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खुशी मनाएं या गम में खो जाए

31 दिसम्बर 2022

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मुझे समझ नहीं आता चरित्र इस जमाने का।
खुशी 2023 आने की या गम है 2022 जाने का।।
जो कुदरत की मखमली चादर में सदा के लिए सो गए।
वे 2022 की पीडा से आंखों से नम हो गए।।

आज भी पीड़ा है फुटपाथों पर मजबूर और लाचारों की।
क्या परिवर्तन आया दुनिया में भीड़ बड़ी बेरोजगारों की।।
खुशियां क्या है उनके लिए जो कल भी वही थे आज भी वही है।
परिवर्तन कुछ बातें करने वाले कल भी वही थे आज भी वही है।।


रूका नहीं संघर्ष मानव का रोटी वसन आवास के लिए।
आज भी हावी है अमीर की भूख गरीब के शोषण के लिए।।
पेट की क्षुधा आज भी शेष है भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को।
क्यों आज भी मजबूर हैं मानव लूटपाट और चोरी को।।


श्रृद्धा और रूबिका की दरिंदगी के गम देकर जा रही है।
विश्वास की दुनिया नहीं बची संदेश देकर जा रही है।।
महामारी का दंश तेरे अस्तित्व में भी हमने झेला है।
हमने भी खतरों का खेल तेरे राज में खेला है।।


सरहदें आज भी नहीं मिटी रिश्तों के तकरार की।
आज भी व्याकुल है जन दशा बिगड़ रही है परिवार की।
तकनीक के साथ तकलीफ देकर जा रही है।
तकनीक मानव की तकलीफ़ बढ़ा रही है।।

सीमा का संघर्ष नहीं रुका जमीन, इज्जत की लड़ाई का।
कभी पाक कभी चीन बनाया इरादें भारत चढ़ाई का।
जो ताकतवर है निर्बल को कुचल रहा है।
जैसे यूक्रेन रुस के साथ घुटने टेक रहा है।।


शब्द mic
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रचनाएँ
लफ्जों के अल्फाज
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इस पुस्तक माध्यम से मेरे दैनिक विचारों का संगम आपके सामने प्रस्तुत किया जायेगा जिसमें मेरी दैनिक जीवन की भावनाएं काव्य के रुप में आपके सामने प्रस्तुत किए जायेंगें।
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