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" दोषी कौन "

1 नवम्बर 2016

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कुछ बच्चे औपचारिक शिक्षा के लिये अपने को अयोग्य पाते हैं किन्तु उनके अभिभावक इस सत्य को अस्वीकार करते हैं और अनावश्यक दबाव में बच्चे असहज रहते हैं - ऐसे माता पिता के लिये एक बच्चे की करुण पुकार ...


मॉं मैं सबसे अलग थलग

क्यूँ कक्षा में पड़ जाता हूँ ?

कई बार तो कान पकड़ कर

बाहर ही रह जाता हूँ !


माना कि वे बड़े चतुर हैं

हल सवाल कर लेते हैं

लेकिन जब सब रेस लगाते

मैं ही अव्वल आता हूँ !


नहीं मेरे कुछ पल्ले पड़ता

'अंक गणित 'या 'बीज गणित'

न ही कोई वि ज्ञान समझता

'जीव' 'रसायन' या 'भौतिक'!!


मॉं! क्या बिन यह सब सीखे

मैं बड़ा नहीं हो पाऊँगा ?

अपने दोनों पैरों पर क्या

खड़ा नहीं हो पाऊँगा ?


तुम मुझ पर विश्वास करो मॉं

कुछ कर के दिखला दूँगा

जैसे तुमने पाला मुझको

मैं भी तुम्हें सम्हालूंगा !!


शिक्षा मुझे बोझ लगती है

'बड़ा'। मेरा अपराध है,

किन्तु हुनर कितने ऐसे हैं,

जिनसे प्रेम अगाध है!!


' खेल ' खेलना एक कला है ,

गाना भी है सुख देता

है कितनी ही और कलायें

जो जाने तेरा बेटा !!


'मॉं' मैं तेरे सुख की ख़ातिर

चाहे कुछ कर सकता हूँ !

लेकिन दब कर कठिन बोझ से

कैसे अब जी सकता हूँ ?


जिसको जो कुछ भाता है माँ

यदि वह वैसा काम करे,

हो तनाव से मुक्त , बढ़े वह आगे

जग में नाम करे !!


तुम तो मुझे समझती हो माँ

क्या समझेगा कोई और?

यह शिक्षा का बोझ हटे तो

मैं भी पा लूँ अपना ठौर !!

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" बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ "

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" दोषी कौन "

1 नवम्बर 2016
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प्रार्थना

8 नवम्बर 2016
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कितना कुछ इस मन के अन्दर उमड़ घुमड़ कर बिखर गया ,कुछ शब्दों के माध्यम से कोरे काग़ज़ पर पसर गया !इक कोने से ईर्ष्या उमड़ीदूजे से कोई अभिलाषाकिसी कन्दरा से दुख निकलारिसी कहीं से घोर निराशा ! नहीं पता था अन्तर में , मैं ,इतना कुछ रख सकता हूँ प्रेम भाव की पूँजी छोड़े ,सब कुछ संचय करता हूँ !देख दशा ये

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आज तनिक अनमनी व्यथित होसोचा कैसा जीवन है यह?रोज़ एक जैसी दिनचर्या !न कुछ गति न ही कोई लय !!इक विचार फिर कौंधा मन में चलो किसी से बदली कर लें कुछ दिन कौतूहल से भर लें ,कुछ नवीन तो हम भी कर लें!एक -एक कर सबको आँका सबकी परिस्थिति को परखाकुछ-कुछ सबमें आड़े आयानहीं पात्र फिर कोई सुहाया !कहीं बहुत

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कब गीत प्रेम के गाऊँगी

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