बच्चें अपने कमरें में बैठकर बातें कर रहे है।नज़र दरबाजे पर टिकी है।
भानवी:-दीदी दीदी !माँ कब आयेगी?
वृंदा:-आने बाली होंगी।भानवी यह बताओं अपनी छोटी बहिन का क्या नाम रखें?..और भाई का क्या नाम रखें?
भानवी:-मैं तो भाई का नाम कृष्णा रखूँगी।कृष्णा!
वृंदा:-कृष्णा क्यों?
भानवी:-दीदी इसलिए;अगर कभी हमपर शंकट आयें तो कृष्णा बचायें।
वृंदा:-कृष्णा तो अभी छोटा हैं,वो कैसे बचायेगा।
दीदी! अभी हम बचायेगें।बड़ा होकर हमकों बचायेगा।
मैंने तो अपनी छोटी बहिन का नाम द्रुपत रखा हैं।
दीदी यह कोई नाम हैं।द्रुपत!
जब तूने कृष्णा रखा है,तो मैंने द्रुपत रख दिया तो क्या बुरा किया?द्रुपत को ही द्रोपती कहते हैं।कृष्णा की बहिन ही तो थी द्रुपत।
दीदी ! ट्रैक्टर हॉर्न दे रहा हैं।शायद आ गयें।
चलों देखते हैं।
दोंनो भाग के गई।माँ!माँ! मुझे देखना हैं...छोटे-छोटे हाथ,छोटे-छोटे से पैर....दिखाओ दिखाओ।
अम्मा ने कहाँ,"दूर रहो,अभी छू नहीं सकते हों।"जच्चा-बच्चा के आने से घर में सूतक लग जाता हैं।एक कमरा दिया जाता है जिसके आगें चौबीस घंटे आग जलती रहती हैं।बच्चे के जन्म के छँटवे दिन छँटी मईयाँ की पूजा होती है,कन्या की पाँचवे दिन और पुत्र की छँटवे दिन ,जिसमें बच्चे की बुआजी काजल लगाती हैं।मान्यता है बच्चे के सिरहाने पुस्तक शस्त्र भी रखे जाते हैं।कहते तो यही है कि छँटी मईया स्वप्न में आयेगी।11वे दिन घर की शुद्धीकरण होगा।यह शुद्धीकरण "तंगा" के नाम से प्रचलित हैं।मूल्य नक्षत्र में बच्चें का जन्म हुआ हो तो 28वे दिन शान्ति हवन तुलादान होता हैं।मामा पर अधिक प्रभाव पढ़ता हैं।मान्यतायें कुछ भी हो,उन मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक कारण है जिसको समझाया न सकने के कारण रीति-रिवाज पर घंडी की सूई अटक जाती हैं।मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक कारण है।जच्चा और बच्चा कमजोर होते है,बच्चे ने वातावरण में प्रवेश किया है,अभी उस वातावरण में जीने का अनुभव नहीं है;इसलिए स्वच्छता का महत्व दिया जाता हैं।वातारण में अनगिनत सूक्ष्म जीव होते है उन सूक्ष्म जीवों से रक्षा के लिए अग्नि जलाई जाती हैं।11वे दिन घर की सम्पूर्ण सफा़ई करके,हवन से वातारण को स्वच्छ बनाया जाता हैं।मान्यताओ को नकारने से पहले वैज्ञानिक तथ्य को खोजना चाहिए।महिलाये पुरूष मान्यताओ के पीछे का रहस्य नहीं बता पाते हैं।..और परमपराओं का नाम देकर उनपर चलने का आदेश देते है।जब-जब आदेश दिया जाता है तब-तब ऐसा प्रतीत करता है अपनी शक्ति का परिचय दे रहे है और उन आदेश को तौड़ने में अपनी विजय समझते हैं।वैज्ञानिक कारण बताया जायें तो सब उन मान्यताओं का पालन करेगें।
अम्मा ने पहले जच्चा को नहलाया ,उसके उपरान्त कमरें में प्रवेश दिया।बच्चें खिलाने के लिए व्याकुल थें।बच्चों को अच्छे से हाथ-पैर धुलायें फिर खाट पर बैठाया और आराम से गोदी में दिए।बच्चों को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए माचिस को बच्चों के कपडे़,जिसे "फलरियाँ" ग्रामीण शब्द प्रचलित हैं।उसमें छुपा देते है और चाकू खाट के नीचे रख देते हैं। जैसा अम्मा कहती गई बैसा-बैसा पालन करते गयें।
रिया:-हाँ, हाँ, देख लेना ,देख लेना।
अम्मा:-बिटियाँ,अब जी भरके खिलाना।अब तुम्हारा भी भाई हैं।
वृंदा और भानवी गोदी में लेकर बहुत प्रशन्न हो रही थी।
भानवी:-दीदी,देखो छोटे-छोटे हाथ,छोटे-छोटे पैर।
वृंदा:-हाँ।
अम्मा:-वृंदा बहू को तंग मत करों,तू तो सझद़ार है,हमारे जमाने में जच्चा-बच्चा को कोई नहीं देखता था, जबतक शुद्धीकरण न हो जायें।अब जमाना और हैं।बहू को आराम करने दें।
वृंदा:-अम्मा थोड़ी देर...बस।
रिया:-वृंदा कल तेरा पेपर है।
वृंदा:-माँ, कौन से बोर्ड की परीक्षा हैं।
रिया:-अगर बोर्ड के ही होगें तब ही पड़ेगी।तुझे क्या पता,इन पेपरो से ही प्रैक्टिस अच्छी होंगी।कैसा आयेगा,क्या-क्या आयेगा।..जा जाके पढ़ाई करों।
वृंदा:-माँ थोड़ी देर और खिलाने दों।
रिया:-वृंदा यह मत समझना कि इन परीक्षा में फैल हो जाऊँ तो कौन से फाईनल में अंक जुड़ेगे।मुझे इन्ही पेपरो में पास होकर दिखाना हैं।अब जाओ और पढा़ई करों।
वृंदा मुँह लटकाके चली गई पर भानवी खड़ी रहीं।
रिया:-भानवी, तुझसे अलग से कहना पडे़गा।जाओ दोंनो लोग,जाके सो मत जाना।
भानवी रूखा सा मुँह लेके कमरे में आई...माँ ने थोड़ी देर भी खिलाने नहीं दिया।
वृंदा:-हाँ भानवी।कौन से नम्बर जुड़ने हैं।
भानवी:-दीदी आपने देखा,लाला कैसा मुँह बना रहा था जैसे मुझे चिड़ा रहा हों।
वृंदा:-द्रुपत भी,कैसे हाथ चला रही थी।
कृपा दोंनो की बातें सुन रहा था ,मुस्कराके कमरे में आया:-क्यों वृंदा माँ ने खिलाने नहीं दिया?
वृंदा और भानवी कृपा से सिफारिस करने लगीं:-पापा माँ से कहो ना,थोडा़ खिलाने दें।
कृपा:-वृंदा तुम्हारी माँ ठीक ही कहती है।कल तुम्हारा पेपर हैं,पढ़ लो,माँ बहुत खुश होंगी।
भानवी:-पापा आप भी,माँ की तरह कहने लगें।
कृपा:-अब और कुछ नहीं,चलो अपनी किताब निकालों।
वृंदा:-पापा...
कृपा:-अब कुछ नहीं सुनना....चलों निकालों।
कृपा इससे पहले ,इतना खुश पहले कभी न था।तीन बेटी और एक बेटा,आगन के फूल बन गयें।जिनको देखकर बाग़वान खुश और प्रशन्न था।
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(2)
जहाँ कृपा खुश था वही सुनैना के मन में जलन थी।जो धीरे-धीरे सुलग़ रही थीं।जाने कब चिंगारी भड़कती आग का रूप ले लें,यह कोई नहीं जानता था।
दरबाजे पर डाकियाँ आया।
डाकियाँ बाबू ने द्रोण द्रोण पुकारा....
सुनैना ने जब डाकियाँ की आव़ाज सुनी तो एक्सप्रेस की भाँति दौड़ी-दौडी़ आई कि मुझसे पहले और कोई न पहुँच जायें।औलाद की महक़ ही माँ बाँप को तड़फा देती हैं।
सुनैना मुझे पता है,मेरे बेटे निशान्त की चिट्ठी आई होंगी।
डाकियाँ:-यह लो भाभी।
सुनैना ने चिट्ठी ली और पढ़ने लगी और पढ़ने के बाद,दौडी़ -दौडी़ द्रोण के पास गई।
ऐजी सुनिए,निशान्त की चिट्ठी आई हैं।
द्रोण:-जब भी निशान्त की चिट्ठी आती है तो मैं समझ जाता हूँ।
-आप कैसे समझ़ जाते है?
-मुखड़े पर खुशी जो झ़लक आती हैं,ओ बारिस की बूंदे फूलों पर गिरती हैं।तब फूल और झूमने लगता है।अब यह भी बता दों कि निशान्त को कितने रुपये चाहिए?
-अब यह कैसे जान लिया कि निशान्त ने रुपयें मंगाये हैं?
-निशान्त की बैसे तो कभी चिट्ठी आती नही हैं,जब पैसे चाहिए तब ही आती हैं।बोलो कितने चाहिए?
-यही कोई बीस हजार।
-निशान्त इतने रूपयों का कर्ता क्या हैं?पिछ़ले महीने ही दस हजार भेजे थें।
-आप भी बस शुरू हो गयें।मेरा लाल पढ़ाई के लिए माँग रहा है तो आप सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं।जब तुम्हारे भाई ने चैन उतार कर नर्स को दे दी,तब मुँह में दही जम गया था।
-अब राही का पहाड़ मत बनाओ,दो-तीन दिन में इंतजा़म कर दूँगा।एक गिलास पानी ला।खेत पर जब-तक ना जाओं तब-तक मजदूर काम नहीं करतें।आमदनी का एक ही जरियाँ और ऊपर से खर्चा ही खर्चा।
सुनैना की बेटी प्राग्रिया हाथ में कंघा लेकर आई:-माँ,माँ,चोटी बना दों।
-जा पहले एक गिलास पानी ला।
प्राग्रिया:-अभी लाई।
-अपने बापू को दे दें।एक तू है जो अपने आप कुछ नहीं करती,वो देख वृंदा और भानवी अपने-आप सारा काम करती हैं।
प्राग्रिया चिल्लाकर कहाँ,"माँ धीरे-धीरे से काड़ो लगती हैं।"
सुनैना:-तो कही जड़ से न उखड़े जा रहें।
द्रोण अपने जूते इधर-उधर ढूँढने लगा:-एक तो मेरी कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं मिलती।
सुनैना:-आप क्या ढूँढ रहे है?
द्रोण:-मेरे जूते कहाँ है?
सुनैना:-विख्यात पॉलिस कर रहा हैं।मेरे दोंनो लाल होशियार है,बस तुम्हारी छ़ोरी ही कुछ नहीं जानती।
द्रोण:-छोरी तुम्हारी नहीं है?
सुनैना:-तुम्हें ही है इससे लगाव।जाने क्यों कूड़ा-करकट इधर ही भेज दिया।पढ़ने में पीछे,हर काम में पीछे है,तुझसे ही छोटी है,वृंदा हाईस्कूल में आ गई और यह अभी आँठवी में ही हैं।
द्रोण:-अब इसका का दोष।हर किसी में बराबर का दिमागं नहीं होता।
सुनैना:-आप इसकी हर काम में तरफ़दारी मत किया करों।आपकी डी़ल के कारण ही सबसे पिसड्डी हैं।
द्रोण:-अब तो शुभ-शुभ बोल,पेपर देंने जा रही हैं।
कृपा भी बच्चों को ले आया...जल्दी करो वृंदा।
वृंदा:-पापा बस एक मिनट।
द्रोण:-कृपा मैं छोड़ दूँगा।तुम खेत पर जाओ,जबतक घर का कोई न हो, तबतक कुछ भी नहीं होता हैं।
कृपा:-परीक्षा अच्छे से देना,जल्दबाजी मत करना।
द्रोण:-विख्यात तुमको स्कूल नहीं जाना?देखो यह है तुम्हारा लाड़ला जो अभी तक तैयार नहीं हुआ।पढ़ाई चोर है जो हरदम बचता रहता हैं।
सुनैना:-अब रहने भी दो।आप सबको ले जाओं,अभी विख्यात आ जायेगा।
वृंदा और भानवी:-"ताई जी नमस्ते।"
पर सुनैना ने कोई उत्तर नहीं दिया।द्रोण सबको छोड़ आते है और सब बच्चे चले जाते हैं।
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