डायरी दिनांक १६/०७/२०२२
शाम के छह बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।
एक मेले में एक शो लगा। घोषणा की गयी कि ऐसा शो आपने कभी नहीं देखा होगा। और क्या देखा, यह कोई मुख से बता ही नहीं सकता। एक बार में केवल एक आदमी ही भीतर जाता था और वह दूसरे दरबाजे से बाहर निकलता तो शो के बारे में कुछ भी नहीं बताता। जिज्ञासा में भीड़ बढती गयी। आमदनी भी बढती गयी। पर अनोखी बात थी कि शो देखने बाला कोई भी शो में क्या देखा, किसी को बता नहीं पाया।
शायद शो में क्या हो रहा था, कभी भी किसी को पता नहीं चलता। पर ऐसा नहीं हुआ। एक दिन एक कुछ अल्पबुद्धि ने उस शो का भंडा फोड़ दिया। भीतर एक आदमी जूता मारकर उसे चुपचाप दूसरे दरबाजे से बाहर निकाल देता था।
इस संसार में कदम कदम पर धोखे ही धोखे हैं। कौन हमारा हितैषी है और कौन हमारा प्रयोग कर रहा है, कहा नहीं जा सकता। ज्यादातर तो लोगों के मन में करुणा भी स्वार्थ के कारण ही जाग्रत होती है। किसी की सहायता के लिये उठते दिखते कदम अक्सर केवल खुद का स्वार्थ सिद्ध करने के लिये उठते हैं।
आज बच्चों की सहनशीलता का स्तर बहुत गिरता जा रहा है। जरा सी रोकटोक उन्हें बर्दाश्त नहीं होती है। समझदारी के स्तर में इतनी कमी आ रही है कि अधिकांश बच्चों के लिये माता पिता के संघर्षों के विषय में विचार करना ही महत्वहीन है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।