रिया पूजा की थाली लिए भगवान के समक्ष वृंदा के लिए प्रार्थना कर रही है।आज वृंदा का हाईस्कूल का परीक्षाफल निकल रहा हैं।कक्ष से द्रुपत की रोने की आव़ाज आई।
रिया ने आव़ाज लगाई:-भानवी द्रुपत को पानी पिला ले,चुप कर ले,मैं अभी आई।
अंदर कमरें में भानवी और वृंदा थी:-जी माँ।
आज वृंदा पहली सीडी़ पर कद़म रखेगी,आज परख होगी,हीरा है या काँच का टुकड़ा।मन में अजीब-अजीब़ ख्याल आ रहे है,अगर मैं फैल हो गई तो माँ के अरमानों पर पानी फिर जायेंगा।पापा क्या कहेगे?सब ताने पर ताने देंगे।मैं क्या करूँ,अगर ऐसा हुआ?
तभी रिया प्रसाद लेकर आई:-ले वृंदा।
वृंदा अपने ख्आब में खोई हुई थी...
रिया ने वृंदा की बाजू पकड़के हिलाया....क्या सोंच रही है?
वृंदा:-कुछ नहीं।माँ मुझे बहुत डर लग रहा हैं।
रिया:-पेपर तो सही हुए है?या ड़र के कारण झूठ कहाँ है?आज सब पता चल जायेगा कि तेरे मन में कितनी सच्चाई है।
वृंदा ने कोई उत्तर नहीं दिया।..और सिर नीचे झुका लिया।
रिया:-कितने बजे निकलेगा?
वृंदा:-माँ शाम को,शायद पाँच बजे।
रिया:-भानवी ला द्रुपत को दूध पिला दूँ।रोटी से उठ़ना मुश्किल है।उठ़ भी जाऊँ तो ताने और सुनों।"बहाना है,रोटी न बनानी पड़े,"जान-बूझकर,पहले से दूध नहीं पिला सकती ।ऊपर से सूरज आग उगल रहा है,नीचे चूल्हा।...औरत जी जान से करती रही लेकिन फिर काम-काज नहीं दिखता।हाय!मेरा नसीब।
वृंदा:-माँ,पापा कहाँ गये है?
रिया:-तेरे पापा कोल्ड़(शीतगृह)गये हैं।कह तो यही रहे थे कि आज शाम को मुम्बई जाना पड़े।
द्रुपत को दूध पिलाया,कृष्णा सो रहा था।भानवी दोंनो को देखते रहना,खेलने में मस्त मत रहना।..और इधर कृष्णा गिर न जायें।
भानवी:-हाँ।
रिया खाना बनाने चली गई।सुनैना भी चिन्तित थी क्योंकि निशान्त का भी परीक्षाफल निकलने को था।
निशान्त को कोई चिन्ता नहीं थी,जब से छुट्टी हुई तब से दोंनो भाई सुबह-शाम क्रिकेट- क्रिकेट ,इसके अतिरिक्त और कोई काम नहीं था।आज के दिन भी निश्चित होकर क्रिकेट खेल रहा था।
सुनैना ने बरोसी (ग्रामीण शब्द,उपलो को सुलगाकर मिट्टी की हॉण्ड़ी में दूध गर्म करने रखते है,धीरे ;धीरे गर्म होता है,मलाई भी मोटी पढ़ती है जिससे मक्खन अच्छा बनता हैं।)बरोसी पर चड़ी हॉण्डी़ से दो गिलास दूध निकालके ठण्डा़ करने रख दिया और आव़ाज देकर बुलाने लगीं।
निशान्त:-क्या है?माँ को अभी बुलाना था,कितना मजा आ रहा था।वेदान्त देखकर आना,क्यों बुला रही हैं?
वेदान्त:-भईया तुम्ही जाओं मैं क्यो जाऊँ।
निशान्त:-भाई कैसा चला जा ना।
सुनैना आवाज़ देते- देते घर से बाहर ही आ गई।क्यों तुम्हें सुनाई न देंत।कितनी जोर-जोर से आवाज दे रही हूँ,पडौस बाले सुन ले पर तेरे काँन में भनक न पड़त।जाओ दूध ठण्डा़ कर दिया है पीलों।कुछ दिन के लिए आया है,वहाँ जाने कैसा खाना-पीना है,देख कितना लट गया हैं।
निशान्त:-माँ मैंने कभी खाने पीने में कमी नहीं की।
सुनैना:-करनी भी नहीं चाहिए।आखिर तुम्हारे पापा दिन-रात मेहनत क्यों करते हैं।बच्चों के लिए ही तो करते हैं।हाँ निशान्त आज तेरा भी परीक्षाफल आने बाला हैं।
निशान्त:-माँ,आज मेरा नहीं।यू पी बोर्ड का निकल रहा हैं।मेरा कल निकलेगा।
सुनैना:-जा पहले दूध पीलो तब खेलना।
रिया को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता कि सुनैना के बच्चें तीनो टाईम दूध पिए,और हमारे बच्चों को एक बार,कभी-कभी वो भी नहीं मिलता।करने को हम और खाने को सब हैं।
भानवी खाने की थाली लेकर आई:-माँ खाना देंना।
रिया:-बस तुम्हारें नसीब में रोटी खाना ही लिखा है।लो खाओ और वृंदा को भी बुला लों।
भानवी:-वृंदा जीजी खाना खालों।
वृंदा को चिन्ता सताये जा रही थी ,भूख कहाँ थी।...माँ मुझे भूख नहीं हैं।
रिया:-खाना खा ले,जो होंगा शाम को देखा जायेगा।
वृंदा:-नहीं माँ।
रिया उठकर वृंदा के पास गई:-जो होगा वो शाम को देखेगें।अभी खाना खा लें।
वृंदा:-माँ दही दे दों।आज सब्जी अच्छी नहीं लग रही हैं।
रिया:-दूध से खा लें।
भानवी:-माँ,दही ही चाहिए।
रिया:-वृंदा रोटी देखना कही जल न जायें,मैं दही लाती हूँ।
रिया हॉण्डी़ से दही निकालने लगीं।जब सुनैना ने देखा कि रिया दही लेने आई है तो अपने कमरें में बच्चों के कपड़े छोड़कर जो तय कर रही थी,छोड़कर लम्बे-लम्बे कद़म रखें।...और पीछे खड़ी हो गई।
रिया ने दही के लिए हॉण्डी़ खोली,उस समय पीछे से सुनैना बोली:-रिया दही नीचे से लेना,जब मलाई मिलाया दही सब लेगें तो घ्री कहाँ से होंगा।
रिया को बात सहन नहीं हुई और पलट के जबाव दिया:-हमारे बच्चें थोड़ी सी मलाई खालें तो घ्री नहीं होगा।..और तुम अपने सपुत्रों को तीनो वख़त(समय)मलाई मुनक्का मिलाके दूध पिल़ाओ तो कभी घ्री कम नहीं होगा।...और घ्री से कनस्तर के कनस्तर भर जायेगें।
जब सुनैना ने सुनी तो तॉव आ गया:-तू मेरे लालो पर नज़र गड़ाती है,लगाती है।जो सूख-सूख कर छुआरा हो गये हैं।सीधे-सीधे कह क्यों नहीं देती,जितनी बैर निशान्त और वेदान्त दूध पिए ,उतनी ही बैर तेरी छोरी भी पिए।छोरी है छोरी बनके रहे।छोरे की बराबरी थोड़े ही कर पायेगी।...का पी- पी कर कोल्हू में पिरेगीं।
रिया:-हाँ,हाँ,उतनी ही बैर मेरी बेटियाँ भी पियेगीं।
सुनैना:-हाय!हाय! अब तू तुलना करेगीं।आज फैसला हो ही जायें।आ जाने दो देवर को और फैसला हो ही जायें।
रिया:-वो ही क्यों करें फैसला,जेठ जी को आ जाने दों और फैसला हो ही जाने दों।
रिया ने दही का कटौरा वही का वही छोड़ा और आकर रोटी सैकने लगीं।
बुदबुदा रही है,थोप-थोप कर खबाओ और हर खाने पहनने में,हर चींज में हाथ पकड़ लेती हैं।जैसे हर चींज पर महारानी का कब्जा हो,मुफ्त की नौकरानी है जो लगें रहों।
वृंदा अब इतनी छोटी नहीं थी कि कुछ समझ न सकें।सब कुछ जानती और समझती थीं।वृंदा ने माँ से कहाँ,"माँ आप क्यों जला रही हो।"हमकों नहीं खाना दूध दही,अगर भगवान ने चाहा तो खायेगे नहीं तो नहीं।"आप क्यों हमारे लिए तकलीफ़ सहती हैं,क्यों पीणा सहती हैं।आज आपने हमारे कारण जो जंग छेडी़ है,उसका अंत पता हैं।पापा किसी की भी गलती की सजा,आप पर निकालते हैं।जब हाथ उठ़ाते है ,हमको अच्छा नहीं लगता हैं।पापा वही देखते सुनते है जो ताई दिखाये सुनायें।
रिया:-जाने तेरे बाप को कौन सी घुट्टी पिला देती है जो उसके हुक्म के गुलाम हैं।भईयाँ भाभी का कथन पत्थर की लखी़र हैं।मेरी बात का तो कोई मोल ही नहीं हैं।
वृंदा:-माँ आप सब ऊपर बाले पर छोड़ दो,उसके घर देर है अंदेर नहीं।
रिया:-एक ही र खायें जा रहा है,आज शाम जब तेरे पापा आयेगें ,तब कौन सा वबण्डर संपूका (षंडयन्त्र)भूमिका बनाके रखेगीं।
वृंदा:-मुझको तो इसी बात का ड़र है कि आज खुशी की अपेक्षा कही कलेष दुख न मिलें।
द्रोपहर के बाद का समय
घर के फो़न की घंटी बजने लगीं...ट्रिन ट्रिन ट्रिन
वृंदा:-माँ मैं देखती हूँ,किसका है।
हैलो कौन?
कृपा:-हैलो वृंदा।
-हाँ पापा।
-वृंदा आज मैं घर नहीं आऊँगा,यही से बम्बई जा रहा हूँ।
-पापा घर से चले जातें।
-गाडी इस रोड़ से नहीं जायेगी,इस कारण यहीं से जाना है।मैं दीनू को भेज रहा हूँ,माँ से कहना कपड़े रखकर भेज दें।
-जी पापा।
-आज हाईस्कूल का रिजल्ट निकल रहा है।मुझे अपना रोल नम्बर देना,इटरनेंट पर तो आ गया है,सब अपने-अपने बच्चों का देख रहे हैं।मैं भी देखता हूँ।
-अभी देती हूँ।
रिया:-कौन है?
वृंदा:-माँ, पापा है।घर नहीं आयेगे बैग तैयार करके दीनू को दे देना।लो आप बात करों।
रिया:-आप घर से चले जातें।
-गाडी़ उधर से नहीं जायेगी।यह बताओ कृष्णा और द्रुपत क्या कर रहे है?
-सो रहे हैं।
वृंदा ने अपना रोल नम्बर बता दिया,उधर सुनैना काँन लगाके सुनने लगीं।कई मेरे विरूद्ध भड़का तो नहीं रही है,पट्टी तो नहीं पढ़ा रही हैं।अधिकाश औरतो को काँन लगाकर सुनने में आन्नद मिलता है।
वृंदा मन ही मन में भगवान का स्मरण कर रही थी।रिया ने वृदा के सिर पर हाथ फैरा,तू परेशान क्यों हो रही है?
ट्रिन ट्रिन ट्रिन
रिया:-तेरे पापा का ही होगा,उठ़ा तो सहीं।
वृंदा:-जी पापा।
कृपा:-अपनी मम्मी को फोंन देना।
वृंदा:-मम्मी पापा आपसे बात करना चाहते हैं।
वृंदा को डर लगने लगा,शायद कोई बुरी खब़र है जिसके लिए माँ को डॉट लगेगी।पापा कही यह तो नहीं कहना चाहते,सब तुम्हारी लापवाई का नतीजा हैं।
कृपा:-सुनो..
रिया:-हाँ,
-तुम्हारी बिटियाँ ने फस्ट नहीं,बल्कि स्कूल टॉप किया है।पता है 600में से 530नम्बर आयें हैं।यू पी बोर्ड में।
रिया:-अकेली मेरी बेटी थोड़े ही है, आपकी भी है।
-नहीं।सिर्फ तुम्हारी मेहनत का परिणाम है।वृंदा को फोन देना।
-वृंदा मुझे तुमपर नाज है,आज तूने मेरा कद ऊँचा कर दिया।यह दिखा दिया कि बेटी भी बेटे से कम नहीं है।बोल तेरे लिए क्या लाऊँ?
-पापा मुझे कुछ नहीं चाहिए,माँ के कारण ही हमने अंक पाये है,आप माँ के लिए ही कुछ लाना।
अम्मा भी आ जाती है:-किसका फोन है?
वृंदा:-पापा का।
-तेरी अम्मा हैं।
-हाँ।
-फोन देना।
-लो अम्मा।
-अम्मा आपकी नातिन ने स्कूल टॉप किया हैं।
-सच।मैं जानती थी वृंदा एक दिन हमारे खा़नदान का नाम रोशन करेगी।मैं मुहल्ले में मिठ़ाई बाटूँगी।
-अम्मा मैं फौन रखता हूँ।गाड़ी निकलने बाली हैं।
-अच्छा।जाने से पहले भगवान के चरण छू लेना।तेरी यात्रा मंगलमय हों।
जब सुनैना ने सुना तो आग और भड़क गई।अपनी ज्वाला की लपटे कहाँ फैलाये।अपना क्रोध प्राग्रिया पर निकालने लगीं।सौ रही थी।
सुनैना:-तू यहाँ पसरी -पसरी सोती रह और बाहर वृंदा -वृंदा के गुणगान जायें जा रहें हैं।मेरी किस्मत में तू हैं।
सुनैना का आक्रोश फूट पड़ा दे थप्पड़ दे थप्पड़,हाथ थक गयें तो चप्पल से मिटाई करने लगीं।
जब प्राग्रिया के रोने की आव़ाज सुनी तो अम्मा और वृंदा आ गयें।
अम्मा:-छोरी को क्यों मार रही हैं।आखिर बात का हैं?काहि, किसका गुस्सा छोरी पर उतार रही हों?
सुनैना:-मेरे नसीब में ही कूड़ा करकट लिखो हैं।
अम्मा:-सब एकसे थोडे़ ही होते हैं।का मार मारके बुद्धी आ जायेगीं।
सुनैना:-हमारे बच्चे है, चाहि मारे कूट्टे कोई बीच में न बोलेगा।
अम्मा:-तेरे अकेले के तो नहीं है,द्रोण के भी हैं।
अम्मा प्राग्रिया को अपने साथ दूसरे कक्ष में ले आई।
वृंदा को बहुत तकलीफ़ हुई:-अगर मैं कही फैल हो जाती तो ताई जाने क्या-क्या सुनाती,सुनते-सुनते काँन पक जातें।जब मैं पास हुई हूँ तब अपना क्रोध प्राग्रिया दी पर निकाल रही हैं।आखिर दी का क्या दोष।दी तो मुझसे जायदा पढ़ती है,ताई पल-पल हरपल डाँटती रहती है।ताई बच्चों में भेद क्यों करती हैं?वेदान्त और निशान्त को कभी मार नहीं पढ़ती। मन में सोच रही थी।
अम्मा हल्दी डा़लकर दूध लाई...ले पीले।
सुनैना अपनी भडा़स प्राग्रिया पर ही निकालती थी।इस कारण से प्राग्रिया हमेशा सहमी-सहमी, डरी -डरी सी रहती थी।रिया ने कभी वृंदा,भानवी,और प्राग्रिया में भेद नहीं किया।प्राग्रिया इधर-उधर देखकर कही माँ तो नहीं देख रही तब रिया के पास आती थी।अपने मन की बात कह देती थी।रिया भी इच्छा पूरी कर देती थी। अम्मा ने प्राग्रिया को अपने पास सुलाया।जब भी मार पढ़ती थी तब अम्मा ही बचाती थी।
सुबह-सुबह सुनैना का दिमांग ठण्डा़ हुआ।निशान्त का परिणाम आने बाला था,बैचेनी बढ़ने लगी।डर तो इस कारण से था कि वृंदा से कम अंक आयें तो खिल्ली उड़ाने का रिया को अवसर मिल जायेगा।सामने तो हिम्मत नहीं है,लेकिन घुमा फिराके बात तो कह ही देती हैं।सीधी नहीं है टेड़ी चाल चलती हैं।कृपा सुनता नहीं है इसलिए; जिस दिन सुनने लगें उस दिन सीधी चाल चलने लगेगी।
द्रोण:-कहाँ है तुम्हारा सपुत्र?आज परिणान निकल रहा हैं।निशान्त,निशान्त....
भागकर आया:-जी पापा।
द्रोण:-पसीने में लथपथ क्यों हो?
निशान्त:-वो...पापा..
द्रोण:-सुबह -सुबह से किक्रेट खेलना शुरू....आज परिणान निकलेगा।देखूँ तो सही शहर में रहकर करते क्या हो?सारे दिन खेलते रहते हो या पढ़ाई भी करते हों।
सुनैना:-पढ़ाई करता होगा।आप भी ना बस,अपने लाल पर विश्वास नहीं हैं।
द्रोण:-तुम्हारे ही लाल,आज पता चल जायेगा।मैं साथ मैं चलूँगा।
निशान्त के मन में डर उतपन्न होने लगा,जानता था ।बहाना खोजने लगा जिससे द्रोण साथ न चलें।:-पापा मैं देख आऊँगा।आप कोल्डस्टोरेज जाहिए(शीतग्रह)
द्रोण:-मुझे कही नही जाना।आज तो बस परिणाम जानना है कि टॉप करते हो या नाँक कटाँते हों।वृंदा ने कृपा का गाँव में सिर ऊँचा कर दिया।तुम क्या गुन खिलाते हों।
निशान्त:-भगवान याद आने लगें,कोई तो उपाय दे दो ताकि पापा यहाँ से चले जायें।आज बच नहीं पाऊँगा मेरी पोल-पट्टी(भेद)खुल जायेगा।
द्रोण कमरे से कपड़े पहन कर आ गया:-चलो,यहाँ तो इण्टरनेट नही है,कोल्ड के पास ,क्या करते है?हाँ ,साईबर कैफे वहाँ जाकर देखते हैं।
निशान्त न चाहकर भी द्रोण के साथ चल रहा था।मोटर साईकल पर बैठा था,मन उपाय खोजने में था।
द्रोण एक दुकान पर रुका:-निशान्त तुम यही रुको मैं अभी आया।कुछ काम हैं,कही जाना मत।
निशान्त के दिमांग मे षड़यन्त्र आया।अगर मैं पापा को मिलूँ ही नहीं तो परिणाम मेरी मुट्ठी में होगा।खेल मेरे हाथों में होगा,मै जो चाहूँगा बैसा ही होंगा।
निशान्त ने जैसा सोंचा था,वैसा ही किया।..और वहाँ से चकमा देकर निकल आया।द्रोण इधर-उधर निशान्त को खोजता रहा लेकिन निशान्त नहीं मिला।
निशान्त अपनी चाल पर बहुत खुश था,जैसा सोंचा था वैसा ही हुआ।शाम को अपना परिणाम लेकर पहुँच गया।
निशान्त:-"माँ, माँ, देख ना।तेरा लाल भी किसी से कम नहीं है,हमने भी बाजी मार ली।
सुनैना:-सच?
निशान्त:-हाँ देख,80%अंक प्राप्त किए हैं।
सुनैना:-अम्मा जी देखों,इस घर में बेटे ही आगें हैं।छोरी पीछे है और रहेगीं।मैं अभी लड्डू मंगवाती हूँ।भगवान लाख-लाख धन्यवाद।तेरे पापा तो तेरे साथ गयें थे,फिर कहाँ रह गयें?
निशान्त:-"माँ,कहके तो गये थे कि मैं थोड़ी देर में आ जाऊँगा।
सुनैना:-मैं दही लेकर आती हूँ।दही खाना,आने बाले कल के लिए सुखदः संदेश लेकर आती हैं।जा सबके पैर छूकर आर्शीवाद लें।दुश्मन के भी पैर छूलो तो मुख से आर्शीवाद ही निकलेगा।
निशान्त को पैर छूना अच्छा नहीं लगता था।तीज त्यौहारों पर भी सौ बार कहने पर छूता था।पैर छूने में अपनी प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलते देखता था।ऐसा महसूस करता है कि सब हमसे बड़े है,हम ही छोटे हैं।आज के बच्चें अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं।हॉय,हैलो,हाथ मिलाना अच्छा लगता हैं।
जब हम हाथ मिलाकर अभिन्नदन करते है तो उत्तर में हैलो ही निकलता हैं।हर जगह पैर छूना उचित नही हैं।दफ्तर में नमस्कार ,हाथ मिलाना ही उचित हैं।परिवार के सदस्यों,रिश्तेदारों से हैलो,हॉय कहना संस्कृति नहीं हैं।बच्चें बड़ो के पैर छूते है तब आर्शीवाद ह्रदय से ही निकलता है।वैज्ञानिक तथ्य है कि पैरो की नस ह्रदय से जुडी़ होती है जिससे प्रश्न्न ह्रदय के शब्द मुख से निकलते हैं।भगवान दीर्घ आयु प्रदान करें।खानदान का नाम रोशन करों।तेजस्वी बनों।खूब तरक्की करों।यह शब्द पहले से भूमिका का प्रतिनिधत्व नहीं करते हैं।यह तो ह्रदय की प्रश्नता से निकले शब्द हैं।बच्चो को आर्शीबाद मिलता है,कुछ करने की ऊर्जा का संचार उत्तपन्न होता हैं।बड़ो को भी गर्व होता है कि बच्चें सम्मान करते हैं।बच्चो के साथ माता-पिता का नाम भी सम्मान से लिया जाता हैं।बच्चें कहाँ सोंचते है?किसी के सामने झुकना ऐसा लगता है कि किसी के सामने भीख माँग रहे हैं।आने बाले समय में संस्कृति कही खो न जायें।हमें बचाना ही होगा और पैर छूना झुकना नहीं है ,यह बताना होगा कि एक सम्मान हैं।आर्शीबाद के रूप में शरीर को कवज मिलेगा।
निशान्त भी उन बच्चों में से एक था।माँ ने कहाँ,तो पलट के जवाब दिया कि माँ पैर छूने और हमारे अंक से क्या सम्बन्ध?मेहनत मैंने की तो फिर सबके पैर क्यों छूँना।
निशान्त की ऐसी बाते सुनी तो सुनैना को क्रोध आया:-अपने संस्कार भी भूल गया।इसका क्या मतलब हम पैर क्यों छुँए?भगवान ने संसार की रचना की,हमको जन्म दिया,खाने को रोटी दी,पहनने को वस्त्र दिए,भगवान ने हमको सबकुछ दिया हैं।हमारा भी फर्ज बनता है भगवान को धन्यवाद दें।धन्यवाद पैर छूँकर नमन करके दिया जाता है।तूने आज अच्छे अंक प्राप्त किए है,हमारा नाम रोशन किया है,हमसब को तेरे पैर छूँने चाहिए।बहुत-बहुत बड़ा उपकार किया हैं।
निशान्त:-"माँ,मेरा यह मतलब नहीं था।माँ,पैर छूँना ओल्ड़ फैशन है,आज मोर्डन जमाना हैं।हॉय,हैलो,ही किया जाता हैं।
सुनैना ने जोर का थप्पड़ जड़ा..:-तू बाहर क्या रहा।अपने रीत-रिवाज संस्कार सब भूल गया।कल को तो माँ बाप भी ओल्ड़ बूड़े हो जायेगे उनको भी बाहर का रास्ता दिखा देंगा।
द्रोण हाथ में कागज़ लेकर आयें:-रुक क्यों गई।..और मारो ...यह तुम्हारे लाड़-प्यार का परिणाम है।यह देखो मार्कशीट,मुझे उल्लू बनाकर ,जाने कहाँ गायब हो गया।मेरी आँखो में धूँल झोकेगा।
सुनैना:-आखिर इसने ऐसा क्या किया है?
द्रोण:-तुम्हारे लाल के 55%अंक आये हैं।ऐसे नम्बर से कहाँ दाखिला मिलेगा।मेरे किए कराये पर पानी फैर दिया।तुझमें और वृंदा में जमींन आसमाँ का फर्क है।वृंदा यू पी बोर्ड में पड़कर कॉलेज टॉप किया और तूने क्या किया?अब तू कही नहीं जायेगा,यही रहकर पड़ेगा।
निशान्त ने देखा ,पापा बहुत भड़क गये है,अभी शान्त नहीं किया तो और भड़क जायेगे।मुझे यही रहना पड़ जायेगा।यहाँ भी रहना कोई रहना हैं।धूँल,गंदगी,हर काम में रोक-टोक और वहाँ तो अपनी लाईफस्टाइल हैं।सोंच निशान्त सोंच,कोई चाल सोंच जिससे मुझे यहाँ रहना ही न पड़े।वहाँ तो अपनी ऐश ही ऐश हैं।क्या...सोचूँ?
निशान्त ने बनावटी आंसुओ से गंगा-जमुना बहा दी और पैरो से लिपट गया।गंगा हिमालय से निकले या आँखो से निकले,मन पावन हो ही जाता हैं।आँख से निकले आँसू पश्याताप करते है तो हिमालय से निकली गंगा मन की शुद्धी करती हैं।सबसे बड़ी भावना होती है,किस भावना से डुबकी लगा रहे हैं।अपने पाप कर्म के पश्याताप के लिए या अपने शरीर का मैल धोने के लिए।आँखो के आँसू यही क्रिया दुहराते हैं।आसुओ से छंल सकते है या पश्याताप करते है ,यह तो आँसू झलकाने बाले की भावना हैं।
निशान्त ने भी आंसू झलकाके द्रोण के पैरो में गिड़गिडा़या:-पापा आप मुझे एक अवसर और दे दो।हाईस्कूल की पढ़ाई के साथ कोच़िग भी करों।दोंनो एकसाथ कैसे करूँ?पापा अंक ही तो कम आयें है,कोचिंग तो चल ही रही हैं।आगे से ,मैं और मेहनत करूगाँ।
सुनैना:-हमारा ही तो बच्चा हैं।एक अवसर और दें दो।हाईस्कूल में ही तो कम आयें है,और मेहनत करके इण्टर में अच्छें अंक लायेगा। उसके ऊपर पढ़ाई का डबल-ड़बल बोझ है।
द्रोण:-सुनैना तुमको नहीं पता है,आगे चलकर हाईस्कूल से ही मैरिड़ बनना शुरु हो जाती हैं।
निशान्त:-पापा मैं दोबारा हाईस्कूल की परीक्षा दूँगा और अच्छे प्रतिशत ला कर रहूँगा।
सुनैना:-अब मान भी जाओ ना।
द्रोण:-ठीक हैं।इस बार,एक समय में एक ही काम करेंगा।इस बार पढ़ाई पर ध्यान देना हैं।कोच़िग भी हाईस्कूल के बाद ही शुरु होती हैं।सुनो...इसका सामान आज ही पैक कर दों।आज ही यहाँ से जायेगा।खूब खेल लिया क्रिकेट,अब पढ़ाई पर ध्यान दों।
वृंदा ने कॉलेज टॉप किया तो आँखे भी सपने देखने लगीं।जब पछ़ी के पर निकल आयें तब पछ़ी यही चाहता है कि मैं भी आकाश की उड़ान भरूँ।पहली सीड़ी पर कद़म रख दिया तो आखरी सीड़ी तक पहुँचने की तीव्र आकाँक्षा उत्तपन्न हो जाती हैं। अगर स्वप्न न हो तो सीखने की ललक जिज्ञाशा उत्तपन्न न होती।मानव और स्वप्न का सम्बन्ध प्रयोगशाला की जननी हैं।स्वप्न ही है जो आगे बढ़ने की चाह,राह दिखाते हैं।स्वप्न सब देखते है सच करने के लिए निरन्तर प्रयत्न करना ही पढ़ता हैं।कुछ स्वप्नो में जीकर खुश हो लेते तो कुछ स्वप्न को सच करने के लिए जी जान लगा देंते हैं।
डॉक्टर का स्वप्न ,वृंदा भी स्वप्न देखने लगीं।वृंदा भी चाहती थी कि तैयारी के लिए कोच़िग जॉईन करें।स्वप्न को पर तो पापा ही दे सकते थें।पापा का इंतजार था।
कृपा हाथ में मिठाई और कंधे पर बैग था।...और वृंदा वृंदा को पुकारने लगा।
रिया ने आव़ाज सुनी तो बाहर आ गई।कृपा को खुश देखकर बहुत प्रशन्न हुई।
रिया:-आज से पहले,मैंने आपको इतना प्रशन्न नहीं देखा।
कृपा:-मेरे मुखड़े पर जो खुशी है वो खुशी वृंदा के कारण हैं।तुम जानती हो,दस दिन काँटना कितना मुश्किल था।मैं क्या बताऊँ.....।वृंदा कहाँ है?वृंदा को बुलाओ!
रिया:-वृंदा,वृंदा ,देख कौन आया है।