शीर्षक = गरीब का सपना
"अरे हरिया सुबह सुबह कहा भागे जा रहा है " हरिया को रोकते हुए एक आदमी ने कहा।
"कही नही काका बस मंदिर जा रहा था वो क्या है ना, आज बेटा शहर जा रहा है पढ़ने के लिए बस उसके लिए ही पंडित जी से प्रार्थना कराने जा रहा हूँ " हरिया ने कहा।
"अच्छा, ये तो बहुत ख़ुशी की बात है तो कब जा रहा है " उस आदमी ने कहा
"आज दोपहर को निकलेगा दिल्ली के लिए वही के एक अच्छे कॉलेज में उसका दाखिला हो गया है, छात्र वृत्ती मिली है उसे " हरिया ने कहा।
"मुबारक हो मुबारक हो, आखिर तुम्हारा सपना पूरा होने जा रहा है, " उस आदमी ने कहा।
"सपना तो नही था साहब बस ख्वाहिश थी की मेरे बच्चें पढ़ लिख जाए मेरी तरह न रह जाए मेहनत मजदूरी के भरोसे, बस यही सब सोच कर अपना तन पेट काट कर बच्चों को पढ़ाया है, बाकि ईश्वर की मर्ज़ी मेरी तो बस यही कोशिश थी की वो अपने जीवन में कामयाब हो जाए मेरी तरह न रह जाए
एक गरीब बाप उन्हें दे ही क्या सका दो वक़्त की रोटी के अलावा " हरिया ने कहा
"अरे नही ऐसा नही कहते है, तुमने जो किया वो बहुत है उनके लिए अगर वो समझें तुमने अपनी मजदूरी में घर भी चलाया और उन्हें पढ़ाया भी देखना वो तुम्हे समझेंगे और तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा चलो अब मैं चलता हूँ तुम भी जाओ पंडित जी से उनके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना कराओ" उस आदमी ने कहा और वहाँ से चला गया।
हरिया भी तेज तेह कदमो से मंदिर की और बढ़ने लगा आज वो बहुत खुश था उसका बड़ा बेटा शहर पढ़ने जा रहा था उसका सपना पूरा होता नजर आ रहा था।
समाप्त...
मोहम्मद उरूज खान