डायरी दिनांक १०/०७/२०२२
शाम के छह बजकर चालीस मिनट हो रहे हैं ।
कल बहुत ज्यादा लेखन किया पर आज रविवार के अवसर कुछ भी लेखन नहीं हो पाया। एक साहित्यिक काम लगभग पूर्ण होने को है, पर उसे अंतिम रूप दे नहीं पा रहा हूँ ।आज उसे अंतिम रूप देने का निश्चय किया पर निश्चय पूरा नहीं कर पाया। लैपटॉप आफिस में रखा है। आज कुछ देर ओफिस जाने का निश्चय किया पर जा नहीं पाया । कई घटक प्रभावी हुए। जो काम करना था, वह अधूरा रह गया।
कल डायरी लेखन नहीं हो पाया। पर लेखन भी बहुत हुआ। साथ ही साथ विभाग के काम से जैथरा भी गया। जैथरा दूरभाष केंद्र के गृहस्वामी से वार्ता करनी थी। अनुभव हुआ कि कुछ लोग अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं हैं। कुतर्की अपनी बुद्धि के सामने किसी को कुछ भी नहीं समझते। हालांकि तर्क के सामने कुतर्क कहीं भी नहीं टिक पाता है। कुतर्क छिपने की जगह ढूंढता है। साम, दाम और भेद नीति का प्रयोग ही पर्याप्त नहीं होता। अपितु दण्ड नीति का प्रयोग भी आवश्यक होता है। वार्ता का परिणाम भले ही बराबरी का लग रहा हो, पर सत्य है कि उस मोड़ पर है जहाँ विभाग की तरफ से जरा सी विधिक कार्यवाही आरंभ होते ही पूरी तरह विभाग के पक्ष में ही जायेगा।
कल ज्ञात हुआ कि प्रबंधन विभाग देख रहे अधिकारी किस तरह गैर जिम्मेदार हैं। संभावना यही है कि प्रबंधन विभाग के अधिकारियों पर इसी कारण एजीएम सर ने विश्वास नहीं किया तथा मुझे सुलह वार्ता के लिये नियुक्त किया।
आज बहन अंबिका झा की बेटी सुजाता झा का जन्म दिन है। उसके जन्म दिन के अवसर पर बहन अंबिका झा ने एक आनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जो चार बजे आरंभ हुआ। मैं लगभग पांच बजे तक काव्य गोष्ठी में उपस्थित था। उसके उपरांत कुछ बाजार के काम से बाजार चला गया।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।