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अब के बरस

30 दिसम्बर 2022

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खुशियां रख करते विदाई,
हम पिछले बरस को।
नई उम्मीद और नये संकल्प के साथ,
बैचेन है हम नव वर्ष दरश को।


कोरोना की महामारी से ,
इस साल हमने निजात पाई थी।
रूस ने यूक्रेन में जाकर ,
खूब हाहाकार मचाई थी।।

अंतिम दिनों में चीन ने,
अपनी दम आजमाई थी।
पर भारतीय सेना ने ,
पलट कर अपनी ताकत दिखाई थी।।


हे स्त्री इस साल तेरे दुर्भाग्य की कहानी,
कब बदल पायेगी।
निर्भया,संजली, श्रृद्धा,रूबिका जैसी दरिंदगी,
तेरा पीछा नहीं छोड़ पायेगी।


नये साल पर हमने,
 पहले भी लक्ष्य बनाये थे।
अपने अंदर झांको हम ,
कितने हासिल कर पाये थे।।


नववर्ष हमारे लिए हर वर्ष आती है,
और चली जाती है।
इंसान में इंसानियत नहीं बढ़ती,
जुल्म और अत्याचारों की दुनिया बढ़ जाती है।।


हर मनुष्य को मुबारक कैसे दूं,
मैं नववर्ष के आगमन पर।
भूखे नंगे बिलख रहे लोग,
देश की रेडलाइट के फुटपाथों पर।।


हवस बढ़ती जा रही है,
मनुष्य के खून के प्यासे हो रहे हैं।
मासूम सी बच्चियों के हर दिन,
बालात्कार हो रहे हैं।।

डर नहीं बचा मनुष्य के ,
ईश्वर के द्वारे भी अश्लीलता कर रहे हैं।
मंदिरों में हो रहे हैं बालात्कार और मर्डर,
विश्वास और आस्था के खून हो रहे हैं।
शब्द mic
20
रचनाएँ
लफ्जों के अल्फाज
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इस पुस्तक माध्यम से मेरे दैनिक विचारों का संगम आपके सामने प्रस्तुत किया जायेगा जिसमें मेरी दैनिक जीवन की भावनाएं काव्य के रुप में आपके सामने प्रस्तुत किए जायेंगें।
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