डायरी दिनांक १९/०७/२०२२
रात के आठ बजकर दस मिनट हो रहे हैं ।
कभी कभी एक समस्या समाप्त नहीं होती, उससे पहले ही दूसरी समस्या आरंभ हो जाती है। अब गुर्दे की पथरी का दर्द बंद है तो दाड़ में दर्द होने लगता है। वैसे लगभग डेढ वर्ष पूर्व दांतों में दर्द हुआ है। उस समय तो दर्द आज के दर्द से भी तेज था। फिर डाक्टर की दवाओं से ठीक हुआ। हालांकि डाक्टर ने उस समय कह दिया था कि आखरी दाड़ जो कि अक्ल दाड़ है, को भविष्य में निकालना होगा।
आज राधा जी के पवित्र प्रेम की पृष्ठभूमि पर लिखे उपन्यास पुनर्मिलन का समापन कर दिया है। अब अगले उपन्यास वैशालिनी पर ही पूरा ध्यान केंद्रित करना है।
काफी समय से राधा जी के चरित्र पर एक उपन्यास लिखने की इच्छा थी। मन तो बहुत कर रहा था, पर सच्ची बात यह भी है कि इस अति दुर्लभ विषय पर लिखने का साहस कर नहीं पा रहा था ।क्योंकि राधा तत्व गोपनीय से भी अधिक गोपनीय है। फिर राधा जी के प्रेम के विषय में जितना लिखा जाये, उतना कम ही है।
श्रीमदभागवत महापुराण के अवलोकन से कहा जा सकता है कि शुकदेवजी से पूर्व भी श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा दूसरे वक्ताओं ने भी सुनाई है। देवर्षि नारद ने भक्ति देवी के पुत्रों ज्ञान और वैराग्य को वृंदावन धाम में कथा सुनाई थी। संत गोकर्ण ने धुंधुकारी प्रेत के उद्धार के लिये श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई थी। उद्धव जी ने भगवान श्री कृष्ण की रानियों को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई थी।
वर्तमान में श्रीमद्भागवत का जो स्वरूप मिलता है, वह श्री शुकदेवजी महाराज द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई कथा है। इस बात की पूरी संभावना है कि श्रीमद्भागवत महापुराण के स्वरूप में श्रोता और वक्ता के बदलाव से कुछ परिवर्तन होता रहा हो।
कहा जाता है कि शुकदेवजी राधा जी के नाम का उच्चारण करते ही भावलोक में पहुंच जाते थे। इसलिये शुकदेवजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण के वर्तमान स्वरूप में राधा शव्द का उल्लेख नहीं मिलता है। अपितु गोपिका के रूप में राधा जी का ही परिचय कराया गया है।
श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में विभिन्न गोपी लीलाओं जिनमें चीरहरण लीला और महारास लीला का उल्लेख है। उल्लेख यह भी है कि महाराज परीक्षित गोपी तत्व को समझ नहीं पाये। इस विषय में उन्होंने बहुत से संदेह व्यक्त किये। तथा भगवान श्री कृष्ण के आचरण को उन्होंने मर्यादा का अतिक्रमण भी बताया। फिर शुकदेवजी महाराज ने परीक्षित महाराज को गोपी तत्व का अनिधिकारी बता उस प्रसंग को ही विराम दे दिया।
राधा जी के प्रेम का विशेष उल्लेख बृह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। तथा राधा जी से संबंधित अधिकांश कथाओं का स्रोत श्री बृह्मवैवर्त पुराण ही है। साथ ही साथ पद्म पुराण में भी भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की कथाओं का वर्णन है।
श्रीमद्भागवत महापुराण के गोपी वर्णन में सांकेतिकता की अधिक प्रधानता रही है। अधिक गहराई से अध्ययन करने पर ही तथ्यों का पता चलता है। उदाहरण स्वरूप गोपियों की देवी उपासना, चीर हरण लीला, महारास लीला के अवसर पर श्री कृष्ण के अंतर्धान होने की लीला, गोपीगीत का गायन के उल्लेख के अवसर पर स्पष्ट लिखा है कि उस समय श्री कृष्ण और गोपियां अपने अपने घरों पर ही उपस्थित थे। मुझे लगा कि इन प्रसंगों की अधिक विस्तार से व्याख्या करने की आवश्यकता है। ऐसे प्रसंगों में आध्यात्मिकता का स्तर बढाने की आवश्यकता है। इसलिये संवादों तथा वर्णन के माध्यम से कुछ नवीन तथ्यों के विस्तार की आवश्यकता लगी।
उद्धव गोपी वार्ता प्रसंग जो कि भ्रमर गीत के नाम से अधिक प्रसिद्ध है, का उल्लेख अलग अलग भक्त कवियों ने अलग अलग तरीके से किया है। ज्यादातर ने निर्गुण पर सगुण की प्रधानता स्वीकार की गयी है। इस प्रसंग के वर्णन में मैंने राधा जी के साथ उद्धव जी की वार्ता का उल्लेख अधिक किया है तथा दोनों के वार्तालाप को अधिक व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया है, जिसमें राधा जी उद्धव जी के बताये तथ्यों द्वारा ही उन्हें भक्ति का पथ दिखाती हैं।
विरह के साथ नित्य मिलन तथा देवी कालिंदी का राधा जी के प्रेम से परिचित होना, ये वह तथ्य हैं जिन्हें मैं सत्य समझता हूं अथवा ये मेरी मान्यता के अनुसार सही हैं।
नारद जी द्वारा बाल कृष्ण के दर्शनों के बाद राधा जी का अन्वेषण करना बृह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है।
श्री कृष्ण और राधा जी के विवाह का उल्लेख भी बृह्मवैवर्त पुराण में है। पर उपन्यास लेखन के लिये वह वर्णन अपेक्षाकृत अधिक आध्यात्मिक लगा। मूल वर्णन में नंदबाबा खराब मौसम के कारण वन में रुके होते हैं, उस समय बाल कृष्ण की चिंता में व्यथित हो रहे हैं। तभी बालिका राधा वहां आ जाती हैं तथा नंदराज संमोहित से हुए श्री कृष्ण को राधा के साथ घर भेज देते हैं। तथा मार्ग में बृह्मा जी उनका विवाह कराते हैं। इस प्रसंग में कुछ बदलाव आवश्यक लगा।
उपन्यास का मुख्य विंदु राधा जी का श्री कृष्ण की रानियों से कुरुक्षेत्र में पुनर्मिलन है तथा उसी विंदु की पृष्ठभूमि पर लगभग पूरी राधा कथा प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। पुनर्मिलन प्रसंग का उल्लेख भी श्रीमद्भागवत महापुराण के साथ अन्य ग्रंथों में भी है तथा इस प्रसंग पर भक्त कवि सूरदास जी ने भी पद लिखे हैं।
किसी भी मूल तत्व की अवहेलना किये बिना खुद के तरीके से श्री राधा चरित्र लिखने का जो मैंने प्रयास किया है। उम्मीद करता हूं कि आपको मेरा प्रयास पसंद आयेगा।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।