले भविष्य में उनका उचित सम्मान दे पायेगी |