पात्र
कृपा:-(1)वृंदा(2)भानवी(3)द्रुपत(4)किसना
द्रोण:-(1)निशान्त(2)प्राग्रिया(3)विख्यात
सुनैना के भाई-बहिन:-(1)दिव्य(2)कल्पी
सुगन्धा:-(1)राग्रया(2)राज (3)तम कुमार
मजदूरों पर अपनी भंड़ास निकाल रहा हैं।सुबह से ही मस्तिष्क ठीक नहीं था।दूसरो की खेती देखकर जलन जो थी।सबके खेतों में आलू रख चुके थे और अपने खेत में एक गोडा़ भी नहीं रखा था।जलन की भंड़ास मजदूरो पर निकाल रहा है.....हराम के पैसे थोड़े ही।कामचोरों की तरह मेरे-मरे हाथ चला रहे हों।छुट्टी तब ही मिलेगी जबतक कलम आलू बीज कट न जायें।
कृपा खेतो से वापस आया।बुआई से पहले खेतों को अच्छी तरह तैयार किया कि बोते समय रुकावट न हों।हेरो, कल्टीवेटर,पटेला लगाकर खेतो को मुलायम बना आया था।..भाई मैने बोने के लिए खेत अच्छी तरह बना दिया हैं।
द्रोण:-ठीक है।अभी जा कहाँ रहा है?यहाँ देख...छुट्टी देने से पहले तलाशी अवश्य ले लेना।बीज बहुत मंहगा हैं।दो-दो आलू भी ले गये तो एक, दो बोरा ऐसे ही कम हो जायेगें।मोहि कछु आवश्यक काम से जाना हैं।
तभी पड़ौसी भाग के आया जोर-जोर से हॉफ- हॉफ के श्वास ले रहा था।...अरे कृपा तू यहाँ काम कर रहा है और घर पर भौजी दरद से तड़फ रही है।अम्मा ने मोको तोहि बुलान को भेजो हैं।...और सुन ट्रैक्टर ले जाना।
कृपा ने सुना तो ट्रैक्टर की तरफ मुँड गया।
द्रोण ने रोका:-कहाँ जा रहा हैं?तू यही ठ़हर मैं जाता हूँ।ट्रैक्टर को जाना ही है तो क्यों न उधर से खाद लेता आऊँ।डीजल के दाम आसमाँ छू रहे हैं।चाबी दें।
लो भाई।
कृपा ने चाँबी दे दी किन्तु पूरा ध्यान रिया पर ही था।मन ही मन रिया के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था।
एक बूड़ी मजदूर से रहा नहीं गया तो बोली:-लला...बड़े लला ने अच्छा नहीं किया।जनानी तुम्हारी है।तुम्हें न भेजकर खुद चले गयें।जेठ़ अच्छे लगेगा का।
कृपा चुपचाप बातें सुनता रहा।एक शब्द नहीं कहाँ।शरीर यहाँ था लेकिन मन रिया के पास था।रिया पहले से ही दो बच्चियों की माँ थी।कृपा को शका थी कि फिर से तीसरी लड़की न हों।एक बेटे की चाहत थी .उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि इस बार एक बेटा दे दो।
उधर रिया दर्द से तड़फ रही थी और प्रार्थना कर रही थी कि अब मोहि लड़की मत देना।अगर इस बार लड़की हुई तो न जाने कितनो के ताने सुनने पड़ेगे।जेठ़ के जिठ़ानी के,जिठ़ानी तो बात- बात पर ताने देती रहती हैं।मेरी ही एक है तेरी ही और जाने कितनी होगी।
द्रोण ने आवाज लगाई....अम्मा! अम्मा! ट्रैक्टर आ गया।
अम्मा:-अभी आई...ओ बड़ी बहू,छोटी बहू को ले आ।
सुनैना रिया को हर घड़ी ताने देती रहती थी।सुनैना बहाना खोजती रहती थी कि कब रिया गलती करें और मैं सुनाऊँ।दो दिन पहले ही तू तड़ाक हो गई थी।कारण सिर्फ इतना था कि रिया से सब्जी में कम नमक डाला।जब खाई तो अपनी ही बढ़ाई करने लगीं।
सुनैना:-बरस बीत गयें सब्जी बनाते- बनाते।जाने कब अंदाजा हो पायेगा नमक का।जाने मायके में सब्जी बनाती भी होंगी कि नहीं।मान भी लो , बनाती होगी तब ध्यान कहाँ होता होगा।एकहूँ दिन मोहि पसंद की सब्जी न बनी।हम तो जैसे- तैसे करके खा लेगें लेकिन दिन भर के थके हारे देबर और एजी घर आयेगें तो कैसे खायेगे।परसी थलियाँ ही फैक चलायेगें।जाने कब सीख पायेगी।
रिया के अंदर ही अंदर उफा़न था आँखे तनी थी ,चहरे की भाव ही क्रोध में बदल चुके थे।जब सहन न हुआ तो मुहँ खोल दिया....एकाद बार तुम ही सब्जी बना लिया करों।हम नहीं बना पातें।
सुनैना:-एक तो अच्छी सब्जी नहीं बनाई और ऊपर से जुबान चलाती हैं।आन दे , तेरी हेकड़ी ही निकलवाती हूँ।
रिया:-और कर भी क्या सकती हो।एक दिन हो तो छ़ोड़ दूँ।रोज-रोज का कलह हैं।आज रिया ने वर्तन साफ न करें।आज रिया देर से उठी और न जाने क्या-क्या।एक हो तो याद रखूँ।मोहि पचास काम है आप की तरह नहीं हूँ जो ताँक-झाँक में लगी रहूँ।
सुनैना:-तूने मुझे मंथरा समझ रखा है?तेरी चुगली करती रहती हूँ।
रिया:-खुद समझता होगा, उसकी जुबान पर स्वयं शब्द आ जाते हैं।
इसी दौरान देबर को आते देख सुनैना दहाड़े मार -मार के रोने लगीं।सुनैना सामने थी रिया के तो कृपा को देख लिया।
कृपा ने पूछाँ:-भाभी आप रो क्यों रही है?
सुनैना:-का कहूँ।मुहँ खोला तो तुम ही कहोगे कि रिया ऐसा नहीं कह सकती।
कृपा:-आखिर बात का है?
सुनैना:-तो सुनो!तुम्हारी पत्नी मोहि मंथरा समझती हैं।
कृपा ने इतना सुना तो रिया की तरफ गया और दो तीन थप्पड़ जड़ दिए।रिया से सच्चाई जानने की कोशिश भी नहीं की।
सुनैना मन ही मन बहुम प्रश्न्न हुई,मानो कोई जंग जीत ली हों।
रिया सच बताने की कोशिश करती पर कृपा सुनने को राजी न था।रिया ने भी जिद्द पकड़ ली।न खाना बनाती,न वर्तन साफ़ करती,न अन्न का एक निवाला खाया।खाट को पकड़के रोती रहती।...और अपनी किस्मत को कोसती रहती।जाने का नसीब में लिखा है।
रिया और कृपा की बातचीत भी बंद थी।सुनैना सबकी नज़र में संस्कारी बहू की तरह पहले से ही अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गई।दो दिन तक सबका ऐसा ख्याल रखा जैसे एक संस्कारी बहू के गुण होते हैं।सुनैना यह खेल खेलना अच्छा जानती थी।कि कब क्या करना है कब नहीं।अपनी आकाँक्षाओ को जलेबी की तरह चाँसनी में लपेट कर प्रस्तुत करती।मुहँ भी मिठास हो जाता और षडयन्त्र का जाल बुनता रहता।रिया को झूठी प्रशंसा,दिखावा पंसद नहीं था।ग्रहस्थी के सारे कार्य करने के उपरान्त सुनने को मिलता ,घर में करती ही क्या हो?सुनैना का उदाहरण देकर करते कि "सुनैना ने सबको बाँधकर रखा हैं।"सुनैना न चायें तो सब बिखर जायें,टूट जायें।
अम्मा ने इधर-उधर देखा,जब कृपा नज़र न आया तो पूछाँ,"द्रोण कृपा कहाँ है"?
द्रोण:-अम्मा आपको तो पता है,अपना एक आलू खेत में नहीं रखा गया है,मजदूर भी कैसा काम करते हैं।सामने बैठे रहो तब भी मरे-मरे हाथ चलाते हैं।कोई न कोई रहना जरुरी हैं।अब चलो देर न करो।
रिया दर्द से कहार रही है लेकिन निगाहे कृपा को ढूढँ रही थी।कृपा कही भी नहीं था,पूछँती भी तो किससे ?जब कही नज़र नहीं आया तो मन में बहुत से ख्याल आने लगें।....मैं समझ सकती हूँ आप यही सोंच रहे होगे कि कही फिर से लड़की हुई तो क्या होगा?इसी कारण से, आप आज हमारे साथ नहीं हैं।हम कुछ कर भी तो नहीं सकते है,जाने और क्या-क्या लिखा है?रिया ने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया।
रिया को अस्पताल में भर्ती कर लिया।सुनैना बाहरी दिखावे से यही जता रही थी कि इस बार लड़का ही हों।लेकिन अंदर ही अंदर चाह रही थी कि लड़की ही हो।राम करें ,लड़की ही हों।रिया के लिए जो भी बची कुची हमदर्दी है ,सब कुछ छिन जायें।अम्मा की तरफ से देवर जी की तरफ से,धीरे-धीरे सबसे दूर हो जायें।अगर ऐसा हो जायें तो मेरे दोंनो हाथ में लड़्डू होगें।घर की चाँबी मेरी ही जागीर होगी।मैं जो चाहूँगी वही होगा।रिया सिर्फ नौकरानी होगी ,मैं राज करूँगी।
पर उधर कृपा ने प्रण कर लिया था कि इस बार कोई भी हो,आखिर वो मेरा ही अंश है।दुनियाँ चायें कुछ भी कहे कितने भी ताने दे लेकिन रिया से कुछ नहीं कहूँगा।अपनी बच्चियों को खूब पढ़ा लिखाके भविष्य का निर्माता बनाऊँगा।लड़का हो या लड़की वो मेरा ही अंश है।भगवान बस अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखना कि जनानी बच्चे को कुछ न हो।
अम्मा,कृपा,सुनैना सब प्रार्थना कर रहे थे,फिर चाये दिखावटी ही क्यों न हों।सुनैना अस्पताल के मंन्दिर में हाथ जोड़कर घंटा बजाकर प्रार्थना ईश्वर के पास पहुँचाई।बच्चे की रोने की आवाज़ सुनकर अम्मा व्याकुल हुई।अम्मा ने बच्चें की रोने की आवाज से जान लिया कि रिया ने फिर से बच्ची को जन्म दिया हैं।
अम्मा:-रिया ने बच्ची को जन्म दिया हैं।(कलेजा जोर-जोर से धड़कने लगा।)
नर्स खबर देने आई थी उसने सुना....मेरे बताने से पहले आपने कैसे जान लिया कि लड़की का जन्म हुआ है?
अम्मा:-मैने न जाने कितनो को इस हाथ में खिलाया है।आज-कल अस्पताल में होते है ।मैं इतना भी नहीं जान सकती हूँ कि रोने की आवाज किसकी हैं?
सुनैना ने जब सुना तो बहुत प्रशन्न हुई,मानो कि कुबेर का खजा़ना मिल गया हो।दिखावटी आंसू झलकाने लगीं।...अम्मा देवर जी की किस्मत ही फूटी है।देवर जी को तीन-तीन छोरियों ने घेर लिया।
अम्मा:-कोई कर भी क्या सकता है?जाने का लिखा है किस्मत में।
तभी बच्चे की रोने की आव़ाज आई....
अम्मा:-यह तो छोरे की रोने की आवाज है।काश कि कुछ देर पहले बहू की कोख से जन्म लेता।
नर्स हँसती हुई बाहर आई:-बँधाई हो बँधाई !अम्मा आपकी बहू ने दो बच्चों को जन्म दिया है।पहली लड़की दूसरा लड़का।लड़की बहुत ही भाग्यशाली है।अपने भाई को साथ लाई हैं।अपने मम्मी पापा को कड़वी बाते ताने देनें से बचा लिया।
अम्मा:-तू सच कह रही है?(खब़र सुनकर बहत प्रशन्न हुई)
नर्स:-हाँ अम्मा हाँ!अब तो आपसे अच्छा नेक लूँगी।
अम्मा:-हाँ! हाँ! ले लेना।मिठाई भी मिलेगी।मेरे दोंनो बेटो का परिवार पूरा हो गया।
सुनैना का मुखड़ा उतर गया।यह बात पाँव में फँसे काँटे की तरह चुब रही थी।अपना हक लेने बाला आ गया।तो क्या हुआ?अभी तो बहुत दिन पड़े है ,बड़े होने में।
अम्मा:-बड़ी बहू जा जाकर द्रोण को बुला ला।अरे तू ही कह देना कि शुद्ध देशी घ्री के लड्डू अस्पताल में बाँट दें।
अम्मा ने जोर से आवाज़ दी....
सुनैना..अचानक हिल गई।
अम्मा:-तेरा ध्यान कहाँ है?तू का सोच रही है?
सुनैना:-कुछ नही।कुछ काम था?
अम्मा:-जा द्रोण से कह दे मिठाई लाकर, पूरे अस्पताल में बाँट दें।
सुनैना:-जी अम्मा।
सुनैना वहाँ से चली गई।अपने आप से बुदबुदा रही थी।अम्मा को तो देख कितनी खुशी है जैसे घर में पहला नाती ने जन्म लिया हैं।मुझसे पूँछो मेरे सीने पर साँप लोट रहे हैं।मेरे किए कराये पर पानी फैर दिया।मैने जाँन बूझकर छोरा होने बाली दवाई भी बदल दी थी फिर भी जाने कैसे छोरा हो गया।
द्रोण ने सुनैना का मुरझाया मुखड़ा देखकर कहाँ,"मुखड़े पर 12क्यों बजे है?"घर में कोई मातम है?
सुनैना:-अपना हिस्सा लेने बाला आ गया।मैने जाने का का सोंच रखा था लगता है सब मिट्टी में मिल जायेगा।अपने छोरो पर 12-12बीघा खेत पड़ेगा।उधर कृपा के अकेला छोरा है, पूरे 24बीघे का मालिक बनेगा।मैने तो सोचा था कि कभी लड़का हो ही नही।दवाई भी बदल दी फिर भी जाने कैसे छोरा हो गया।छोरियो का क्या है ,शादी करके ससुराल चली जायेगी।कौन सा हिस्सा लेने आती।सब किए कराये पर पानी फिर गया।
द्रोण:-कर ही क्या सकते हैं।जो ऊपर बाले ने लिखा है वही होगा।चल अंदर चलके देख ले।
सुनैना:-अम्मा ने लड्डू मँगाये है।
द्रोण:-ठीक है।देख सुन सबके सामने लटकाके, मुँह मत दिखाने लग जाना।जताओ कि बहुत खुश है।मै लड्डू लेके आता हूँ।
सुनैना:-ठीक है।
अम्मा ने दीनू सेवक को गाँव भेज दिया।कृपा को खुशखबरी बता सकें।दीनू की साईकल खुशी में साईकल से मोटर साईकल बनके दौड़ने लगी।
गाँव पहुँचते है जोर-जोर से कहने लगा...अरे चचा अरे दद्दा कृपा दादा के घरबाली के छोरा हुआ हैं।जुड़वा बच्चे हुए है।बिटिया अपने भाई को साथ लाई है।
दादा:-बड़े खुशी की बात है।
दीनू:-चाची कृपा दादा कहाँ है?
कृपा दादा कृपा दादा रटन्त लगाये पुकार रहा था।दूर से कृपा दिखाई दे गयें।
कृपा:-का बात है।बहुत शौर मचा रहे हों।
दीनू:-दादा खुशी ही की बात हैं।इसी वक्त अम्मा ने बुलाया है।
कृपा:-सब ठीक तो है?क्या कोई घबराने की बात है?
दीनू ने रुआसा सा मुँह बना लिया।
कृपा:-ऐसा क्यों लग रहा है कि कुछ छिपा रहा है?
:-ना दादा ना।
:-झूठ मत बोल।आखिर बात का है।
:-दादा भोजी को कहते- कहते रूक गया।
:-का हुआ तेरी भौजी को।मेरा तो जिया बहुत घबरा रहा है।
:-दादा भौजी ने लाली को जन्म दिया है।
:-चलो अच्छा हैं।यह तो बता तेरी भौजी ठीक तो है?
:-दादा आप खुश है?
:-हाँ दीनू...मैंने तो तय कर लिया था।इस बार कोई भी जन्म ले।मैं क्रोध नहीं करूँगा।तेरी भौजी से कुछ नहीं कहूँगा।सब भगवान की देन हैं।
:-दादा !आप में यह बदलाव देखकर भगवान पर रहम आ गया।हमारी भौजी ने लाला को भी जन्म दिया है। जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया है।बिटिया बहुत ही भाग्यशाली है ,भाई साथ लाई हैं।
:-सच दीनू?
:-हाँ दादा! हाँ!आपको अम्मा ने बुलाया है।
:-चल दीनू।
उधर सुनैना बनावटी मुस्कान से यह जताने की कोशिश कर रही है कि बहुत खुश हैं।द्रोण भी मिठाई लेके आ गया।
द्रोण:-लो अम्मा आप ही यह शुभ काम करों।
अम्मा:-बेटा तू ही बाँट दें।पहले भगवान को भोग लगा दें।
नर्स :-अम्मा खाली मिठाई ना लूँगी।पूरे पाँच हजार रुपयें लूँगी।
अम्मा:-हाँ,हाँ मिलेगें।
जब सुनैना ने हाँ हाँ कहते सुना तो आँखे फटी की फटी रह गई।अम्मा आप जानती भी है ,बिना सोंचे समझे हाँ कर दी।पाँच हजार कोई पाँच रुपये नही है,पाँच के आगे तीन बिन्दी लगती हैं।
अम्मा:-मोहि सिखायेगी।जा वखत तो मोहि कृपा की खुशी ही दिखाई देती हैं।आखिर कृपा का भी बराबर का हक हैं।ला द्रोण पाँच हजार दें।
द्रोण:-मेरे पास नहीं हैं।इतने रुपये का मैं रखता हूँ।बैसे भी सुनैना ठीक कह रही है.ये बहुत जायदा हैं।
अम्मा:-मेरी आँखे अभी इतनी बूढ़ी ना हो गई जो कुछ समझ ना सकूँ।तू खाद के लिए पैसे लाया था वो निकाल ।
द्रोण:-अम्मा वो खाद दवाई के लिए हैं।
अम्मा:-अब तू मुझे समझायेगा।मोहि सब पतो है कि कौन सी नगद आती हैं।शुरू से लेकर आलू की खुदाई तक उधार ही आती रहती हैं।
द्रोण से पैसे निकाले नहीं जा रहें।मन ही मन में जल रहा था पर एक न चली।
तभी कृपा अम्मा अम्मा की रट लगायें आ गया।अम्मा अम्मा मैं बहुत खुश हूँ।
नर्स:-अब तो लल्ला के पापा से ही लूँगी।
कृपा:-क्या चाहिए?मुझे तो दोगुनी खुशी मिली हैं।लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी आये हैं।
नर्स:-लल्ला के ताऊ तो पाँच हजार देने में चिक-चिक कर रहे है।हम भी बहुत है सबको चाहिए तो आप ही बताओ कितना-कितना मिलेगा।
कृपा:-बस इतनी सी बात।तो आप पाँच हजार क्यों ले रही है।यह लो मेरी सोने की चैन,जी भरके खुशियाँ मनाओं।बैसे भी यह चैन ससुराल से ही मिली है जो किसी को क्या आपत्ति होगी।...और कहते- कहते उतार दी।
नर्स:-नही नही।इतनी मंहगी चैन नहीं लेगें।
द्रोण:-ले लो...ले लो...हम बहुत बहुत खुश है।
द्रोण और सुनैना देखते ही रह गयें।
द्रोण:-कृपा कम से कम ठण्डे दिमागं से सोच लेता।
कृपा:-क्या भईया।घर पर मेरा भी अधिकार हैं।थोड़ी खुशी बाँट भी ली तो क्या गुना कर दिया।
अम्मा:-तोहि का भाई की खुशी से जायदा पैसा प्यारा है?
नर्स दोनों बच्चों को लेकर आ गई....लो लल्ला के पापा।
कृपा:-नही नही।पहले मैं लक्ष्मी को खिलाऊँगा।आखिर वही तो मेरे जीवन मैं इतनी बड़ी खुशी लेके आई हैं।
नर्स:-लो लाली को।
कृपा:-क्या मैं रिया से मिल सकता हूँ।
डॉक्टर:-हाँ क्यो नहीं।
कृपा:-अम्मा आप भी चलो।
अम्मा:-तू जा।मैं तो नाती को खिलाऊँगी।मैं आती हूँ।
रिया ने कृपा को देखा और कहाँ,"आप मुझसे नाराज तो नहीं हो?"
कृपा की आँखे झलक आई...नहीं नहीं।तुमने तो दोगुनी खुशी दी है।गलती मेरी है जो तुम पर हाथ उठ़ाया।
रिया:-जो बीत गया वो सब भूल जाओ।कल के बारे सोंचो।
सुनैना भी मगरमच्छ के आँसू लिए माँफी माँगने लगी।...रिया मुझें भी माँफ कर दों।शायद मेरी ही गलती थीं।
रिया:-दीदी छोटी- मोटी बातें तो घर में होती ही रहती हैं।मैं ही उखडी़-उखड़ी रहती थीं।मुझें डर इस बात का था कि फिर से लड़की न हों।जिसका ड़र सताता था वही हुआ,लेकिन उसके साथ जो खुशी मिली है,मैं बता नहीं सकती हूँ।
सुनैना:-तुम बहुत अच्छी हों।
कृपा:-वृंदा और भानवी तो बहुत खुश है,अपनी माँ की राह निहार रहें हैं।
वृंदा हाईस्कूल में हैं।भानवी कक्षा आठ में हैं।जब से दोंनो ने सुना तब से खुशीं से फूलें नहीं समा रही हैं।दोंनों बहिनों में दो साल का अंतराल हैं।अगर सुनैना चाहती तो आठ साल पहले ही कृपा का परिवार पूरा हो गया होता।सुनैना ऐसी-ऐसी जड़ी वूटियाँ खाने के साथ देती जिससे रिया की दों संतानो के अतिरिक्त तीसरा बच्चा जन्म ही न लें।कहते है किस्मत में जो लिखा हो,उसकों कौन बदल सकता था।
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