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पंछी का दर्द

17 फरवरी 2024

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सुबह हो गयी हैं सब जगने लगें हैं।
सुबह के फूल भी खिलने लगें हैं।।
बच्चें भी भूख से चिल्लाने लगे हैं।
पंछी भी छत पर चहचाने लगे हैं।।
बच्चें आवाज लगाते हैं हम भूखे हैं।
पंछी भी चिल्लाते हैं हम भी भूखे हैं।।
बच्चों की आवाज मात-पिता सुनता हैं।                               पंछियों की आवाज कौन सुनता है।।
कौन पंछियों को अपना समझता है।
जो उनके के लिए खाना रखता है।।
संजय जीवन दोनों के बराबर होता है।                                     एक फर्क ऊपर वाला दोनों को देता है।
इंसान को बोलने समझने की शक्ति देता है।
पंछियों को उड़ने और आजादी की शक्ति देता है।।
इंसानों को बोलने समझने की शक्ति इसलिए देता है।
सबकी मदद करने के लिए यह शक्ति देता है।।
पर समय की धारा में इंसान सब भुल जाता हैं।                       अपने स्वार्थ की धारा में बहता चला जाता है।।
अपने ही परिवार की परवाह करता चला जाता है।।
 सब खाने के लिए पंछी चिल्लाते रह जाते हैं। 
 इंसान अपनों की दुनिया में ही मगन हो जाता है।।                                     
                                       






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रचनाएँ
अतीत के पन्ने
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जब इन्सान का जन्म होता है तो जन्म के बाद बचपन से बुढ़ापे तक उसके अन्दर भावना जुड़ जाती हैकुछ जीवन की खट्टी यादें होती है कुछ मीठी यादें होती है जब आदमी की उम्र बढ़ने लगती है तो उसका अनुभव भी बढ़ने लगता हैउसके अतीत में बीती हुई घटनाओं को है काव्य का रूप देता है कुछ ग़ज़ल कहते हैं कुछ कवितायें कहते हैं कुछ अपने अनुभव के आधार से भविष्य में होने वाली बातों को कविता के रूप में ,काव्य के रूप में कहते हैं जब व्यक्ति अकेला बैठा होता है तो वे अपनी डायरी पर लिखे हुए अतीत के पन्नों को खोलता है तो नई ऊर्जा के साथ ज़िंदगी को अच्छी तरह जीने की कोशिश करता हैये जो लिखी हुई कुछ कविता है किसी के जीवन में काम आ सके तो मेरी लेखनी सार्थक हो जाएगी
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