बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक फ़िल्म की छोटी सी क्लिप देखने को मिली जिसमे एक नौ साल की बच्ची का चलती ट्रेन में तीन लड़के ब्लात्कार करते है। बड़े महानगर की ये लोकल ट्रेन जिसमे अमूमन भीड़ मौजूद रहती है लेकिन ये घटना रात की थी। उस ट्रेन में उस बच्ची जो कि स्कूल से लौट रही थी , के अलावा वो तीन बलात्कारी और एक परिवार भी मौजूद था लेकिन शर्म की बात ये है कि उस परिवार ने इस घटना पर सिर्फ चाकू दिखाए जाने से डरकर ही आँखे मूंद ली। लानत है उन लोगो की जिंदगी पर और सोच पर भी , जिन्हें न बच्ची की चीख सुनाई दी और न अपराध दिखाई दिया।
एक और घटना सोशल मीडिया पर ही सामने आई। बड़े शहर के विख्यात यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ने अपने ही गर्ल्स हॉस्टल के लड़कियों का नहाते वक्त वीडियो उतारा और अपने एक पुरूष मित्र को भेज दिया। क्या उस लड़की को एक बार भी यह नही सोचना चाहिए था कि वह जिस काम को अंजाम दे रही है उसका असल परिणाम क्या होगा! अगर वह किसी दबाव या ब्लैकमेलिंग के जरिये यह काम कर रही थी तब भी उसे अपने साथ यह हरकत हो जाने के बाद पुलिस को इन्फॉर्म करके इस घटना को बढ़ावा देने से रोका जा सकता था। सोचने की बात है कि क्या यह वही देश है जहाँ हम घर से बाहर निकलते है तो हर मर्द को औरत आमतौर पर भैया कहकर ही सम्बोधित करती है। तो क्या वह भैया शब्द सिर्फ एक शब्द रह गया है, न जाने उसी शब्द के पीछे खड़े इंसान की आँखों मे , मन मे , या दिमाग मे किस अपराध को बढ़ावा देने की मंशा हो!
ऐसे घटनाओं से सिर्फ सोशल मीडिया भरा नही है बल्कि पूरे देश भरा पड़ा है। आजकल कहीं दंगा हुआ नही लोग मोबाइल पर वीडियो बनाने लगते है। किसी बिल्डिंग में आग लगी, वीडियो बन गया, मर्द ने औरत को छेड़ा औरत ने दो तमाचा मार दिया वीडियो बन गया। किसी पर तेजाब फिंक गया वीडियो बन गया। वायरल होने की सनक या दौड़ में इंसान असल भावनाओं पर जंग लगाते जा रहा है। शर्मसार है क्योंकि इंसानियत जब जब खामोश हुई है तब तब अपराध को बढ़ावा मिला है।
हाल ही में ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब किसी शहर के दो गुटों के बीच झगड़ा बढ़ गया और एक गुट, दूसरे गुट के लड़कों को सरेआम सड़क पर पीट रहा है। वहाँ मौजूद एक शख्स जिसे दोनों गुटों में कोई दिलचस्पी नही कोई वास्ता नही फिर भी वहाँ मौजूद होकर अपने मोबाइल से उस घटना को रिकॉर्ड कर रहा है । सोचने की बात है कि क्या हम उसी गाँधी के देश से है जिन्होंने अहिंसा पर ज़ोर दिया था और उसी अहिंसा के बल पर आज़ादी पाई थी।
कटाक्ष ये है कि अभी तो हाल ये है कि इंसान वो प्राणी है जिसने बुरा मत देखो से वाकई आँख मूंद ली है। कहीं भी कुछ भी बुरा या गलत हो तो इंसान मुँह फेर लेता है । इंसानियत जिसकी परिभाषा यही है कि न नस्ल देखी जाए , न जात और न धर्म .. बस , किसी को जरूरत हो तो साथ दिया जाए मदद की जाए।
मगर अभी तो हाल ये है कि, नस्ल नही देखी जाती , जात भी नही देखी जाती और धर्म भी नही ... बस, इंसान ही इंसान का तमाशा बना रहा है। सच है , इंसानियत अब इंसान के बस की बात नही।
मनप्रीत मखीजा