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भंवर(उपन्यास)

15 सितम्बर 2021

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पात्र
कृपा:-(1)वृंदा(2)भानवी(3)द्रुपत(4)किसना
द्रोण:-(1)निशान्त(2)प्राग्रिया(3)विख्यात
सुनैना के भाई-बहिन:-(1)दिव्य(2)कल्पी
सुगन्धा:-(1)राग्रया(2)राज (3)तम कुमार


मजदूरों पर अपनी भंड़ास निकाल रहा हैं।सुबह से ही मस्तिष्क ठीक नहीं था।दूसरो की खेती देखकर जलन जो थी।सबके खेतों में आलू रख चुके थे और अपने खेत में एक गोडा़ भी नहीं रखा था।जलन की भंड़ास मजदूरो पर निकाल रहा है.....हराम के पैसे थोड़े ही।कामचोरों की तरह मेरे-मरे हाथ चला रहे हों।छुट्टी तब ही मिलेगी जबतक कलम आलू बीज कट न जायें।
कृपा खेतो से वापस आया।बुआई से पहले खेतों को अच्छी तरह तैयार किया कि बोते समय रुकावट न हों।हेरो, कल्टीवेटर,पटेला लगाकर खेतो को मुलायम बना आया था।..भाई मैने बोने के लिए खेत अच्छी तरह बना दिया हैं।
द्रोण:-ठीक है।अभी जा कहाँ रहा है?यहाँ देख...छुट्टी देने से पहले तलाशी अवश्य ले लेना।बीज बहुत मंहगा हैं।दो-दो आलू भी ले गये तो एक, दो बोरा ऐसे ही कम हो जायेगें।मोहि कछु आवश्यक काम से जाना हैं।
तभी पड़ौसी भाग के आया  जोर-जोर से हॉफ- हॉफ के श्वास ले रहा था।...अरे कृपा तू यहाँ काम कर रहा है और घर पर भौजी दरद से तड़फ रही है।अम्मा ने मोको तोहि बुलान को भेजो हैं।...और सुन ट्रैक्टर ले जाना।
कृपा ने सुना तो ट्रैक्टर की तरफ मुँड गया।
द्रोण ने रोका:-कहाँ जा रहा हैं?तू यही ठ़हर मैं जाता हूँ।ट्रैक्टर को जाना ही है तो क्यों न उधर से खाद लेता आऊँ।डीजल के दाम आसमाँ छू रहे हैं।चाबी दें।
लो भाई।
कृपा ने चाँबी दे दी किन्तु पूरा ध्यान रिया पर ही था।मन ही मन रिया के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था।
एक बूड़ी मजदूर से रहा नहीं गया तो बोली:-लला...बड़े लला ने अच्छा नहीं किया।जनानी तुम्हारी है।तुम्हें न भेजकर खुद चले गयें।जेठ़ अच्छे लगेगा का।
कृपा चुपचाप बातें सुनता रहा।एक शब्द नहीं कहाँ।शरीर यहाँ था लेकिन मन रिया के पास था।रिया पहले से ही दो बच्चियों की माँ थी।कृपा को शका थी कि फिर से तीसरी लड़की न हों।एक बेटे की चाहत थी .उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि इस बार एक बेटा दे दो।
       उधर रिया दर्द से तड़फ रही थी और प्रार्थना कर रही थी कि अब मोहि लड़की मत देना।अगर इस बार लड़की हुई तो न जाने कितनो के ताने सुनने पड़ेगे।जेठ़ के जिठ़ानी के,जिठ़ानी तो बात- बात पर ताने देती रहती हैं।मेरी ही एक है तेरी ही और जाने कितनी होगी।
द्रोण ने आवाज लगाई....अम्मा! अम्मा! ट्रैक्टर आ गया।
अम्मा:-अभी आई...ओ बड़ी बहू,छोटी बहू को ले आ।
सुनैना रिया को हर घड़ी ताने देती रहती थी।सुनैना बहाना खोजती रहती थी कि कब रिया गलती करें और मैं सुनाऊँ।दो दिन पहले ही तू तड़ाक हो गई थी।कारण सिर्फ इतना था कि रिया से सब्जी में कम नमक डाला।जब खाई तो अपनी ही बढ़ाई करने लगीं।
सुनैना:-बरस बीत गयें सब्जी बनाते- बनाते।जाने कब अंदाजा हो पायेगा नमक का।जाने मायके में सब्जी बनाती भी होंगी कि नहीं।मान भी लो , बनाती होगी तब ध्यान कहाँ होता होगा।एकहूँ दिन मोहि पसंद की सब्जी न बनी।हम तो जैसे- तैसे करके खा लेगें लेकिन दिन भर के थके हारे देबर और एजी घर आयेगें तो कैसे खायेगे।परसी थलियाँ ही फैक चलायेगें।जाने कब सीख पायेगी।
रिया के अंदर ही अंदर उफा़न था आँखे तनी थी ,चहरे की भाव ही क्रोध में बदल चुके थे।जब सहन न हुआ तो मुहँ खोल दिया....एकाद बार तुम ही सब्जी बना लिया करों।हम नहीं बना पातें।
सुनैना:-एक तो अच्छी सब्जी नहीं बनाई और ऊपर से जुबान चलाती हैं।आन दे , तेरी हेकड़ी ही निकलवाती हूँ।
रिया:-और कर भी क्या सकती हो।एक दिन हो तो छ़ोड़ दूँ।रोज-रोज का कलह हैं।आज रिया ने वर्तन साफ न करें।आज रिया देर से उठी और न जाने क्या-क्या।एक हो तो याद रखूँ।मोहि पचास काम है आप की तरह नहीं हूँ जो ताँक-झाँक में लगी रहूँ।
सुनैना:-तूने मुझे मंथरा समझ रखा है?तेरी चुगली करती रहती हूँ।
रिया:-खुद समझता होगा, उसकी जुबान पर स्वयं शब्द आ जाते हैं।
इसी दौरान देबर को आते देख सुनैना दहाड़े मार -मार के रोने लगीं।सुनैना सामने थी  रिया के तो कृपा को देख लिया।
कृपा ने पूछाँ:-भाभी आप रो क्यों रही है?
सुनैना:-का कहूँ।मुहँ खोला तो तुम ही कहोगे कि रिया ऐसा नहीं कह सकती।
कृपा:-आखिर बात का है?
सुनैना:-तो सुनो!तुम्हारी पत्नी मोहि मंथरा समझती हैं।
कृपा ने इतना सुना तो रिया की तरफ गया और दो तीन थप्पड़ जड़ दिए।रिया से सच्चाई जानने की कोशिश भी नहीं की।
सुनैना मन ही मन बहुम प्रश्न्न हुई,मानो कोई जंग जीत ली हों।
रिया सच बताने की कोशिश करती पर कृपा सुनने को राजी न था।रिया ने भी जिद्द पकड़ ली।न खाना बनाती,न वर्तन साफ़ करती,न अन्न का एक निवाला खाया।खाट को पकड़के रोती रहती।...और अपनी किस्मत को कोसती रहती।जाने का नसीब में लिखा है।
           रिया और कृपा की बातचीत भी बंद थी।सुनैना सबकी नज़र में संस्कारी बहू की तरह पहले से ही अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गई।दो दिन तक सबका ऐसा ख्याल रखा जैसे एक संस्कारी बहू के गुण होते हैं।सुनैना यह खेल खेलना अच्छा जानती थी।कि कब क्या करना है कब नहीं।अपनी आकाँक्षाओ को जलेबी की तरह चाँसनी में लपेट कर प्रस्तुत करती।मुहँ भी मिठास हो जाता और षडयन्त्र का जाल बुनता रहता।रिया को झूठी प्रशंसा,दिखावा पंसद नहीं था।ग्रहस्थी के सारे कार्य करने के उपरान्त सुनने को मिलता ,घर में करती ही क्या हो?सुनैना का उदाहरण देकर करते कि "सुनैना ने सबको बाँधकर रखा हैं।"सुनैना न चायें तो सब बिखर जायें,टूट जायें।
अम्मा ने इधर-उधर देखा,जब कृपा नज़र न आया तो पूछाँ,"द्रोण कृपा कहाँ है"?
द्रोण:-अम्मा आपको तो पता है,अपना एक आलू खेत में नहीं रखा गया है,मजदूर भी कैसा काम करते हैं।सामने बैठे रहो तब भी मरे-मरे हाथ चलाते हैं।कोई न कोई रहना जरुरी हैं।अब चलो देर न करो।
रिया दर्द से कहार रही है लेकिन निगाहे कृपा को ढूढँ रही थी।कृपा कही भी नहीं था,पूछँती भी तो किससे ?जब कही नज़र नहीं आया तो मन में बहुत से ख्याल आने लगें।....मैं समझ सकती हूँ आप यही सोंच रहे होगे कि कही फिर से लड़की हुई तो क्या होगा?इसी कारण से, आप आज हमारे साथ नहीं हैं।हम कुछ कर भी तो नहीं सकते है,जाने और क्या-क्या लिखा है?रिया ने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया।
                      रिया को अस्पताल में भर्ती कर लिया।सुनैना बाहरी दिखावे से यही जता रही थी कि इस बार लड़का ही हों।लेकिन अंदर ही अंदर चाह रही थी कि लड़की ही हो।राम करें ,लड़की ही हों।रिया के लिए जो भी बची कुची हमदर्दी है ,सब कुछ छिन जायें।अम्मा की तरफ से देवर जी की तरफ से,धीरे-धीरे सबसे दूर हो जायें।अगर ऐसा हो जायें तो मेरे दोंनो हाथ में लड़्डू होगें।घर की चाँबी मेरी ही जागीर होगी।मैं जो चाहूँगी वही होगा।रिया सिर्फ नौकरानी होगी ,मैं राज करूँगी।
                    पर उधर कृपा ने प्रण कर लिया था कि इस बार कोई भी हो,आखिर वो मेरा ही अंश है।दुनियाँ चायें कुछ भी कहे कितने भी ताने दे लेकिन रिया से कुछ नहीं कहूँगा।अपनी बच्चियों को खूब पढ़ा लिखाके भविष्य का निर्माता बनाऊँगा।लड़का हो या लड़की वो मेरा ही अंश है।भगवान बस अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखना कि जनानी बच्चे को कुछ न हो।
                   अम्मा,कृपा,सुनैना सब प्रार्थना कर रहे थे,फिर चाये दिखावटी ही क्यों न हों।सुनैना अस्पताल के मंन्दिर में हाथ जोड़कर घंटा बजाकर प्रार्थना ईश्वर के पास पहुँचाई।बच्चे की रोने की आवाज़ सुनकर अम्मा व्याकुल हुई।अम्मा ने बच्चें की रोने की आवाज से जान लिया कि रिया ने फिर से बच्ची को जन्म दिया हैं।
अम्मा:-रिया ने बच्ची को जन्म दिया हैं।(कलेजा जोर-जोर से धड़कने लगा।)
नर्स खबर देने आई थी उसने सुना....मेरे बताने से पहले आपने कैसे जान लिया कि लड़की का जन्म हुआ है?
अम्मा:-मैने न जाने कितनो को इस हाथ में खिलाया है।आज-कल अस्पताल में होते है ।मैं इतना भी नहीं जान सकती हूँ कि रोने की आवाज किसकी हैं?
सुनैना ने जब सुना तो बहुत प्रशन्न हुई,मानो कि कुबेर का खजा़ना मिल गया हो।दिखावटी आंसू झलकाने लगीं।...अम्मा देवर जी की किस्मत ही फूटी है।देवर जी को तीन-तीन छोरियों ने घेर लिया।
अम्मा:-कोई कर भी क्या सकता है?जाने का लिखा है किस्मत में।
तभी बच्चे की रोने की आव़ाज आई....
अम्मा:-यह तो छोरे की रोने की आवाज है।काश कि कुछ देर पहले बहू की कोख से जन्म लेता।
नर्स हँसती हुई बाहर आई:-बँधाई हो बँधाई !अम्मा आपकी बहू ने दो बच्चों को जन्म दिया है।पहली लड़की दूसरा लड़का।लड़की बहुत ही भाग्यशाली  है।अपने भाई को साथ लाई हैं।अपने मम्मी पापा को कड़वी बाते ताने देनें से बचा लिया।
अम्मा:-तू सच कह रही है?(खब़र सुनकर बहत प्रशन्न हुई)
नर्स:-हाँ अम्मा हाँ!अब तो आपसे अच्छा नेक लूँगी।
अम्मा:-हाँ! हाँ! ले लेना।मिठाई भी मिलेगी।मेरे दोंनो बेटो का परिवार पूरा हो गया।
सुनैना का मुखड़ा उतर गया।यह बात पाँव में फँसे काँटे की तरह चुब रही थी।अपना हक लेने बाला आ गया।तो क्या हुआ?अभी तो बहुत दिन पड़े है ,बड़े होने में।
अम्मा:-बड़ी बहू जा जाकर द्रोण को बुला ला।अरे तू ही कह देना कि शुद्ध देशी घ्री के लड्डू अस्पताल में बाँट दें।
अम्मा ने जोर से आवाज़ दी....
सुनैना..अचानक हिल गई।
अम्मा:-तेरा ध्यान कहाँ है?तू का सोच रही है?
सुनैना:-कुछ नही।कुछ काम था?
अम्मा:-जा द्रोण से कह दे मिठाई लाकर, पूरे अस्पताल में बाँट दें।
सुनैना:-जी अम्मा।
सुनैना वहाँ से चली गई।अपने आप से बुदबुदा रही थी।अम्मा को तो देख कितनी खुशी है जैसे घर में पहला नाती ने जन्म लिया हैं।मुझसे पूँछो मेरे सीने पर साँप लोट रहे हैं।मेरे किए कराये पर पानी फैर दिया।मैने जाँन बूझकर छोरा होने बाली दवाई भी बदल दी थी फिर भी जाने कैसे छोरा हो गया।
द्रोण ने सुनैना का मुरझाया मुखड़ा देखकर कहाँ,"मुखड़े पर 12क्यों बजे है?"घर में कोई मातम है?
सुनैना:-अपना हिस्सा लेने बाला आ गया।मैने जाने का का सोंच रखा था लगता है सब मिट्टी में मिल जायेगा।अपने छोरो पर 12-12बीघा खेत पड़ेगा।उधर कृपा के अकेला छोरा है,  पूरे 24बीघे का मालिक बनेगा।मैने तो सोचा था कि कभी लड़का हो ही नही।दवाई भी बदल दी फिर भी जाने कैसे छोरा हो गया।छोरियो का क्या है ,शादी करके ससुराल चली जायेगी।कौन सा हिस्सा लेने आती।सब किए कराये पर पानी फिर गया।
द्रोण:-कर ही क्या सकते हैं।जो ऊपर बाले ने लिखा है वही होगा।चल अंदर चलके देख ले।
सुनैना:-अम्मा ने लड्डू मँगाये है।
द्रोण:-ठीक है।देख सुन सबके सामने लटकाके, मुँह मत दिखाने लग जाना।जताओ कि बहुत खुश है।मै लड्डू लेके आता हूँ।
सुनैना:-ठीक है।
अम्मा ने दीनू सेवक को गाँव भेज दिया।कृपा को खुशखबरी बता सकें।दीनू की साईकल खुशी में साईकल से मोटर साईकल बनके दौड़ने लगी।
गाँव पहुँचते है जोर-जोर से कहने लगा...अरे चचा अरे दद्दा कृपा दादा के घरबाली के छोरा हुआ हैं।जुड़वा बच्चे हुए है।बिटिया अपने भाई को साथ लाई है।
दादा:-बड़े खुशी की बात है।
दीनू:-चाची कृपा दादा कहाँ है?
कृपा दादा कृपा दादा रटन्त लगाये पुकार रहा था।दूर से कृपा दिखाई दे गयें।
कृपा:-का बात है।बहुत शौर मचा रहे हों।
दीनू:-दादा खुशी ही की बात हैं।इसी वक्त अम्मा ने बुलाया है।
कृपा:-सब ठीक तो है?क्या कोई घबराने की बात है?
दीनू ने रुआसा सा मुँह बना लिया।
कृपा:-ऐसा क्यों लग रहा है कि कुछ छिपा रहा है?
:-ना दादा ना।
:-झूठ मत बोल।आखिर बात का है।
:-दादा भोजी को कहते- कहते रूक गया।
:-का हुआ तेरी भौजी को।मेरा तो जिया बहुत घबरा रहा है।
:-दादा भौजी ने लाली को जन्म दिया है।
:-चलो अच्छा हैं।यह तो बता तेरी भौजी ठीक तो है?
:-दादा आप खुश है?
:-हाँ दीनू...मैंने तो तय कर लिया था।इस बार कोई भी जन्म ले।मैं क्रोध नहीं करूँगा।तेरी भौजी से कुछ नहीं कहूँगा।सब भगवान की देन हैं।
:-दादा !आप में यह बदलाव देखकर भगवान पर  रहम आ गया।हमारी भौजी ने लाला को भी जन्म दिया है। जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया है।बिटिया बहुत ही भाग्यशाली है ,भाई साथ लाई हैं।
:-सच दीनू?
:-हाँ दादा! हाँ!आपको अम्मा ने बुलाया है।
:-चल दीनू।
उधर सुनैना बनावटी मुस्कान से यह जताने की कोशिश कर रही है कि बहुत खुश हैं।द्रोण भी मिठाई लेके आ गया।
द्रोण:-लो अम्मा आप ही यह शुभ काम करों।
अम्मा:-बेटा तू ही बाँट दें।पहले भगवान को भोग लगा दें।
नर्स :-अम्मा खाली मिठाई ना लूँगी।पूरे पाँच हजार रुपयें लूँगी।
अम्मा:-हाँ,हाँ मिलेगें।
जब सुनैना ने हाँ हाँ कहते सुना तो आँखे फटी की फटी रह गई।अम्मा आप जानती भी है ,बिना सोंचे समझे हाँ कर दी।पाँच हजार कोई पाँच रुपये नही है,पाँच के आगे तीन बिन्दी लगती हैं।
अम्मा:-मोहि सिखायेगी।जा वखत तो मोहि कृपा की खुशी ही दिखाई देती हैं।आखिर कृपा का भी बराबर का हक हैं।ला द्रोण पाँच हजार दें।
द्रोण:-मेरे पास नहीं हैं।इतने रुपये का मैं रखता हूँ।बैसे भी सुनैना ठीक कह रही है.ये बहुत जायदा हैं।
अम्मा:-मेरी आँखे अभी इतनी बूढ़ी ना हो गई जो कुछ समझ ना सकूँ।तू खाद के लिए पैसे लाया था वो निकाल ।
द्रोण:-अम्मा वो खाद दवाई के लिए हैं।
अम्मा:-अब तू मुझे समझायेगा।मोहि सब पतो है कि कौन सी नगद आती हैं।शुरू से लेकर आलू की खुदाई तक उधार ही आती रहती हैं।
द्रोण से पैसे निकाले नहीं जा रहें।मन ही मन में जल रहा था पर एक न चली।
तभी कृपा अम्मा अम्मा की रट लगायें आ गया।अम्मा अम्मा मैं बहुत खुश हूँ।
नर्स:-अब तो लल्ला के पापा से ही लूँगी।
कृपा:-क्या चाहिए?मुझे तो दोगुनी खुशी मिली हैं।लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी आये हैं।
नर्स:-लल्ला के ताऊ तो पाँच हजार देने में चिक-चिक कर रहे है।हम भी बहुत है सबको चाहिए तो आप ही बताओ कितना-कितना मिलेगा।
कृपा:-बस इतनी सी बात।तो आप पाँच हजार क्यों ले रही है।यह लो मेरी सोने की चैन,जी भरके खुशियाँ मनाओं।बैसे भी यह चैन ससुराल से ही मिली है जो किसी को क्या आपत्ति होगी।...और कहते- कहते उतार दी।
नर्स:-नही नही।इतनी मंहगी चैन नहीं लेगें।
द्रोण:-ले लो...ले लो...हम बहुत बहुत खुश है।
द्रोण और सुनैना देखते ही रह गयें।
द्रोण:-कृपा कम से कम ठण्डे दिमागं से सोच लेता।
कृपा:-क्या भईया।घर पर मेरा भी अधिकार हैं।थोड़ी खुशी बाँट भी ली तो क्या गुना कर दिया।
अम्मा:-तोहि का भाई की खुशी से जायदा पैसा प्यारा है?
नर्स दोनों बच्चों को लेकर आ गई....लो लल्ला के पापा।
कृपा:-नही नही।पहले मैं लक्ष्मी को खिलाऊँगा।आखिर वही तो मेरे जीवन मैं इतनी बड़ी खुशी लेके आई हैं।
नर्स:-लो लाली को।
कृपा:-क्या मैं रिया से मिल सकता हूँ।
डॉक्टर:-हाँ क्यो नहीं।
कृपा:-अम्मा आप भी चलो।
अम्मा:-तू जा।मैं तो नाती को खिलाऊँगी।मैं आती हूँ।
रिया ने कृपा को देखा और कहाँ,"आप मुझसे नाराज तो नहीं हो?"
कृपा की आँखे झलक आई...नहीं नहीं।तुमने तो दोगुनी खुशी दी है।गलती मेरी है जो तुम पर हाथ उठ़ाया।
रिया:-जो बीत गया वो सब भूल जाओ।कल के बारे सोंचो।
सुनैना भी मगरमच्छ के आँसू लिए माँफी माँगने लगी।...रिया मुझें भी माँफ कर दों।शायद मेरी ही गलती थीं।
रिया:-दीदी छोटी- मोटी बातें तो घर में होती ही रहती हैं।मैं ही उखडी़-उखड़ी रहती थीं।मुझें डर इस बात का था कि फिर से लड़की न हों।जिसका ड़र सताता था वही हुआ,लेकिन उसके साथ जो खुशी मिली है,मैं बता नहीं सकती हूँ।
सुनैना:-तुम बहुत अच्छी हों।
कृपा:-वृंदा और भानवी तो बहुत खुश है,अपनी माँ की राह निहार रहें हैं।
वृंदा हाईस्कूल में हैं।भानवी कक्षा आठ में हैं।जब से दोंनो ने सुना तब से खुशीं से फूलें नहीं समा रही हैं।दोंनों बहिनों में दो साल का अंतराल हैं।अगर सुनैना चाहती तो आठ साल पहले ही कृपा का परिवार पूरा हो गया होता।सुनैना ऐसी-ऐसी जड़ी वूटियाँ खाने के साथ देती जिससे रिया की दों संतानो के अतिरिक्त तीसरा बच्चा जन्म ही न लें।कहते है किस्मत में जो लिखा हो,उसकों कौन बदल सकता था।
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आकाँक्षा जादौन

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आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद जी।शेयर कीजिए...पूर्ण उपन्यास पढ़ने को मिलेगा!!

15 सितम्बर 2021

अनुराग मिश्रा

अनुराग मिश्रा

बहुत ही सुन्दर 👌👌

15 सितम्बर 2021

आकाँक्षा जादौन

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15 सितम्बर 2021

शेयर कीजिए...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जी!!धैर्य बनाकर रखिए पूर्ण उपन्यास मिलेगा ।

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुर सुन्दर प्रशंसनीय कहानी | ह्रदय से शुभ कनाएं |

15 सितम्बर 2021

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15 सितम्बर 2021

शेयर कीजिए!आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जी!!

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भँवर(उपन्यास)
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ईश्वर ने श्रष्ठी की श्रेष्ठ रचना की हैं।भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जन्तु बनायें है।सबसे प्रखर बुद्धि से परिपूर्ण विकसित मानव की रचना की हैं।अपनी बुद्धि, विवेक,साहस का प्रयोग करके असम्भव को सम्भव करने में सक्षम रहा है ।...और भविष्य में होता रहेगा। शदियों तक एक कल्पना थी ,आज साक्षात्कार से परिचय कराया हैं।मानव आवश्यकताओं के अनुसार नये-नये प्रयोग करता रहा है और असफलताओ से सफलता का लक्ष्य प्राप्त किया हैं।स्वार्थ सोंच निस्वार्थ पर पूर्ण विराम लगा देती हैं।जहाँ पर स्वार्थ का जन्म हुआ, वहाँ पर लोभ,मोह, माया,का अंकुर फूटने लगते हैं।हम और हमारा परिवार ,परिवार को खुशी मिलती है तो खुश होते है दुख मिलता है तो दुखी होते हैं।ईश्वर ने मानव को मानवता कल्याण के लिए भेजा था।असाय जीव जन्तु,मानव की रक्षा करना।मानव पर ही,जीव प्रकृति की रक्षा सुरक्षा का दायत्व होता हैं।अपने विवेक से पर्यावरण को संतुलन बनायें रखे,जीव को सुरक्षा प्रदान करें।संसार में ऐसा ओर कोई नहीं है जो पर्यावरण को संतुलन बनायें रखें।एक जीव पर दूसरे जीव का चक्रण बना हुआ है।एक जीव दूसरे जीव की सुरक्षा करें ,शरण दे ,ऐसा कहाँ होता हैं?अगर यह सुनने को मिले तो मात्र संयोग ही कहाँ जायेगा।ईश्वर ने मानव को ही दायत्व दिया है कि पर्यावरण को संतुलित बनायें रखें।लोभ,मोह,लालच के चक्र में जकड़ जाता है तो मानवता स्वार्थ में बदल जाती है और सर्व हिताय की जगह ,स्वार्थ हिताय ही नज़र आता है।जब-जब ऐसा होता है तो घर-घर महाभारत की रचना जन्म ले लेती हैं।मायावी दुनियाँ के भंवर में फँस गया तो फिर निकल पाना असम्भव हैं।भंवर में फँसे असख्य है और प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं।जब तक स्वार्थ है तब तक भंवर है और इससे निकल पाना आसान नहीं हैं।
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शुगन्धा ने क्रोध दिखाते हुए कहा,राग्रया राज सुना नहीं...पापा ने क्या कहा? राग्रया और राज तम कुमार की क्रोध से भरी लाल आँखो को देखकर थर-थर काँपते थें।मार से जायदा क्रोध ही प्रचण्ड़ था। &nbsp

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भँवर "जीवन का जाल"भाग14

14 मार्च 2022
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बच्चों को स्कूल छोड़ने साईकल पर जाता हूँ,तूने सोंचा है मुझे कितनी शर्म महसूस होती हैं।तेरे मायके बालों को दो लाख दिए है अगर होते तो कल ही मोटर साईकल दरबाजे पर खड़ी होती। -तो इसमें मेरा क्या दोष? -नहीं !

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भँवर "जीवन का जाल"भाग 15

14 मार्च 2022
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बच्चों को स्कूल छोड़ने साईकल पर जाता हूँ,तूने सोंचा है मुझे कितनी शर्म महसूस होती हैं।तेरे मायके बालों को दो लाख दिए है अगर होते तो कल ही मोटर साईकल दरबाजे पर खड़ी होती। -तो इसमें मेरा क्या दोष? -नहीं !

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भँवर"जीवन का जाल"भाग 16

15 मार्च 2022
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तम ने नज़र नीचे करके कहा, जो ठीक लगा वो किया।मुझपर क्रोध भावी था,उठ गया हाथ अब क्या करूँ। पंचायत:-ऐसे-कैसे अपना क्रोध शुगन्धा पर निकाल सकते हों।कोर्ट कचहरी में पहुँच जाते तो समझो तुम्हारी धन सम्पदा सब

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भँवर "जीवन का जाल"भाग 17

16 मार्च 2022
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तम कुमार ने क्रोद्ध में कहा,सस्कार की बाते मुझसे मत किया कर।अब ,बस उस घर में कदम़ नहीं रखेगी। &nbs

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भँवर"जीवन का जाल"भाग18

16 मार्च 2022
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सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

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भँवर(जीवन का जाल)भाग19

21 मार्च 2022
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सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

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भँवर(जीवन का जाल)भाग 20

21 मार्च 2022
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सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

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भँवर(जीवन का जाल)भाग21

21 मार्च 2022
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सुबह का सूरज कृपा के लिए चुनौती लेकर आया।समझ में नहीं आ रहा था ,कैसे,कहाँ से आरम्भ करना हैं।धन के अभाव में गृहस्थी को कैसे चलाऊँ।चारपाई पर बैठकर सूरज की खिलती रोशनी को निहार रहा था।...सबेरे-सबेरे कौन

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भँवर(जीवन का जाल)भाग21

21 मार्च 2022
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सबकी आँखो में वृंदा के लिए सपने थे।सबको वृंदा पर विश्वास था।जाने की तैयारी होने लगीं।रिया वृंदा का सामान रखने लगीं।...और शिक्षा भी दे रही थी।जब बच्चे बचपन से किशोर अवस्था में कद़म रखने लगें तो माँ का

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भँवर"जीवन का जाल"भाग22

22 मार्च 2022
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द्रोण के घर जलेबी और समौसे तीसरे चौथे दिन घर में आ ही जातें।दूसरी तरफ़ कृपा के घर पन्द्रह दिन में एक बार भूखे पेट सोना पड़ता।कृपा को दिन-रात चिन्ता सतायें रहती कि घर का खर्चा कैसे चलेगा।जैसे- तैसे व्यवस

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भँवर"जीवन का जाल"भाग23

22 मार्च 2022
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कृपा बरामदे में बैठकर सब कुछ देख रहा था।(आकर अम्मा के पैर पकड़ लिए।:-अपने अश्कों से चरण बंदना करने लगा।)अब मैं पंचायत को घर में देखना नहीं चाहता हूँ।पंचायत निर्णय करें,माँ का बंटवारा हो,इससे शर्म

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भँवर "जीवन का जाल"भाग23

22 मार्च 2022
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अम्मा ने जब सुना तो कमरे में आई:-बहू तू कैसी शिक्षा दें रही हैं?सजा देने की बजाय उल्टा ही पाठ पढ़ा रही हैं।जो आज सिखा रही है, कल तुझपर भी किया जायेगा।क्यों बबूल का पेड़ बना रही हैं।सबके लिए नासूर बन जाय

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भँवर"जीवन का जाल"भाग24

22 मार्च 2022
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कॉलेज का पहला दिन धोखा़ देने बाली चाल के साथ प्रवेश किया।कॉलेज के मुख्य द्वार पर दस-बारह युवको का झुण्ड़ जो कली से बन रही फूल किशोरी को ताड़ने की फि़राक में रहते हैं।कौन सी किशोरी पहली नज़र में ही मोहिनी

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भँवर"जीवन का जाल"भाग25

26 मार्च 2022
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वृंदा ने पलट कर देखा तो प्रोफेशर निहार सिंह थें। वृंदा ने अचरज से पूछाँ,सर आप !आप यहाँ कैसे? निहार सिंह ने कहा,वृंदा मैने पहली नज़र में ही परख लिया था कि तुम हीरा हो हीरा।भविष्य में अपनी चमक से भारत का

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भँवर"जीवन का जाल"भाग26

26 मार्च 2022
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वृंदा पहेली क्यों बुझा रही हो?स्पष्ट शब्दों में कहो,जो भी कहना चाहती हों। :-सर स्पष्ट शब्दों में मेरा निर्णय हैं।आज के बाद ख्याती मेरे साथ रहेगी।कॉलेज में पाँच से छः घंटे ही पढ़ती हूँ।बाकी समय ख्याती क

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26 मार्च 2022
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***** यहाँ वृंदा की दिशा ही बदल गई।जो पैरामैड़ीकल डॉक्टर बनने की जगह आयुर्वेदिक डॉक्टर(वैध)बनने की दिशा में मुँड़ गई। गाँव में स्थति बिगड़ती जा रही थी।दो महीने से अम्मा की पेंशन नहीं आई थी।कमाने का एक ही

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26 मार्च 2022
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अपने पास सबकुछ होते हुए भी खुश नहीं है अपितु दुख इसका है कि दो वखत की रोटी क्यों है?विश्वास और रक्तसम्बधी रिश्ते नाते पीणा का कारण क्यों बनते हैं।गुलाब के बीच काँटे का किरदार निभाते है,पुष्प के लिए अभ

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भँवर"जीवन का जाल"भाग29

27 मार्च 2022
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हमारे पास जायदा पैसे नहीं है।तुझको तो पता ही हैं।सौ रूपये में क्या आयेगा? माँ सौ रूपये मैं तो बहुत अच्छा गिफ्ट आ जायेगा। सुन ,जायदा ऊधम(शौर-गुल्ला)मत करना।द्रुपत और किसन को सभाल लेना।दोंनो ही जैसे-जैस

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27 मार्च 2022
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कृपा ने बच्चो को पुकारा,किसन द्रुपत... किसन भागके कृपा के पैरो से लिपट गया। कृपा ने किसन को गोदी में ले लिया।:-अब घर चलें। शिल्पी:-अंकल जी इतनी जल्दी,बच्चे बहुत खुश हैं।थोड़ी देर और रूक जाओं।अभी केक भी

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27 मार्च 2022
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नील तो चले गयें,भानवी को डर लग रहा था।आंखे नीची करके कमरे में जाने लगीं।रिया पीछे-पीछे आ रही थी।भानवी मन में सोच रही थी,माँ डाँटेगी।जैसा सोच रही थी ,वैसा कुछ भी नहीं हुआ।रिया झाडू लगाने लगीं।इस समय सम

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भँवर"जीवन का जाल"भाग32

27 मार्च 2022
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भानवी उठ़ी और पास में रखी खेत की दवा पी ली।जब जहर ने अपना असर दिखाया तो भानवी बैचेन होने लगीं।न मुख से आव़ाज निकल रही,न खड़ी हो पा रही थी।छटपटा रही थी,गला भी सूख रहा था।लड़खड़ाते कदमों के साथ रसोई घर में

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भँवर"जीवन का जाल"भाग33

27 मार्च 2022
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छँटवी:-हाँ !भानवी सीधी-साधी दिखती थी ,बैसी नहीं हैं।अपनी सहेली के यहाँ जन्मदिन पर गई थी।रात में वही रूक गई।रात-भर गुलछर्रे उड़ाये होगें,और न जाने क्या-क्या किया होंगा।सच कड़वा ही लगता हैं। सुनैना ने मेर

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भँवर"जीवन का जाल"भाग34

27 मार्च 2022
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मैंने तो कोई तार टेलीफोन नहीं किया।जानकर तू परेशान हो जायेगी।जो होना था वो हो चुका।जाने बाले कभी लौट कर नहीं आते है।बस जो है उसको सभाल कर रखना हैं। पापा मुझे फोन ताऊँजी ने किया था। मुझे पता था,यह सब भ

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भँवर"जीवन का जाल"भाग35

3 अप्रैल 2022
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कृपा ने कहा,"वृंदा चुप हो जा।" वृंदा:-पापा आज आप मुझे रोको मत।जुर्म करने से जायदा जुर्म सहना महापाप हैं।यह धर्म युद्ध है,इस युद्ध का अंत हो ही जाने दों। सुनैना ने कमर पर हाथ रखकर कहा,चोरी और ऊपर से सी

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3 अप्रैल 2022
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सुनैना की जुबान लड़खडा़ने लगी....मैं ...क्यों दूँ। साधु:-तो तुम्हें अधिकार किसने दिया किसी के ऊपर भी आक्षेप लगाना। सुनैना मुँह टेड़ा करके अपने घर चली गई। ग्रामबासी एक साथ कहने लगें।:-महाराज मुझसे भूल हो

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भँवर"जीवन का जाल"भाग37

3 अप्रैल 2022
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सुनैना की जुबान लड़खडा़ने लगी....मैं ...क्यों दूँ। साधु:-तो तुम्हें अधिकार किसने दिया किसी के ऊपर भी आक्षेप लगाना। सुनैना मुँह टेड़ा करके अपने घर चली गई। ग्रामबासी एक साथ कहने लगें।:-महाराज मुझसे भूल हो

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भँवर"जीवन का जाल"भाग38

3 अप्रैल 2022
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निशान्त उस युवती को लेकर सूनसान जगह पर पहुँच गया।जहाँ अकेले में जाने से भय लगता हैं।निशान्त मर्यादाओं की हर दहलीज लाँघ चुका था।उसके सामने दौलत की चमक ही चमक दिखाई दे रही थीं।मेहनत न करना पड़े और दौलत उ

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3 अप्रैल 2022
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अभी:-पैसे कमाना तो दाँये हाथ का खेल हैं।मेरे पापा के पास गरीबी का भी इलाज हैं। :-वो कैसे? :-सब कुछ यही पूँछ लोगे?मेरे पापा से भी मिलोगे। :-हाँ,हाँ मैं मिलना चाहता हूँ। :-तो आज शाम ही मिलाते हैं।मेरे ज

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3 अप्रैल 2022
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माण्ड़वी घबरा गई और अपनी चोट़ को छोड़कर दरबाजा खोल कर बाहर आ गई। दुर्घटना देखकर आस-पास के लोग जमा हो गयें। माण्ड़वी:-आप लोग जाओ,मैं इसका इलाज करवाऊँगी। लोग एक स्वर में:-तुम पैसे बाले होते ही ऐसे हैं।पैसे

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माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

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भँवर "जीवन का जाल"भाग42

3 अप्रैल 2022
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माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

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भँवर"जीवन का जाल"भाग43

3 अप्रैल 2022
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सुनैना ने हाथ पकड़ लिया।का सटिया गये हैं जो अपने बेटे को कसाई के हाथों सोंपने चले हैं।खब़रदार जो तुमने काहु फोन के बारे में बताया,भनक तक न लगने देंना।कुछ दिन बाद सब ठ़ीक हो जायेंगा।सबसे चुन-चुनके बदला

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भँवर "जीवन का जाल"भाग44

3 अप्रैल 2022
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शाम हो गई पशु-पछ़ी घर लौटने लगें।प्राणी भी अपना काम-काज बंद करके घर लोटने लगें।बच्चे बाहर खेल रहे थे वो भी घरों में लोट आयें।शाम धीरे-धीरे चाँदनी रात में बदलने लगीं। सितारे-झिलमिलाने लगें,तीज का चाँद

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भँवर"जीवन का जाल"भाग45

5 अप्रैल 2022
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अम्मा:-तू उसके पास जायेगा।वो एकबार भी तेरे पास नहीं आया।द्रोण के रगों में में मेरा ही खून है फिर कैसे खून पानी हो गया।ऐसी औलाद पर लालत हैं।मेरी कोख ही उज़ड जाती। :-अम्मा यह सब तकद़ीर का खेल हैं।इस मनहू

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मँवर"जीवन का जाल"भाग46

5 अप्रैल 2022
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विख्यात ने समझ लिया कि अब पोल-पट्टी खुल जायेगी।विख्यात की दृष्टि जम़ीन पर पड़ी ईट पर पड़ी।विख्यात ने ईट उठ़ाई और अम्मा के सिर पर मार दिया।ईट के प्रहार से अम्मा जम़ीन पर धरासाई होकर गिर पड़ी। लड़के ने कहा,

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भँवर"जीवन का जाल"भाग47

5 अप्रैल 2022
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सामने अम्मा को देखकर कलेजा जलता था।छोटी बहू छोटी बहू कहकर चिड़ाती थी।किसन को सारे दिन गोदी में बिठ़ाये रहती,पीछे-पीछे फिरती रहती थी।मेरे विख्यात पर कभी लाड़-प्यार से बात तक नहीं की खिलाना तो दूर की बात

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भँवर"जीवन का जाल"भाग48

5 अप्रैल 2022
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द्रोण का मन उदास था। कृपा की समझ में नहीं आ रहा था कि कहाँ जाऊँ क्या करूँ?गाँव की सीमा पार कर पाई थी कि सामने से नील कार लेकर आ गया। नील:-मित्र मुझे पता था कि तुम आज ही गाँव छोड़ देगें।क्या इस मित्र को

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भँवर"जीवन का जाल"भाग49

5 अप्रैल 2022
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द्रोण के पास किसी भी प्रकार की कमी नहीं ।घर भरा-भरा लेकिन तन्हाई थी।सुनैना तो शासन पाकर खुश थी।विख्यात के हाथ खुल चुके थें।भय निकल चुका था।जुर्म करने में सकुचाता नहीं था।निर्भीक होकर ,मित्र मण्ड़

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भँवर"जीवन का जाल"भाग50

8 अप्रैल 2022
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ग्रामबासी कर भी क्या सकते थें।सब बदुआ और कोस रहे थें।बच्चे बुरे रास्ते पर चलने का होसला माँ-बाप की सह का ही परिणाम हैं।आज यहाँ कुकर्म किया जाने और कहाँ क्या-क्या करेगा। द्रोण ने कृपा को दर-दर भटकने को

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भँवर"जीवन का जाल"भाग51

8 अप्रैल 2022
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विख्यात ने सुना कि किसन का अपहरण,तो चुप न रहा।....नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता हूँ।किसन मेरा भाई हैं। मित्र:-अरे मित्र यह क्या सचमुच का अपहरण थोड़े ही हैं।हमको पैसे चाहिए,बस पैसे मिले हम छोड़ देगें।हम सबस

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भँवर"जीवन का जाल"भाग52

8 अप्रैल 2022
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एक व्यक्त के सिर पर टोकरी में फल रखे थे जो घूम-घूमकर बैच रहा था। कृपा के मन में बिचार किया कि शहर में किसी न किसी की मदद लेनी चाहिए। छोटे-मोटे काम करने बाले,फैरी लगाने बालो पर विश्वास कर सकते हैं।जैसे

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भँवर"जीवन का जाल"भाग53

8 अप्रैल 2022
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द्वारपाल ने रोका,ठ़हरो यह देवी जागरण तुम जैसो के लिए नहीं हैं।जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं। कृपा ने कहा,माँ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा नहीं हैं।माँ की दृष्टि सबपर हैं,हम सब संतान हैं। द्वारपाल हँसने ल

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भँवर"जीवन का जाल"भाग54

8 अप्रैल 2022
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द्वारपाल ने रोका,ठ़हरो यह देवी जागरण तुम जैसो के लिए नहीं हैं।जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं। कृपा ने कहा,माँ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा नहीं हैं।माँ की दृष्टि सबपर हैं,हम सब संतान हैं। द्वारपाल हँसने ल

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भँवर"जीवन का जाल"भाग55

9 अप्रैल 2022
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जन समुदाय के समक्ष वसीयत सुनाई गई।सुनकर सबकर हक्के-बक्के रह गयें। क्रोध आया...जीते जी मुझे अपनी जिंदगी जीने नहीं दी।....और मरने के बाद भी जीने नहीं देना चाहतें।मै अपनी लाईफ-स्टाईल किसी के कहने से चेंज

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भँवर"जीवन का जाल"भाग56

9 अप्रैल 2022
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(जीवन का दूसरा भाग) एक तरफ़ जहाँ कृपा जिंदगी को नया रंग नई दिशा दे रहा था।दूसरी तरफ़ द्रोण प्राश्चित में था।कृपा के साथ बहुत अन्याय किया हैं।कृपा की जम़ीन जायदाद को हड़प कर खून के रिश्तों को कंलकित किया

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भँवर "जीवन का जाल"भाग57

9 अप्रैल 2022
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सुनैना ने देखा कि निशान्त चला गया।अपने मुख का ताला खोला और कमरे में प्रवेश किया।....अरी ओ महारानी क्या टसुआ ही बहाती रहोगी।घर भी सभालोगी?अभी तक चाय नहीं मिली,मेरा तो सिर पीर के मारे फ़टा जा रहा हैं।बहु

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भँवर"जीवन का जाल"भाग58

9 अप्रैल 2022
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क्या राज हो सकता हैं? बहू को सावन हर्षाने लगा है फिर क्यों थार की धूल में रहना चाहेगी। घुमा-फिराकर बाते क्यों करती हों? तुम ही सोंचो.....जब-तक निशान्त यहाँ था तो बहू मायके में थीं।जब निशान्त गया तो सस

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भँवर "जीवन का जाल"भाग59

9 अप्रैल 2022
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सुनैना की हालत ऐसी थी।अपने सुख सुविधा के लिए,क्या से क्या किया,कितने पापड़ बेलें।...और अब कैसे समझौता कर लें। महकतें चमन को उजड़ा चमन बना दें तो यह कैसे सम्भव हो सकता है कि आपका चमन सदा मंहकता रहें।जब ह

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भँवर"जीवन का जाल"भाग60

11 अप्रैल 2022
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सुनैना परेशान थीं।...शेखर अब क्या होगा? परेशान तो मै भी हूँ।मैं तुमको छोड़कर जी नहीं सकता और उसके साथ जीना नहीं चाहता।जेल में रहने से अच्छा है कि आजा़द रहूँ।माया माया पर कुण्ड़ली मार कर बैठ़ी हैं।ऐसा कु

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भँवर"जीवन का जाल"भाग61

16 अप्रैल 2022
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द्रोण रोकता-टोकता लेकिन कोई प्रभाव नहीं पढ़ता।द्रोण की खाट एक अंधेरे कमरे एकान्त में डा़ल दी।खाट पर पड़े पड़े प्राश्चित के लिए जीवित था।प्राग्रिया अपने दुख में ही मग्न थी।प्राग्रिया ही द्रोण का ख्याल रखत

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भँवर"जीवन का जाल"भाग62

16 अप्रैल 2022
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निशान्त ने घर तो पहले ही छोड़ दिया,श्रेया की सुनैना की चौक-झौक रहती थी।सुनैना और श्रेया में छत्तीस का आँकड़ा रहता था।निशान्त काले धंधे का भाई(डॉन)था।निशान्त के नाम की साफ़-सुधरी छबि थी।अशान्त नाम स

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भँवर"जीवन का जाल"भाग63

17 अप्रैल 2022
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दरबाजे पर निशान्त ने घंटी बजाई।... सुनैना ने दरबाजा खोला तो सामने निशान्त था। निशान्त सुनैना को देखकर गले से लिपट गया एक मासूम बच्चे की तरह।....रोते-रोते कहने लगा।माँ,माँ मुझे बचालो। सुनैना की आँखे भर

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भँवर"जीवन का जाल"भाग64

17 अप्रैल 2022
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उधर कृपा अपनी जीवन की गाड़ी को धीरे-धीरे आगे बड़ा रहा था।ईश्वर पर विश्वास, दृढ़-संकल्प लगन का ही परिणाम था कि छोटी सी दुकान बड़ी बन गई थीं।शादी,पार्टियों,उत्सवों समारोह में जूस सप्लाई का काम मिल जा

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भँवर"जीवन का जाल"भाग65

17 अप्रैल 2022
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वृंदा ने गहरी श्वासं लेकर कहाँ।...मै अपने काम में इतनी खो गई कि घर का ख्याल ही नहीं रहा। एक प्रयोग को आखरी सफ़लता तक पहुँचाने में एकाग्रता का कितना महत्व होता हैं।नये-नये प्रयोग को ,सफ़ल और समाज के कल्य

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भँवर"जीवन का जाल"भाग66

25 अप्रैल 2022
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वृंदा:-हाँ,माँ ने सबकुछ बता दिया था।तब से हम दोंनो परेशान थें।तुम्हें सही राह पर लाने के लिए मार्ग खोज रहे थें।मुझे क्या पता तुम यह सब द्रुपत के लिए कर रहे थें।अब सारी मुश्किले टल चुकी हैं। नहीं दीदी।

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भँवर"जीवन का जाल"भाग67

25 अप्रैल 2022
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वृंदा:-हाँ,माँ ने सबकुछ बता दिया था।तब से हम दोंनो परेशान थें।तुम्हें सही राह पर लाने के लिए मार्ग खोज रहे थें।मुझे क्या पता तुम यह सब द्रुपत के लिए कर रहे थें।अब सारी मुश्किले टल चुकी हैं। नहीं दीदी।

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भँवर"जीवन का जाल"भाग68

27 अप्रैल 2022
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सरकारी वकील:-जज साहब! यह कहना क्या चाहता है?बैगों में जाली नोट चीख-चीख कर क्या कहने की कोशिश कर रहे है?सबको आव़ाज सुनाई क्यों नहीं दे रही है? आप सुनने की कोशिश करके तो सब सुनाई देगा।अगर मेरे मस्तिष्क

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भँवर"जीवन का जाल"भाग69

27 अप्रैल 2022
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अमर आपको पहली दृष्टि में संस्कारी गुणवान,आदर सम्मान करने मन को भा गया था।अमर का चरिर्थात्र विपरीत हैं।सरकारी नौकरी है तो आर्थिक स्थति में कोई परेशानी नहीं होगी।पापा हर व्यक्ति अपके जैसा नहीं होता हैं।

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भँवर"जीवन का जाल"भाग70

27 अप्रैल 2022
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आज के दौर में युवक ऐसा ही तो ख्आब देखते है कि जिदंगी शान -शौकत से जिएँ।मुझे इस घर में एक वर्ष हो गया।चाहे कितना भी क्रोध किया होगा लेकिन कभी हाथ नहीं उठ़ाया।मेरा कितना ख्याल रखते हैं।अगर बुखार आ जायें

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भँवर"जीवन का जाल"भाग71

27 अप्रैल 2022
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फिल्मों में जैसा दृश्य दिखाया जाता है, उससे बढ़कर था।किसी चर्चित व्यक्ति की शान-शौकत,रहन-सहन को उच्च दिखाया जाता हैं।यहाँ आने से पहले किसना को अचेत कर दिया था।समुद्र के ब़ीच टापू पर बना आलीशान महल था।च

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भँवर"जीवन का जाल"भाग72

28 अप्रैल 2022
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:-मेरा फैसला नही मानना तो न सही।अब अपनी आँखो के सामने मृत्युं का ताण्ड़व देखना। विधाता ने अपनी कलाई की तरफ देखा और ऊँगली ले जाने लगा।किसना ने रोका... रूको। तुमने अपना मन बदल लिया? तुम्हारे इस साम्रराज्

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भँवर"जीवन क जाल"भाग73

29 अप्रैल 2022
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जितने पुष्प उतने रंग।पता नहीं किसको कौन सा रंग मनमुग्ध कर जायें।जहाँ प्राग्रिया और कुमुद दाम्पत्य जीवन सुखमय हैं। दूसरी तरफ़ शुगन्धा का पति तम कुमार अमावस्या की काली छाया हैं।सबका सुख-दुख का चक्र चलता

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भँवर"जीवन का जाल"भाग74

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शुगन्धा जिस आजा़दी से खुश थी, वही आज़ादी जजींर बन गई।आजादी सबको प्रियं होती है लेकिन पथ का तो पता होंना चाहिए।जब सिर पर खतरा मड़राता दिखा तो जाने में ही भलाई हैं।कुछ अनर्थ होने से अच्छा है कि बापिस घर च

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भँवर"जीवन का जाल"भाग75

29 अप्रैल 2022
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नहीं!आज तो कहकर ही रहूँगा।मैने बड़ी नम्रता से कहाँ कि दुकान खुलवा दो।तो कहते है तू चला नहीं पायेगा।पैसा और फँस जायेगा।मैं जो भी करूँ ,इनको उससे प्रोबलम हैं।कब मुझे जीने देगें।अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं

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भँवर"जीवन का जाल"भाग76

29 अप्रैल 2022
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राज तैयारी के साथ अदालत पहुँचा।शैलेस बहुत खुश था।आज उसका प्रतिशोध पूर्ण होने बाला था।तम कुमार ने शैलेस को राज के साथ देखा तो और क्रोधित हुआ।,"ओह !जो कर्म काण्ड़ का षडयन्त्र रचा है ,तेरा ही हाथ है

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भँवर"जीवन का जाल"भाग77

29 अप्रैल 2022
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***** कृपा रामायण पढ़ रहा था।रिया बहू के साथ रसोई घर में थी।सास-बहू का तालमेल देखकर लगता नहीं था कि सास बहू हैं।माँ-बेटी बनकर काम कर रही थीं।कृपा के घर खुशियाँ ही खुशियाँ थी।सब अपने दायत्व को पूर्ण निष

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग78

29 जुलाई 2022
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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग79

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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग80

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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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भँवर"जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग81

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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग82

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग83

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर"जीवन का जाल"(उपन्यास"भाग84

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग85

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग86

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किसन:-जितना सरल दिख रहा है,उतना सरल नहीं हैं।जमींन पर आकृतियाँ कुछ और संकेत कर रही हैं।ध्यान से देखों...ऐसा लग रहा है कि शंतरज का खेल हैं।सब उन आकृतियों को देखने लगें।सामने दीवाल पर चेतावनी लिखी थी।"श

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