डायरी दिनांक १४/०७/२०२२
शाम के छह बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।
एक बार स्वामी रामसुखदास जी महाराज ने कहा कि महाराज। यह मन बड़ा चंचल है। पूजा करने में, साधना करने में, मन लगता नहीं है।
स्वामी जी ने उत्तर दिया कि मन अपना काम कर रहा है और आप अपना काम करते रहो। एक न एक दिन मन ही अपनी हार मानेगा।
किसी भी कार्य को बार बार करते जाना ही अभ्यास है। वैराग्य और अभ्यास ही मन को वश में करने बाले दो शस्त्र श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बताये हैं।
वास्तव में अभ्यास शव्द की व्याख्या उससे अधिक व्यापक है जितनी कि समझी जाती है। केवल बार बार दुहराना ही अभ्यास नहीं है। अपितु निषिद्ध कर्मों से मन को बार बार दूर करना भी अभ्यास है। अन्यथा स्थिति ऐसी भी हो सकती है कि ईश्वर के नाम का जाप तो अभ्यास से हो जाये पर बुराई से मन न हटाने का अभ्यास न होने पर बुराइयाँ बराबर होती रहें।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।