सुबह हो गयी हैं सब जगने लगें हैं।
सुबह के फूल भी खिलने लगें हैं।।
बच्चें भी भूख से चिल्लाने लगे हैं।
पंछी भी छत पर चहचाने लगे हैं।।
बच्चें आवाज लगाते हैं हम भूखे हैं।
पंछी भी चिल्लाते हैं हम भी भूखे हैं।।
बच्चों की आवाज मात-पिता सुनता हैं। पंछियों की आवाज कौन सुनता है।।
कौन पंछियों को अपना समझता है।
जो उनके के लिए खाना रखता है।।
संजय जीवन दोनों के बराबर होता है। एक फर्क ऊपर वाला दोनों को देता है।
इंसान को बोलने समझने की शक्ति देता है।
पंछियों को उड़ने और आजादी की शक्ति देता है।।
इंसानों को बोलने समझने की शक्ति इसलिए देता है।
सबकी मदद करने के लिए यह शक्ति देता है।।
पर समय की धारा में इंसान सब भुल जाता हैं। अपने स्वार्थ की धारा में बहता चला जाता है।।
अपने ही परिवार की परवाह करता चला जाता है।।
सब खाने के लिए पंछी चिल्लाते रह जाते हैं।
इंसान अपनों की दुनिया में ही मगन हो जाता है।।