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विचार जो मन में आयें

31 मई 2016

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विचारों का क्या, वे दौड़ते रहते हैं. उनकी प्रकृति को देखकर लगता है कि उनके लिये एक जगह टिकना निरर्थक है. वे यह नहीं कहते कि उन्हें विश्राम चाहिये. वे यह भी नहीं कहते कि ज़रा ठहरो, एक घूंट जल हलक से नीचे उतार लूं.


कभी-कभी लगता है कि मैं खुद विचारों का संग्रह बन गया हूं. ऐसा घिरना जहां से बचकर निकलना मुमकिन नहीं. दौड़ते जाना, सिर्फ दौड़ते जाना ऐसी जगह जहां से वापस होने की सोचना दूर की बात है.


मन बंधा हुआ, दबा हुआ. क्या मैं कहीं खो गया हूं?


लगता है विचारों ने मुझे डुबो दिया गहराई में जहां रोशनी केवल दिखाई दे रही है तड़फती हुई. मैं मन को मना नहीं सकता.


मैं असहाय सा हुआ जा रहा हूं. यही विचारों की गठरी है जो मुझ पर हावी है.

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