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जीवन में हर किरदार देखा है

4 दिसम्बर 2022

17 बार देखा गया 17
बचपन देखा है
खिलौनों के साथ।
मां की ममता का ,
रहता था सदा हाथ।
पेट की क्षुधा मिटाने के लिए,
रो-रोकर घर को उठा देता था।
मां के आंचल में छुपकर,
लुकाछिपी का खेल खेलता था।।

जिद्द रहती थी ,
गगन के चमकते चांद तारे चाहिए।
हर पल मुझे मेरी ,
मां की ममता की छांव चाहिए।
घर के आंगन में,
प्रेम और खुशियों के पलों की बरसात थी।
मेरे पिता के सपनों की दुनिया,
और मेरे पुरूखो के आशीष की सौगात थी।

जन्नत रहती थी घर में,
प्रसन्नता के भाव बसते थे।
हर दिन मेरे किरदारों से,
मेरे अपने तरसते थे।
मेरी हर इच्छा को,
मां बाप ने संघर्षों से सजाया था।
खुद भूखे रहकर ,
मुझे खाना खिलाया था।

उंगली नहीं छोड़ी,
जब तक मैं सक्षम नहीं हुआ।
जेड प्लस सुरक्षा रहती,
मैं जब तक पैरो पर खड़ा नहीं हुआ।।
मेरे दिल में उनके लिए,
सदा प्रेम पलता था।
मां का आंचल और पिता के उम्मीदों से,
मुझे स्वर्ग आनंद मिलता था।

स्कूल की दीवारों के तले,
मैने जिंदगी के सपने सजाए।
गुरूओं के आशीष ने,
मुझे जीवन के आदर्श सिखलाए।
मेहनत करना सिखाया,
गगन में उड़ना सिखाया।
मेरे वर्तमान को ,
मेरे गुरू और मां बाप ने बनाया।

प्रेम के रिश्तों के बंधन से,
जब मैं वचनबद्ध हुआ था।
जिम्मेदारी निभाने के लिए,
मैं आबद्ध हुआ था।
मेरे सपनों की रानी,
मेरे जीवन में आई।
मैंने गृहस्थी की दुनिया,
इस धरा पर अपनाई।।

जब मैं बचपन से ,
पिता के किरदार में आया।
कितना दुष्कर पथ है।
मुझे समझ में आया।
पति भी मैं पिता भी मैं,
किसी मां बाप का बेटा भी मैं।
भाई भी मैं,चाचा भी मैं,
घर रुपी चमन का बन गया हर तरू मैं।।


शब्द mic
20
रचनाएँ
लफ्जों के अल्फाज
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इस पुस्तक माध्यम से मेरे दैनिक विचारों का संगम आपके सामने प्रस्तुत किया जायेगा जिसमें मेरी दैनिक जीवन की भावनाएं काव्य के रुप में आपके सामने प्रस्तुत किए जायेंगें।
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