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" शर्मसार करें और कब तक हम खुद को " - हिंदुत्व भावनाओं का स्वयं पतन

28 जुलाई 2019

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प्रस्तावना- हज़ारो वर्षो से सनातन भारतीय सभ्यता विदेशी व देशी अब्रहंनताओ से प्रताड़ित व कुंठित रही है | कालांतर के पश्यात कोई तथाकथित आज़ादी के उपरांत ऐसी सरकार आयी जिसने हिंदुत्व पर चर्चा करना स्वीकार किया और पिछले बीते एक माह से #moblynching #secularism के नाम पर जो भेदभावपूर्ण राजनीति हो रही है ये उसका ही एक प्रकरण है ! वैसे तो पिछले १४०० वर्षों में लाखों मंदिर तोड़े गए, कुछ प्रशिद्ध मंदिर पुनस्थापित किये गए कुछ पर आज मस्जिद या दरगाह है और कुछ इतिहास के धूलित लेखों में विसर्जित हो गए |


पहला प्रकरण -अल्लीपुर उत्तर प्रदेश का जहाँ मंदिर को १५ महीनों में दूसरी बार तोड़ दिया गया।

प्रश्न -क्या मस्जिद या चर्च के टूटने पर भी सरकार व प्रशाशन ,मीडिया द्धारा यही शुष्क प्रतिक्रियाएं देता ?

प्रश्न -क्या हिंदुत्व सिर्फ वोट मांगते समय बहुसंख्यक समाज को भावनात्मक एकता को प्रदर्शित कराना है या सच में संबेदनशीलता का परिचय है ?


दूसरा प्रकरण -अलीगढ़ यहाँ मुस्लिम व हिंन्दु घनत्व हमेशा से ही विवादास्तमक रहा है | प्रायः भारत के अनन्य क्षेत्रों में अलग अलग जगहों पर नमाज़ पढ़ने को लेकर विवाद बनते रहे है ,परंतु जब हर मंगलबार को हनुमान चालीसा का पाठ प्रारंभ हुआ तो धीरे -धीरे आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ और जिलाधिकारी ने दोनों ही पछों पर प्रतिबंद लगा दिया जो की सत्यता सही निर्णय था | परंतु बस-स्टैंड के पास स्थापित हनुमान जी की मूर्ति का यू हीं टूटना मुस्लिम समुदाय की तीख़ी प्रतक्रिया थी |

प्रश्न -क्यों सार्वजनिक स्थानों पर पहले ही नमाज़ पढ़ने को प्रतिबन्धित नहीं किया गया ?

प्रश्न -क्या उस मूर्ति में प्राणस्थापना नहीं थी ?

प्रश्न-क्या नयी मूर्ति स्थापित होने से अधार्मिक कार्य धार्मिक हो जायेगा ?


उपसंहार -हज़ारो वर्षो से वैदिक सभ्यता,भारतीयता का जो उपहास व निम्नस्तरीयता का जो भाव विदेशी आक्रांताओ द्धारा प्रचलित रहा है वो आज भी जीवित है ,तर्क ,आलोचना ,टिप्पड़ियाँ ,कुंठा से ना हमारा भूतकाल पुनः राम राज्य बन जायेगा ना ही हम भारतियों की व्यथा को शांत कर पायेगा | मुख्य समस्या जो जड़ में शताब्दियों से वीजित है वो हम स्वयं है ? बिना एकता बिना आदर्शों के बिना स्वाभिमान के बिना निष्काम भावना के बिना राष्ट्रप्रेम के बिना यथार्थ का अनुभव किये बिना भविष्य का चिंतन किये ! हमारा अष्तित्व ऐसे ही हमे शर्मसार व स्वयं पतन के मार्ग पर दिशानिर्देशित करता रहेगा |

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सत्यनारायण की कथा तो होती है पर चापेकर बंधुओं को क्यों भूल गए ? हरि कुमार को भी याद रखिए स्कन्द पुराण का हिंदी अनुवाद !

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आज अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो ये माना जा सकता है कि “सत्यनारायण कथा” होने वाली है। ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले के दौर में घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना आम नहीं था। हरि विनायक ने कभी 1890 के आस-पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अन

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भारतीय शब्द का आधार भारत है व भारत का आधार हमारी सनातन पुरातन वैदिक सभ्यता व संस्कृति.हिंदू शब्द का प्रचलन यहाँ के मूल निवासियों के लिए प्रोयोगित किया जाता है जो यहाँ हज़ारों वर्षों से अलग अलग अलग पंथो को स्वीकारकर अंगिगत करते चले आ रहे है।अंतर दोनो में कुछ नहीं है बस कोई इतिहास में इस्लामिक आक्रांत

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कृण्वन्तो विश्वमार्यम्,नमस्कार आपने स्वामी दयानंद जी द्वारा प्रारंभित शुद्धि आंदोलन का जिक्र तो सुना व पढ़ा होगा परन्तु उस आंदोलन में अहम भूमिका स्वामी श्रद्धानंद जी ने आगामी समय मे निभाई |आधुनिक भारत में “शुद्धि” के सर्वप्रथम प्रचारक स्वामी दयानंद थे तो उसे आंदोलन के रूप में स्थापित कर सम्पूर्ण हिन्

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शाहीन बाग़ एक ढोंग

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