"दो जून की रोटी"न पेट होता, न रोटी का झगड़ा होता।रोटी के स्वाद अनेक, पर पेट एक है।हाथ मे रोटी, सब के कर्म की है रोटी ।अमीरी गरीबी की पहचान है यह रोटी।फ़िल्म में रोटियां की दास्तां निराली है।जग संसार मे रोटी की कहानी निराली।यह रोटी मौत की सौदागर बन गई है कही।घर द्वार जग
जग में मचा हुआ है रोना धोनामिलकर मार भगाओ ये कोरोनाछोटा बच्चा है या कोई बड़ा हैकैद हर शख्स घर में ही पड़ा हैछाया यही एक खौफ चारों ओरटूट न जाए कहीं ये जीवन डोरमुश्किल में होश नहीं अपने खोनामिलकर मार भगाओ ये कोरोनाकिताबों से यही सदा सीखा ज्ञानसफाई का हमको रखना है ध्यानसाफ रखो