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भंवर(जीवन का जाल)#उपन्यास ,भाग5

21 सितम्बर 2021

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रिया पूजा की थाली लिए भगवान के समक्ष वृंदा के लिए प्रार्थना कर रही है।आज वृंदा का हाईस्कूल का परीक्षाफल निकल रहा हैं।कक्ष से द्रुपत की रोने की आव़ाज आई।
रिया ने आव़ाज लगाई:-भानवी द्रुपत को पानी पिला ले,चुप कर ले,मैं अभी आई।
अंदर कमरें में भानवी और वृंदा थी:-जी माँ।
आज वृंदा पहली सीडी़ पर कद़म रखेगी,आज परख होगी,हीरा है या काँच का टुकड़ा।मन में अजीब-अजीब़ ख्याल आ रहे है,अगर मैं फैल हो गई तो माँ के अरमानों पर पानी फिर जायेंगा।पापा क्या कहेगे?सब ताने पर ताने देंगे।मैं क्या करूँ,अगर ऐसा हुआ?
तभी रिया प्रसाद लेकर आई:-ले वृंदा।
वृंदा अपने ख्आब में खोई हुई थी...
रिया ने वृंदा की बाजू पकड़के हिलाया....क्या सोंच रही है?
वृंदा:-कुछ नहीं।माँ मुझे बहुत डर लग रहा हैं।
रिया:-पेपर तो सही हुए है?या ड़र के कारण  झूठ कहाँ है?आज सब पता चल जायेगा कि तेरे मन में कितनी सच्चाई है।
वृंदा ने कोई उत्तर नहीं दिया।..और सिर नीचे झुका लिया।
रिया:-कितने बजे निकलेगा?
वृंदा:-माँ शाम को,शायद पाँच बजे।
रिया:-भानवी ला द्रुपत को दूध पिला दूँ।रोटी से उठ़ना मुश्किल है।उठ़ भी जाऊँ तो ताने और सुनों।"बहाना है,रोटी न बनानी पड़े,"जान-बूझकर,पहले से दूध नहीं पिला सकती ।ऊपर से सूरज आग उगल रहा है,नीचे चूल्हा।...औरत जी जान से करती रही लेकिन फिर काम-काज नहीं दिखता।हाय!मेरा नसीब।
वृंदा:-माँ,पापा कहाँ गये है?
रिया:-तेरे पापा कोल्ड़(शीतगृह)गये हैं।कह तो यही रहे थे कि आज शाम को मुम्बई जाना पड़े।
द्रुपत को दूध पिलाया,कृष्णा सो रहा था।भानवी दोंनो को देखते रहना,खेलने में मस्त मत रहना।..और इधर कृष्णा गिर न जायें।
भानवी:-हाँ।
रिया खाना बनाने चली गई।सुनैना भी चिन्तित थी क्योंकि निशान्त का भी परीक्षाफल निकलने को था।
निशान्त को कोई चिन्ता नहीं थी,जब से छुट्टी हुई तब से दोंनो भाई सुबह-शाम क्रिकेट- क्रिकेट ,इसके अतिरिक्त और कोई काम नहीं था।आज के दिन भी निश्चित होकर क्रिकेट खेल रहा था।
सुनैना ने बरोसी (ग्रामीण शब्द,उपलो को सुलगाकर मिट्टी की हॉण्ड़ी में दूध गर्म करने रखते है,धीरे ;धीरे गर्म होता है,मलाई भी मोटी पढ़ती है जिससे मक्खन अच्छा बनता हैं।)बरोसी पर चड़ी हॉण्डी़ से दो गिलास दूध निकालके ठण्डा़ करने रख दिया और आव़ाज देकर बुलाने लगीं।
निशान्त:-क्या है?माँ को अभी बुलाना था,कितना मजा आ रहा था।वेदान्त देखकर आना,क्यों बुला रही हैं?
वेदान्त:-भईया तुम्ही जाओं मैं क्यो जाऊँ।
निशान्त:-भाई कैसा चला जा ना।
सुनैना आवाज़ देते- देते घर से बाहर ही आ गई।क्यों तुम्हें सुनाई न देंत।कितनी जोर-जोर से आवाज दे रही हूँ,पडौस बाले सुन ले पर तेरे काँन में भनक न पड़त।जाओ दूध ठण्डा़ कर दिया है पीलों।कुछ दिन के लिए आया है,वहाँ जाने कैसा खाना-पीना है,देख कितना लट गया हैं।
निशान्त:-माँ मैंने कभी खाने पीने में कमी नहीं की।
सुनैना:-करनी भी नहीं चाहिए।आखिर तुम्हारे पापा दिन-रात मेहनत क्यों करते हैं।बच्चों के लिए ही तो करते हैं।हाँ निशान्त आज तेरा भी परीक्षाफल आने बाला हैं।
निशान्त:-माँ,आज मेरा नहीं।यू पी बोर्ड का निकल रहा हैं।मेरा कल निकलेगा।
सुनैना:-जा पहले दूध पीलो तब खेलना।
रिया को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता कि सुनैना के बच्चें तीनो टाईम दूध पिए,और हमारे बच्चों को एक बार,कभी-कभी वो भी नहीं मिलता।करने को हम और खाने को सब हैं।
भानवी खाने की थाली लेकर आई:-माँ खाना देंना।
रिया:-बस तुम्हारें नसीब में रोटी खाना ही लिखा है।लो खाओ और वृंदा को भी बुला लों।
भानवी:-वृंदा जीजी खाना खालों।
वृंदा को चिन्ता सताये जा रही थी ,भूख कहाँ थी।...माँ मुझे भूख नहीं हैं।
रिया:-खाना खा ले,जो होंगा शाम को देखा जायेगा।
वृंदा:-नहीं माँ।
रिया उठकर वृंदा के पास गई:-जो होगा वो शाम को देखेगें।अभी खाना खा लें।
वृंदा:-माँ दही दे दों।आज सब्जी अच्छी नहीं लग रही हैं।
रिया:-दूध से खा लें।
भानवी:-माँ,दही ही चाहिए।
रिया:-वृंदा रोटी देखना कही जल न जायें,मैं दही लाती हूँ।
रिया हॉण्डी़ से दही निकालने लगीं।जब सुनैना ने देखा कि रिया दही लेने आई है तो अपने कमरें में बच्चों के कपड़े छोड़कर जो तय कर रही थी,छोड़कर लम्बे-लम्बे कद़म रखें।...और पीछे खड़ी हो गई।
रिया ने दही के लिए हॉण्डी़ खोली,उस समय पीछे से सुनैना बोली:-रिया दही नीचे से लेना,जब मलाई मिलाया दही सब लेगें तो घ्री कहाँ से होंगा।
रिया को बात सहन नहीं हुई और पलट के जबाव दिया:-हमारे बच्चें थोड़ी सी मलाई खालें तो घ्री नहीं होगा।..और तुम अपने सपुत्रों को तीनो वख़त(समय)मलाई मुनक्का मिलाके दूध पिल़ाओ तो कभी घ्री कम नहीं होगा।...और घ्री से कनस्तर के कनस्तर भर जायेगें।
जब सुनैना ने सुनी तो तॉव आ गया:-तू मेरे लालो पर नज़र गड़ाती है,लगाती है।जो सूख-सूख कर छुआरा हो गये हैं।सीधे-सीधे कह क्यों नहीं देती,जितनी बैर निशान्त और वेदान्त दूध पिए ,उतनी ही बैर तेरी छोरी भी पिए।छोरी है छोरी बनके रहे।छोरे की बराबरी थोड़े ही कर पायेगी।...का पी- पी कर कोल्हू में पिरेगीं।
रिया:-हाँ,हाँ,उतनी ही बैर मेरी बेटियाँ भी पियेगीं।
सुनैना:-हाय!हाय! अब तू तुलना करेगीं।आज फैसला हो ही जायें।आ जाने दो देवर को और फैसला हो ही जायें।
रिया:-वो ही क्यों करें फैसला,जेठ जी को आ जाने दों और फैसला हो ही जाने दों।
रिया ने दही का कटौरा वही का वही छोड़ा और आकर रोटी सैकने लगीं।
बुदबुदा रही है,थोप-थोप कर खबाओ और हर खाने पहनने में,हर चींज में हाथ पकड़ लेती हैं।जैसे हर चींज पर महारानी का कब्जा हो,मुफ्त की नौकरानी है जो लगें रहों।
वृंदा अब इतनी छोटी नहीं थी कि कुछ समझ न सकें।सब कुछ जानती और समझती थीं।वृंदा ने माँ से कहाँ,"माँ आप क्यों जला रही हो।"हमकों नहीं खाना दूध दही,अगर भगवान ने चाहा तो खायेगे नहीं तो नहीं।"आप क्यों हमारे लिए तकलीफ़ सहती हैं,क्यों पीणा सहती हैं।आज आपने हमारे कारण जो जंग छेडी़ है,उसका अंत पता हैं।पापा किसी की भी गलती की सजा,आप पर निकालते हैं।जब हाथ उठ़ाते है ,हमको अच्छा नहीं लगता हैं।पापा वही देखते सुनते है जो ताई दिखाये सुनायें।
रिया:-जाने तेरे बाप को कौन सी घुट्टी पिला देती है जो उसके हुक्म के गुलाम हैं।भईयाँ भाभी का कथन पत्थर की लखी़र हैं।मेरी बात का तो कोई मोल ही नहीं हैं।
वृंदा:-माँ आप सब ऊपर बाले पर छोड़ दो,उसके घर देर है अंदेर नहीं।
रिया:-एक ही र खायें जा रहा है,आज शाम जब तेरे पापा आयेगें ,तब कौन सा वबण्डर संपूका (षंडयन्त्र)भूमिका बनाके रखेगीं।
वृंदा:-मुझको तो इसी बात का ड़र है कि आज खुशी की अपेक्षा कही कलेष दुख न मिलें।
द्रोपहर के बाद का समय
घर के फो़न की घंटी बजने लगीं...ट्रिन ट्रिन ट्रिन
वृंदा:-माँ मैं देखती हूँ,किसका है।
हैलो कौन?
कृपा:-हैलो वृंदा।
-हाँ पापा।
-वृंदा आज मैं घर नहीं आऊँगा,यही से बम्बई जा रहा हूँ।
-पापा घर से चले जातें।
-गाडी इस रोड़ से नहीं जायेगी,इस कारण यहीं से जाना है।मैं दीनू को भेज रहा हूँ,माँ से कहना कपड़े रखकर भेज दें।
-जी पापा।
-आज हाईस्कूल का रिजल्ट निकल रहा है।मुझे अपना रोल नम्बर देना,इटरनेंट पर तो आ गया है,सब अपने-अपने बच्चों का देख रहे हैं।मैं भी देखता हूँ।
-अभी देती हूँ।
रिया:-कौन है?
वृंदा:-माँ, पापा है।घर नहीं आयेगे बैग तैयार करके दीनू को दे देना।लो आप बात करों।
रिया:-आप घर से चले जातें।
-गाडी़ उधर से नहीं जायेगी।यह बताओ कृष्णा और द्रुपत क्या कर रहे है?
-सो रहे हैं।
वृंदा ने अपना रोल नम्बर बता दिया,उधर सुनैना काँन लगाके सुनने लगीं।कई मेरे विरूद्ध भड़का तो नहीं रही है,पट्टी तो नहीं पढ़ा रही हैं।अधिकाश औरतो को काँन लगाकर सुनने में आन्नद मिलता है।
वृंदा मन ही मन में भगवान का स्मरण कर रही थी।रिया ने वृदा के सिर पर हाथ फैरा,तू परेशान क्यों हो रही है?
ट्रिन ट्रिन ट्रिन
रिया:-तेरे पापा का ही होगा,उठ़ा तो सहीं।
वृंदा:-जी पापा।
कृपा:-अपनी मम्मी को फोंन देना।
वृंदा:-मम्मी पापा आपसे बात करना चाहते हैं।
वृंदा को डर लगने लगा,शायद कोई बुरी खब़र है जिसके लिए माँ को डॉट लगेगी।पापा कही यह तो नहीं कहना चाहते,सब तुम्हारी लापवाई का नतीजा हैं।
कृपा:-सुनो..
रिया:-हाँ,
-तुम्हारी  बिटियाँ ने फस्ट नहीं,बल्कि स्कूल टॉप किया है।पता है 600में से 530नम्बर आयें हैं।यू पी बोर्ड में।
रिया:-अकेली मेरी बेटी थोड़े ही है, आपकी भी है।
-नहीं।सिर्फ तुम्हारी मेहनत का परिणाम है।वृंदा को फोन देना।
-वृंदा मुझे तुमपर नाज है,आज तूने मेरा कद ऊँचा कर दिया।यह दिखा दिया कि बेटी भी बेटे से कम नहीं है।बोल तेरे लिए क्या लाऊँ?
-पापा मुझे कुछ नहीं चाहिए,माँ के कारण ही हमने अंक पाये है,आप माँ के लिए ही कुछ लाना।
अम्मा भी आ जाती है:-किसका फोन है?
वृंदा:-पापा का।
-तेरी अम्मा हैं।
-हाँ।
-फोन देना।
-लो अम्मा।
-अम्मा आपकी नातिन ने स्कूल टॉप किया हैं।
-सच।मैं जानती थी वृंदा एक दिन हमारे खा़नदान का नाम रोशन करेगी।मैं मुहल्ले में मिठ़ाई बाटूँगी।
-अम्मा मैं फौन रखता हूँ।गाड़ी निकलने बाली हैं।
-अच्छा।जाने से पहले भगवान के चरण छू लेना।तेरी यात्रा मंगलमय हों।
जब सुनैना ने सुना तो आग और भड़क गई।अपनी ज्वाला की लपटे कहाँ फैलाये।अपना क्रोध प्राग्रिया पर निकालने लगीं।सौ रही थी।
सुनैना:-तू यहाँ पसरी -पसरी सोती रह और बाहर वृंदा -वृंदा के गुणगान जायें जा रहें हैं।मेरी किस्मत में तू हैं।
सुनैना का आक्रोश फूट पड़ा दे थप्पड़ दे थप्पड़,हाथ थक गयें तो चप्पल से मिटाई करने लगीं।
जब प्राग्रिया के रोने की आव़ाज सुनी तो अम्मा और वृंदा आ गयें।
अम्मा:-छोरी को क्यों मार रही हैं।आखिर बात का हैं?काहि, किसका गुस्सा छोरी पर उतार रही हों?
सुनैना:-मेरे नसीब में ही कूड़ा करकट लिखो हैं।
अम्मा:-सब एकसे थोडे़ ही होते हैं।का मार मारके बुद्धी आ जायेगीं।
सुनैना:-हमारे बच्चे है, चाहि मारे कूट्टे कोई बीच में न बोलेगा।
अम्मा:-तेरे अकेले के तो नहीं है,द्रोण के भी हैं।
अम्मा प्राग्रिया को अपने साथ दूसरे कक्ष में ले आई।
वृंदा को बहुत तकलीफ़ हुई:-अगर मैं कही फैल हो जाती तो ताई जाने क्या-क्या सुनाती,सुनते-सुनते काँन पक जातें।जब मैं पास हुई हूँ तब अपना क्रोध प्राग्रिया दी पर निकाल रही हैं।आखिर दी का क्या दोष।दी तो मुझसे जायदा पढ़ती है,ताई पल-पल हरपल डाँटती रहती है।ताई बच्चों में भेद क्यों करती हैं?वेदान्त और निशान्त को कभी मार नहीं पढ़ती। मन में सोच रही थी।
अम्मा हल्दी डा़लकर दूध लाई...ले पीले।
सुनैना अपनी भडा़स प्राग्रिया पर ही निकालती थी।इस कारण से प्राग्रिया हमेशा सहमी-सहमी, डरी -डरी सी रहती थी।रिया ने कभी वृंदा,भानवी,और प्राग्रिया में भेद नहीं किया।प्राग्रिया इधर-उधर देखकर कही माँ तो नहीं देख रही तब रिया के पास आती थी।अपने मन की बात कह देती थी।रिया भी इच्छा पूरी कर देती थी। अम्मा ने प्राग्रिया को अपने पास सुलाया।जब भी मार पढ़ती थी तब अम्मा ही बचाती थी।
सुबह-सुबह सुनैना का दिमांग ठण्डा़ हुआ।निशान्त का परिणाम आने बाला था,बैचेनी बढ़ने लगी।डर तो इस कारण से था कि वृंदा से कम अंक आयें तो खिल्ली उड़ाने का रिया को अवसर मिल जायेगा।सामने तो हिम्मत नहीं है,लेकिन घुमा फिराके बात तो कह ही देती हैं।सीधी नहीं है टेड़ी चाल चलती हैं।कृपा सुनता नहीं है इसलिए; जिस दिन सुनने लगें उस दिन सीधी चाल चलने लगेगी।
द्रोण:-कहाँ है तुम्हारा सपुत्र?आज परिणान निकल रहा हैं।निशान्त,निशान्त....
भागकर आया:-जी पापा।
द्रोण:-पसीने में लथपथ क्यों हो?
निशान्त:-वो...पापा..
द्रोण:-सुबह -सुबह से किक्रेट खेलना शुरू....आज परिणान निकलेगा।देखूँ तो सही शहर में रहकर करते क्या हो?सारे दिन खेलते रहते हो या पढ़ाई भी करते हों।
सुनैना:-पढ़ाई करता होगा।आप भी ना बस,अपने लाल पर विश्वास नहीं हैं।
द्रोण:-तुम्हारे ही लाल,आज पता चल जायेगा।मैं साथ मैं चलूँगा।
निशान्त के मन में डर उतपन्न होने लगा,जानता था ।बहाना खोजने लगा जिससे द्रोण साथ न चलें।:-पापा मैं देख आऊँगा।आप कोल्डस्टोरेज जाहिए(शीतग्रह)
द्रोण:-मुझे कही नही जाना।आज तो बस परिणाम जानना है कि टॉप करते हो या नाँक कटाँते हों।वृंदा ने कृपा का गाँव में सिर ऊँचा कर दिया।तुम क्या गुन खिलाते हों।
निशान्त:-भगवान याद आने लगें,कोई तो उपाय दे दो ताकि पापा यहाँ से चले जायें।आज बच नहीं पाऊँगा मेरी पोल-पट्टी(भेद)खुल जायेगा।
द्रोण कमरे से कपड़े पहन कर आ गया:-चलो,यहाँ तो इण्टरनेट नही है,कोल्ड के पास ,क्या करते है?हाँ ,साईबर कैफे वहाँ जाकर देखते हैं।
निशान्त न चाहकर भी द्रोण के साथ चल रहा था।मोटर साईकल पर बैठा था,मन उपाय खोजने में था।
द्रोण एक दुकान पर रुका:-निशान्त तुम यही रुको मैं अभी आया।कुछ काम हैं,कही जाना मत।
निशान्त के दिमांग मे षड़यन्त्र आया।अगर मैं पापा को मिलूँ ही नहीं तो परिणाम मेरी मुट्ठी में होगा।खेल मेरे हाथों में होगा,मै जो चाहूँगा बैसा ही होंगा।
निशान्त ने जैसा सोंचा था,वैसा ही किया।..और वहाँ से चकमा देकर निकल आया।द्रोण  इधर-उधर निशान्त को खोजता रहा लेकिन निशान्त नहीं मिला।
निशान्त अपनी चाल पर बहुत खुश था,जैसा सोंचा था वैसा ही हुआ।शाम को अपना परिणाम लेकर पहुँच गया।
निशान्त:-"माँ, माँ, देख ना।तेरा लाल भी किसी से कम नहीं है,हमने भी बाजी मार ली।
सुनैना:-सच?
निशान्त:-हाँ देख,80%अंक प्राप्त किए हैं।
सुनैना:-अम्मा जी देखों,इस घर में बेटे ही आगें हैं।छोरी पीछे है और रहेगीं।मैं अभी लड्डू मंगवाती हूँ।भगवान लाख-लाख धन्यवाद।तेरे पापा तो तेरे साथ गयें थे,फिर कहाँ रह गयें?
निशान्त:-"माँ,कहके तो गये थे कि मैं थोड़ी देर में आ जाऊँगा।
सुनैना:-मैं दही लेकर आती हूँ।दही खाना,आने बाले कल के लिए सुखदः संदेश लेकर आती हैं।जा सबके पैर छूकर आर्शीवाद लें।दुश्मन के भी पैर छूलो तो मुख से आर्शीवाद ही निकलेगा।
निशान्त को पैर छूना अच्छा नहीं लगता था।तीज त्यौहारों पर भी सौ बार कहने पर छूता था।पैर छूने में अपनी प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलते देखता था।ऐसा महसूस करता है कि सब हमसे बड़े है,हम ही छोटे हैं।आज के बच्चें अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं।हॉय,हैलो,हाथ मिलाना अच्छा लगता हैं।
               जब हम हाथ मिलाकर अभिन्नदन करते है तो उत्तर में हैलो ही निकलता हैं।हर जगह पैर छूना उचित नही हैं।दफ्तर में नमस्कार ,हाथ मिलाना ही उचित हैं।परिवार के सदस्यों,रिश्तेदारों से हैलो,हॉय कहना संस्कृति नहीं हैं।बच्चें बड़ो के पैर छूते है तब आर्शीवाद ह्रदय से ही निकलता है।वैज्ञानिक तथ्य है कि पैरो की नस ह्रदय से जुडी़ होती है जिससे प्रश्न्न ह्रदय के शब्द मुख से निकलते हैं।भगवान दीर्घ आयु प्रदान करें।खानदान का नाम रोशन करों।तेजस्वी बनों।खूब तरक्की करों।यह शब्द पहले से भूमिका का प्रतिनिधत्व नहीं करते हैं।यह तो ह्रदय की प्रश्नता से निकले शब्द हैं।बच्चो को आर्शीबाद मिलता है,कुछ करने की ऊर्जा का संचार उत्तपन्न होता हैं।बड़ो को भी गर्व होता है कि बच्चें सम्मान करते हैं।बच्चो के साथ माता-पिता का नाम भी सम्मान से लिया जाता हैं।बच्चें कहाँ सोंचते है?किसी के सामने झुकना ऐसा लगता है कि किसी के सामने भीख माँग रहे हैं।आने बाले समय में संस्कृति कही खो न जायें।हमें बचाना ही होगा और पैर छूना झुकना नहीं है ,यह बताना होगा कि एक सम्मान हैं।आर्शीबाद के रूप में शरीर को कवज मिलेगा।
निशान्त भी उन बच्चों में से एक था।माँ ने कहाँ,तो पलट के जवाब दिया कि माँ पैर छूने और हमारे अंक से क्या सम्बन्ध?मेहनत मैंने की तो फिर सबके पैर क्यों छूँना।
निशान्त की ऐसी बाते सुनी तो सुनैना को क्रोध आया:-अपने संस्कार भी भूल गया।इसका क्या मतलब हम पैर क्यों छुँए?भगवान ने संसार की रचना की,हमको जन्म दिया,खाने को रोटी दी,पहनने को वस्त्र दिए,भगवान ने हमको सबकुछ दिया हैं।हमारा भी फर्ज बनता है भगवान को धन्यवाद दें।धन्यवाद पैर छूँकर नमन करके दिया जाता है।तूने आज अच्छे अंक प्राप्त किए है,हमारा नाम रोशन किया है,हमसब को तेरे पैर छूँने चाहिए।बहुत-बहुत बड़ा उपकार किया हैं।
निशान्त:-"माँ,मेरा यह मतलब नहीं था।माँ,पैर छूँना ओल्ड़ फैशन है,आज मोर्डन जमाना हैं।हॉय,हैलो,ही किया जाता हैं।
सुनैना ने जोर का थप्पड़ जड़ा..:-तू बाहर क्या रहा।अपने रीत-रिवाज संस्कार सब भूल गया।कल को तो माँ बाप भी ओल्ड़ बूड़े हो जायेगे उनको भी बाहर का रास्ता दिखा देंगा।
द्रोण हाथ में कागज़ लेकर आयें:-रुक क्यों गई।..और मारो ...यह तुम्हारे लाड़-प्यार का परिणाम है।यह देखो मार्कशीट,मुझे उल्लू बनाकर ,जाने कहाँ गायब हो गया।मेरी आँखो में धूँल झोकेगा।
सुनैना:-आखिर इसने ऐसा क्या किया है?
द्रोण:-तुम्हारे लाल के 55%अंक आये हैं।ऐसे नम्बर से कहाँ दाखिला मिलेगा।मेरे किए कराये पर पानी फैर दिया।तुझमें और वृंदा में जमींन आसमाँ का फर्क है।वृंदा यू पी बोर्ड में पड़कर कॉलेज टॉप किया और तूने क्या किया?अब तू कही नहीं जायेगा,यही रहकर पड़ेगा।
निशान्त ने देखा ,पापा बहुत भड़क गये है,अभी शान्त नहीं किया तो और भड़क जायेगे।मुझे यही रहना पड़ जायेगा।यहाँ भी रहना कोई रहना हैं।धूँल,गंदगी,हर काम में रोक-टोक और वहाँ तो अपनी लाईफस्टाइल हैं।सोंच निशान्त सोंच,कोई चाल सोंच जिससे मुझे यहाँ रहना ही न पड़े।वहाँ तो अपनी ऐश ही ऐश हैं।क्या...सोचूँ?
निशान्त ने बनावटी आंसुओ से गंगा-जमुना बहा दी और पैरो से लिपट गया।गंगा हिमालय से निकले या आँखो से निकले,मन पावन हो ही जाता हैं।आँख से निकले आँसू पश्याताप करते है तो हिमालय से निकली गंगा मन की शुद्धी करती हैं।सबसे बड़ी भावना होती है,किस भावना से डुबकी लगा रहे हैं।अपने पाप कर्म के पश्याताप के लिए या अपने शरीर का मैल धोने के लिए।आँखो के आँसू यही क्रिया दुहराते हैं।आसुओ से छंल सकते है या पश्याताप करते है ,यह तो आँसू झलकाने बाले की भावना हैं।
निशान्त ने भी आंसू झलकाके द्रोण के पैरो में गिड़गिडा़या:-पापा आप मुझे एक अवसर और दे दो।हाईस्कूल की पढ़ाई के साथ कोच़िग भी करों।दोंनो एकसाथ कैसे करूँ?पापा अंक ही तो कम आयें है,कोचिंग तो चल ही रही हैं।आगे से ,मैं और मेहनत करूगाँ।
सुनैना:-हमारा ही तो बच्चा हैं।एक अवसर और दें दो।हाईस्कूल में ही तो कम आयें है,और मेहनत करके इण्टर में अच्छें अंक लायेगा। उसके ऊपर पढ़ाई का डबल-ड़बल बोझ है।
द्रोण:-सुनैना तुमको नहीं पता है,आगे चलकर हाईस्कूल से ही मैरिड़ बनना शुरु हो जाती हैं।
निशान्त:-पापा मैं दोबारा हाईस्कूल की  परीक्षा दूँगा और अच्छे प्रतिशत ला कर रहूँगा।
सुनैना:-अब मान भी जाओ ना।
द्रोण:-ठीक हैं।इस बार,एक समय में एक ही काम करेंगा।इस बार पढ़ाई पर ध्यान देना हैं।कोच़िग भी हाईस्कूल के बाद ही शुरु होती हैं।सुनो...इसका सामान आज ही पैक कर दों।आज ही यहाँ से जायेगा।खूब खेल लिया क्रिकेट,अब पढ़ाई पर ध्यान दों।
 
        वृंदा ने कॉलेज टॉप किया तो आँखे भी सपने देखने लगीं।जब पछ़ी के पर निकल आयें तब पछ़ी यही चाहता है कि मैं भी आकाश की उड़ान भरूँ।पहली सीड़ी पर कद़म रख दिया तो आखरी सीड़ी तक पहुँचने की तीव्र आकाँक्षा उत्तपन्न हो जाती हैं। अगर स्वप्न न हो तो सीखने की ललक जिज्ञाशा उत्तपन्न न होती।मानव और स्वप्न का सम्बन्ध प्रयोगशाला की जननी हैं।स्वप्न ही है जो आगे बढ़ने की चाह,राह दिखाते हैं।स्वप्न सब देखते है सच करने के लिए निरन्तर प्रयत्न करना ही पढ़ता हैं।कुछ स्वप्नो में जीकर खुश हो लेते तो कुछ स्वप्न को सच करने के लिए जी जान लगा देंते हैं।
डॉक्टर का स्वप्न ,वृंदा भी स्वप्न देखने लगीं।वृंदा भी चाहती थी कि तैयारी के लिए कोच़िग जॉईन करें।स्वप्न को पर तो पापा ही दे सकते थें।पापा का इंतजार था।
कृपा हाथ में मिठाई और कंधे पर बैग था।...और वृंदा वृंदा को पुकारने लगा।
रिया ने  आव़ाज सुनी तो बाहर आ गई।कृपा को खुश देखकर बहुत प्रशन्न हुई।
रिया:-आज से पहले,मैंने आपको इतना प्रशन्न नहीं देखा।
कृपा:-मेरे मुखड़े पर जो खुशी है वो खुशी वृंदा के कारण हैं।तुम जानती हो,दस दिन काँटना कितना मुश्किल था।मैं क्या बताऊँ.....।वृंदा कहाँ है?वृंदा को बुलाओ!
रिया:-वृंदा,वृंदा ,देख कौन आया है।

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भँवर(उपन्यास)
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ईश्वर ने श्रष्ठी की श्रेष्ठ रचना की हैं।भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जन्तु बनायें है।सबसे प्रखर बुद्धि से परिपूर्ण विकसित मानव की रचना की हैं।अपनी बुद्धि, विवेक,साहस का प्रयोग करके असम्भव को सम्भव करने में सक्षम रहा है ।...और भविष्य में होता रहेगा। शदियों तक एक कल्पना थी ,आज साक्षात्कार से परिचय कराया हैं।मानव आवश्यकताओं के अनुसार नये-नये प्रयोग करता रहा है और असफलताओ से सफलता का लक्ष्य प्राप्त किया हैं।स्वार्थ सोंच निस्वार्थ पर पूर्ण विराम लगा देती हैं।जहाँ पर स्वार्थ का जन्म हुआ, वहाँ पर लोभ,मोह, माया,का अंकुर फूटने लगते हैं।हम और हमारा परिवार ,परिवार को खुशी मिलती है तो खुश होते है दुख मिलता है तो दुखी होते हैं।ईश्वर ने मानव को मानवता कल्याण के लिए भेजा था।असाय जीव जन्तु,मानव की रक्षा करना।मानव पर ही,जीव प्रकृति की रक्षा सुरक्षा का दायत्व होता हैं।अपने विवेक से पर्यावरण को संतुलन बनायें रखे,जीव को सुरक्षा प्रदान करें।संसार में ऐसा ओर कोई नहीं है जो पर्यावरण को संतुलन बनायें रखें।एक जीव पर दूसरे जीव का चक्रण बना हुआ है।एक जीव दूसरे जीव की सुरक्षा करें ,शरण दे ,ऐसा कहाँ होता हैं?अगर यह सुनने को मिले तो मात्र संयोग ही कहाँ जायेगा।ईश्वर ने मानव को ही दायत्व दिया है कि पर्यावरण को संतुलित बनायें रखें।लोभ,मोह,लालच के चक्र में जकड़ जाता है तो मानवता स्वार्थ में बदल जाती है और सर्व हिताय की जगह ,स्वार्थ हिताय ही नज़र आता है।जब-जब ऐसा होता है तो घर-घर महाभारत की रचना जन्म ले लेती हैं।मायावी दुनियाँ के भंवर में फँस गया तो फिर निकल पाना असम्भव हैं।भंवर में फँसे असख्य है और प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं।जब तक स्वार्थ है तब तक भंवर है और इससे निकल पाना आसान नहीं हैं।
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भंवर(उपन्यास)

15 सितम्बर 2021
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<div>पात्र</div><div>कृपा:-(1)वृंदा(2)भानवी(3)द्रुपत(4)किसना</div><div>द्रोण:-(1)निशान्त(2)प्राग्रिय

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भँवर(उपन्यास)जीवन का जाल

16 सितम्बर 2021
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<div>बच्चें अपने कमरें में बैठकर बातें कर रहे है।नज़र दरबाजे पर टिकी है।</div><div>भानवी:-दीदी दीदी !

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भंवर"जीवन का जाल"उपन्यास भाग(3)

17 सितम्बर 2021
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<div>(3)</div><div>सुनैना आयने के सामने बैठी अपने रूप को निहार रही हैं।तरह-तरह की बिन्दी लगाके देख च

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भंवर(एक बदलाव)उपन्यास ,भाग4

20 सितम्बर 2021
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<div>शादी का दिन आ ही जाता हैं।मेहमानों का आना शुरू हो जाता हैं।साज-सज्जा,पकवानो को देखकर मन में अनग

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भंवर(जीवन का जाल)#उपन्यास ,भाग5

21 सितम्बर 2021
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<div>रिया पूजा की थाली लिए भगवान के समक्ष वृंदा के लिए प्रार्थना कर रही है।आज वृंदा का हाईस्कूल का प

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भँवर "जीवन का जाल"भाग6

12 मार्च 2022
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रिया ने वृंदा को पुकारा,वृंदा ,देख कौन आया है। वृंदा कमरे से बाहर आई:-पापा नमस्ते।बहुत प्रशन्न हुई। कृपा ने कहा,मेरे पास आ।आज मैं बहुत-बहुत खुश हूँ।...और स्नेह भरे हाथों से सिर पर हाथ रखा।वृंदा तूने म

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भँवर "जीवन का जाल"भाग7

12 मार्च 2022
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रिया बच्चों की मालिस कर रही हैं।दोंनो बच्चों को हँसाने के लिए तरह-तरह मुख को बनाती है और बहलाती भी हैं...मेरी रानी बेटी,मेरा राजा बेटा तो बहुत बहादुर हैं।देखो,देखो,कैसे मुस्करा रहा हैं।घ्री से मालिस क

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भँवर"जीवन का जाल"भाग8

12 मार्च 2022
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तभी कृपा को याद आया....हाँ !पिताजी मेरे नाम कुछ रुपयें जमा कर गयें थें।उन पैसो से ही वृंदा के सपने पूरा करूगाँ।पिताजी ने भाई को बताने से मना किया था।शायद इसी काम के लिए जमा किए होगें।वृंदा सपने अवश्य

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भँवर" उपन्यास "जीवन का जाल"भाग 9

14 मार्च 2022
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तुम्हारी अम्मा ही मुसीबत की जड़ है। -क्या हुआ?तनिक विस्तार से बताओगी। -अब अम्मा वृंदा को डॉक्टर बनवा कर ही छोड़ेगी। -अम्मा के पैसे है,चाहि कुछ करें। -क्यों न कुछ कहें।एक नातिन पर धन लुटाये और हम ऐसे ही

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भँवर "जीवन का जाल"भाग10

14 मार्च 2022
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कृपा ने लम्बे-लम्बे कदम रखे और बाहर आ गया:-अम्मा हमको साथ ले जाती।गर्मी भी प्रचण्ड़ है, आपकी भी तबियत ठीक कहाँ रहती हैं।कुछ खाकर भी नहीं गई। अम्मा ने कहा,शान्त,शान्त! मुझे कुछ नहीं हुआ हैं।वकील साहब आप

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भँवर "जीवन का जाल"भाग11

14 मार्च 2022
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रिया को सुनैना की बात रह रहकर,हाथ में फँसे तिनके के समान कष्ट दे रही थी।डर भी था कभी कृपा का आक्रोश मुझपर न फूट पड़े। रिया के मन में तूफा़न उठ रहा है कि कहूँ कि न कहूँ? आखिर निश्चय कर ही लिया:-एजी,वृंद

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भँवर"जीवन का जाल"भाग12

14 मार्च 2022
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मेरे दो बेटे है तो दोनों का हिस्सा होंगा।कृपा के एक ही छोरा है तो एक ही हिस्सा होंगा। -कृपा इसके लिए राजी होंगा? -अरे आप भी...कृपा अपने पक्ष में ही होंगा,इससे पहले कभी मुहँ खोला है जो अब खोलेगा। सुनैन

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भँवर"जीवन का जाल"भाग13

14 मार्च 2022
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शुगन्धा ने क्रोध दिखाते हुए कहा,राग्रया राज सुना नहीं...पापा ने क्या कहा? राग्रया और राज तम कुमार की क्रोध से भरी लाल आँखो को देखकर थर-थर काँपते थें।मार से जायदा क्रोध ही प्रचण्ड़ था। &nbsp

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भँवर "जीवन का जाल"भाग14

14 मार्च 2022
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बच्चों को स्कूल छोड़ने साईकल पर जाता हूँ,तूने सोंचा है मुझे कितनी शर्म महसूस होती हैं।तेरे मायके बालों को दो लाख दिए है अगर होते तो कल ही मोटर साईकल दरबाजे पर खड़ी होती। -तो इसमें मेरा क्या दोष? -नहीं !

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भँवर "जीवन का जाल"भाग 15

14 मार्च 2022
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बच्चों को स्कूल छोड़ने साईकल पर जाता हूँ,तूने सोंचा है मुझे कितनी शर्म महसूस होती हैं।तेरे मायके बालों को दो लाख दिए है अगर होते तो कल ही मोटर साईकल दरबाजे पर खड़ी होती। -तो इसमें मेरा क्या दोष? -नहीं !

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भँवर"जीवन का जाल"भाग 16

15 मार्च 2022
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तम ने नज़र नीचे करके कहा, जो ठीक लगा वो किया।मुझपर क्रोध भावी था,उठ गया हाथ अब क्या करूँ। पंचायत:-ऐसे-कैसे अपना क्रोध शुगन्धा पर निकाल सकते हों।कोर्ट कचहरी में पहुँच जाते तो समझो तुम्हारी धन सम्पदा सब

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भँवर "जीवन का जाल"भाग 17

16 मार्च 2022
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तम कुमार ने क्रोद्ध में कहा,सस्कार की बाते मुझसे मत किया कर।अब ,बस उस घर में कदम़ नहीं रखेगी। &nbs

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भँवर"जीवन का जाल"भाग18

16 मार्च 2022
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सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

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भँवर(जीवन का जाल)भाग19

21 मार्च 2022
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सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

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भँवर(जीवन का जाल)भाग 20

21 मार्च 2022
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सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

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भँवर(जीवन का जाल)भाग21

21 मार्च 2022
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सुबह का सूरज कृपा के लिए चुनौती लेकर आया।समझ में नहीं आ रहा था ,कैसे,कहाँ से आरम्भ करना हैं।धन के अभाव में गृहस्थी को कैसे चलाऊँ।चारपाई पर बैठकर सूरज की खिलती रोशनी को निहार रहा था।...सबेरे-सबेरे कौन

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भँवर(जीवन का जाल)भाग21

21 मार्च 2022
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सबकी आँखो में वृंदा के लिए सपने थे।सबको वृंदा पर विश्वास था।जाने की तैयारी होने लगीं।रिया वृंदा का सामान रखने लगीं।...और शिक्षा भी दे रही थी।जब बच्चे बचपन से किशोर अवस्था में कद़म रखने लगें तो माँ का

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भँवर"जीवन का जाल"भाग22

22 मार्च 2022
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द्रोण के घर जलेबी और समौसे तीसरे चौथे दिन घर में आ ही जातें।दूसरी तरफ़ कृपा के घर पन्द्रह दिन में एक बार भूखे पेट सोना पड़ता।कृपा को दिन-रात चिन्ता सतायें रहती कि घर का खर्चा कैसे चलेगा।जैसे- तैसे व्यवस

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भँवर"जीवन का जाल"भाग23

22 मार्च 2022
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कृपा बरामदे में बैठकर सब कुछ देख रहा था।(आकर अम्मा के पैर पकड़ लिए।:-अपने अश्कों से चरण बंदना करने लगा।)अब मैं पंचायत को घर में देखना नहीं चाहता हूँ।पंचायत निर्णय करें,माँ का बंटवारा हो,इससे शर्म

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भँवर "जीवन का जाल"भाग23

22 मार्च 2022
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अम्मा ने जब सुना तो कमरे में आई:-बहू तू कैसी शिक्षा दें रही हैं?सजा देने की बजाय उल्टा ही पाठ पढ़ा रही हैं।जो आज सिखा रही है, कल तुझपर भी किया जायेगा।क्यों बबूल का पेड़ बना रही हैं।सबके लिए नासूर बन जाय

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भँवर"जीवन का जाल"भाग24

22 मार्च 2022
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कॉलेज का पहला दिन धोखा़ देने बाली चाल के साथ प्रवेश किया।कॉलेज के मुख्य द्वार पर दस-बारह युवको का झुण्ड़ जो कली से बन रही फूल किशोरी को ताड़ने की फि़राक में रहते हैं।कौन सी किशोरी पहली नज़र में ही मोहिनी

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भँवर"जीवन का जाल"भाग25

26 मार्च 2022
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वृंदा ने पलट कर देखा तो प्रोफेशर निहार सिंह थें। वृंदा ने अचरज से पूछाँ,सर आप !आप यहाँ कैसे? निहार सिंह ने कहा,वृंदा मैने पहली नज़र में ही परख लिया था कि तुम हीरा हो हीरा।भविष्य में अपनी चमक से भारत का

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भँवर"जीवन का जाल"भाग26

26 मार्च 2022
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वृंदा पहेली क्यों बुझा रही हो?स्पष्ट शब्दों में कहो,जो भी कहना चाहती हों। :-सर स्पष्ट शब्दों में मेरा निर्णय हैं।आज के बाद ख्याती मेरे साथ रहेगी।कॉलेज में पाँच से छः घंटे ही पढ़ती हूँ।बाकी समय ख्याती क

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भँवर"जीवन का जाल"भाग27

26 मार्च 2022
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***** यहाँ वृंदा की दिशा ही बदल गई।जो पैरामैड़ीकल डॉक्टर बनने की जगह आयुर्वेदिक डॉक्टर(वैध)बनने की दिशा में मुँड़ गई। गाँव में स्थति बिगड़ती जा रही थी।दो महीने से अम्मा की पेंशन नहीं आई थी।कमाने का एक ही

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भँवर"जीवन का जाल"भाग28

26 मार्च 2022
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अपने पास सबकुछ होते हुए भी खुश नहीं है अपितु दुख इसका है कि दो वखत की रोटी क्यों है?विश्वास और रक्तसम्बधी रिश्ते नाते पीणा का कारण क्यों बनते हैं।गुलाब के बीच काँटे का किरदार निभाते है,पुष्प के लिए अभ

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भँवर"जीवन का जाल"भाग29

27 मार्च 2022
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हमारे पास जायदा पैसे नहीं है।तुझको तो पता ही हैं।सौ रूपये में क्या आयेगा? माँ सौ रूपये मैं तो बहुत अच्छा गिफ्ट आ जायेगा। सुन ,जायदा ऊधम(शौर-गुल्ला)मत करना।द्रुपत और किसन को सभाल लेना।दोंनो ही जैसे-जैस

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भँवर"जीवन का जाल"भाग30

27 मार्च 2022
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कृपा ने बच्चो को पुकारा,किसन द्रुपत... किसन भागके कृपा के पैरो से लिपट गया। कृपा ने किसन को गोदी में ले लिया।:-अब घर चलें। शिल्पी:-अंकल जी इतनी जल्दी,बच्चे बहुत खुश हैं।थोड़ी देर और रूक जाओं।अभी केक भी

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भँवर"जीवन का जाल"भाग31

27 मार्च 2022
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नील तो चले गयें,भानवी को डर लग रहा था।आंखे नीची करके कमरे में जाने लगीं।रिया पीछे-पीछे आ रही थी।भानवी मन में सोच रही थी,माँ डाँटेगी।जैसा सोच रही थी ,वैसा कुछ भी नहीं हुआ।रिया झाडू लगाने लगीं।इस समय सम

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भँवर"जीवन का जाल"भाग32

27 मार्च 2022
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भानवी उठ़ी और पास में रखी खेत की दवा पी ली।जब जहर ने अपना असर दिखाया तो भानवी बैचेन होने लगीं।न मुख से आव़ाज निकल रही,न खड़ी हो पा रही थी।छटपटा रही थी,गला भी सूख रहा था।लड़खड़ाते कदमों के साथ रसोई घर में

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भँवर"जीवन का जाल"भाग33

27 मार्च 2022
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छँटवी:-हाँ !भानवी सीधी-साधी दिखती थी ,बैसी नहीं हैं।अपनी सहेली के यहाँ जन्मदिन पर गई थी।रात में वही रूक गई।रात-भर गुलछर्रे उड़ाये होगें,और न जाने क्या-क्या किया होंगा।सच कड़वा ही लगता हैं। सुनैना ने मेर

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भँवर"जीवन का जाल"भाग34

27 मार्च 2022
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मैंने तो कोई तार टेलीफोन नहीं किया।जानकर तू परेशान हो जायेगी।जो होना था वो हो चुका।जाने बाले कभी लौट कर नहीं आते है।बस जो है उसको सभाल कर रखना हैं। पापा मुझे फोन ताऊँजी ने किया था। मुझे पता था,यह सब भ

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भँवर"जीवन का जाल"भाग35

3 अप्रैल 2022
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कृपा ने कहा,"वृंदा चुप हो जा।" वृंदा:-पापा आज आप मुझे रोको मत।जुर्म करने से जायदा जुर्म सहना महापाप हैं।यह धर्म युद्ध है,इस युद्ध का अंत हो ही जाने दों। सुनैना ने कमर पर हाथ रखकर कहा,चोरी और ऊपर से सी

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भँवर "जीवन का जाल"भाग36

3 अप्रैल 2022
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सुनैना की जुबान लड़खडा़ने लगी....मैं ...क्यों दूँ। साधु:-तो तुम्हें अधिकार किसने दिया किसी के ऊपर भी आक्षेप लगाना। सुनैना मुँह टेड़ा करके अपने घर चली गई। ग्रामबासी एक साथ कहने लगें।:-महाराज मुझसे भूल हो

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भँवर"जीवन का जाल"भाग37

3 अप्रैल 2022
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सुनैना की जुबान लड़खडा़ने लगी....मैं ...क्यों दूँ। साधु:-तो तुम्हें अधिकार किसने दिया किसी के ऊपर भी आक्षेप लगाना। सुनैना मुँह टेड़ा करके अपने घर चली गई। ग्रामबासी एक साथ कहने लगें।:-महाराज मुझसे भूल हो

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भँवर"जीवन का जाल"भाग38

3 अप्रैल 2022
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निशान्त उस युवती को लेकर सूनसान जगह पर पहुँच गया।जहाँ अकेले में जाने से भय लगता हैं।निशान्त मर्यादाओं की हर दहलीज लाँघ चुका था।उसके सामने दौलत की चमक ही चमक दिखाई दे रही थीं।मेहनत न करना पड़े और दौलत उ

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भँवर"जीवन का जाल"भाग39

3 अप्रैल 2022
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अभी:-पैसे कमाना तो दाँये हाथ का खेल हैं।मेरे पापा के पास गरीबी का भी इलाज हैं। :-वो कैसे? :-सब कुछ यही पूँछ लोगे?मेरे पापा से भी मिलोगे। :-हाँ,हाँ मैं मिलना चाहता हूँ। :-तो आज शाम ही मिलाते हैं।मेरे ज

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भँवर"जीवन का जाल"भाग40

3 अप्रैल 2022
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माण्ड़वी घबरा गई और अपनी चोट़ को छोड़कर दरबाजा खोल कर बाहर आ गई। दुर्घटना देखकर आस-पास के लोग जमा हो गयें। माण्ड़वी:-आप लोग जाओ,मैं इसका इलाज करवाऊँगी। लोग एक स्वर में:-तुम पैसे बाले होते ही ऐसे हैं।पैसे

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भँवर"जीवन का जाल"भाग41

3 अप्रैल 2022
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माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

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भँवर "जीवन का जाल"भाग42

3 अप्रैल 2022
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माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

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भँवर"जीवन का जाल"भाग43

3 अप्रैल 2022
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सुनैना ने हाथ पकड़ लिया।का सटिया गये हैं जो अपने बेटे को कसाई के हाथों सोंपने चले हैं।खब़रदार जो तुमने काहु फोन के बारे में बताया,भनक तक न लगने देंना।कुछ दिन बाद सब ठ़ीक हो जायेंगा।सबसे चुन-चुनके बदला

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भँवर "जीवन का जाल"भाग44

3 अप्रैल 2022
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शाम हो गई पशु-पछ़ी घर लौटने लगें।प्राणी भी अपना काम-काज बंद करके घर लोटने लगें।बच्चे बाहर खेल रहे थे वो भी घरों में लोट आयें।शाम धीरे-धीरे चाँदनी रात में बदलने लगीं। सितारे-झिलमिलाने लगें,तीज का चाँद

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भँवर"जीवन का जाल"भाग45

5 अप्रैल 2022
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अम्मा:-तू उसके पास जायेगा।वो एकबार भी तेरे पास नहीं आया।द्रोण के रगों में में मेरा ही खून है फिर कैसे खून पानी हो गया।ऐसी औलाद पर लालत हैं।मेरी कोख ही उज़ड जाती। :-अम्मा यह सब तकद़ीर का खेल हैं।इस मनहू

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मँवर"जीवन का जाल"भाग46

5 अप्रैल 2022
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विख्यात ने समझ लिया कि अब पोल-पट्टी खुल जायेगी।विख्यात की दृष्टि जम़ीन पर पड़ी ईट पर पड़ी।विख्यात ने ईट उठ़ाई और अम्मा के सिर पर मार दिया।ईट के प्रहार से अम्मा जम़ीन पर धरासाई होकर गिर पड़ी। लड़के ने कहा,

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भँवर"जीवन का जाल"भाग47

5 अप्रैल 2022
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सामने अम्मा को देखकर कलेजा जलता था।छोटी बहू छोटी बहू कहकर चिड़ाती थी।किसन को सारे दिन गोदी में बिठ़ाये रहती,पीछे-पीछे फिरती रहती थी।मेरे विख्यात पर कभी लाड़-प्यार से बात तक नहीं की खिलाना तो दूर की बात

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भँवर"जीवन का जाल"भाग48

5 अप्रैल 2022
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द्रोण का मन उदास था। कृपा की समझ में नहीं आ रहा था कि कहाँ जाऊँ क्या करूँ?गाँव की सीमा पार कर पाई थी कि सामने से नील कार लेकर आ गया। नील:-मित्र मुझे पता था कि तुम आज ही गाँव छोड़ देगें।क्या इस मित्र को

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भँवर"जीवन का जाल"भाग49

5 अप्रैल 2022
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द्रोण के पास किसी भी प्रकार की कमी नहीं ।घर भरा-भरा लेकिन तन्हाई थी।सुनैना तो शासन पाकर खुश थी।विख्यात के हाथ खुल चुके थें।भय निकल चुका था।जुर्म करने में सकुचाता नहीं था।निर्भीक होकर ,मित्र मण्ड़

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भँवर"जीवन का जाल"भाग50

8 अप्रैल 2022
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ग्रामबासी कर भी क्या सकते थें।सब बदुआ और कोस रहे थें।बच्चे बुरे रास्ते पर चलने का होसला माँ-बाप की सह का ही परिणाम हैं।आज यहाँ कुकर्म किया जाने और कहाँ क्या-क्या करेगा। द्रोण ने कृपा को दर-दर भटकने को

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भँवर"जीवन का जाल"भाग51

8 अप्रैल 2022
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विख्यात ने सुना कि किसन का अपहरण,तो चुप न रहा।....नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता हूँ।किसन मेरा भाई हैं। मित्र:-अरे मित्र यह क्या सचमुच का अपहरण थोड़े ही हैं।हमको पैसे चाहिए,बस पैसे मिले हम छोड़ देगें।हम सबस

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भँवर"जीवन का जाल"भाग52

8 अप्रैल 2022
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एक व्यक्त के सिर पर टोकरी में फल रखे थे जो घूम-घूमकर बैच रहा था। कृपा के मन में बिचार किया कि शहर में किसी न किसी की मदद लेनी चाहिए। छोटे-मोटे काम करने बाले,फैरी लगाने बालो पर विश्वास कर सकते हैं।जैसे

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भँवर"जीवन का जाल"भाग53

8 अप्रैल 2022
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द्वारपाल ने रोका,ठ़हरो यह देवी जागरण तुम जैसो के लिए नहीं हैं।जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं। कृपा ने कहा,माँ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा नहीं हैं।माँ की दृष्टि सबपर हैं,हम सब संतान हैं। द्वारपाल हँसने ल

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भँवर"जीवन का जाल"भाग54

8 अप्रैल 2022
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द्वारपाल ने रोका,ठ़हरो यह देवी जागरण तुम जैसो के लिए नहीं हैं।जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं। कृपा ने कहा,माँ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा नहीं हैं।माँ की दृष्टि सबपर हैं,हम सब संतान हैं। द्वारपाल हँसने ल

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भँवर"जीवन का जाल"भाग55

9 अप्रैल 2022
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जन समुदाय के समक्ष वसीयत सुनाई गई।सुनकर सबकर हक्के-बक्के रह गयें। क्रोध आया...जीते जी मुझे अपनी जिंदगी जीने नहीं दी।....और मरने के बाद भी जीने नहीं देना चाहतें।मै अपनी लाईफ-स्टाईल किसी के कहने से चेंज

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भँवर"जीवन का जाल"भाग56

9 अप्रैल 2022
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(जीवन का दूसरा भाग) एक तरफ़ जहाँ कृपा जिंदगी को नया रंग नई दिशा दे रहा था।दूसरी तरफ़ द्रोण प्राश्चित में था।कृपा के साथ बहुत अन्याय किया हैं।कृपा की जम़ीन जायदाद को हड़प कर खून के रिश्तों को कंलकित किया

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भँवर "जीवन का जाल"भाग57

9 अप्रैल 2022
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सुनैना ने देखा कि निशान्त चला गया।अपने मुख का ताला खोला और कमरे में प्रवेश किया।....अरी ओ महारानी क्या टसुआ ही बहाती रहोगी।घर भी सभालोगी?अभी तक चाय नहीं मिली,मेरा तो सिर पीर के मारे फ़टा जा रहा हैं।बहु

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भँवर"जीवन का जाल"भाग58

9 अप्रैल 2022
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क्या राज हो सकता हैं? बहू को सावन हर्षाने लगा है फिर क्यों थार की धूल में रहना चाहेगी। घुमा-फिराकर बाते क्यों करती हों? तुम ही सोंचो.....जब-तक निशान्त यहाँ था तो बहू मायके में थीं।जब निशान्त गया तो सस

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भँवर "जीवन का जाल"भाग59

9 अप्रैल 2022
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सुनैना की हालत ऐसी थी।अपने सुख सुविधा के लिए,क्या से क्या किया,कितने पापड़ बेलें।...और अब कैसे समझौता कर लें। महकतें चमन को उजड़ा चमन बना दें तो यह कैसे सम्भव हो सकता है कि आपका चमन सदा मंहकता रहें।जब ह

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भँवर"जीवन का जाल"भाग60

11 अप्रैल 2022
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सुनैना परेशान थीं।...शेखर अब क्या होगा? परेशान तो मै भी हूँ।मैं तुमको छोड़कर जी नहीं सकता और उसके साथ जीना नहीं चाहता।जेल में रहने से अच्छा है कि आजा़द रहूँ।माया माया पर कुण्ड़ली मार कर बैठ़ी हैं।ऐसा कु

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भँवर"जीवन का जाल"भाग61

16 अप्रैल 2022
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द्रोण रोकता-टोकता लेकिन कोई प्रभाव नहीं पढ़ता।द्रोण की खाट एक अंधेरे कमरे एकान्त में डा़ल दी।खाट पर पड़े पड़े प्राश्चित के लिए जीवित था।प्राग्रिया अपने दुख में ही मग्न थी।प्राग्रिया ही द्रोण का ख्याल रखत

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भँवर"जीवन का जाल"भाग62

16 अप्रैल 2022
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निशान्त ने घर तो पहले ही छोड़ दिया,श्रेया की सुनैना की चौक-झौक रहती थी।सुनैना और श्रेया में छत्तीस का आँकड़ा रहता था।निशान्त काले धंधे का भाई(डॉन)था।निशान्त के नाम की साफ़-सुधरी छबि थी।अशान्त नाम स

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भँवर"जीवन का जाल"भाग63

17 अप्रैल 2022
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दरबाजे पर निशान्त ने घंटी बजाई।... सुनैना ने दरबाजा खोला तो सामने निशान्त था। निशान्त सुनैना को देखकर गले से लिपट गया एक मासूम बच्चे की तरह।....रोते-रोते कहने लगा।माँ,माँ मुझे बचालो। सुनैना की आँखे भर

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17 अप्रैल 2022
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उधर कृपा अपनी जीवन की गाड़ी को धीरे-धीरे आगे बड़ा रहा था।ईश्वर पर विश्वास, दृढ़-संकल्प लगन का ही परिणाम था कि छोटी सी दुकान बड़ी बन गई थीं।शादी,पार्टियों,उत्सवों समारोह में जूस सप्लाई का काम मिल जा

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भँवर"जीवन का जाल"भाग65

17 अप्रैल 2022
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वृंदा ने गहरी श्वासं लेकर कहाँ।...मै अपने काम में इतनी खो गई कि घर का ख्याल ही नहीं रहा। एक प्रयोग को आखरी सफ़लता तक पहुँचाने में एकाग्रता का कितना महत्व होता हैं।नये-नये प्रयोग को ,सफ़ल और समाज के कल्य

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भँवर"जीवन का जाल"भाग66

25 अप्रैल 2022
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वृंदा:-हाँ,माँ ने सबकुछ बता दिया था।तब से हम दोंनो परेशान थें।तुम्हें सही राह पर लाने के लिए मार्ग खोज रहे थें।मुझे क्या पता तुम यह सब द्रुपत के लिए कर रहे थें।अब सारी मुश्किले टल चुकी हैं। नहीं दीदी।

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भँवर"जीवन का जाल"भाग67

25 अप्रैल 2022
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वृंदा:-हाँ,माँ ने सबकुछ बता दिया था।तब से हम दोंनो परेशान थें।तुम्हें सही राह पर लाने के लिए मार्ग खोज रहे थें।मुझे क्या पता तुम यह सब द्रुपत के लिए कर रहे थें।अब सारी मुश्किले टल चुकी हैं। नहीं दीदी।

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भँवर"जीवन का जाल"भाग68

27 अप्रैल 2022
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सरकारी वकील:-जज साहब! यह कहना क्या चाहता है?बैगों में जाली नोट चीख-चीख कर क्या कहने की कोशिश कर रहे है?सबको आव़ाज सुनाई क्यों नहीं दे रही है? आप सुनने की कोशिश करके तो सब सुनाई देगा।अगर मेरे मस्तिष्क

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भँवर"जीवन का जाल"भाग69

27 अप्रैल 2022
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अमर आपको पहली दृष्टि में संस्कारी गुणवान,आदर सम्मान करने मन को भा गया था।अमर का चरिर्थात्र विपरीत हैं।सरकारी नौकरी है तो आर्थिक स्थति में कोई परेशानी नहीं होगी।पापा हर व्यक्ति अपके जैसा नहीं होता हैं।

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भँवर"जीवन का जाल"भाग70

27 अप्रैल 2022
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आज के दौर में युवक ऐसा ही तो ख्आब देखते है कि जिदंगी शान -शौकत से जिएँ।मुझे इस घर में एक वर्ष हो गया।चाहे कितना भी क्रोध किया होगा लेकिन कभी हाथ नहीं उठ़ाया।मेरा कितना ख्याल रखते हैं।अगर बुखार आ जायें

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भँवर"जीवन का जाल"भाग71

27 अप्रैल 2022
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फिल्मों में जैसा दृश्य दिखाया जाता है, उससे बढ़कर था।किसी चर्चित व्यक्ति की शान-शौकत,रहन-सहन को उच्च दिखाया जाता हैं।यहाँ आने से पहले किसना को अचेत कर दिया था।समुद्र के ब़ीच टापू पर बना आलीशान महल था।च

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भँवर"जीवन का जाल"भाग72

28 अप्रैल 2022
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:-मेरा फैसला नही मानना तो न सही।अब अपनी आँखो के सामने मृत्युं का ताण्ड़व देखना। विधाता ने अपनी कलाई की तरफ देखा और ऊँगली ले जाने लगा।किसना ने रोका... रूको। तुमने अपना मन बदल लिया? तुम्हारे इस साम्रराज्

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भँवर"जीवन क जाल"भाग73

29 अप्रैल 2022
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जितने पुष्प उतने रंग।पता नहीं किसको कौन सा रंग मनमुग्ध कर जायें।जहाँ प्राग्रिया और कुमुद दाम्पत्य जीवन सुखमय हैं। दूसरी तरफ़ शुगन्धा का पति तम कुमार अमावस्या की काली छाया हैं।सबका सुख-दुख का चक्र चलता

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भँवर"जीवन का जाल"भाग74

29 अप्रैल 2022
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शुगन्धा जिस आजा़दी से खुश थी, वही आज़ादी जजींर बन गई।आजादी सबको प्रियं होती है लेकिन पथ का तो पता होंना चाहिए।जब सिर पर खतरा मड़राता दिखा तो जाने में ही भलाई हैं।कुछ अनर्थ होने से अच्छा है कि बापिस घर च

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भँवर"जीवन का जाल"भाग75

29 अप्रैल 2022
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नहीं!आज तो कहकर ही रहूँगा।मैने बड़ी नम्रता से कहाँ कि दुकान खुलवा दो।तो कहते है तू चला नहीं पायेगा।पैसा और फँस जायेगा।मैं जो भी करूँ ,इनको उससे प्रोबलम हैं।कब मुझे जीने देगें।अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं

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भँवर"जीवन का जाल"भाग76

29 अप्रैल 2022
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राज तैयारी के साथ अदालत पहुँचा।शैलेस बहुत खुश था।आज उसका प्रतिशोध पूर्ण होने बाला था।तम कुमार ने शैलेस को राज के साथ देखा तो और क्रोधित हुआ।,"ओह !जो कर्म काण्ड़ का षडयन्त्र रचा है ,तेरा ही हाथ है

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29 अप्रैल 2022
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***** कृपा रामायण पढ़ रहा था।रिया बहू के साथ रसोई घर में थी।सास-बहू का तालमेल देखकर लगता नहीं था कि सास बहू हैं।माँ-बेटी बनकर काम कर रही थीं।कृपा के घर खुशियाँ ही खुशियाँ थी।सब अपने दायत्व को पूर्ण निष

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग78

29 जुलाई 2022
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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग79

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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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वृंदा का संम्बाद सुनकर जन समुदाय की आँखे नम हो गई।गुरुजी ने कहा, वृंदा की भावनाओं का सम्मान करता हूँ।भारत में अनमोल धरोहर लक्ष्मी बाई,अब वृंदा भी हैं।मैं वृंदा और ख्याति के माता-पिता को धन्य समझता हूँ

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग82

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग83

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग85

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वृंदा ने पाँच वर्ष में और व्यापक कर लिया था।शरीर में रेडिएशन जैसे घातक तत्व को भी खींचकर खतरा टालने में सुरक्षित था। उस प्रयोग को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने की तैयारी कर रही थी।कृपा अंधूरी आशाओं को ले

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भँवर "जीवन का जाल"(उपन्यास)भाग86

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किसन:-जितना सरल दिख रहा है,उतना सरल नहीं हैं।जमींन पर आकृतियाँ कुछ और संकेत कर रही हैं।ध्यान से देखों...ऐसा लग रहा है कि शंतरज का खेल हैं।सब उन आकृतियों को देखने लगें।सामने दीवाल पर चेतावनी लिखी थी।"श

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