शीर्षक = इश्क़ का सफऱ
मीनाक्षी अपनी आँखे बंद मत करना,मैं तुम्हे कुछ नही होने दूंगा बस थोड़ी देर में हम लोग अस्पताल पहुंच जाएंगे,गोली से घायल अपनी पत्नि मीनाक्षी से मयंक ने कहा जो की उसकी जाँघ पर लेटी हुयी थी और अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी, गोली उसके दिल में लगी थी इसलिए उसका बच पाना नामुमकिन सा था
गहरी गहरी सांस लेती हुयी और हल्की हल्की अपनी आँखे खोलती हुयी मीनाक्षी बोली " मयंक हमारा सफऱ यही तक था, अब शायद हमारे जुदा होने का समय आ गया है "
"खामोश, एक लफ्ज़ और ना कहना, तुम मुझे इस तरह बीच राह में छोड़ कर नही जा सकती हो, तुम भूल गयी शायद हमने अपने इश्क़ के सफऱ में साथ जीने और साथ मरने की कस्मे खायी थी, और अब तुम इस तरह बेईमानी नही कर सकती, तुम हौसला रखो तुम्हे कुछ नही होने दूंगा, तुम्हारे अलावा मेरा है ही कौन इस दुनिया में " मयंक ने कहा और उसे उठा कर ले जाने लगा
"मयंक,, मयंक रुक जाओ, मेरे पास ज्यादा समय नही है, और जो समय है वो मैं तुम्हारे साथ बाते करके गुज़ारना चाहती हूँ, तुम्हारी बाहों में अपनी आखिरी सांसे लेना चाहती हूँ, हमारा साथ यही तक था, अब हमारा जुदा होने का वक़्त आ गया है " मीनाक्षी ने कहा
"ये सब मेरी वजह से हुआ है, मेरे गुनाहो की सजा तुम्हे मिली है, इस बात के लिए मैं खुद को कभी माफ नही कर सकता, मैंने तुमसे वायदा किया था कि शादी के बाद इस गुनाहो की दल दल से खुद को निकाल लूँगा, लेकिन मैं असमर्थ रहा अपना वायदा पूरा करने में, मैंने तुम्हारी बात मान लीं होती और अपना ये काम पहले ही छोड़ दिया होता तो ये नौबत ना आती, मैं गुनेहगार हूँ तुम्हारा " मयंक ने कहा रोते हुए
"नही,, नही,, ऐसा न कहो, तुम्हारी कोई गलती नही, तुमने अपना वायदा पूरा किया तुम तो इस जुर्म की दल दल से आजाद होने का मन बना बैठे थे, लेकिन तुम्हारा इस जुर्म की दल दल से निकलना और लोगो के लिए मुसीबत बन जाता इसलिए ही तो उन्होंने मुझे किडनेप कर लिया ताकि तुम उनका आखिरी काम उस बिल्डर को मार सको जिसकी जान की फिरौती खुद उसके बेटे ने दी थी,मुझे आज बहुत अच्छा लग रहा है कि तुमने चाहते हुए भी उस बेगुनाह आदमी को नही मारा, तुम अब बदल चुके हो, तुम अब वो पहले वाले माफिया मयंक नही रहे, शायद ये मेरे प्यार का असर था जिसने तुम्हारे दिल में नफरत की जगह प्यार भर दिया और तुमने बेगुनाहो के खून से अपने हाथ रंगना बंद कर दिए, मुझे ख़ुशी है कि मैंने जाते जाते तुम्हे अच्छा इंसान बना दिया, जिस नफरत ने तुम्हे हैवान बना दिया था मेरे प्यार ने तुम्हे फिर से इंसान बना दिया अब मैं चेन से मर सकूगी "मीनाक्षी ने कहा
"इस तरह न कहो मीनाक्षी, मेरी वजह से आज तुम इस हालत में हो तुम्हे अगर कुछ हो गया तो मैं खुद को माफ नही कर पाउँगा, तुम्हे अगर कुछ हो गया तो मैं सारी दुनिया में आग लगा दूंगा " मयंक ने कहा रोते हुए
"नही,, नही ऐसा वैसा कुछ मत करना मयंक, बहुत मेहनत और प्यार से मैंने तुम्हारे दिल में दूसरों के प्रति प्यार जगाया है, वरना तो तुम्हारा दिल लोगो की वजह से पत्थर बन चुका था जिसके चलते तुम चंद पैसों के खातिर किसी की भी हत्या कर देते थे, क्यूंकि तुम्हे कभी किसी के जाने का एहसास ही नही होता था, कि किसी का ज़ब कोई दूर चला जाता है तब उस पर क्या बीतती है, आज इस बात का अंदाजा तुम्हे हो गया होगा
मयंक तुमने अगर मुझसे सच्चा प्यार किया था या करते हो, तो मुझसे वायदा करो की मेरे जाने के बाद तुम इस जुर्म की दलदल की तरफ नही लोटोगे, चाहे कुछ हो जाए तुम मेरे वचन का मान रखोगे " मीनाक्षी ने कहा
"नही, तुम्हारी ये हालत जिसने भी की है उसे इस बात का बदला चुकाना पड़ेगा," मयंक ने कहा
नही मयंक,,, मुझसे वायदा करो,, कि तुम ऐसा वैसा कुछ नही करोगे अगर मेरे जाने के बाद कुछ किया तो समझूँगी कि तुम्हारा मेरे प्रति प्रेम सिर्फ एक नाटक था तुमने कभी मुझसे सच्चा प्रेम किया ही नही था, मीनाक्षी कि सास उखड़ने लगी थी वो कुछ और कहती उससे पहले मयंक उसका हाथ पकड़ कर बोला
मुझे भी यही इसी समय मौत आ जाए, अगर मैंने तुमसे कभी प्रेम का नाटक किया हो, अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो फिर लो तुम्हारा ये मयंक तुम्हारी मौत का इन्तेकाम अधूरा ही छोड़ देगा, और जैसा तुम इसे बनाना चाहती थी वैसा ही ये बन जाएगा तुम्हारे जीते जी तो मैं वैसा नही बन सका लेकिन अब मैं बन कर दिखाऊंगा
मयंक के आंसू, मीनाक्षी के चेहरे पर गिर रहे थे, मीनाक्षी के चहरे पर एक मुस्कान थी, वो कुछ कहना चाहती थी या फिर उसका शुक्रिया अदा करना चाहती थी लेकिन उसके पास वक़्त नही था और वो इश्क़ का सफऱ छोड़ कर मयंक को अकेला छोड़ कर इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए चली गयी थी उसने मयंक की बाहों में अपना दम तोड़ दिया था
मयंक ने उसे उठाने की बहुत सी नाकाम कोशिश की पर कोई फायदा न हुआ, आखिर कार वो उसके मृत शरीर को अपने घर ले आया और फिर एक सुहागन की तरह उसका श्रृंगार पटम करके उसे अपने से जुदा किया, उधर उसकी चिता जली उधर मयंक, मीनाक्षी की यादें अपने साथ लेकर उससे किए वायदे का मान रखने के लिए उस शहर से बहुत दूर चला गया जिस शहर ने उसे सिवाय तकलीफो के कुछ न दिया, पहले माता पिता छीन लिए, फिर अनाथ आशर्म की सख़्ती बर्दाश्त की उसके बाद अपना गुस्सा बेगुनाहो की जान की सुपारी लेकर उतारा और फिर ज़ब उसे मीनाक्षी मिली जो की उसके पत्थर दिल में प्रेम भरने की कोशिश कर रही थी अब वो भी चली गयी
मयंक वहाँ से बहुत दूर कही पहाड़ो में जा बसा और हर रात सितारों से बाते करता है और उनसे मीनाक्षी का हाल पूछता है, लोग उसे पागल कहते है
समाप्त.....
मोहम्मद उरूज खान
तहसील बिलासपुर
जिला रामपुर
उत्तरप्रदेश