शादी का दिन आ ही जाता हैं।मेहमानों का आना शुरू हो जाता हैं।साज-सज्जा,पकवानो को देखकर मन में अनगिनत प्रश्नो की लहरे उठ़ने लगीं।(बारोटी एक रस्म है ,दरबाजे पर सामान रखा जाता हैं,वर का तिलक होता है उसके उपरान्त अंदर प्रवेश होता हैं।)द्वार की शोभा की रोनक के लिए,टीवी फ्रिज और मोटर साईकिल को देखा तो तंग रह गई।...और सोंचने लगी।सुनैना बातो-बातों में ढी़गे हाँकती थी,मायके की तारीफ करने में एकबार भी जुबान लपेडा़ नहीं खाती थी।कहती थी कि,खूब बड़ा घर है,घर के अंदर ही कुआँ हैं।भाई के हिस्से में 100बीघा जम़ीन हैं।इतना कुछ है फिर भी घर कच्चा क्यों है?कुआँ तो कही दिखता ही नहीं हैं।ऐसा क्यों लग रहा है ,यहाँ जो दाल गल रही है वो दाल ही घर की हैं।मुझे सच खोज़ना ही होगा।सुनैना के मायके की छाँन-बीन शुरू कर दीं।मैं दाँवे से कह सकती हूँ ,जो दिखाई दे रहा है उसके पीछे पर्दा हैं।उस पर्दे की सच्चाई जानके ही रहूँगी।
रिया अच्छी तरह जानती थी कि सच को कैसे बाहर लाया जायें।किसी दूसरी औरत के सामने,उस की तारीफ शुरू कर दों,जिसकी कुण्ड़ली जानना हों।सब हकीकत पता चल जायेगी,औरत को दूसरे की तारीफ़ हजम नहीं होती।औरत क्या किसी पुरूष की भी कुण्ड़ली जाननी हो, तब भी यही चाल काम करती हैं।
रिया ने भी अपना जाल फैका:-एक औरत भोजन ग्रहण कर रही थी।उससे बातचीत करने के लिए पाँसा फैका,"भोजन तो बहुत ही लाजवाब हैं।"साज-सज्जा जमींदारो से कम नहीं हैं।बाराती तो खुश हो जायेगे।बैसे तुम किस रिश्ते से आई हो?
औरत:-मैं दुल्हन की माई(मामी) हूँ।साज -सज्जा तो शानदार हैं।दिव्य ने सबकुछ बहुत अच्छें से सभाल रखा हैं।अभी उम्र ही क्या हैं।बहिन की अच्छे खानदान में शादी तय की हैं।
रिया:-बहुत दहेज दिया होगा,मतलब रोकड़ का ठ़हरा हैं?
औरत:-हाँ ,दिया तो हैं।कुछ कहते-कहते रूक गई।
रिया:-पर क्या?
औरत:-कुछ नहीं बस यूंही।उस औरत ने निकलने का बहाना खोंजा।मुझे कुछ काम हैं।
रिया मन में कह रही है,सच का तो मैं पर्दापाश करके ही रहूँगी आखिर सच क्या है?
सुनैना ने देखा कि रिया कुछ सोंच रही हैं।इससे पहले कुछ जानने की कोशिश करती सुनैना रिया के पास गई।..तुम क्या सोंच रही हो?घर में काम बहुत है,तुम्हारे आने की खब़र तक न लगीं।बच्चे कहाँ है?
-जीजी बच्चे तो मस्त हो गयें।जीजी दिव्य के खूब चर्चे है।चारों तरफ़ चर्चे ही चर्चे हैं कि सुनैना की शादी की कसर कल्पी की शादी में पूरी कर ले रहा हैं।
-मुस्कराते हुए,सच को जान न पायें;इसलिए मायाबी बातों में उलझाने लगीं....हाँ,हाँ, यह तो हैं।मेरी शादी में पापा की तबियत ख़राब थी,इसी कारण से अरमान पूरे न हो सकें।पापा की आखिरी इच्छा यही थी कि जल्द से जल्द सुनैना की डो़ली मेरी आँखो के सामने उठ़ जायें।...और कन्यादान कर सकें।दिव्य ने कल्पी की शादी में पूरी निष्ठ भाव लगन से सब रस्मों में खूब खर्चा किया हैं।
रिया मन में सोच रही हैं,कैसे मुझे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फँसाने की कोशिश कर रही हैं।तुम क्या मैं भी अगर तुम्हारी जगह होती तो तारीफ़ के पुल बाँध देती।
-रिया,रिया कहाँ खो गई?
-कही नही।
-ओह!मैं तो बातें करने में मस्त हो गई।बरात आती ही होगीं।तुम भी तैयार हो जाओं।
सुनैना तो चली जाती है,लेकिन रिया के मन में शादी की अच्छी व्यस्था हज़म नहीं हो रही थी। कोई कैसे शेर के घर में हड्डियों का राज जान सकता हैं।रिया ने चुप रहने में ही भलाई समझी।
अक्सर शादियों में यह देखा जाता है कि दुल्हन की वजाय औरते और पुरूष नवयुवक,यवुतियों को देखते हैं।...और तुलना करते हैं।यह अच्छी है,अपेक्षा यह सुन्दर है ,जायदा कमाऊँ है।बहुत सी औरतो की नज़र ताँक-झाँक में रहती है ,किस छोरे की नज़र किस छोरी पर है।कौन नैन मटका कर रहा हैं।कौन किसको देखकर लटके,झटके दिखा रही हैं।नई-नई कहाँनियो में जायदा मंजा लेते हैं।
बरात तो आ चुकी थी।कुछ यवुक जहाँ यवुतियों का झुण्ड़ देखा वहाँ बड़चिड़कर ऊँची- ऊँची फैकने लगते हैं।शान शौकत रूतवा पैसा हर तरह से दाना फैकते हैं।कुछ यवुतियों ने वहाँ से हट जाने में भलाई समझी और कुर्सियों पर जाकर डे़रा जमा लिया।पास में लगा डीजे शादी का सबसे धूम-धडा़का भाग हैं।अगर किसी की शादी में डीजे न लगा हो तो घर लौटने पर यही कहेगें।शादी में मजा नहीं आया।डी जे शादी में हर्ष और उल्हास में चार चाँद लगा देतें हैं।मदहोश होकर धैर्य की कमी होने के कारण झगड़ा का कारण भी बन जाता है।मदहोश होकर नाँचने में व्यस्थ हो जाते है जिसके कारण कीमती चीजों से हाथ धोना पढ़ता हैं जैसै अंगूठी।ऐसा नहीं है हर जगह नकारात्मक ही हो,सकारात्मक पक्ष भी होता हैं।
नाँचने बाले नाँचने में मस्त थे।दूल्हा बारोटी की रस्म निभाकर जयमाला पाण्डल में ,अपने स्थान पर बैठ गया।जयमाला पाण्डा़ल को रंगमंच ही कहाँ जायेगा।रंगमच के सामने कुर्सियाँ डली है,जिसपर एक तरफ़ वर पक्ष दूसरी तरफ़ वधू पक्ष बैठ़ते हैं।इस रंगमंच में भेद इतना है कोई सम्बाद नहीं हैं।अभिनय ही होंगा।अगर अभिनय ठीक तरह से निभाया तो तालियाँ ही तालियाँ मिलेगी।अगर वर वधू से गलती हो जायें तो हँसेगे और न भूलने बाली याद में नाम दर्ज हो जायेगा।
दूल्हा(वर)बहुत ही प्रशन्न था।उसे क्या पता आज के बाद बेड़ियो में जकड़ जायेगा।आज से पहले इधर-उधर ताँक-झाँक करता था उस पर पाबंदी होगी।ताँक-झाँक करने से पहले पत्नी की मोहिनी सूरत कही सबाल करती हैं।विश्वास समर्पण का अटूट बंधन है,जहाँ विश्वास से ही आगे बढ़ना हैं।अगर थोड़ी सी भ़नक काँनो में पढ़ गई तो प्रवचन की गाथा सुनने को मिलेगी।विवाह ही ऐसा सच है,एक कहावत बनाई है,16आने सच हैं।"जो खाये सो पछ़तायें जो न खाये वो पछ़तायें।"वाह!बनाने बाले तेरा भी जबाव नहीं।
दुल्हन फूलों की जयमाला लेकर आ रही थी।कल्पी के मुखड़े पर अज़ब सी चम़क थी।सितारों से जगमगाता लहंगा और सितारों से दमकती चुन्नी।जोडा़ में भारी था जिसके कारण सह नहीं पा रही थी।ज्वेलरी के कारण गर्दन झुक रही थी।कल्पी बहुत सुन्दर लग रही थी।धीरे-धीरे कदम़ बढ़ाती हुई रंगमंच में पहुँच गई और अपना अभिनय निभाने लगीं।
कल्पी ने पहले जयमाला डाली,सबने तालियाँ और फूल भी बरसायें।दूल्हा ने जयमाला डा़ली,आतिशबाजी की झड़ी लग गई।अब तो पटाखों की आतिशबाजी कहाँ चलती हैं।इस काल में दूसरो को नीचा दिखाना और अपनी ताकत दिखाने की प्रतिस्पर्था हैं।राईफ़लो और बंदूको रिवाल्वरो से आग निकलनी शुरू हो जाती हैं।जिसकी शादी में जितनी आतिशबाजी उतनी अच्छी शादी हुई हैं।रंगमंच का कार्यक्रम समाप्त नहीं हुआ।यादगार पलों को कैद करने के लिए वर और वधू के साथ तस्वीरे ली जा रही थी।
सुनैना अपनी साड़ी का पल्लू सभालते हुए आई...रिया चलों फोटो खिचवालों।
रिया:-नही !रहने दों।
सुनैना ने हाथ पकड़ के खींचा।
रिया की गोदी में किसना था और द्रुपत कुर्सी पर सो रही थी।..ठीक है चलते हैं।
रिश्तेदार-नातेदार आकर फोटो खिचवाने लगें,कही घंटो तक चलता रहा।वर और वधू आज किसी अभिनेता और अभिनेत्री से कम नहीं थें।पाणिग्रहण का शुभ समय आता है तब मण्ड़प में गिनेचुने सदस्य ही रह जाते है।...और सब चादर तानकर सो जाते हैं।
पाणिग्रहण संस्कार को आप और हम विवाह के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। विवाह के ये प्रकार हैं- ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार प्राजापत्य विवाह भी ठीक है।
ब्रह्म, दैव, आर्य और प्राजापत्य विवाह में शुभ मुहूर्त के बीच अग्नि को साक्षी बना कर मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह संपन्न कराया जाता है। इस तरह के विवाह के समय नाते-रिश्तेदार उपास्थित रहते हैं। आजकल जिस तरह से युवक-युवती के बीच प्रेम होता है और उसके बाद प्रेम विवाह होता है, उसे गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जाता है। इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने विवाह का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्यों नही माना, यह अचरज की बात है। संभवत उस समय दहेज की समस्या इतनी विकराल नहीं रही होगी या फिर ज्योतिष के हिसाब से श्रेष्ठ मुहूर्त उपलब्ध नहीं होंगे।
पैसा आदि लेकर या देकर विवाह करना असुर विवाह की श्रेणी में आता है। युद्ध के मैदान में विजय प्राप्त करने के बाद लड़की को घर में लाना राक्षस विवाह कहलाता है। लड़की को बहला-फुसला कर भगा ले जाना पिशाच विवाह कहलाता है। बलात्कार आदि के बाद सजा आदि से बचने के लिए विवाह करना, जैसा कि आजकल अखबारों में अक्सर पढ़ने को मिलता है, पिशाच विवाह की श्रेणी में आता है।
जैसे-जैसे समय बदल रहा है,वैसे-वैसे बहुत कुछ बदल रहा हैं।घर के मुख्य सदस्य ही वर और वधू के पाणिग्रहण के साक्षी बने।सब विधि विधान के साथ विवाह सम्मपन्न हो गया।रिया के मन में अभी भी हलचल थी क्योकि अपनी जिज्ञाशा शान्त न कर पाई थी।
अपना सामान रखा कि कोई छूट न जायें।सूटकैस बन्द करके आगन में ले आई।गोदी में कृष्णा था और वृंदा की गोदी में द्रुपत थी।-मम्मी जी अब हम चलेगें।
बच्चों की नानी ने बाँहे पकड़के अपने पास बैठा़या।तुमहु घर सूना करके चल दीं।कछु देर और रुक लो,बिटियाँ की विदाई हो जायेगी।ठीक से बात-चीत कहाँ हो पाई।
रिया:-धूप बहुत हो जायेगी,फिर कब बस मिलेगीं।अम्मा भी घर पर अकेली है।आप तो जानती ही है ,घर में कितना काम-काज होता हैं।
नानी:-चली जाना ,चली जाना,बस बिटियाँ की बिदाई तलक रूक जाओं।
तभी एक लड़की भागी-भागी आई...चलो चलो,सब दुल्हन का सामान देख लों।जो ससुराल से आया है।(इस सामान को चढ़ावा कहते हैं।जिसमें दुल्हन के कपड़े साड़ी आभूषण और श्रृंगार का साज-सामान होता हैं।(चढा़वा)नाम से प्रचलित हैं।)
नानी:-जा रिया तू भी देख आ।
रिया:-जी।
रिया मन में प्रश्न भी उठा़ रही...चलो चलकर देखते है,इससे ही पता चलेगा कि कितने पैसे बाले हैं।
झूठे दिखावे में इतने आगे निकल चुके है,"घर में नहीं दाना अम्मा चली बुनाने।"घर में इतना भी नहीं कि दो वक्त का भोजन भी मिल जायें।जहाँ जमावड़ा हो,वहाँ लम्बी-लम्बी फैकने,ढ़ीके हाँकने से बाज नहीं आते हैं।ऐसा प्रतीत होता है बड़े लमरदार तो यही हैं।
जब रिया ने सामान देखा तो आँखे चका-चौध हो गई।अपनी आँखो पर विश्वास नहीं हो रहा था।"ग्हारह थालों में सजे आभूषण,चूड़ी,दस्ते,हथफूल,नथ,सीतारानी,पन्नो से जड़ा प्राचीन हार,और पाँच थालों में सूखी मैवा।"गोंद भराई का सामान रखा था।जहाँ आभूषण अपनी चमक बिखेर रहे थे,वही साड़ियों के रंग ने फीका़ कर दिया।साड़ियाँ पुरानी डिजाईन की थी,मोटी -मोटी किनारी लगी थी और बीच-बीच में वूटें बने थें।तीन साडी़ ही ठीक-ठ़ाक लग रही थी,जिसपर जरी का काम हो रहा था,और सितारे चमचमा रहे थें।
रिया को विश्वास नहीं था कि चढ़ावे में आभूषण खानद़ानी होगे,झूठी शान शौकत दिखाने के लिए किसी और के आभूषण भी रख दिए जातें हैं।औरतो का संदेह का कोई जवाब नहीं हैं।शुरूआत में सब दिखावा करते है,वक्त गुजर जानें दो तब हकीक़त पता चलेगी।
कल्पी की विदाई का समय आ ही गया।माँ-बाप विदाई की घड़ी कभी भूल नहीं पाते हैं।नन्नी सी कली अपनी शाखाओं से जुदा होकर,घर आंगन मंहकाने जा रही हैं।राजा जनक ने भी अपने कलेजें पर पत्थर रखक़र जानकी को विदा किया।जिस दिन से बेटी की शादी पक्की हो जाती है,उस दिन से बिछड़ने की पीडा़ अश्कों में झलकने लगती हैं।मुस्कान खो जाती है,सिर्फ यादों के अतीत में खो जातें हैं।बचपन की छोटी से छोटी बात चलचित्र से चलने लगते है,जैसे कल की ही बात हों।ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया और आज हाथ देकर कन्यादान किया।सबकी आँखो में पानी आ जाता है और यही पानी फूल बनकर वधू ,(दुल्हन) को विदा करते हैं।
दुल्हन अपने अतीत में खो जाती हैं और भविष्य की भी चिन्ता सताती हैं।जिस अजनवी को माँ बाप ने सोंपा है ,वो कैसा होगा?चाल-चलन,स्वभाव कैसा होगा?हमारा साथ देगा या अपनी ही बात को उचित ठहरायेगा,चाये गलत हो या सहीं।इस घर के आगन में बचपन बीता है,माँ बाप से बिछ़डना पड़ रहा है,क्या इस घर को अपना समझ पायेगा।जाने कैसे-कैसे ख्याल मन में डेरा डाल रहे थे।माँ-बाप को भी चिन्ता सताती है,जाने कैसा होंगा परिवार,वहाँ के सदस्य।क्या ससुराल में उतना स्नेह मिलेगा कि कभी हमारी याद न आये।या बात -बात पर दाने दिए जायेगें।
हजारो प्रश्नों के हाथ मांयका छूट रहा था,रह रहकर दहाडे़ मार-मारकर रो रही थी।पास खड़े बराती देख रहे थें।कल्पी रो-रो कर अपनी माँ से मिली,पास में खड़ी सुनैना से लिपटकर रो रही थी।सुनैना भी आंसुओ के सैलाव को रोक नहीं पाई।रोते-रोते दहलीज का पूजन किया,(दहलीज का पूजन अन्न,जौ,धान,गेहूँ से करते है।)कांमना यही करते है कि मांयका कुशहाल रहे,आंसुओ से आगन को सींचकर जातें हैं।दिव्य की आँखो में आसू आ गयें,वो भी अतीत की बातें याद कर करके रो रहा था।गोदी में लेकर फूलों से सजी कार में बैठा दिया।उस कार पर बतासे,मखाने और पैसे ,उनको फैका जा रहा था।यह परम्परा अभिन्नदन जताते की हैं।आंसुओ से आगन सींचकर विदा हो गई और दुल्हन के जाते ही शादी पाण्डाल में सन्नाटा,शान्ती हो गई।कुछ समय पश्चात मेहमान जाने लगें।कृपा रिया और बच्चों के साथ घर लौट आई।रिया के मन में रह-रहकर बात ख़टक रही थी।प्रश्नो के उत्तर नहीं मिल पायें।