डायरी दिनांक २९/०७/२०२२
शाम के सात बजकर पैंतालीस मिनट हो रहे हैं ।
दिनांक २५/०८/२०२२ के बाद आज डायरी लिख रहा हूँ। क्योंकि वैशालिनी के भाग पूरे करने हैं। तथा हर भाग को लिखने में समय लगता है। बीच बीच में तबीयत भी खराब होती रही। जिस कारण डायरी लिखने का नित्य नियम का निर्वाह नहीं हो पाया।
कल्याण का मासिक अंक पढा। महादेवी वर्मा जी की पुस्तक मेरा परिवार का एक संस्मरण प्रकाशित हुआ था। गौरा नामक गाय का संस्मरण था। पढकर बहुत दुख हुआ। अपने स्वार्थ में मनुष्य कितना गिर जाता है, यह संस्मरण इसका साक्षात उदाहरण था। हमारे हिंदू धर्म में गाय के भीतर सभी देवी देवताओं का निवास बताया है। गाय को माॅ की भांति पूजा जाता है। पर गौमाता का कितना सम्मान हम कर रहे हैं। गौशालाएं अव्यवस्था और उससे भी अधिक भ्रष्टाचार का शिकार हैं। गायों की देखभाल के लिये किसी के भी पास समय नहीं है। पर गायों की देखभाल के लिये उत्तरदायी ग्वाला ही जब सुनियोजित तरीके से गाय की हत्या करने लगे तब उससे अधिक दुख की क्या बात है। सचमुच मनुष्य हर काल में निर्दयी रहा है।
आज लगता है कि नारी सशक्तिकरण के रूप में ही नारियों का शोषण हो रहा है। जहाँ भी देखो, ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं। स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाकर फिर उसके आय पर ऐश करते पुरुष दिखाई देते हैं। वैसे पति और पत्नी दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। पर इस बात का क्या अर्थ कि पति कुछ भी आय अर्जित न करे और पत्नी ही घर और बाहर दोनों स्थानों की व्यवस्था देखे, यह तो किसी तरह उचित नहीं है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।