ईश्वर ने श्रष्ठी की श्रेष्ठ रचना की हैं।भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जन्तु बनायें है।सबसे प्रखर बुद्धि से परिपूर्ण विकसित मानव की रचना की हैं।अपनी बुद्धि, विवेक,साहस का प्रयोग करके असम्भव को सम्भव करने में सक्षम रहा है ।...और भविष्य में होता रहेगा। शदियों तक एक कल्पना थी ,आज साक्षात्कार से परिचय कराया हैं।मानव आवश्यकताओं के अनुसार नये-नये प्रयोग करता रहा है और असफलताओ से सफलता का लक्ष्य प्राप्त किया हैं।स्वार्थ सोंच निस्वार्थ पर पूर्ण विराम लगा देती हैं।जहाँ पर स्वार्थ का जन्म हुआ, वहाँ पर लोभ,मोह, माया,का अंकुर फूटने लगते हैं।हम और हमारा परिवार ,परिवार को खुशी मिलती है तो खुश होते है दुख मिलता है तो दुखी होते हैं।ईश्वर ने मानव को मानवता कल्याण के लिए भेजा था।असाय जीव जन्तु,मानव की रक्षा करना।मानव पर ही,जीव प्रकृति की रक्षा सुरक्षा का दायत्व होता हैं।अपने विवेक से पर्यावरण को संतुलन बनायें रखे,जीव को सुरक्षा प्रदान करें।संसार में ऐसा ओर कोई नहीं है जो पर्यावरण को संतुलन बनायें रखें।एक जीव पर दूसरे जीव का चक्रण बना हुआ है।एक जीव दूसरे जीव की सुरक्षा करें ,शरण दे ,ऐसा कहाँ होता हैं?अगर यह सुनने को मिले तो मात्र संयोग ही कहाँ जायेगा।ईश्वर ने मानव को ही दायत्व दिया है कि पर्यावरण को संतुलित बनायें रखें।लोभ,मोह,लालच के चक्र में जकड़ जाता है तो मानवता स्वार्थ में बदल जाती है और सर्व हिताय की जगह ,स्वार्थ हिताय ही नज़र आता है।जब-जब ऐसा होता है तो घर-घर महाभारत की रचना जन्म ले लेती हैं।मायावी दुनियाँ के भंवर में फँस गया तो फिर निकल पाना असम्भव हैं।भंवर में फँसे असख्य है और प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं।जब तक स्वार्थ है तब तक भंवर है और इससे निकल पाना आसान नहीं हैं।