मैं कांच का टुकड़ा हीरा ना बन पाया।
बहुत तराशा खुद को पर हीरा ना बन पाया।।
जो ना काबिल था वो काबिल बन गया।
मैं काबिल होकर भी काबिल ना बन पाया। शराबी पीकर शराब फिर भी होश में चलने लगे।
हम बिन पिये शराब फिर भी लड़खड़ाने लगे।।
मैं कांच का टुकड़ा हीरा ना बन पाया।
बहुत तराशा खुद को हीरा ना बन पाया।। लोग कहते हैं सच्चा प्यार होता है मिल जाता है।
सच तो ये हैं आज के दौर में प्यार कहाँ होता हैं।।
खुद तबाह होकर दूसरों की जिंदगी बचाने लगें।
बन कर रहनुमा उनके दुखों पर मरहम लगाने लगे।।
मैं कांच का टुकड़ा हीरा ना बन पाया।
बहुत तराशा खुद को हीरा ना बन पाया।।
जो खुद भटके थे रास्ते से आज वो रास्ता बताने लगें हैं।
जो कभी राजदार थे हमारे वही आज राज छुपाने लगें।। अपनी बेकसी को किस किस भाषा में समझाऊं तुमको।
मेरा दर्द हर बार एक सा रहता है कैसा बतलाऊं तुमको।।
मैं कांच का टुकड़ा हीरा ना बन पाया।
बहुत तराशा खुद को हीरा ना बन पाया।।