विचार जो मन में आयें
विचारों का क्या, वे दौड़ते रहते हैं. उनकी प्रकृति को देखकर लगता है कि उनके लिये एक जगह टिकना निरर्थक है. वे यह नहीं कहते कि उन्हें विश्राम चाहिये. वे यह भी नहीं कहते कि ज़रा ठहरो, एक घूंट जल हलक से नीचे उतार लूं. कभी-कभी लगता है कि मैं खुद विचारों का संग्रह बन गया हूं. ऐसा घिरना जहां से बचकर निकलना