अपनी बेबसी का दर्द किसको दिखता। टूटे दिल का आईना किसको दिखता।। लोगों को बताता तो अपना मज़ाक बनवाता। उठा कलम दर्द लिखना शुरू कर दिया। मेरी बेबसी ने मुझे लेखक बना दिया।। लिखते लिखते अपना दर्द भुल गया। अब लोगों का दर्द मुझे समझ आने लगा। मेरा दर्द भी लिखने से अब मुस्कुराने लगा।। अब पराया भी मुझें अपना लगने लगा। लिखता मैं हुँ भावनाओं समझते लोग हैं। आँसू मेरे हैं पर आँखों से निकालते लोग हैं।। आज मैं उस पथ का राहगीर बन गया। उनको रास्ता दिखाने की बजाय बन गया।।
आज मैं बहुत खुश हुँ की मैं लेखक बन गया। जीवन को दर्शाने वाला कलम का सेवक बन गया।। संजय तेरी कलम जब भी चले लोगों के हित में चलें। लोगों को प्रेरणा देकर तेरी कलम जीवन सिखाती चलें।।