यह मानचित्र 2004 तक का एक उदाहरणस्वरूप विवरण देता है कि सिक्ख संप्रदाय किन किन भौगोलिक हिस्सो में स्थानांतरण हुआ | अब वर्तमान में भारत को छोड़ सबसे अधिक सिक्ख अमेरिका , कनाडा फिर यूनाइटेड किंगडम में रहते है | खालिस्तान अर्थ खालशा की भूमि यह परिकल्पना कभी भी गुरु गोविंद साहब , गुरु तेग बहादुर , बंदा बैरागी , राजा रणजीत सिंह किसी के भी मन व कार्यो में नही थी कि इस मिट्टी को सिर्फ कुछ राज्य की सीमाओं तक सीमित कर स्वयं के लिए एक अलग देश की पहचान देने के मुद्दे पर सोचे , उनका जीवन इस राष्ट्र के लिए समर्पित रहा , इस्लामिक आक्रांताओ से इस समाज व सभ्यता को संरक्षण देना ही उनका मुख्य लक्ष्य व आधार था | आज सिक्ख एक अलग धर्म के रूप में स्वीकृत है परन्तु पूर्वरतः सिक्ख एक सनातन भारतीय सभ्यता व संस्कृति का ही एक नवीन पंथ था जो विदेशी शक्तियों के विरुद्ध ही तैयार हुआ व अकथनीय त्याग करके इस भारतभूमि को धन्य किया , अपितु जब 19 दशक में एक तरफ मुस्लिम गुट अलग मुस्लिम मुल्क व कुछ राजनैतिक सिक्ख प्रतिनिधि भी पंजाब प्रान्त को सिक्ख देश के रूप में विभाजित करना चाहते थे क्योकि सबको यही पता रहा भारत हिन्दू राष्ट्र ही बनेगा | खैर 1947 के उपरांत ही भारतीय पंजाब में हल-चल शुरू रही कुछ चुनिंदा लोग ही खालिस्तान के सपने को साकार करना चाहते थे |
भीड़तंत्र के बिना भी खबरों के द्वारा अलग अलग माध्यमो द्वारा आप एक विशिष्ट मानसिकता व एजेंडा को सर्वदृष्टित कर सकते है , न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा यह खालिस्तान का विज्ञापन |
राज्य व केंद्र के मध्य अलग अलग प्रस्तावों पर अलग अलग चर्चाएं अलग अलग अंदेशों को जन्म दे रही थी , पंजाब को दो अलह राज्यों में विभाजन , चंडीगड़ के रूप में हरियाणा व पंजाब के एकत्व राजधानी इत्यादि ऐसी कई प्रक्रियाएँ उस समय के अकाली दल व अन्य सिक्ख संगठनों द्वारा पूर्ण की गयी जो सिक्ख समुदाय के लिए ही विशिष्टरूप से प्रायोजित थी , अलग गुरुवाणी या गुरुग्रंथ शाहिब के अनुसार अपना अलग शासन पर भारत के नियंत्रण में ही इत्यादि पर यह माँगे पूरी नही हुई पर अलग अलग रूप में अवश्य परिवर्तित होती रही जैसे सिक्ख समुदाये को हिन्दू समाज से अलग मान्यता देना |
जब बाहुबल व अहंकार के साथ चर्चात्मक माँगे छोड़ कर अनुचित अधिकारों की प्राप्ति की योजना बनाई जाए व कोई एक लक्ष्य की प्राप्ति ही उस योजना का निष्कर्ष हो तब चिंगारी अग्नि प्रवाह के स्वरूप में बिना न्याय व अन्याय का सरोकार करते हुए उग्र व आतंकबाद का रूप ले लेती है , यही यहाँ हुआ , विदेशी धरती से तो पहले ही जैसे पहले लंदन फिर अमेरिका व कनाडा कुछ कुछ भारत से निर्वासित लोग खालिस्तान के एजेंडे पर कार्य कर रहे थे पर उनका अस्तित्व व उत्पादन ना के बराबर था , जैसे पाकिस्तान ने 1965 में ऐसे ही एक खालिस्तानी कार्यकर्ता को पेशावर को खालिस्तान की राजधानी बनाने का अबसर प्रदान किया था ; हमेशा ही देश विरोधी शक्तियों की समपर्क से ऐसे कुछ विदेशो में रह रहे खालिस्तानी समर्थक अपनी रणनीति बनाते रहे फिर एक दौर आया जब भिंडरबाला दमदम टकसल का अध्यक्ष बना पहले ही अकाली दल के विरुद्ध कांग्रेस ने भिंडरबाला के समर्थको को मदद की थी ; 1978-80 के मध्य एक चेहरा शसस्त्र क्रांति में मार्ग पर आ गया परन्तु यह कोई क्रांति नही थी अपितु जैसे आज इस्लामिक आतंकबाद दुनिया के लिए मुख्य समस्या है कुछ ऐसा ही सिक्खों के साथ भी हुआ ; इससे पूर्व ही निरंकारियों की निर्मम हत्या व हिंदुओं का भी कत्तलेआम शामिल रहा |
खालिस्तान लिबरेशन आर्मी जो कि आज तक कनाडा व लंदन में रह रहे कुछ ℅ nri सिक्खों द्वारा हर प्रकार की सहायता प्राप्त कर रही है ; भूतकाल में 1990 के उपरांत इन्हें भारत से समाप्त कर दिया गया था ; चाहे मासूम लोगो की हत्याएं हो , चाहे पूर्व सेना अधिकारी की हत्या , चाहे एयर इंडिया के विमान को बम्ब से उड़ाना , 30 से अधिक जगहों पर अन्य भी हतीयरो से हमला भी शामिल है , हमे नही भूलना चाहिए कैसे खालिस्तानी आतंकबादियों के स्वर्णमंदिर पर कब्जा कर कैसे खुल की अनैतिक जंग शुरू की थी , हज़ारो भारतीयों की जान का गुनाह खुद पर लगाए आज भी ये विदेशी धरती से कुछ हद तक अपने पंजाब में रह रहे समर्थको को मदद देते भी है व अपना एजेंडा आज भी चालू रखे है |
अंत में निष्कर्ष यही है कि भारतीय सिक्खों का इससे सीधा कोई लेना देना नही ना भूतकाल में रहा ना वर्तमान में है ना भविष्य में होगा ,भारतीय सेना में अग्रिम सिक्ख ही हमेशा से रहे ,इस माटी माँ के प्रति वे उतने ही कृतज्ञ है जितने हम है , बस धर्म व भावनाओ व राजनीति के आधार पर एक सम्मिलित भारत विरोधी षड्यंत्र व इससे जुड़े षड्यंत्रकारी आज भी विदेशी धरती से इसी मौके के इंतजार में है कब उनके इस अभियान को जन समर्थक प्राप्त हो और उनका यह लक्ष्य सदा ही काल्पनिक ही रहेगा |